पोषम्पा भई पोषम पा,सौ रुपये की घड़ी चुराई
दो रुपये की रबड़ी खाई,अब तो जेल में जाना पड़ेगा।
जेल की रोटी खाना पड़ेगा,जेल का पानी पीना पड़ेगा
अब तो जेल में जाना पड़ेगा।
ये प्यारी तोतली भाषा वाक़ई मन को जीत लेते है,कितना रस भरा होता है इन तोतली भाषा मे की चेहरे पर मुस्कान कुछ यूं बिखेर देता है मानो सूर्य की किरण बिखर रही हो। बहुत खूब बच्चो आपने तो मेरे पुराने पल याद दिला दिए। वरना शहर में कहा ये सब देखने को और सुनने को मिलता है। वहाँ की दुनिया तो बिल्कुल कैदी जैसी है। एक ऐसा भागदौड़ जिसमे कब अँधेरा कब उजाला हो गया पता ही नही चलता। इंसान न किसी से बात करता है ना ही किसी के पास इतना समय। सुषमा जीजी शहर में सब अपने मे व्यस्त है,वहां गांव वाली खुशबू तो दूर लोग को ठीक से देखें भी बहुत दिन हो गए। ज्यादा दूर क्या जाऊ मुझे तो ठीक से ये भी याद नही कि मैं और अभिषेक आखिरी बार कब बात किये होंगे। अरे ऐसा क्यों सब ठीक तो चल रहा ना भावना सुषमा ने भावना का हाथ थामते हुए बोला। दीदी जब बात ही नही होगी तो रिश्ता सब ठीक ही चलता है,भावना ने सुषमा को जवाब दिया। वक़्त की सुई अभिषेक को सदैव याद रहती है लेकिन उनके निजी जिंदगी में चल रही सूई में सब ठीक है या नही बच्चे ठीक है या नही ,उनकी पढ़ाई लिखाई,किसी भी चीज की ओर उनका ध्यान नही होता सिर्फ जब साइट से आए तो पूछ लिया बच्चे सो गए भावना। बस उसके बाद ना तो उनका घर के खाने से रिश्ता है ना ही हम सबसे। राघव भी उन्ही को चला गया है,ना किसी से बात करना न ही किसी के साथ खेलना। रूमी तो दिनभर पढ़ने में लगाती है। उसे पढ़ाई की सुध के आगे ना माँ अच्छी लगती है ना उसको उसका भाई राघव। दोनों बच्चे अपने अपने कमरे में कैद होकर पढ़ाई करते हैं। बच गयी मैं पूरे दिन कैसे कटू तो इंटरनेट पर महिलाओं को लेकर कई साइट्स है उसी पर पढती लिखती हु। दिन गुजर जाता है।भावना बिल्कुल रुआँसी हो उठी। सुषमा ने भावना के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा- हम सब सोचते थे तू बहुत खुश होगी मगर यहां सब उल्टफेरी है। तू कोई नौकरी क्यों नही कर लेती। दीदी कर लुंगी बच्चे थोड़े समझदार और हो जाए। अभी घर की हालत ऐसी है कि कोई तो है जो उन्हें डाँटकर खाना ही खिला देता है अन्यथा वो दिनभर क्या करंगे वो समझना मुश्किल हो जाएगा।
अच्छा सुन अब जब बच्चे गांव आ ही गए है तो क्यों ना हम उन्हें इन खेलों से रूबरू कराए सुषमा ने भावना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। वैसे भी हफ्ते भर से आई हो इतने दिनों के बाद नजर आई हो। करती क्या हो यहाँकौन सा जेल है। सही कहा दीदी आपने भावना ने जवाब दिया जिंदगी शादी के बाद जेल ही हो जाता है। एक जगह रहकर। अच्छा तो जेलर कौन है सुषमा ने हँसते हुए पूछा। भावना तपाक से बोली अभिषेक। दोनों हँसने लगे।
तभी राघव आया और बोला- माँ चलो ना अन्दर। क्या ये बैकवर्ड क्लास के लोगो के साथ हँस बतिया रही हो। ये सुन भावना से ज्यादा सुषमा हताश हो गयी कि एक आठ साल का बच्चा इतनी बड़ी सोच रखता है। भावना झेप खाते हुए बोली अरे राघव ऐसे नही बोलते। देखो तो यहाँ सभी बच्चे क्या खेल रहे। आपकी माँ ने भी ये खेल खूब खेला है। आओ मैं तुम्हे भी खेलवाती हूँ। माँ मैं ये सब थर्ड क्लास गेम नही खेलता। आप भी चलो ना अंदर। ये सुन भावना को बुरा लगा।उसने मन ही मन ठाना क्या मैंने अपने बच्चो को यही संस्कार दिए है। उसने तुरंत राघव का हाथ पकड़ा और उन नन्हे बच्चो के बीच जा खड़ी हुई और बोली हम लोग भी खेलेंगे। राघव के चेहरे पर गुस्सा था,मगर भावना के चेहरे की सिकन मुस्कान में बदल गई। शुरू हुआ राघव के जीबन का पहला पोषम्पा।
वाक़ई सच तो ये है कि आजकल के भौतिक सुख साधनों के बीच बच्चे घर के किसी कोने में मोबाइल पर खेलते हुए नजर आते है। ना ही उन्हें अपने शरीर की चिंता है ना ही अपने आँखों की रोशनी की। उन्हें सिर्फ और सिर्फ मोबाइल के साथ समय बिताना पसंद है। वो पुराने खेल कूद तो आज के बच्चो से काफी दूर हो गए है। जहां हमने धूल मिट्टी के साथ अनेको खेल खेले आज सभी खेल एक बन्द कमरों में कैद हो गए है एक नए रूप में। जहां ना बच्चे ,बच्चे से मिले ना ही खेल के बारे में जाने। इस तरह से देखा जाए तो सही मायने में अनेको खेल हमारे पास से विलुप्त हो चुके हैं। जिसमे गलती मोबाइल की नही हमारी है। हम बच्चो को मोबाइल के साथ व्यस्त कर दिए है।