क्या मर्द को भी दर्द होता हैं AKANKSHA SRIVASTAVA द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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क्या मर्द को भी दर्द होता हैं

रात के करीब तीन बजे ही रहे होंगे तभी कमरे के बाहर कुछ आहट सी हुई ...नीद टूटी,ओर चारपाई से अभी पूरी तरह सुरेश उठी पा रहा था कि दुबारा से कॉल बेल बजी।

इतनी रात को,लगता है जान आगयी अपना काम पूरा करके। मगर आज साली इतना कम समय क्यों दी।बताता हूं अगर आधे अधूरे पैसे के साथ लौटी होगी तो,बीप बीप...साली।

सुरेश ज्यूँ दरवाजे को खोला वो देख ,उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी। साहब आप,सामने पुलिस वाले खड़े थे,जिसे देखकर सुरेश की आँखे फटी रह गयी।
पुलिस वाले,क्या सुरेश आप ही है।जी ,हा साहब बोलिये,मुझसे कुछ गलती हुई क्या साहब?

साले गलती तो हम तेरी पुलिस स्टेशन में बताएंगे। अरे,अरे...ऐसे कैसे मुझे ले जाएंगे। छोड़िए मुझें...!

चल ,बताता हूँ तुझे सब। ये देख कौन है ये ,मुझे नहीं पता आप किसकी लाश दिखा रहे,वो भी क्यों??
देख तब पता चलेगा तुझे सब...,सुषमा,सुषमा ये तुम्हे क्या हो गया सुषमा,सुषमा सुरेश जोर जोर से लाश के पास ही विलाप करने लगा। अभी तो तू बोला मैं नही जानता ,कौन है ये तेरी। चल बोल ,मेरी बीवी है साहब !

तेरी बीवी ये गंदे धंधे तू करवाता था न ,साले क्यों किया तूने ऐसा,अपनी बीवी को धंधे पे क्यों लगाया तूने बोल!!

साहब मैं नशे में धुंध रहने वाला शख्स हू।पैसे की लालच हवस खुद के अय्यासी में इतना अंधा हो गया कि भूल गया सब कुछ ।
मेरी जरूरत तो नशा करने से जुड़ी होती थी। मगर सुषमा ऐसी थी नही साहब।

सुषमा प्राइवेट स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाया करती उसे महज उसे तीन हजार रुपए ही मिलते ओर घर का तो हो जाता कभी नही होता। मैं साहब नशे में मस्त रहता था कभी सुषमा के संघर्ष को देखने नही गया। हमारी एक छोटी बच्ची भी थी,जो किडनी में गड़बड़ी आने से न रही।

सुषमा उसका इलाज बहुत करवाई मगर वो न बची। बच्ची के मरने के बाद सुषमा ने मुझ जैसे पढ़े लिखे इंसान को मेहनत करने के लिए आधे भाड़े पर रिक्शा खरीदा हर रोज हमारा झड़प हो ही जाता उस रिक्शा को लेकर कि मैं क्यों नही चलाता ।

धीरे धीरे उसने मुझे पैसे देने बन्द कर दिए। अब मैं बिल्कुल पागल से हो गया था बिन पैसे कोई मुझे बोतल न देता। मैं क्या करता एक दिन उसके स्कूल जा कर खूब बरषा,तब उसने खुद की सोच मुझे पंद्रह सौ रुपये मात्र दिए। जब मैं रात को आया तो देखा सुषमा ने खाना ही नही बनाया मुझे बहुत गुस्सा लगी तो वो मुझसे लड़ने लगी। लड़ते लड़ते उसने मुझे झाड़ू से बेइंतहा पीटा। ओर घर से बाहर कर दरवाजा बंद कर ली।

मुझे भी गुस्सा आ गया। आधी रात कहा जाता,मेरा एक दोस्त रहता है पास में उसी के साथ रोज बैठकर दारू पीता हु,उसी के पास गया सारी बातें बताई उसने सुझाव दिया। कि भाभी ऐसे सुंदर है और आजकल सुंदर माल ही तो चलता है तू उन्हें बेच क्यों नही देता। तुझे रोज रोकड़ भी मिलेगा,ओर तेरी जान (दारू) भी।

उस दिन नशे की अय्यासी में मैं भी अंधा हो गया। और सुषमा को बेच दिया।
मुझे हर रोज पैसे मिलते रहते। सुषमा का दर्द कभी पूछा ही नही साहब । लेकिन आज मुझे बहुत तकलीफ हो रही साहब ।

साले तुझे पता भी है ,तेरी बीवी एड्स रोग से जूझ रही थी। तुझे तो अय्यासी चाहिए थी,मगर तूने उसके बारे में कभी न सोचा। उसने आत्महत्या क्यों किया अब तू वो भी जान,उसके पेट मे बच्चा पल रहा था।

क्या ??ये आप क्या कह रहे साहब! सुषमा,पेट से थी। ये सब क्या हो गया मुझसे, इतनी तकलीफ़ में,मुझसे पाप हुआ है,मैं बहुत बुरा व्यक्ति हु।

सुषमा मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हारा गुनाहगार हू। मगर आज मुझे तुम्हरी आखिरी लड़ाई के वो शब्द गूंज रहे,मुझें भी दर्द होता हैं सुरेश,मैं भी एक औरत के साथ इंसान हु,मुझसे न होगा

मगर तुम्हारे दुखो को सुन ओर अपनी अय्यासी को लेकर आज मैं तुमसे माफी मांगता हूं ,इस मर्द को भी आज अपनी बीवी की त्याग को देख दर्द हो रहा,जो जख्म मेरी वजह से तुम्हे मिले।

मैं कभी तुम्हे कोई सुख न दिया ,बल्कि अत्याचारों के सिवा। गुनाहगार हु मैं मुझे फाँसी भी मिले तो कम।

आज सुरेश को छह माह का आजीवन कारावास हो चुका है।

ये छोटी सी कहानी सिर्फ और सिर्फ........

ड्रग्स, ओर सेक्स रैकेट पे आधारित थी। ये मैं उन लोगो के लिए लिखी हु जो आज भी अय्यासी के नशे में अंधी दौड़ लगा रहे। लेकिन कभी उन महिलाओं के लिए नही सोचें जिन्हें वो अंधेरगर्दी में ढकेल देते हैं। सोचिए उसे भी पीड़ा होती हैं। आपको शायद मेरी यह छोटी सी कहानी पसन्द आए।