बिन साजन ना भावे सावन AKANKSHA SRIVASTAVA द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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बिन साजन ना भावे सावन

काले बदरे ,ओर रिमझिम फुहार...मोर के पंख सावन के झूले,गरजते बादलों में आपसी बातचीत ओर तुम ओर मैं।क्या तुम मुझे फिर अपने रंग में मुझे रंगोंगे मेरी रूह को तुम छुओगे। क्या हम चमकती बिजली के डर से एक दूसरे से फिर लिपट लिप्त हो जाएंगे। रूही अपनी खिड़की के ग्रिल से सिर टिकाए ,खुले आँखों से उसे महसूस कर रही जिसे वो कब का खो चुकी है। उन कड़कती बिजली और गरजते बदलो से कुछ अपनी भी कहने की कोशिश कर रही।
तेज वर्षा ओर रूही एक दूसरे से कह अपने आंसू को व्यक्त करने की कोशिश। ए बादलों सुनो आज में असहज कमजोर महसूस कर रही,न जाने क्यों उनकी हर यादे घूमती है,उनकी मुलाकात,पहली बरसात की मुलाक़ात जब हम और वो एक साथ भीजे,तन मन से एक दूसरे से समर्पण होते नजर आए। हर शर्म शान्त सी बन गयी जब हम एक दूसरे के करीब आए।वो पहली बरसात, एक दूसरे का साथ कितना नया था सब। कभी ख्वाबों में न सोचा कि हम एक दूसरे को स्पर्श करंगे। एक ऐसा स्पर्श जहां सब कुछ शान्त था। एक ऐसी आहट जहाँ आंतरिक सुख के दरवाजे खुलकर साँसे ले रही थी। उनका करीब से माथे पे एक गर्म चुंबन जिसे साँसे ओर भी तेज हो गयी। दूर होते हुए भी हम बेह्द नजदीक थे। आज शर्म का आइना खुल गया था। हम एक दूसरे के हवाले से हो गए। इन्ही कड़कते बादलों की वजह से। सब कुछ अनजान बेह्द दिलचस्प था सब कुछ मगर आज सबकुछ कहानी सी लगती है मेरे साजन।आज भी मैं सावन के इस पानी मे भीग रही,तेज हवाओं से कांप रही लेकिन तुम मेरे साथ नही। दिल के हर दरवाजे तुम्हारी दस्तकों को निहार रहे। भिज रही उन्ही गोतो में जहाँ हम आपको मिले आप हमें मिले।
ह्म्म्म,सावन के झूले,और वो हर सावन के माह में भोले के दर्शन कितना रोमांचक था सब कुछ कैसे कहूँ,भोले के दर्शन तो एक बहाना सा था,असली मिलन तो आपसे होती थी। हर बारिश में मुझे भीगने से बचाना मेरी केयर,सावन लगते मेहदी लगवाना ,हरी चूड़ियां से मेरा श्रृंगार करना। मेरा मुस्कुराना ही आपके दिलो को भिगो देने के बराबर था। सावन के नजदीक आते ही एक लम्बी सी लिस्ट आपको व्हाट्सएप करना,जिसमे साजो श्रृंगार से जुड़ी होती थी फरमाईस। आख़िरी के शब्द कुछ यूं होते थे,बीवी हूं तुम्हारी। कभी तो बिन लिस्ट तैयार रहा करो। आपसे ही साजो श्रृंगार है,सब कुछ।
तेज बारिश में गरमा गरम चाट खाना,भुट्टो का आनंद लेना। तेज घुड़कते बादलों से डर कर एक दूसरे से लिपट जाना। सब कुछ कितना नया था। पता नही आपको याद भी है कि नही आपका पहला प्रपोज भी बेहद खूबसूरत था। ऐसा लगता था सबकुछ भगवान का दिया हुआ है। मगर आज सब कुछ साफ है हम एक दूसरे के तो नही मगर एक दूसरे के करीब हर पल है। जानती हूं तुम खामोश जरूर हो मगर मेरी याद तो हर पल चुभती होगी न। कैसे भिजु बिन साजन सावन में। कैसे करूँ श्रृंगार बिन साजन सावन में। किसके नाम की मेहंदी लगाऊँ इस सावन में। अब तो ये मौसम भी नही भाते,सच कहूँ प्रिय तुम बिन न भावे ये सावन।