राम रचि राखा
तूफान
(४)
दो घंटे के बाद तूफान का जोर थम गया। सबकी जान में जान आयी। चलो बच गए। नीचे पूरा पानी-पानी हो गया था। बहुत से लोग नीचे से ऊपर आ गए।
ऊपर के मेज सारे उड़ गए थे। कुर्सियाँ जो नाव की रेलिंग से बँधी हुयी थीं वे बच गई थीं। किन्तु उनमें से कई पानी के थपेड़ों के प्रहार से टूट चुकी थीं। नाविक के केबिन का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। किन्तु आगे का भाग अभी भी सुरक्षित था। दोनों नाविक अपनी जगह पर डँटे हुए थे। कई लोग ऊपर आकर घूमने फिरने लगे थे। किन्तु कुछ लोग अभी भी भय से नीचे ही बैठे हुए थे।
अब सबको बैठने के लिए पर्याप्त कुर्सियाँ नहीं बची थीं। अतः नाव के कर्मचारियों ने नाव के ऊपर आए पानी को झाड़ू से बाहर निकाला और टाट से उसे सुखा दिया। फिर नीचे के स्टोर से गद्दे लाकर उसपर बिछा दिए। धीरे-धीरे लोग नीचे से ऊपर आकर बैठने लगे। सौरभ, सप्तमी, लड़के-लड़कियाँ सब ऊपर आ गए।
सब लोग सोचने लगे चलो देर से ही सही, वापस तो पहुँच जायेंगे। इतना बड़ा संकट टल गया। मौत के मुँह से बाल-बाल बचकर निकल आए।
लेकिन एक घंटे नाव चलने के बाद नाविक और भौमिक की बातों से लगा कि कुछ गड़बड़ है। सौरभ उनके पास चला गया।
"क्या हुआ...कुछ गड़बड़ है?" सौरभ ने पूछा।
"नहीं , कुछ ख़ास नहीं। किसी गलत रास्ते पर आ गए। लेकिन जल्दी ही रास्ता मिल जाएगा।" भौमिक ने कहा।
"कैसे...? रास्ता कैसे भटक गए?"
"तूफान के समय नाव पर कण्ट्रोल नहीं रह पाता है। लहर अपने साथ जिधर भी बहाकर ले जाती है नाव उधर ही चली जाती है।" भौमिक ने उत्तर दिया।
"आप लोगों का तो रोज का ही यहाँ आना-जाना है। आपको तो सारे रास्ते पता होंगे।"
"हाँ, पता हैं। इसीलिये तो कह रहा हूँ कि जल्दी ही रास्ता मिल जाएगा।" भौमिक ने उत्तर दिया। तब तक अचिंत और बासु भी पास आ गए थे।
"क्या हुआ, रास्ता भटक गए हैं?" अचिंत की भारी आवाज दूसरे यात्रियों तक भी पहुँच गई। शीघ्र ही वहाँ भीड़ इकट्ठा हो गई।
तूफ़ान जाने के बाद जो राहत की साँस सबने ली थी वह पुनः चिंता में परिवर्तित हो गयी। ताड़ से गिरे खजूर में अटके। वन के बीच असंख्य धाराएँ थीं। नाव लहरों के साथ बहकर किसी ऐसी धारा में चली गयी, जो नाविक के लिए अनजान थी।
नाविक सही रास्ता पाने के लिये प्रयत्नशील था। कई बार ऐसा लगा कि रास्ता मिल गया। नाविक ने उत्साहित होकर नाव तेजी से बढ़ाया। लेकिन कुछ दूर जाने पर सब कुछ अनजाना।
धीरे-धीरे रात घिरने लगी। साथ ही लोगों की चिंताएँ भी बढ़ने लगीं। रात के नौ बजे तक नाव चलती रही। लेकिन कहीं पहुँच नहीं सकी। धाराओं के बीच ही उलझ कर रह गई। नाविक ने नाव एक जगह ले जाकर किनारे से थोड़ी दूर पर खड़ी कर दी। इंजन बंद हो गया।
"क्या हुआ?" कई लोग नाविक के पास पहुँच गए।
"डीजल ख़त्म हो गया।" नाविक ने बताया।
"क्या? कैसे ख़त्म हो गया? अब हम वापस कैसे जाएँगे?" एक दक्षिण भारतीय सज्जन ने पूछा। भौमिक मौन हो गया।
"भौमिक ! क्या हम फँस गए हैं?” सौरभ ने पूछा।
तभी एक कर्मचारी नीचे से आया और बताया कि ड्रम में थोड़ा डीजल बचा हुआ है। तब तक सब लोग नाविक के केबिन के पास जमा हो गये थे।
“देखिए , हमारे पास अब डीजल बहुत कम बचा है। हम लोग रास्ता भटक चुके हैं । रात में रास्ता ढूँढ़ना बहुत मुश्किल है। इसलिए हमें यहीं रुकना होगा। सुबह निकलेंगे।“ भौमिक ने कहा।
“ऐसे कैसे हमें यहाँ फँसा सकते हो। हमें वापस ले जाना तुम्हारी जिम्मेदारी है।“ राव ने कहा। राव तमिलनाडु से थे। सुंदरवन का आकर्षण उन्हें इतनी दूर खींच लाया था।
“तूफान आ गया तो मैं उसमें क्या करूँ? हम लोग पिछले चार-पाँच घंटे से चल ही तो रहे थे।” भौमिक ने कहा।
“तुम्हें तूफान का पता होना चाहिए था। बिना कोई जानकारी प्राप्त किए इतनी दूर समुद्र में पचास-साठ लोगों को लेकर तुम कैसे आ सकते थे। इतने लोगों के जीवन का प्रश्न है । बच्चे, बूढे, औरतें सभी हैं इसमें। तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है।“ घोष बाबू ने कहा।
“हमने पता किया था। तूफान आने की कोई फोरकास्ट नहीं थी।“
“जो भी हो, तुम्हें हमें लेकर वापस चलना है अभी।“ रामकिशोर ने रोषपूर्ण स्वर में कहा।
“कैसे ले जाएँ? रात में रास्ता भी नहीं पता चलेगा।“
“वह हमें नहीं पता, तुम्हारी जिम्मेदारी है। नहीं तो तुम्हें पता नहीं कि हम तुम्हारे साथ क्या कर सकते हैं।“ एक अन्य व्यक्ति ने उग्र स्वर में कहा।
“तुम हमें घुमाने लाए थे और हमारी ज़िंदगी ही दाँव पर लगा दी। तुम्हारे पास आपातकाल की कोई व्यवस्था क्यों नहीं है।“ रामकिशोर ने कहा।
सबलोग भौमिक को घेरकर उसके ऊपर दबाव डालने लगे, शब्द-प्रहार करने लगे। मामला बिगड़ता देखकर सौरभ ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा,“देखिए! आप लोग जरा सोचिए कि अगर हम अभी जबर्दस्ती करके नाव चलाने के लिए कहते हैं तो हम इससे अधिक संकट में पड़ सकते हैं। यह तो चला देगा। लेकिन रात में रास्ता मिल नहीं पाएगा और बचा हुआ डीजल भी खत्म हो जाएगा। भौमिक और इसकी कम्पनी के बारे में क्या करना है यह वापस पहुँचकर देखेंगे। लेकिन अभी तो यही सही लग रहा है कि हम यहीं रुक जाएँ।“
“तो क्या हम रात भर इस जंगल में रुके रहेंगे?”
“क्या आपके पास कोई दूसरा उपाय है? यह संकट का समय है, हमें धैर्य से काम लेना होगा। हम सब लोग ही फँसे हुए हैं।“
सौरभ की बात लोगों को ठीक लगी। लोग धीरे-धीरे अपने स्थानों पर जाने लगे। लेकिन लोगों के मन में रोष बहुत था।
“भौमिक को ही समुद्र में फेंक देते हैं।“ जाते-जाते किसी ने कहा।
भौमिक नाव के निचले हिस्से में जाने लगा। सौरभ, अचिंत, बासु और बिहारी सज्जन भी उसके पीछे-पीछे चले गए।
“भौमिक! मैं जानता हूँ कि हम लोग बहुत बड़ी मुसीबत में फँस चुके हैं। लोग समस्या को जितना गम्भीर समझ रहे हैं, उससे कहीं अधिक है। बात केवल जंगल के बीच नाव पर आज की रात बिताने की नहीं है। सबसे डरावनी बात यह है कि अगर कल भी रास्ता न पा सके तो क्या होगा? हमारे पास डीजल भी अधिक नहीं है।”
“मुझे भी वही चिंता है। आज की रात तो किसी तरह कट जाएगी।“
“यार, तुम लोग नाव लेकर समुद्र में आते हो, कोई आपातकालीन व्यवस्था तो होनी चाहिए तुम्हारे पास।“
“आम तौर पर तूफान आने की सूचना पहले ही मिल जाती है। सरकार नावों को समुद्र में नहीं जाने देती है। बिना सूचना के इतना बड़ा तूफान नहीं आता है। बाकी मुसीबत के समय वन्य विभाग और नौसेना के स्टीमर मदद करते हैं। ऊपर से हेलिकोप्टर से भी देखा जाता है।“
“हम नहीं पहुँचेंगे तो वे लोग हमें ढूढ़ेंगे?”
“हाँ ढूढ़ेंगे... लेकिन विभाग के पास सूचना कल सुबह तक ही पहुँच पाएगी। उसके बाद ही वे अपनी कार्यवाही आरंभ करेंगे।“
“हमारे पास अपना लोकेशन भेजने का कोई साधन है?’
“नहीं, यहाँ कोई भी नेटवर्क काम नहीं करता है।“
“मतलब की सबकुछ किस्मत के हवाले है।...खाने की क्या स्थिति है?”
“दिन का कुछ खाना पड़ा है। उसके अलावा थोड़ा चावल होगा।“
“यानी कि कल सुबह खाने के लिए कुछ नहीं है?“
“नंदी ! चावल के अलावा कुछ और है?” भौमिक ने रसोइयें से बांग्ला में पूछा।
“नहीं, कुछ भी नहीं है। चावल भी सबको खाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।“
“ओह ! यार बिना खाए लोग कैसे रहेंगे?“ अचिंत ने कहा।
“कुछ बूढ़े और बच्चे भी हैं।“
“क्या बताएँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अब तो कल सुबह काली माँ सही रास्ता दिखा दें बस।“ भौमिक रुआँसा हो गया था।
“अरे यार, यह तो बड़ी मुसीबत हो गई।“ बासु ने कहा।
“उम्मीद करते हैं कि कल सुबह कुछ अच्छा हो। अभी तो सबको जो भी है, खिलाओ।“ सौरभ ने कहा और सब लोग ऊपर आ गए।
सौरभ ने सप्तमी को सारी बात बताई। साथ में बाकी लड़के-लडकियाँ तथा अन्य लोग भी थे। सबके चेहरे पर दहशत तैरने लगी। चतुर्दिक एक मौन व्याप्त हो गया।
“डैडी ! आज हम होटेल में नहीं चलेंगे?”
“नहीं बेटा, आज हम यहीं नाव पर रुकेंगे।“
“यहाँ तो चारों ओर अँधेरा है। जंगल में से टाइगर आ जाएगा तो?”
“नहीं आएगा। टाइगर तो अकेला होगा, हम सब इतने ढेर सारे लोग हैं। वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। हम उसे मारकर भगा देंगे।“
एक घंटे में सबको खाना खिलाया गया। थोड़ा सा जो चावल था उससे पका लिया गया था। साथ में दिन की थोड़ी दाल और सब्जी थी। एक-एक, दो-दो मुट्ठी भात खाकर लोगों ने जैसे-तैसे काम चलाया।
चाय के लिए जो दूध था, उसमें से अधिकांश भाग तूफान में बर्तन लुढ़कने के कारण गिर गया था। बहुत थोड़ा सा ही बचा था। दो बच्चे एकदम छोटे थे। वे बिना दूध के नहीं रह सकते थे। अंश भी रात में प्रायः दूध पीकर ही सो जाता है। बचे हुए दूध में किसी तरह बच्चों का रात का तो काम हो गया, लेकिन सुबह क्या होगा, यह बहुत बड़ी चिंता थी।
लोग खा-पीकर सोने का उपक्रम करने लगे। यह तय हुआ कि औरतें और बच्चे नीचे चले जाएँ और पुरुष ऊपर रहें।
घने जंगल के बीच नदी की एक शाखा में किनारे से थोड़ी दूरी पर नाव खड़ी थी। यह क्षेत्र बाघों का था। हालाँकि नाव के ऊपर बाघ का खतरा नहीं था। क्योंकि नाव पानी के अंदर थी और उसका ऊपरी खुला भाग बहुत ऊँचा था। पानी में से बाघ छलाँग लगाकर वहाँ तक नहीं पहुँच सकता था। हाँ आगे का भाग थोड़ा नीचा अवश्य था। लेकिन पानी के इतने अंदर आकर बाघ के द्वारा हमला किए जाने की सम्भावना कम थी। फिर भी नाव के कर्मचारियों ने बारी-बारी से पहरा देने का निर्णय लिया।
नाव पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति आतंकित था। पता नहीं क्या होने वाला है।
क्रमश..