उर्वशी
ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘
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" जब तक मेरे प्रति अपनी भावनाओं के विषय मे आपने कुछ नहीं कहा था, और मेरा आकर्षण भी आप नहीं जानते थे, उस वक़्त तक फिर भी ठीक था, पर अब नहीं। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। हो सकता है कभी कोई हमारे मन के इस चोर को पकड़ ले। हो सकता है कभी हम स्वयं की भावनाओं पर से नियंत्रण खो बैठें। फिर ... ?"
बात समाप्त होते होते उनके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें खिंच गई थीं । वह समझ गए थे कि आगे चलकर परिस्थितियाँ कितनी विकट हो सकती है।
" बदनामी, शर्मिंदगी, ये सब लेकर हमारे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा। और फिर सबसे बड़ी बात, मैं शौर्य के साथ कैसे जुड़ पाऊँगी ?"
" आप इतने दिनों से अकेली घुटती रहीं, और हम आपको गलत समझते रहे। " उन्होंने उसके बालों को सहलाया।
" पर अब आप फिक्र करना बंद कर दीजिये। वादा करते हैं, हम सब ठीक कर देंगे। हम पर भरोसा रखिये। " उन्होंने उसकी हथेली अपने दोनों हाथों में थाम ली। " अब आपको बस ढंग से खाना पीना है, खुश रहना है। आपकी हर फिक्र अब हमारी फिक्र है। " कुछ देर वह सोचते रहे फिर बोले
" आपकी परेशानी हमने अच्छी तरह समझ ली है। अब हम इन बातों का ध्यान रखते हुए ही कोई फैसला करेंगे। उम्मीद है कि अब आप हमारा कहा नहीं टालेंगी। " वह उन्हें देखती रही।
" उर्वशी, जवाब दीजिये। अब आप हमारी बात मानेंगी न ?"
" मानूँगी, पर आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। "
." क्या ?"
" मेरा सीरियल के लिए जो कमिटमेंट है उसे पूरा करना चाहूँगी। आप मुझे उसके लिए मना नहीं करेंगे। "
वह कुछ असमंजस के भाव लिए उसे देखते रहे।
" प्लीज़ …...अब तक मैं हर वो काम करती आयी हूँ, जो आपने चाहा। बेशक मेरा मन विद्रोह करता था। इसी तरह आप भी जानते हैं कि यह काम मेरे लिए कितना मायने रखता है। मुझसे मेरी ज़िंदगी मत छीनिये। " उसने हाथ जोड़ लिए।
" ठीक है, आपको आपकी ज़िंदगी दी। " उन्होंने कहा। वह थोड़ी देर उन्हें देखती रही, फिर उनके हाथ थामकर अपनी आँखों से लगा लिया
" काश, कि हम कभी न मिले होते! " उसकी आँखों से अश्रुओं की धार बह निकली। उन्हें लगा जैसे किसी ने उनके हृदय को बुरी तरह क्षत विक्षत कर दिया है। थोड़ी देर वह स्वयं को नियंत्रण में करते रहे फिर कमरे से बाहर निकल गए।
* * * * *
जब वह सबके बीच आये तो उनके चेहरे पर गम्भीर भाव देखकर सबको लगा कि वह भी उसे समझाने में असफ़ल रहे हैं। फिर उन्होंने आगे बढ़कर शौर्य के कंधे पर हाथ रखा
" अब उदासी छोड़ दीजिए शौर्य, अपने बच्चे के स्वागत की तैयारी कीजिये। "
" क्या वह मान गई ? " शौर्य ने हैरानी से कहा। बाकी सब भी उत्सुकता से उन्हें देखने लगे।
" हमने वादा किया था न आपसे ? "
" सचमुच उर्वशी ने अपनी जिद छोड़ दी ? " मम्मी ने पूछा।
" जी ",उन्होंने जवाब दिया।
" आपने उन्हें कैसे मना लिया भाई सा ?"
" सीक्रेट है। " वह मजकिया स्वर में बोले । फिर गम्भीर हो गए " लेकिन अब कोई गलती मत कीजियेगा, वरना वह हमारी भी नहीं सुनेंगी। "
" नहीं करेंगे, हम उन्हें शिकायत का अब कोई मौका नहीं देंगे। "
" उन्हें यही फिक्र थी कि अगर वह वापस चली गईं और आपने फिर से उन्हें अपमानित किया तो वो सह नहीं पाएंगी। " उन्होंने शौर्य को चेतावनी सी दी।
" कभी नहीं, हमें अहसास हो गया है कि वह हमारे लिए क्या मायने रखती हैं। थैंक यू सो मच भाई सा। " वह बहुत भावुक हो गया था। इसके बाद वह उर्वशी के पास चला गया
" थैंक यू सो मच उर्वशी, आपने हमें ज़िन्दगी दे दी। अब हम कभी आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे। " उसने उसे गले से लगा लिया।
उधर मम्मी ने जानना चाहा कि वह कब जाने वाली है तो उन्होंने कहा कि डिलीवरी होने तक वह यहीं रहेगी, इसके बाद ही दिल्ली जाएगी। मम्मी को यह बात समझ नहीं आयी कि जब जाने का तय हो ही गया है तो अब लखनऊ में पड़े रहने की क्या तुक है ? दिल्ली में भी सब इंतज़ार कर रहे होंगे। अगर अभी चली जाए तो सब कितना खुश होंगे। माँ सा के भी तो कुछ अरमान होंगे।
शिखर ने जवाब में बताया कि वह धारावाहिक के लिए किया अपना करार पूरा करना चाहती है। सुनकर मम्मी के चेहरे पर असंतुष्टि के भाव आये। पापा ने राहत महसूस की। उमंग और शौर्य यह सुनकर बहुत खुश हुआ।
उधर शौर्य को खुश देखकर उर्वशी को भी ऐसा महसूस हुआ मानो दिलो दिमाग पर रखा बोझ कुछ हल्का हो गया है, पर मन मे यही चिंता थी कि अब शिखर उसे लेकर क्या फैसला करेंगे ? उस रात वह दोनो भाई सोने के लिए होटल में चले गए। सुबह नाश्ता करके शौर्य वापस उर्वशी के पास आ गया। शिखर का कुछ नहीं पता था कि वह किस धुन में हैं।
शाम को आकर उन्होंने बताया कि एक तीन बेडरूम वाला फर्निश्ड घर उन्होंने किराए पर ले लिया है और शौर्य के साथ उर्वशी वहीं रहेगी। उन्होंने उसके माता पिता से आग्रह किया कि वे लोग भी आराम से उसके साथ ही रहें। उमंग ने कहा कि वह जहाँ रह रहा है वहीं रहेगा। उसके माता पिता ने भी कहा कि वे अधिक दिन लखनऊ नहीं रह सकते। हाँ समय समय पर उसके पास चक्कर लगाते रहेंगे। शिखर ने उनसे वादा लिया कि जब भी वह आएंगे उसके पास ही रुकेंगे।
इस व्यवस्था पर उर्वशी को भी आश्चर्य हुआ। उसका जी चाहा कि उनसे बात करे, पर उन्होंने उसे बात करने का कोई मौका नहीं दिया। उसी रात वह दिल्ली लौट गए। जाने से पहले वह उसके लिए एक अटेंडेंट, दिनभर के काम के लिए एक नौकरानी का इंतजाम करके गए थे। अब उसे बस अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना था, सही समय पर डॉक्टर की बताई डाइट के हिसाब से खाना पीना था। अटेंडेंट दिन भर उसका ध्यान रखती। दवा देना, हल्के फुल्के व्यायाम करवाना, सैर करवाना आदि। शौर्य भी उसका बहुत ध्यान रख रहा था। अब अचानक ही वह बहुत परिपक्व हो गया था । महीनों के संताप के पश्चात अब खुशियों भरे दिन लौट आये थे, जिन्हें वह भरपूर जी लेना चाहता था।
शिखर के दिलो- दिमाग मे गहरी उथल पुथल थी। कितना मुश्किल होता है, जिसे चाहो उसे स्वयं से दूर करना,किसी और को अपने हाथों से सौंप देना। अपने परिवार को बहुत यत्न से सहेजा था उन्होंने, सदा यही प्रयास किया कि वे सभी एक जुट रहें, एक साथ रहें। कोई दरार न पड़े। पर अब कुछ अतिप्रिय सदस्यों को दूर करना होगा, वह भी बिना किसी को अंदेशा हुए कि कहीं कुछ समस्या है। सब कुछ इतनी नफ़ासत से करना होगा कि बिल्कुल सहज लगे। वह विचलित थे, की क्यों उन्होंने अपने मन में यह बीज अंकुरित होने दिया ? क्यों नहीं उन आवेगों को उसी समय कुचल दिया जब वह सर उठा रहे थे ? उन्हें अधिकार ही कहाँ था किसी से प्रेम करने का ?
घर लौटकर उन्होंने सबको बताया कि उर्वशी की नाराजगी दूर हो गई है। सब बेहद खुश हुए । फिर उन्होंने कहा कि वह उसे अभी इसलिए लेकर नहीं आये क्योंकि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है। अपने परिवार के साथ रहेगी तो उसकी मानसिक स्थिति सम्हल जाएगी। अब उससे कोई जल्दी वापस आने का जिक्र नहीं करेगा । उनकी इस बात पर माँ सा ने सहमति व्यक्त की। फिर उन्होंने कुछ झिझकते हुए बताया कि उसने लखनऊ दूरदर्शन के एक धारावाहिक में अभिनय का क़रार कर लिया था, जिसे डिलीवरी से पहले उसे पूरा करना है। इसलिए वह शौर्य को उसके पास छोड़कर आये हैं ताकि वह अपनी पत्नी का ख्याल रख सके। इस बात पर माँ सा ने कुछ अप्रसन्नता ज़ाहिर की। शिखर ने उन्हें समझाया कि प्रत्येक व्यक्ति में अलग टैलेंट और अलग लक्ष्य होते हैं। यदि वह पूरे न हों तो कई बार वह असंतुष्टी घातक सिद्ध होती है। इस समय उर्वशी का खुश रहना बहुत आवश्यक है, ताकि बच्चा स्वस्थ पैदा हो। इस बात को माँ सा ने थोड़ी नाखुशी से, पर स्वीकार कर लिया।
* * * * *
उर्वशी के मन मे छाया कुहासा व तनाव छँट गया था। शौर्य भी बहुत स्नेही और परवाह करने वाला साबित हो रहा था। उसके प्रति आयी कड़वाहट अब हृदय से दूर होने लगी थी। मन की आशंका शिखर को बताकर उसका बोझ हल्का हो गया था। वह जानती थी कि अब काफी हद तक परिस्थितियाँ बदल जाएंगी। वही एक मात्र व्यक्ति हैं जो उसकी हर परेशानी दूर करने को उत्सुक व सक्षम थे। शिखर के प्रति अपने मन में उत्पन्न हुए तीव्र आवेगों का अब उसे शमन करना होगा। बहुत कठिन तो होगा, पर करना ही होगा। इसके सिवा अब कोई विकल्प नहीं । बहुत सी चीजें इच्छा न होते हुए भी करनी होती हैं। तभी संतुलन बन पाता है। अपने बच्चे को वह अपनी किसी दुर्बलता की भेंट नहीं चढ़ने देगी । उसे वह सब कुछ देगी, जो भी उपलब्ध करवा सकती है। चाहे अपनी किसी भी खुशी या कामना की बलि चढ़ानी पड़े। यह उस आने वाले का अधिकार होगा।
कई बार वह उन्हें देखने को, उनसे बात करने को बहुत व्याकुल हो जाती। उसे बेसब्री से प्रतीक्षा थी उनके आने की। जानती थी कि वह ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाएंगे, पर इस प्रतीक्षा का अंत नहीं हुआ। न वह दोबारा पलटकर लखनऊ आये और न ही उन्होंने उससे फोन पर बात की। कई बार वह बहुत परेशान हो जाती, उस घर में रहकर वह कैसे सम्हालेगी स्वयम को ! पता नहीं वह क्या इंतज़ाम करेंगे उसके रहने का। शूट पर वह अटेंडेंट के साथ समय से जाती, दोपहर के भोजन के समय शौर्य उसका टिफ़िन लेकर आ जाता। दोनो साथ मे भोजन करते, उसका मन करता तो थोड़ी देर ठहर जाता, वरना घर वापस लौट जाता।
क्रमशः