नो झगड़ा नो लाइफ r k lal द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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नो झगड़ा नो लाइफ

नो झगड़ा नो लाइफ

आर ० के ० लाल

रात के दस बज रहे थे। सचिन अभी अभी काम से लौटा था। सचिन की पत्नी वर्षा बड़े गुस्से से तिलमिला रही थी। आज उसकी मैरिज एनिवर्सरी थी और उसने सचिन को जल्दी घर आने के लिए कहा था क्योंकि उसने शाम को बाजार जाने एवं फिर किसी अच्छे होटल में डिनर करके घर लौटने का प्रोग्राम बनाया था। । वर्षा तो पूरी तरह सज संवर कर तैयार हो गई थी मगर इंतजार ही करती रह गई। उसने खाना भी नहीं बनाया था । उसकी पाँच वर्ष की बेटी भी इंतजार करते करते सो चुकी थी। घर में उसके साथ ससुर भी रहते थे इसलिए वह उन्हें भी डिनर पर साथ ले जाना चाहती थी । वर्षा ने कई दफे सचिन को फोन मिला कर याद दिलाया था लेकिन सचिन समय से घर नहीं लौटा था बल्कि थोड़ी देर पहले ही बता दिया कि आज एक नए क्लाइंट के साथ मीटिंग चल रही है इसलिए आने में देर हो जाएगी और उसने फोन काट दिया था। इस बात पर हंगामा तो होना ही था।

जैसे ही सचिन घर में घुसा दोनों शुरू हो गए। सचिन अपना पक्ष रखना चाहता था पर वर्षा कहाँ सुनने वाली थी। थोड़ी देर तक तो कहा सुनी होती रही फिर सामान टूटने की आवाजें आने लगीं तो सचिन के मम्मी-पापा से नहीं रहा गया । वे दोनों उनके बेड रूम में पहुँच गए जहाँ लड़ाई हो रही थी। दोनों ने सचिन और वर्षा को डांट लगाई। सुन कर वर्षा और भड़क उठी। बोली कि आप हम दोनों के बीच दखल न दें। देर रात तक यही सब चलता रहा, किसी ने डिनर नहीं किया । सुबह सचिन के पापा ने दोनों को बुला कर समझौता कराया । साथ ही बोले तुम लोगों को पड़ोसी रहमान साहब से सीखना चाहिए। पैंसठ साल के हो रहे हैं, मिया बीवी में एक खटपट तक नहीं होती। उनके घर का वातावरण कितना खुशनुमा रहता है, सोसाइटी में सभी उनकी मिसाल देते हैं। अगर उनके पास जाने में शरम लगती है तो मैं उन्हें अपने घर चाय पर बुला लेता हूँ।

अगले संडे को रहमान साहब अपनी बेगम के साथ सचिन के घर आए। बातों बातों में सचिन की मम्मी ने उन लोगों से सचिन और वर्षा को उनके दाम्पत्य जीवन अच्छे से बिताने हेतु कुछ टिप्स देने का अनुरोध किया और कहा कि दोनों नादान हैं, बात-बात पर झगड़ने लगते हैं। रहमानजी ने हँसते हुये कहा, “आप सभी को लगता होगा कि हमारे बीच कोई कहा-सुनी नहीं होती और हम दोनों बहुत संतुष्ट और आदर्श पति-पत्नी हैं। वास्तव में यह सरासर गलत है। आजकल तो हम लोग बहुत बोर फील करते हैं। मनहूस सी लगती है जिंदगी। रिटायरमेंट के बाद करने को कुछ नहीं है, केवल घिसी पिटी लाइफ चल रही है। लड़ाई झगड़े होते थे तो समय बीत जाता था , फिर रूठों को मनाने का अपना ही मजा होता है। लड़ाई शांत होने पर एक अजनबी की तरह फिर से मिल जाते, सब कुछ नयापन लगता मगर तुम्हारी आंटी तो अब इसका मौका ही नहीं देतीं। हम तो ऐसा दोस्त चाहते हैं जो हमारे घर चाय पर आए और हमारे बीच लड़ाई लगवा कर जाए क्योंकि मेरा मानना है कि “नो झगड़ा नो लाइफ” ।

फिर रहमानजी ने बताया कि पहले हमारे बीच बहुत झगड़े हुआ करते थे। दूसरों की तरह ही हमारी लड़ाई के मुद्दे भी गमगीन परन्तु निरर्थक ही हुआ करते थे। शुरुवात उन्हीं बातों से की ड्राइंग रूम में सलीके से सामान न रख कर इधर-उधर फेंक दिया है , ऑफिस से आकर कपड़ा उतार कर अथवा वॉशरूम से आकर गीली तौलिया सोफे पर रख दिया है । यदि कभी कह दिया कि मां के हाथ का खाना बहुत अच्छा है , तुम पता नहीं कैसा खाना बनाती हो, या एक दूसरे के पैरेंट्स और रिस्तेदारों के बिरुद्ध कुछ टीका टिप्पड़ी कर दिया या पड़ोसी की तारीफ कर दिया तो भी झगड़ा शुरू हो जाता था जिसका नतीजा प्रायः कुछ समान टूट जाना, घर छोड़ कर कहीं चले जाना होता था । गहने कपड़े न बनवाने या बच्चों के पीछे अथवा एक दूसरे को समय न देना भी कभी कभार झगड़े का कारण होता। एक दूसरे को प्रताड़ित करना तो जाहिलों का काम होता है। बहुत घरों में क्रिमिनल वारदातें भी होती रहती हैं। उन क्रिमिनलों की बातें तो हम नहीं कर सकते क्योंकि हम समझते हैं कि हम सब जाहिल नहीं हैं बल्कि सभ्य हैं । ऐसे पति- पत्नी के बीच केवल तकरार और बिचारों के एकसमता न होने के कारण केवल कहा-सुनी होती रहती है। मगर नासमझी के कारण इनके नतीजे भी बुरे होते हैं । अगर परिस्थिति न संभाली गयी तो तलाक या नारकीय जीवन में सब कुछ बदल सकता है। वे ठहाका लगते हुये बोले कि हमें तो अफसोस ही रह गया कि हम इतना भी नहीं कर पाये कि कोई लड़ाई यादगार ही बन गयी होती। हमें ज़्यादातर पता ही नहीं होता था कि हम लोग क्यों लड़ रहे हैं”।

हमारी पत्नी हमेशा कहती थी कि तुम बैचलर की तरह व्यवहार करते हो । हम लोग को मक्खी भी लात मार देती थी , लगता था कि हमारा ईगो हर्ट हो गया , और हम लोग तू तू मैं मैं करने लगते थे। निकाह होने के शुरुआती सालों में एक दूसरे की अदाएं बहुत पसंद आती थी । बाद में वो सब बातें न जाने कहाँ गायब हो गईं। वही बातें बाद में अच्छी नहीं लगती थी । हम दोनों पहले एक दूसरे को बदलने के लिए लड़ते थे और जब दोनों बदल गए तो जीवन ही नीरस हो गया। केवल यही कहते रहते हैं कि तुम तो कितना बदल गए हो।

हमारे बीच इतनी लड़ाई होती थी कि मेरे परिवार वाले तोबा कर लेते थे । लेकिन बिना बुनियाद की लड़ाई कब तक चलती इसलिए उसकी मियाद चाहते हुये भी ज्यादा नहीं होती थी । कभी न कभी तो समझौता होना ही रहता था। जब हमें अपनी गलती का एहसास होता, या जब खाना न मिलता, नई पिक्चर देखने न जा पाते या एक दूसरे को मोहब्बत नहीं कर पाते तो झक मार कर सब कुछ भूल जाते थे और कंप्रोमाइज़ कर लेते थे । हाँ ! हम लोग अपने दिमाग के कंप्यूटर से झगड़े की बातें सदैव डिलीट करते रहते थे।

हमारे झगड़े हेल्दी भी होते थे । तमाम उम्र तनावपूर्ण झगड़े का अंत हम मुस्कुरा कर अथवा हंसकर करते रहते थे। एक बार की घटना है जब हमने अपने एक रिश्तेदार के यहां दारू-शारू की पार्टी में खूब मस्ती की थी । उस पार्टी में कुछ महिलाएं भी थी। मेरी पत्नी वहीं लड़ने लगी। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया । मैंने उससे कहा कि तुम खाना खा लो फिर घर चलते हैं, पर उसने एक न सुनी । उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसे मनाने के लिए मैंने उसे अपनी ओर खींचा। एक दो दफे प्रतिरोध जताया गया लेकिन बाद में हग करके मैं सबके सामने उसे रिझाने लगा कहने लगा कि“ मैं हमेशा तुम्हारी तरफ खिंचा चला आता हूँ । ये कैसा आकर्षण है तेरी आंखो में । सात जन्मों तक साथ निभाना है। सुन कर वहाँ सब हंस दिये, वह भी हंसने लगी और उसका गुस्सा दूर हो गया। लड़ाई होने पर मैं अक्सर जान-बूझ कर बाथरूम में बिना टावल लिए चला जाता था और फिर वहां से चिल्लाता था कि बेगम जरा टावल देना, मैं भूल गया। पहले तो वह नहीं बोलती थी लेकिन कई दफे कहने पर वह चली आती थी । फिर मैं उसे बाथरूम में खींच लेता और थोड़ी देर बाद हम लोग फ्रेश होकर के बाहर निकलते थे। एकाध बार घायल हो कर भी निकले थे।

मिसेज रहमान ने बताया, “जब मैं नौकरी करती थी तो एक बार मेरे ऑफिस से किसी काम में गड़बड़ी होने पर मुझे मेमो मिल गया था। बड़ा तनाव था, ऑफिस की तमाम बातों को सोचती रही । रात भर नींद नहीं आई थी । दूसरे दिन संडे था। सौभाग्य से सुबह ही किसी बात पर रहमानजी से झगड़ा हो गया था । मैंने भी जी भर कर इन्हें खूब सुनाया, जो नहीं भी कहना चाहिए था वह भी। हम दिन भर झगड़े में ही व्यस्त रहे, इस कारण ऑफिस की कोई बात मन में नहीं आयी और ऑफिस के टेंशन का असर नहीं रह गया था। बाद में सब ठीक हो गया। इस तरह के झगड़ों को हम हेल्दी झगड़ा मानते थे ।

उन्होंने बताया कि झगड़ों को हेल्दी बनाने के लिए हम लोगों ने एक अद्भुत प्रयास किया था। सभी पति-पत्नी एक दूसरे के लिए कभी न कभी कुछ अच्छा काम करते ही हैं जिससे वे एक दूसरे को कुछ न कुछ देने की इच्छा रखते हैं। इसके लिए हम लोगों ने एक अलग ही तरीका अपनाया था। खुश होने पर हम तुरंत कुछ नहीं देते थे बल्कि एक डायरी में उसे क्रेडिट की तरह नोट कर लेते थे । जरूरत होने पर एकत्रित हुये क्रेडिट को हम भुनाते रहते थे । क्रेडिट के बदले क्रिमिनल एक्शन को छोड़ कर कुछ भी डिमांड की जा सकती थी। दूसरे को उसे जल्दी से जल्दी पूरा करता होता था । हममें लड़ाई खत्म करने के लिए अपने क्रेडिट से एक या अधिक का इस्तेमाल करके यदि कह दिया कि पिक्चर चलना है तो फिर वह हम दोनों पर कंपलशन हो जाता था। जब हम लोग पिक्चर चले जाते तो मन बदल जाने से गिले-शिकवे दूर हो जाते थे। इसी तरह मुस्कुराना, प्यार करना, गोल-गप्पे खिलाना, कोई गिफ्ट दिलाना, या फिर सिर की चंपी करवाना कुछ भी मांगा जा सकता था”।

सचिन के पापा ने भी कहा कि लड़ाई-झगड़ों की असली वजह हमारी लाइफस्टाइल है। जब तकरार लड़ाई-झगड़े में बदल जाती है तो चिड़चिड़ापन बढ़ जाने से छोटी-छोटी बातें भी बुरी लगने लगती हैं। इसलिए आमने सामने बैठ कर उन्हें सुलझाया जा सकता है । सॉरी कहने में क्या लगता है। हम लोगों ने भी इस मंत्र का बहुत इस्तेमाल किया है। कहा था कि भविष्य में ऐसी कोई भी बात नहीं होगी मगर भविष्य किसने देखा है। सब मिलाकर अगर तुनुकमिजाजी छोड़ कर झगड़े की परिस्थितियों को एंजॉय कर पाएँ तो बात बिगड़ने से बच जाएगी।

मिसेज रहमान ने अपना राज खोला, “जब मैं रहमान साहब की पसंदीदा व्यंजन बना देती थी तो इनकी नाराजगी न जाने कहाँ गायब हो जाती थी और हमारी तारीफ स्वतः होने लगती थी । हम दोनों ही एक-दूसरे को नसीहत नहीं देते थे क्योंकि यही रोक-टोक की बातें धीरे-धीरे लड़ाई की वजह बनती हैं। झगड़ा होने पर हम जितना तेज बोलते हैं उतना ही हमारे बीच दूरी बढ़ जाती है, इसलिए प्रयास करना चाहिए कि मंदतर आवाज में झगड़ा हो । हम तो कहते हैं कि जीवन की बैटरी चार्ज होती रहे इसलिए उसके पॉज़िटिव नेगेटिव के बीच झगड़े का एलेक्ट्रोलाइट भरना जरूरी होता है बिना तेजाब के विद्धुत धारा नहीं बन सकती”।

रहमानजी ने सचिन और वर्षा को समझते हुये कहा , “मेरा तो मानना है कि जीवन में झगड़े अघुलनशील होने चाहिए । अघुलनशील पदार्थ शीघ्र ही नीचे बैठ जाते हैं । उनके टर्बूलेंट होने पर एक और फायदा हो सकता है कि आपसी हुडदंगी माहौल को देखकर कोई बाहरी व्यक्ति उसमें हस्तक्षेप करने की हिम्मत न करे। इस प्रकार हमारा पारिवारिक जीवन मजेदार झगड़ों के कारण सुखमय बना रहेगा”। सचिन और वर्षा ने तो यह सब सीख कर अपना जीवन का नजरिया ही बदल डाला। अब उनमें केवल हेल्दी बातें ही होती हैं।

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