ek ladki bhigi bhagi si books and stories free download online pdf in Hindi

एक लड़की भीगी भागी सी

टिंग टॉन्ग घर की कॉल बेल अपनी रफ्तार में लगातार बज रही थी, दरवाजे के उस पार से आवाज आई अरे आई ..खोल रही हूँ बोलते हुए माँ ने दरवाजा खोला। इतना घण्टी लगातार कौन बजाता है माँ ने नाराजगी जताते हुए कहा," माँ मैं बजाता हु तुम्हारा बेटा। यहां इतना बुरा भींग गया हूं कि पूछो मत । ठीक है ठीक है...जा जल्दी से बदल लें माँ बोलती हुई रसोई की ओर बढ़ गई मैं मसाला चाय बना कर लाती हु तू जा ऊपर। ठीक माँ सचिन काउच से तौलिया उठाते हुए बोला,माँ जब घर आओ तब ये आपका रेडियो बजता रहता है। हा तो मैं भी इंसान हु अकेले बोर हो जाती हूं, तुझे तो शादी करनी नही,तो रेडियो से ही प्यार कर लूं माँ ने किचन से ही ताने मारते हुए कहा। सचिन ने सर हिलाते हुए जवाब दिया माँ... गलती हो गयी अच्छा फटाफट मैं चेंज करता हूं आप पकौड़े और चाय बनाओ।ठीक है जा माँ ने सचिन को जवाब दिया। सचिन दौड़ते हुए ऊपर अपने कमरे में आया और जल्दी से बाथरूम में घुस गया।बाहर मूसलाधर बारिश की कड़क, घर मे माँ का रेडियो उफ़्फ़फ़.... सचिन भुनभुनाते हुए कपड़े बदल ज्यो बाहर निकला उसकी नजर कमरे की खुली हुई खिड़की पर पड़ी। सचिन कुछ समझता उससे पहले वो खिड़की पर टकटकी लगा बैठा ये सामने वाले घर में कौन लड़की आ गयी।और इसे अपने तबियत की चिंता नही। इतने मूसलाधर पानी मे इसे छत पर डांस करने की सूझी है।उसका मंत्रमुग्ध डांस और भींगे भींगे उलझे उलझे लट ,काले-काले बादलों के बीच पीले कपड़े में खिल- खिलाती हुई सी,कभी मासूम हरकतों में उमड़ती कभी बल खा कर लटकती झटकती वो भीगी भीगी सी लड़की..
सचिन की निगाहें खिड़की पर ही टिक गयी,चुपचाप वो उसे देखता रहा..... घर मे रेडियो की आवाज गूंज रही थी,बाहर मूसलाधर बारिश की शोर उसमे वो पगलाई सी लड़की कुछ यूं झूम रही थी मानो बारिश का बीमार होने का कोई डर ना था उसे, ठीक उसी तरह जैसे फिल्मों में होता है...हम्म्म्म इक लड़की भीगी भागी सी,सोती रातो मे जागी सी
मिली इक अजनबी से, कोई आगे ना पिछे
तुम ही कहो ये कोई बात है...
डगमग- डगमग लहकी -लहकी,भूली -भटकी बेह्की- बहकी
मचलि मचलि घर से निकली,पगली सी काली रात मे
तन भीगा है सर गीला है,उसका कोई पेच भी ढीला है
तन ती झुकती चलती रुकती,हाय निकली अंधेरी रात मे
मिली इक अजनबी से, कोई आगे ना पिछे
तुम ही कहो यह कोई बात है,इक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातो मे जागी सी,मिली इक अजनबी से, कोई आगे ना पिछे,तुम ही कहो ये कोई बात है! आहहहह..माँ ने जोर से ठिठकते हुए कहा,मैं बिल्कुल चौक गया ऐसा लगा किसी सपने से जग गया। माँ मेरे बिल्कुल नजदीक खड़ी थी, और अपनी नजरे खिड़की से लपकाती हुए बोली ओह्ह..तो ये बात है! माँ ऐसी कोई बात नही है,अच्छा बात नही है तो मैं कब से नीचे से आवाज लगा रही हू पुकारते पुकारते ऊपर चढ़ गयी और तू है कि मनमोहिनी मयूर के डांस को देख रहा।

ओह माँ ऐसा कुछ नही है मैं तो बस ये देख रहा था कि इतने भारी बारिश में कौन इतना झूमता है। पागल है वो शायद मैं बोलते हुए मेज पर रखी चाय और प्लेट में रखे गरमागरम तले पकौड़े का आनंद लेने लगा मगर ख्याल बार बार उसी लड़की पर जाता। माँ इतने ध्यान से क्या देख रही उसे,अब अपना काम करिए। मैं अपना काम ही कर रही हूं तू चुपचाप पकौड़े खा। माँ कुछ यूं उसे देख रही थी ,मानो जासूसी कर रही हो। माँ के जाने के बाद में फिर से खिड़की पर गया मगर छत सुना पड़ा था। अब बारिश की बौछार भी मधम पड़ चुकी थी। मैं खिड़की पर खड़े होकर यही सोचता रहा नीचे गयी होगी तो खूब डांट खाई होगी। भला कोई बारिश में भींगता भी है,शायद हा दिल से आवाज आई। शायद उसे बारिश बेह्द पसंद हैं। औरर... मुझे वो। ये सोचते सचिन के चेहरे पे एक अजीब सी मुस्कान छा गयी। सचिन सचिन आया माँ... क्या देख रहा था माँ मैं लेटा हुआ था,तुम भी ना। तू कहे तो मैं वर्मा जी से बात कर लूं। वो वर्मा जी की लड़की है क्या मैंने झट से उत्सकुता मे पूछा। माँ मेरे करीब आ गयी और बोली मुझे पता है तेरे अंदर उसकी हलचल चल रही है। मैं झेप गया। माँ अच्छा खाना लगाओ भूख बहुत लगी है। बात पलटना कोई तुझसे सीखे। माँ... अच्छा ठीक खाना खा। खाना खाकर मैं वापस से ऊपर आ गया। बिस्तर पर ज्यो पड़ा आंखे बेचैन हो उस खिड़की की और चलने का इशारा करने लगी। मन को रोकते रोकते अंत मे उठकर पहुच ही गया ,छत अभी भी सूना पड़ा था,मायूस होकर मैं वापस से बिस्तर पर आकर लेट गया। कब आँख लग गयी पता ही न चला। अगले दिन उठा और तैयार हो ऑफिस निकल गया। जब शाम को घर आया तो डोरबेल बजाने की जरूरत ही नही पड़ी दरवाजा खुला हुआ था,रह रहकर ठहाको से घर गूंज रहे थे। किसी की मधम आवाज माँ के आवाज में लय बुन रही थी। ड्रॉइंग रूम में देखा तो वही मासूम सी लड़की ठीक उसी तरह खिलखिला रही थी जैसे बीते रात कश्ती में गोते लगा रही थी। काले काले घने लम्बे बाल, चमकदार चेहरा,भूरी आँखे और हाथों में पतले पतले हरे रंग की चूड़ियां। सचिन सचिन हा माँ मैं चौककर बोला अरे कहा खो गया था,इससे मिल ये हमारे सामने वाले घर अपने वर्मा जी की भतीजी है यहाँ नौकरी के सिलसिले मे आयी हैं। बहुत अच्छी आवाज है इसकी,और डांस तो पूछ मत। माँ बोलती जा रही थी मैं उसे टकटकी लगाए देखता जा रहा था कभी वो सर झुका रही थी, कभी मुस्कुरा रही थी,मानो असहज महसूस कर रही हो मेरे आ जाने से। मैं तपाक से बोला क्या नाम है आपका। तपस्या उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। मैं चलती हु आंटी। कल आके मेहंदी लगाउंगी आपको। अरे क्यों आप बैठिए मैं चला जा रहा हूं, मैंने भावुक होते हुए कहा,वैसे भी आज हजारो सालो बाद मेरे घर मे रेडियो की जगह मेरी माँ की मुस्कान उसकी चहक आपकी वजह से सुनाई दी है,आपका दिल से शुक्रिया माय सेल्फ सचिन। वो सिर्फ मस्कुराई और सोफे पर बैठ गयी मैं भी अपने कमरे में आ गया,बेचैनी बनी हुई थी नीचे क्या हो रहा होगा।
माँ और तपस्या के ठहाके गूंज रहे थे। थोड़ी देर बाद वो चली गयी। अब तो हर रोज का यही था,घर मे रेडियो की जगह तपस्या ने बना ली थी। हर शाम वो माँ और वर्मा आंटी आकर घण्टो महफ़िल सजाती और फिर चली जाती। अब घर घर जैसा लगने लगा था,सालों बाद घर की रौनक बदल रही थी। इन्ही बीच माँ ने कब तय कर लिया मेरी और तपस्या की शादी पता भी न चला।

हर रोज की तरह जब मैं घर पहुँचा तो घर मे वर्मा अंकल ,ऑन्टी और काफी लोग बैठे हुए थे। किचन में खटर पटर करती तपस्या समोसे तल रही थी। उसने उस दिन चहक कर बोला अरे वाह आ गए आप। उसकी चहक और मुस्कान हर रोज की अपेक्षा कुछ अलग ही लग रही थी। मैंने भी मुस्कुरा कर जवाब दे दिया। अरे नमस्ते ऑन्टी नमस्ते अंकल,खुश रहो बेटे,आज कुछ खास है क्या?मैंने उत्सुकता में पूछा,माँ तुरंत टोकते हुए बोली वर्मा भाई साहब मेरे लिए बहू लाए है,मैं चौक गया उनकी ये बात सुनते ही कही माँ ने तपस्या के लिए। माँ ,तू चुप रह तू ही चाहता था ना कि इस घर मे रेडियो ना बजे,अब से .....तभी तपस्या समोसे लेकर आ गयी माँ ने तपस्या को पकड़ते हुए कहा अब से घर मे मैं और तपस्या खिलखिलायेंगे झूमेंगे।रेडियो को तू चाहे तो ऊपर रख लेना। माँ की बचकानी बात सुन सभी जोर से ठहाके लगा बैठे। वर्मा साहब हमे तपस्या बहुत पसंद है। माँ मगर आप इस तरह एक बार तपस्या की मर्जी तो ,तू चुपकर माँ ने टोकते हुए कहा,मेरी बहू से बात हो गयी हैं। बस अब तू हा कह दे। माँ, मैं बेचैन हो कर कहा देखिए तपस्या जी मैं माफी चाहता हूँ माँ कुछ भी बड़बड़ाती है। अरे,मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हूं। क्योंकि माँ भी मुझे काफी पसंद है।तपस्या की ये बात सुनते मैं चुप हो गया और दो मिनट रुक कर बोला तो मैं भी इस रिश्ते के लिए तैयार हूं। कुछ ही दिनों में हम दोनों की झट मंगनी पट ब्याह हो गया। सचमुच रिश्ते अद्भुत होते है, कौन जानता था कि एक दिन मैं और वो भींगी भींगी सी लड़की ,मेरी जिंदगी का हिस्सा बन जाएंगी। आज माँ और तपस्या से पूरा घर ठहाके से गूँजता है और रेडियो के जगह माँ तपस्या के साथ थिरकती है।बस यही है मेरा छोटा सा घर।

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