मीराबाई suraj sharma द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मीराबाई

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन ।।
वो तो गली गली हरी गुण गाने लगी ॥

महलों में पली, बन के जोगन चली ।

मीरा रानी दीवानी कहाने लगी ।।


मीराबाई का जन्म १९४८, में जोधपुर में हुआ था, उनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीरकुमारी था, मीराबाई बचपन से ही कृष्णाभक्ती में इस कदर रम गई थी कि उन्हें कृष्णाभकती के अलावा और कुछ भान नहीं रहता था, राजघराने की राजकुमारी होने के बावजूद मीराबाई ना किसी धन, रूप के आदी थी, वो सिर्फ कृष्णा नाम में ही अपना जीवन व्यतीत करती थी। आपके घरवाले को ये सब पसंद नहीं था, उन्होंने बहोत कोशिश की आपको आपके भक्ति से दूर करे पर हर प्रयास असफल रहे, वो जितना आपको दूर करना चाहते थे आप उतने ही कृष्णाभक्ति में लीन होती जाती. मीराबाई कृष्णा भक्ति की प्रमुख कवियत्री थी, उनकी कविता में इतना आनंद था कि दूर दूर से हर कोई मीराबाई की रचना सुनने आते थे। आज भी कृष्णा भक्ति की बात होती है तो सर्वप्रथम मीराबाई का नाम बड़े आदर से लिया जाता है. आपने आपके जीवनकाल में बहोत दुःख सहे थे पर आपकी कृष्णा भक्ति में तनिक भी अंतर नहीं आया।
आपके जन्मकाल के बारे मे बहोत अलग अलग कहानियां सुनने को मिलती है, कहीं भी ठीक से जानकारी नहीं है, पर हमे गर्व है कि आप मध्यकालीन भारत में सर्वश्रे्ठ कवियत्री का सम्मान पाया है। आपके कवितायों में राजस्थानी, गुजराती एवं ब्रज की बोली का मिश्रण है. आपकी रचनाएं अलग अलग भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है।। आपकी हर रचना में हरी के पार्टी आपका समर्पण दिखता है और अपने बखूबी भावपूर्ण तरीके से आपके दुखो का प्रतिबिंब कुछ पदो में दिखाए है.
अपने अपने जीवनकाल में चार ग्रंथो की रचना की है जो कि नरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राम गोविंद, राग सोरठ के पद है।
आपकी कृष्णा के प्रति भावना, प्यार और समर्पण देख कर आपके घरवाले में आपके विवाह का विचार किया जो को आपको नामंजूर था क्युकी अपने मन ही मन में श्री हरी को आपका परमेश्वर माना था इसीलिए आप हमेशा उनके ध्यान में ही खोई रहती। आपका विवाह बिना आपके स्वीकृति के उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज के साथ हुआ और विवाह के कुछ दिनों बाद ही आपके पति का स्वर्गवास हो गया तब आप वहां उपस्थित नहीं थे।।
मीराबाई के पति के देहांत के पश्चात आपको पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया आप इसके लिए तयार नहीं थी, अपने आपके शृंगार भी नहीं उतारे क्युकी अपने पहले ही सर्वेश्वर हरी को अपना पति मान लिया था, राजघराने में जन्म और राजघराने में विवाह के बाद में आपको संसार से दुःख के सिवा कुछ नहीं। अपने आपका जीवन साधु संतो के साथ मिलकर हरी कीर्तन करने में लगा दिया, हरी मंदिर में आप आपके काव्य को गाते हुए प्रेम से नाचने लगते जो कि आपके घरवालों को बिल्कुल पसंद नहीं था कि एक राजघराने की बाई मंदिर में नाचे और ईएसिके चलते आपको विष देकर मारने कि कोशिश भी की गई पर हरी कृपा में होने के कारण वो सारे प्रयास असफल रहे, अपने द्वारका वृंदावन जाने का फैसला किया. मीराबाई जहां जहां जाती लोग उन्हें बड़े आदर से पूजा करते। और अपने द्वारका में कृष्णा मंदिर में आपके प्राण त्यागे.

।। समाप्त।।