राम रचि राखा - 3 - 3 Pratap Narayan Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राम रचि राखा - 3 - 3

राम रचि राखा

तूफान

(३)

सुबह आठ-साढ़े आठ बजे तक सबलोग मोटरबोट में आ गए। नाव चल पड़ी। नदी की चौड़े पाठ के दोनों ओर जंगल ही जंगल दिखाई देने लगे। ये जंगल ही बाघों के निवास स्थान थे। सबके मन में एक ही आशा थी कि कहीं बाघ दिख जाए। लेकिन बाघ तो कभी कभार ही दिखते हैं। हाँ किनारे पर धूप सेंकते मगरमच्छ और गोह अवश्य दिखाई देने लगे। साथ ही जंगल के अंदर हिरनो के झुण्ड भी घास चरते हुए लक्षित होने लगे। सबलोग चित्र लेने में व्यस्त हो गए।

पहला पड़ाव पीरखली था। पीरखाली के बाद देउल बरनी, बनबीबी बरनी होते हुए दो-बंकी टाइगर रिज़र्व फारेस्ट में पहुँचे।

दूर तक फैला हुआ जंगल। उसके बीच में बना हुए ऊँचे-ऊँचे वाच टावर। उन पर चढ़कर यात्री टाइगर को देखने की संभावना तलाश करते। लगभग सभी पड़ावों पर इसी तरह से वाच टावर बने हुए थे। सब जगह बाघ के अंतिम बार देखे जाने का दिन और समय भी अंकित करके रखा गया था। औसतन महीने में एक बार ही बाघ को देख पाने में लोग सफल हो पाते थे।

हालाँकि बाघ नहीं भी दिखा तो भी देखने को बहुत कुछ था। घना जंगल, मगरमच्छ, गोह, हिरन इत्यादि के साथ बाघ के आसपास होने की कल्पना लोगों को रोमांचित कर रही थी। उसके अतिरिक्त चारो ओर फैला हुआ ढेर सारी पानी, उसके बीच चलती हुई नाव सबके मन को मोह रही थी। सभी लोग आनंदित थे।

दो-बंकी के बाद जब पंचमुखी नदी का मुहाना आया तो लगा कि नाव समुद्र में पहुँच गयी है। पाँच ओर से खूब चौड़ी-चौड़ी नदियाँ आकर उस स्थान पर मिल रही थीं। चतुर्दिक बस जल ही जल दिखाई दे रहा था। बहुत ही विहंगम दृश्य था।

नाविक ने नाव को एक नदी की धारा में ले लिया, जो सुधन्याखली टाइगर रिज़र्व में जाती थी। वही आज की यात्रा का अंतिम पड़ाव था। इस बीच दोपहर का भोजन हुआ।

दो बजे तक नाव सुधन्याखली पहुँच गई। एक घंटे तक लोग वाच टावर पर खड़े होकर बाघ की प्रतीक्षा करते रहे। वहाँ बाघ के देखे जाने की संभावना सबसे अधिक थी। किन्तु बाघ नहीं दिखा। लोग तीन बजे तक वापस नाव में आकर बैठ गए। अब तीन-चार घंटे का वापसी का रास्ता था।

जाते समय लोग दृश्य देखने में अधिक उत्सुक थे। अब वापस लौट रहे थे तो किनारों के दृश्य पुनः वही थे। इसलिए अधिकांश लोग बातों में मशगूल हो गए।

सप्तमी और लड़के-लड़कियों का समूह अंत्याक्षरी खेलने लगे। रात में मनोरंजन पार्टी के बाद से सप्तमी सबके लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी। उसके गाना और नृत्य के कारण सब लोग उसे पहचानने लगे थे। सौरभ अपने पास में बैठे बूढ़े सज्जन से बातें कर रहा था।

तभी अचानक से मौसम बदला। सूरज की किरणें लुप्त हो गयीं। समुद्र में दूर से हवा और पानी का एक बवंडर सा उठता हुआ दिखाई दे रहा था। सब लोग विस्मय से देखने लगे कि यह क्या है?

भौमिक और नाव चालक के मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

भौमिक ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा, "लगता है समुद्री तूफान आ गया है। सब लोग नाव के नीचे वाले हिस्से में चलिए। ऊपर खतरा रहेगा।" सब तरफ अफरा तफरी मच गई। जो लोग सीढ़ियों के पास थे वे सबसे पहले नीचे उतर गए।

सौरभ ने अंश को गोद में लिया और जल्दी से सीढ़ियों पर पहुँचा। उसके पीछे सप्तमी और फिर उसके पीछे लड़के-लड़कियाँ। बारी-बारी से सभी लोग निचले भाग में चले गए। ऊपरी हिस्से में मात्र दोनों नाविक और दो सहायक रह गए थे। भौमिक भी निचले हिस्से में आ गया।

सबके नीचे उतरते-उतरते तूफान पास आ गया। नाव जोर-जोर से हिचकोले खाने लगी। जो जहाँ था वहीं नाव की दीवार में लगे रस्से , कुंडे या जो भी जिसे मिला, पकड़कर खड़ा हो गया। सबकी साँसें टँग गईं। लोग चीखने-चिल्लाने लगे। हर हिचकोले के साथ चीखों की आवाज तेज हो जाती। सब लोग अपने परिजनों को पकड़े हुए थे।

“आप लोग घबाराइए नहीं, दीवार के सहारे बिस्तर तक पहुँचने की कोशिश करिए और वहाँ जाकर बैठ जाइए।“ भौमिक ने कहा।

नीचे के भाग में नाव की दीवार से लगकर दोनों ओर बेंच की भाँति कई पतले-पतले बिस्तर भी बने हुए थे। जो यात्री होटल में न रुककर रात नाव पर बिताने का रोमांच प्राप्त करना चाहते थे, उनके लिए ये बिस्तर थे। लोग अपना संतुलन बनाकर बिस्तरों तक पहुँचने लगे। औरतों और बच्चों को पहले बिस्तरों तक पहुँचाया गया।

कुछ लोग तो बैठ गये। लेकिन सबको बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, अतः बहुत से लोगों को खड़ा ही रहना पड़ा। वे दीवार में लगे रस्से को पकड़कर खड़े थे।

ऊँची-ऊँची लहरें किसी भयानक विषधर की तरह आकर नाव के ऊपर अपना सिर पटकने लगीं। इतनी बड़ी नाव इस तरह से हिचकोले खाने लगी जैसे कागज़ की हो।

किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे। माँओं ने अपने बच्चों को अपने सीने से चिपटा लिया। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगीं।

"हे भगवान् ! जल समाधि दे दोगे क्या।" रामकिशोर ने निराश होते हुए कहा।

ऊपर जो बुजुर्ग सौरभ के बगल में बैठे थे। वे घोष बाबू थे। उन्हें बिस्तर पर बिठा दिया गया था। वे काली माँ का जाप करने लगे।

तूफान उत्तरोत्तर तेज होता जा रहा था। नाव झूले की तरह लहरों के बीच झूल रही थी। सप्तमी अपने सीने से अंश को चिपटाकर बिस्तर पर बैठी थी। उसके सामने सौरभ खड़ा था। उसने नाव के दीवार में लगे रस्से को पकड़ रखा था। सप्तमी ने सौरभ के कमर को पकड़ लिया था। अंश उन दोनों के बीच में दबा हुआ था। जिससे कि वह हिचकोलों से बचा रहे।

"अब तो लगता है कि मृत्यु तय है। यहीं जल समाधि बन जाएगी।" किसी ने घबराते हुए आशा विहीन स्वर में कहा।

“अरे, शुभ-शुभ बोलिए।“ दूसरे व्यक्ति ने कहा।

"आप लोग धैर्य रखिये। अपनी जगहों पर शांति से बैठे रहिये। एक-आध घंटे में तूफान चला जाएगा।" भौमिक ने ढाँढ़स बँधाते हुए कहा।

"तब तक तो नाव ही डूब जाएगी। जिस तरह से लहरें उठ रही हैं, कब तक बचेगी।" पहले वाले व्यक्ति ने कहा।

तभी एक लहर ने नाव को ऊपर उछाल दिया। सबकी चीख निकल गयी। दो-तीन औरतें और घोष बाबू की पुत्र-बधू जोर-जोर से रोने लगीं। साथ में घोष बाबू का दो-ढाई साल का पौत्र भी रोने लगा। एक अन्य दम्पति का भी एक छोटा बच्चा था। लगभग उतनी ही आयु का। थपेड़ों की आवाज के डरकर वह भी रो रहा था। साथ वाले लोग उन्हें ढाँढ़स बँधा रहे थे।

नाव के अगले भाग में सीढ़ी के ऊपर का क्षैतिज दरवाजा बंद कर दिया गया था। जिससे हवा आनी बंद हो गई थी। किन्तु जब कोई लहर नाव के ऊपर जल फेंकती तो दरवाजों के किनारों से रिसकर पानी अंदर आता। पीछे के खुले भाग से भी पानी अंदर आने लगा। धीरे-धीरे पानी भीतर भरने लगा। पानी को निकालना जरुरी था।

भौमिक, उसका सहायक और दोनों रसोईयें बाल्टियाँ लेकर खुले भाग से पानी बाहर फेंकने लगे। किन्तु जब भी लहर के बाद नाव नीचे जाती तो ढेर सारा पानी एक साथ अंदर आ जाता। भौमिक के साथ नाव में उपस्थित युवक और अधेड़ लोग भी खाना बनाने वाले बर्तनों को ले लेकर पानी निकालने लगे।

हवा की तेज सरसराहट और लहरों का प्रचंड वेग मन में भयंकर आतंक भर रहा था। कुछ लोग भय से चीख रहे थे, तो कुछ लोग जीवन के लिए संघर्षरत थे। किंतु, सभी के चेहरे उतरे हुए थे। मन में चिंता व्याप्त थी। पता नहीं क्या होने वाला है।

आरंभ में तूफान जैसे ही दूर दिखाई दिया था, नाविक ने नाव को एक किनारे की ओर ले लिया था। सहायक ने लंगर फेंका वह जाकर फँस गया। नाविक ने इंजन बंद कर दिया। दोनों पिता-पुत्र नाव के रडर (यांत्रिक पतवार) को सँभाले हुए थे। पूरा प्रयत्न कर रहे थे कि नाव एक जगह पर रहे। किन्तु जब तूफान बढ़ा तो लंगर उखड़ गया और नाव लहरों के साथ इधर-उधर बहने लगी। किस धारा में से होकर किधर जा रही थी, यह नाविक को भी पता नहीं चल रहा था। दोनों भरसक प्रयत्न कर रहे थे कि नाव किनारे की ओर रहे।

सब लोग तूफान से जूझ रहे थे और यही प्रार्थना कर रहे थे कि नाव डूबे नहीं।

क्रमश..