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उर्वशी - 21

उर्वशी

ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘

21

उसका रक्तचाप बढ़ रहा था। खाना पीना लगभग न के बराबर रह गया था। चूँकि वह किसी से अपने मन की बात नहीं कर पा रही थी तो घुटन भी बढ़ती जा रही थी। अक्सर वह बस मायूस सी शून्य में देखती रहती। पैरों में सूजन बढ़ने लगी, तीव्र सरदर्द भी रहने लगा। नींद उड़ गई, और एक दिन उसकी तबियत काफ़ी बिगड़ गई तो ड्रिप चढ़ाई गई । डॉक्टर ने बताया कि शिशु का विकास बहुत कम हो रहा है। अगर यही हाल रहा तो उसकी जान को खतरा है। उसे गोली देकर सुला दिया गया। सभी चिंता में पड़ गए। उधर से उसके मम्मी पापा को जो बस मिली उसे पकड़कर तुरंत भागे आये।

जब ड्राइवर से शिखर को इन सब बातों की सूचना मिली, तो उन्होंने तुरंत उमंग को फोन करके सारे हालात जाने। अब उनसे रुका न गया। सर्वप्रथम उन्होंने घर मे सबको ताजा स्थिति बताई, फिर कुछ आवश्यक बंदोबस्त करके, शौर्य को लेकर वह भी तुरन्त लखनऊ के लिए निकल पड़े । जब वह दोनो वहाँ पहुँचे तो उसके माता पिता आ चुके थे। चूँकि उमंग के पास एक ही कमरा था तो नील के माता पिता ने नीचे ही एक कमरा उनलोगों को दे दिया जिससे वे सब आराम से बात कर लें औऱ उर्वशी के आराम में ख़लल न पड़े। उनसे ही पता चला कि वह सो रही है। उमंग परेशान था कि उसने बहन का दायित्व स्वयं पर लिया था, पर वह अपना वादा ठीक से निभा नहीं पाया। थोड़ी देर वे सब उसके सम्बंध में बात करते रहे। सभी के चेहरे पर चिंता की छाया दिख रही थी।

" क्या चल रहा है इस लड़की के मन में ? कुछ कहती भी तो नहीं। कभी अपना मन नहीं खोलती ।" मम्मी बड़बड़ाने लगीं।

" हाँ,पता नही क्या हो गया है इसे। पहले हर बात मुझसे कर लेती थी। पर अब बिल्कुल बदल गई है। न जाने क्या सोचती रहती है। " इस बार पापा दुखी स्वर में बोले।

" हम लोग जब पहले यहाँ आये थे तो इसे अपने साथ आगरा ले जाना चाहते थे। बस इसीलिए की हमारी आँखों के सामने रहेगी तो ठीक से इसकी देखभाल भी होती रहेगी। "

" आयम सॉरी मम्मी, मैं उसका ध्यान नहीं रख पाया। " उमंग ने दुखी होकर कहा।

" बेटा तेरी क्या गलती है। तुझे कोई अनुभव ही कहाँ, कि क्या ठीक है और क्या नहीं। वह जैसा चाहे अपनी मर्जी चलाती है और तू लाड़ में सब मानता जाता है। " पापा ने उसे सान्त्वना दी।

" आप लोग फिक्र मत करिए। अब यह हमारी जिम्मेदारी है। हम अभी साइकेट्रिस्ट से कन्सल्ट करेंगे। हमारे होते हुए आप सारी फिक्र हम पर छोड़ दीजिए। " शिखर ने उन्हें ढाढस बंधाया।

थोड़ी देर बाद उमंग ने दूसरे कमरे में सो रही उर्वशी के जाग जाने की सूचना दी। सबने शौर्य की ओर देखा कि पहले वह ही उससे मिल ले। शौर्य खड़ा होने ही वाला था कि शिखर ने उसे रोक दिया । उन्होंने पहले उर्वशी के माता पिता को उसके पास जाकर मिल लेने को कहा। उनके जाते ही डॉक्टर को फोन करके वहाँ आने को कहा। कुछ ही समय पश्चात डॉक्टर आ गई और उर्वशी का परीक्षण किया। डॉक्टर ने बताया कि उसकी स्थिति ठीक नहीं है। किसी बात से वह अत्यधिक तनाव में है। जिससे उसकी सेहत व बच्चे पर बुरा असर पड़ रहा है। उसका रक्तचाप काफ़ी बढ़ा रहने से कई जटिलताऐं बढ़ गई हैं, और बच्चे का उतना विकास नहीं हो रहा जितना इतने समय मे हो जाना चाहिए था। अगर यही हालात रहे तो माँ व बच्चे, दोनो के जीवन को खतरा है। सुनकर सभी चिंतित हो गए।

अब शौर्य व शिखर उसे देखने के लिए चल दिये। सदा ताजगी से भरपूर रहने वाला वह चेहरा बहुत मुरझाया हुआ लग रहा था। उसे देखकर वह दोनो व्याकुल हो गए। शौर्य उसका हाथ पकड़कर सहलाने लगा और शिखर थोड़ी दूर खड़े दोनो को देखते रहे। उनका जी चाहा कि उसे अपने पहलू में छुपा लें, उसकी हर तकलीफ़ स्वयं ले लें। पर क्या करते, उनका कोई अधिकार भी तो नहीं था। उर्वशी ने आँखें खोलीं और शौर्य की तरफ़ देखा। फिर उसकी दृष्टि उन पर पड़ी । वह पल भर उन्हें देखती रही।

" आप कैसी हैं उर्वशी ?" शौर्य ने पूछा।

" ठीक हूँ। " वह बैठने का प्रयास करने लगी।

" प्लीज़ लेटी रहिये। " अब शिखर भी पास आ गए। उसने उनकी ओर देखकर हाथ जोड़ लिए । उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा

" ये क्या कर लिया है आपने ? "

" मैं ठीक हूँ " उसके लबों पर फीकी सी मुस्कुराहट आयी।

" वह तो दिख रहा है। देखिये क्या हालत है आपकी ? किस बात की फिक्र है आपको ?" उन्होंने पूछा, जवाब में वह मौन रही। उसने पलकें बन्द कर लीं और अश्रु की बूँद टपक पड़ी। वह व्याकुल हो गए।

" आप दोनो बात कर लीजिये, हम अभी आते हैं। " स्वयं को संयत करने की कोशिश में वह कमरे से बाहर निकल गए।

" आप हमें माफ़ नहीं करेंगी ? बताइये की हम क्या करें,कि आपको सुकून मिले ?" सबके जाने के बाद शौर्य ने व्यग्र होकर कहा।

" मैं आपसे नाराज़ नहीं, विश्वास कीजिये । " उसने शौर्य की व्यग्रता देखकर कहा। उसने शौर्य की ओर ध्यान दिया तो वह भी काफी बदला हुआ लगा। कमजोर चेहरा, लाल और उदास आँखें। उसे तरस आ गया उसपर।

" अगर नाराज़ न होतीं तो वापस आ जातीं। पर आप नहीं आयीं । उर्वशी, यकीन मानिए, ग्रेसी हमारी ज़िंदगी मे अब नहीं है। " उसने सफाई दी।

" जान चुकी हूँ। "

" फिर ?" वह कुछ उत्साहित हो उठा। जवाब में वह बस उसे देखती रही। कुछ बोली नहीं।

" आप चलेंगी न अपने घर । "

" शौर्य, यकीन मानिए मुझे आपसे अब कोई शिकायत नहीं है। बिल्कुल भी नहीं है, पर अब जा नहीं पाऊँगी। "

" अगर सचमुच आपने उस बात को दिल से निकाल दिया है तो फिर क्या दिक्कत है ?"

" अब नहीं हो पाएगा। आप सोच भी नहीं सकते, और मैं आपको समझा नहीं सकती। पर अब नहीं …." वह कातर स्वर में बोली। " मुझे बार बार यह कहना अच्छा नहीं लग रहा। " शौर्य ने पीड़ित दृष्टि से उसे देखा, फिर उठा और कमरे से बाहर निकल गया। उर्वशी दरवाजे की ओर देखती रह गई। फिर उसने आँखें बंद कर लीं और उसकी आँखों से अश्रु बहने लगे।

शौर्य आया तो सबने आशाभरी दृष्टि से उसे देखा। पर उसके चेहरे पर छाई निराशा की कालिमा देखकर सब हताश हो गए। सबने एक दूसरे को देखा। शिखर के पास आकर वह बिखर सा गया

" हमने उन्हें खो दिया है, हमेशा के लिए। वो नहीं आएंगी। " शिखर ने उसे गले से लगाकर उसकी पीठ थपथपाई।

" उन्हें आना ही होगा शौर्य, ये हमारा वादा है। एक बार आप हमें बात करने दीजिए। " कहकर शिखर उठे उर्वशी के कमरे की ओर चल दिये। उसके पास आकर देखा तो आँखे बंद थी और पलकों की कोर नम हो रही थी। उन्होंने उसके आँसू पोंछ दिए। उसने आँखें खोल दीं

" ये सब क्या है उर्वशी ? शौर्य आपको इतना मनाने की कोशिश कर रहे हैं, पर आप मान नहीं रहीं। इतना हठ क्यों कर रही हैं आप ?"

" आपको भी यह मेरा हठ लग रहा है ?"

" तो और क्या लगेगा ? सारे हालात हम आपको बता चुके हैं, कि शौर्य किन परिस्थितियों से दो चार हो रहे थे। ठीक है, फ्रस्ट्रेशन में निकल गईं गलत बातें। पर कितनी बार माफी माँगी है, कितना पछता रहे हैं वो ! आपको ज़रा भी रहम नहीं आता उन पर ? " वह आवेश में आ गए थे, और उर्वशी बस भीगी आँखों से उन्हें देखती रही।

" आपने नहीं देखा उन्हें तड़पते हुए, पर हमने देखा है। और कितनी सज़ा देंगी आप उन्हें ? आजकल बहुत ड्रिंक भी करने लगे है वह, दिन भर खुद को कोसते रहते हैं । प्लीज़ उनपर रहम खाइए, वह बर्बादी की राह पर चल पड़े हैं। वह आपको बहुत चाहते हैं उर्वशी। "

" आपको मै इतनी पत्थरदिल लगती हूँ ?"

" अपने व्यवहार से जो आप जताएंगी, हम वही तो समझेंगे। "

" मैं कैसे समझाऊँ, कि शौर्य के लिए कोई दुर्भावना नहीं है मेरे मन में । मैं उन्हें माफ कर चुकी हूँ। पर उनसे बहुत दूर आ गई हूँ । अब वापसी सम्भव नहीं। "

" क्यों नहीं सम्भव ? एक भी माकूल वजह है आपके पास, वापस न लौटने की ?" वह भड़क गए थे, और वह खामोश थी।

" अब बोलिये, खामोश क्यों हैं आप ?"

" वजह आप हैं ।" उसने भर्राए स्वर में कहा।

" हम ? " एक वज्रपात सा हुआ उन पर " हमने कब चाहा कि आप वापस न लौटें ?" उनका स्वर हैरानी से भरा था।

" क्या आप सचमुच नहीं समझे ? "

" हम दिल से चाहते हैं कि आप लौट आएं उर्वशी। "

" अब उस घर में मैं कैसे आ सकती हूँ ?"

" क्या दिक्कत है ?" वह न समझने के अंदाज में उसे देखे जा रहे थे।

" जानते हैं, जब शादी हुई तो मैं आपकी भावनाओं से अनभिज्ञ थी। अपने आपको मैंने बहुत मुश्किल से सम्हाला था । खुद को शौर्य के साथ निभाने के लिए तैयार किया। जब उन्होंने मुझे ठुकराया तो मैंने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया। फिर सबके साथ आपने भी कहा कि उन्हें एक मौका मिलना चाहिए। मैं वापस आ गयी, एक और मौका दिया उन्हें। उन्होंने एक बार फिर मुझे बुरी तरह अपमानित किया। वह चोट मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई। बस उस समय निश्चय कर लिया कि अब मेरे जीवन मे शौर्य के लिए कोई स्थान नहीं है। मैंने उन्हें त्याग दिया, सदा के लिए। फिर आप मुझे मिलते हैं, आपकी भावनाओं से परिचित होती हूँ। आप भी मेरी भावनाएं समझ पाते हैं। हमें बहुत सुकून मिलता है। चूँकि आप विवाहित हैं, तो इससे आगे कुछ नहीं सोचा जा सकता। दुनिया की नज़र में हमारा रिश्ता ऐसा है जहाँ प्रेम सम्बन्ध की कोई गुंजाइश नहीं। जिसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। मैं खामोश रहती हूँ, और आप भी। हृदय में एक दूसरे के प्रति उत्कट प्रेम को दबाए हुए, हम सोचते हैं कि यूँ ही मन ही मन मे प्रेम करते हुए उम्र गुज़ार देंगे। " वह बोलती रही और शिखर सुनते रहे।

" अब परिस्थितियां पलटती हैं, मुझ पर दबाव बनाया जा रहा है कि मैं उस व्यक्ति के पास वापस लौट जाऊँ जिसे मेरे पति के नाम से जाना जाता है । जबकि उसी घर मे आप भी रहते हैं । जिन्हें ह्रदय की गहराई से प्रेम किया है मैंने। क्या यह आदर्श स्थिति है ?" अब जाकर वह उस बिंदु को पकड़ पाए कि वह क्या कहना चाह रही हैं।

क्रमशः

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