नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की....
छैल छबीला,नटखट,माखनचोर, लड्डू गोपाल,गोविंदा,जितने भी नाम लिए जाए सब कम है। इनकी पहचान भले अलग अलग नामो से जरूर की जाए मगर अपने मोहने रूप श्याम सलौने सबको मंत्र मुग्ध कर लेते है। आज मैं आपको कन्हैया के जन्मदिन पर लेकर चल रही हु काशी के गोकुल धाम .....जी हां आपने बिल्कुल सही सुना।
अभी तक आपने सिर्फ वृंदावन में ही गोकुल धाम घुमा होगा। मगर हम आपको भारत के मशहूर राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी ले चल रहे। जहां गोकुल क्षेत्र ही अलग है।
काशी ..शिव की नगरी जरूर है मगर ये तो आपको भी पता है कि किस तरह से सभी देवी देवता इस नगरी में बस गए। पंचनदी के करीब बसा यह गोकुल धाम अपने मे एक अलग अनोखी पहचान बिखेरता है। हर तरफ राधे राधे की गूँज। हर कोई नमस्कार नही राधे राधे से ही सम्बोधन करता है। यहाँ प्रवेश करते एक अलग ही तरह की अनुभूति प्राप्त होती है हर कोई कृष्ण की भक्ति में लिप्त है। जैसा कि आप जानते है कि अधिकांश मंदिरों में फ़ोटो न लेने की सख्त हिदायत है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही है। जबकि यहाँ फ़ोटो लेने के लिए बहुत कुछ है,जैसे गोकुल धाम , गोपाल मंदिर जो कि देखते बनता है।मन्दिर प्रांगण में प्रवेश के पहले ही चमड़े की वस्तु ले जाना मना है। मन्दिर में घुसते ही सामने तुलसी का पौध लगा है जिसके लोग कान्हा के दर्शन कर फेरी लगाते है और माफ़ी माँगते है। यहाँ से गर्भ गृह काफी दूरी पर है एक चैनल के माध्यम ठाकुर जी के दर्शन प्राप्त होते है।
वहां बना वृंदावन बाग, जहाँ आपको लगेगा कि आप यहाँ से तस्वीर उतार सकते है मगर ऐसा नहीं है। वहाँ भी कैमरे से नज़र टिकी रहती है । इस जगह उनके झूला झूलने का है। जहाँ कहा जाता है कि वो गोपियों के साथ इस बाग में घूमते हैं। उसे थोड़ा जब मैं आगे बढ़ी तो एक बड़े से लंबे हॉल में चारो तरफ़ गाय की सेवा की जा रही, उनके लिए पंखे लगे है व साफ सुथरा स्थान। ये देख आप अत्यंत प्रसन्न हो जाएंगे। हर गाय के मस्तिष्क पर राधे राधे लिखा है तो किसी के घण्टी रूपी गले के हार में ।इस गोकुल धाम मंदिर की जितनी प्रशंसा करू शायद उतना ही कम। आपको ये देख मन अत्यंत गदगद हो जाएगा। वहाँ से निकलते ही बाहर दूध मलाई , छाछ, लस्सी, मलइयो मिलता हैं जो कि अत्यंत स्वादिष्ट है।
ख़ास बात - आपको बता दें कि यह गोकुल धाम तो खुला रहता है मगर मन्दिर प्रांगण बन्द रहता है। यह महज़ दो बार ही खुलता है जिसका समय बेह्द कम।
मात्र पंद्रह से बीस मिनट तक ही दर्शन प्राप्त होता है। जो कि सुबह के समय मे लगभग छ बजे व रात्रि में सात बजे आरती के समय उसी समय थोड़ा लंबे समय तक खुला रहता है।
कैंट से ऑटो पकड़ सीधे मैदागिन पहुँच जाए । फिर वहां से कालभैरव। कालभैरव के मन्दिर न जा के आप उसे सीधे गली में चल दे । किसी से भी पूछे गोकुल धाम का मार्ग आपको आराम से लोग बता देंगे।
वैसे आप यही पर गोकुल धाम के लिए आप लोगो से ये कह दे कि चौखम्भा कहा है जहाँ गोकुल धाम है बस लोग आपको सरलता पूर्वक पहुँचा देंगे।
जन्माष्टमी जन्मा अष्टमी हम हर वर्ष कृष्णा जन्माष्टमी तो मनाते है मगर कभी ये सोचा कि हमारा जन्मदिन सिर्फ जन्मदिन के नाम से सम्बोधित किया जाता है । लेकिन कृष्णा के जन्मदिन को जन्माष्टमी क्यों?सवाल,बिल्कुल भी पेचीदा नही है,क्योंकि हिन्दू कैलेंडर अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भादो के अष्टमी ,और रोहिणी नक्षत्र के मध्यरात्रि में हुआ।इसलिए इनके जन्म को जन्माष्टमी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान कृष्ण जिन्होंने पृथ्वी पर एक मानव के रूप में जन्म लिया था ताकि वह अत्याचारी कंस का विनाश कर सके और मानव जीवन की रक्षा कर सकें और अपने भक्तों के दुख दूर कर सके। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार है।
हाथों में बाँसुरी, सिर पर मोर पंख के मुकुट, उनकी छवि देखने लायक बनती है। एक बार कान्हा ने यशोदा से पूछा...
यशोमति मैया से बोले नंद लाला , राधा क्यों गोरी में क्यों काला?
बोली मुस्काती मैया ,सुन मेरे ललना काली अंधियरी आधी रात में तू आया लाडला कंहैया मेरा काली कमली वाला इसीलिए काला।
आपको बता दे कि भगवान कृष्ण को गोविंद, बालगोपाल, कान्हा, गोपाल और लगभग 108 नामों से जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण को प्राचीन समय से हिंदू धर्म के लोगों द्वारा उनकी विभिन्न भूमिकाओं और शिक्षाओं (जैसे भगवद गीता) के लिए पूजा जाता है।इस दिन लोग व्रत रखते हैं, पूजा करते हैं, भक्ति गीत गाते हैं, और भगवान कृष्ण के भक्ति में भव्य उत्सव के लिए दहीहंडी, रास लीला और अन्य समाहरोह का आयोजन करते हैं। कन्हैया को झूला झुलाते है। इस वर्ष भी सभी वर्षों की तरह पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी कृष्णा जन्माष्टमी लोग हर्ष और उल्लास के साथ मना रहे।
आख़िर क्यों है कृष्णा जन्माष्टमी का इतना महत्व ?
हर कोई कान्हा रूपी बाल को पाना चाहता है ,इसलिए इस दिन विशेष तौर पर महिलाएं व्रत रहती है।वही अविवाहित महिलाएं भी उच्च योग्य वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं।
आपको बता दे कि माना जाता है जो लोग इस दिन पूर्ण विश्वास के साथ व्रत पूजा करते हैं, वास्तव में एक शिशु का आशीर्वाद उन्हें जल्द ही प्राप्त होता हैं। कुछ अविवाहित महिलायें भी भविष्य में एक अच्छा वर और बच्चा पाने के लिए इस दिन उपवास रखतीं हैं। पति और पत्नी दोनों द्वारा उपवास और पूर्ण भक्ति के साथ पूजा अधिक प्रभावकारी होता है।लोग सूर्योदय से पहले सुबह उठते हैं, एक अनुष्ठान स्नान करते हैं, नए और साफ-सुथरे कपड़े पहनकर तैयार होते हैं और ईष्ट देव के सामने पूर्ण विश्वास और भक्ति के साथ पूजा करते हैं। वे पूजा करने के लिए भगवान कृष्ण के मंदिर में जाते हैं और प्रसाद, धूप, बत्ती घी दीया, अक्षत, कुछ तुलसी के पत्ते, फूल, भोग और चंदन चढ़ाते हैं।इसी के साथ भक्ति गीतों और संतान गोपाल मंत्र गाते हैं। अंत में, वे भगवान कृष्ण की मूर्ति की आरती कपूर या घी दीया से आरती करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं।
लोग अंधेरी आधी रात से भगवान के जन्म समय तक पूरे दिन के लिए उपवास रखते हैं। कुछ लोग जन्म और पूजा के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं लेकिन कुछ लोग सूर्योदय के बाद सुबह में अपना उपवास तोड़ते है।कहा जाता है कि अगर हम पूरी भक्ति, समर्पण, और विश्वास से प्रार्थना करते हैं तो वो हमारी प्रार्थना ज़रूर सुनते हैं।
झुलनउत्सव
पूरे भारत मे श्रावण के महीने में झुल्लनोत्सव मनाया जाता है। लोग पेड़ो पर घरों में झूले डाल झूला झुलते है। इन दिनों घाटों और मंदिरों में हरियाली श्रृंगार से कुछ इस तरह सुंदर और विस्तृत रूप से सजाया जाता है कि ये पूरे महीने महिमा और जश्नरूपी हो जाता हैं।
पूरे महीने काशीनगरी प्रार्थना में डूबा रहता है शंख और घंटीयों की आवाज चारों तरफ गूंजती है।समस्त देवी देवताओं के हरियाली सृंगार कर व भगवान श्रीकृष्ण की झांकिया सजाई जाती हैं। दूर दूर से लोग इस मस्ती में सरोबोर होने के लिए इकट्ठा होते है। धार्मिक अनुष्ठान के बाद पंचामृत, भक्तों को शहद, गंगाजल, दही, घी का मिश्रण वितरित किया जाता है जो लोग व्रत रखते हैं वे प्रसाद के साथ अपने उपवास को तोड़ते हैं।
बाललीला/रासलीला
भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को यदि याद कर लिया जाए तो हम सभी को अपने बचपन के सभी शरारत याद आ जाते है। लेकिन वे हम सबसे थोड़े अलग थे । उनका बचपन बस मटकी फोड़ दही खाने से था। किसी भी तरह जुगाड़ बना माखन पा ही जाते थे। वही रास लीला जिसका भगवान स्वयं के गोपीयों के साथ प्रदर्शन करते थे, उसका एक रूप, मथुरा शहर और दूसरा काशी के गोकुल धाम में देख सकते है।महाभारत के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपने प्रारंभिक वर्षं यमुना नदी के तट पर स्थित वृंदावन में बिताए। रासलीला प्रदर्शन के लिए ज्ञात वृंदावन शहर में हर साल लाखों श्रद्धालु जन्माष्टमी के त्यौहार के दौरान भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेना आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदावन में मधुबन एक ऐसा स्थान है जहां भगवान कृष्ण रासलीला करते थे।
कुछ यूं ही यहाँ भी ऐसा ही बनाया गया है। त्योहार के दौरान हजारों मंदिरों के बीच, लोग गोकुल धाम, बांके बिहारी मंदिर, एस्कोन मंदिर में सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं का आकर्षण रहता है। अगर आप भी मथुरा वृंदावन नही जा पा रहे तो आप काशी के गोकुल धाम जरूर घूम लीजिए। शायद वहाँ जैसी अनुभूति से कम हो मगर आंतरिक मन से इस धाम में प्रवेश करने से पल भर को मन वृंदावन पहुँच जाएगा।