जननम - 15 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जननम - 15

जननम

अध्याय 15

वह अचानक रुक गया। पीपल का पेड़ दिखा। बहुत विशाल पेड़-उसके बाद बड़े बोर्ड पर मुंसिपल स्कूल का नाम दिखाई दिया। पीपल के पेड़ के नीचे इधर देखते हुए कौन खड़ी है ?

उमा !

उसका ह्रदय तेजी से धड़कने लगा। यह उमा ही है। यह उमा ही है। चार महीने से जिसके ना मिलने से वह परेशान था वही उमा। पहले से ज्यादा सुंदर, पहले से ज्यादा स्वस्थ्य, गालों में एक चमक के साथ...

उसका गला बंद सा हुआ । शब्द निकलने में कठिनाई हुई |

वह तुरंत मुड़कर देखी, उसने उसको गेट के सरिये पकड़कर खड़े देखा।

----

"आज चेहरा क्यों उतरा है ?" मंगलम ने पूछा।

कहीं फिसले हुए मन को पकड़ कर खींच कर ले आया।

"नहीं, ठीक ही तो हूं।"

मंगलम हंसी।

"ठीक ही होता तो मैं क्यों पूछती।अचानक क्या फिक्र हुई तुम्हें ? बहुत गहरी सोच में डूबा हुआ जैसे लग रहा है!"

मुझे इस तरह अपनी चिंताओं को चेहरे पर नहीं दिखाना चाहिए उसने अपने आप में तय किया। आज ही रघुपति आने वाला है अम्मा से बोलने के लिए मन संकोच कर रहा है। वह हो ही रघुपति की पत्नी यह क्या पक्का है ? जो बात निश्चित नहीं हैं उसके विषय में किसी को बताकर उनके मन में संदेह के बीज डालने की क्या जरूरत है ?

"कुछ नहीं है थोड़ा सा सर दर्द है। मैं थोड़ा जा कर आता हूं।"

"कुछ गोली ले लो !"

"नहीं !"

"तुम्हारी दवाई में तुम्हें ही विश्वास नहीं है क्या ?"

अम्मा के हास्य में रुचि लेने की स्थिति में वह नहीं था।

वह मौन होकर गली में उतर कर चलने लगा शाम का समय था। पक्षियों का कलरव गूंज रहा था । पेड़ों की छाया अंधेरा बढ़ा रही थी मौन तप कर रहे हों जैसे । पेड़ों के बीच में से चल रही हवाएं दीर्घ श्वास ले रही थकी हुई जैसे लगी।

यह दीर्घ श्वास क्यों छोड़ रहे है ? इन दीर्घ श्वासों का अब कोई अर्थ नहीं है ऐसा लगा । अब छुटकारे का ही कोई रास्ता नहीं । उसके मुताबिक तो अब छुटकारा है ही नहीं ऐसा सोचने से उसके गले में कुछ आकर फंस गया जैसे लगा । लावण्या से जान-पहचान होने के बाद कुछ महीनों में ही एक सुंदर कविता जैसे मन में घुसपैठ कर गई। उसके चंदन की वह खुशबू अब मरने तक खुशबू देती रहेगी।

उससे छुटकारा मिल सकता है। रघुपति को देखते ही शायद उसे पुरानी यादें वापस आ जाए। अच्छी बात है कि मैं दिशा विहीन नहीं हुआ यह शांति की बात है सोच कर उसने एक दीर्घ श्वास छोड़ा। रघुपति को देखकर उसको पुरानी यादें नहीं आए तो लावण्या क्या करेगी ? अनजान पति के साथ जाएगी या जानने वाले प्रेमी के साथ रहेगी ? क्या करें तो ठीक है क्या करें तो गलत ? यदि वह यहां रुक जाती है तो उसे स्वीकार करना चाहिए, नहीं ठहरे तो उसे रोकना चाहिए ?

अब सचमुच में उसे सर दर्द होने लगा। उसे लगा सिर फट जाएगा उसे लगा सिर के अंदर कीड़े कुलबुला रहे हैं।

ओ, मैंने ऐसा जवाब क्यों लिखा ! इस तरह उस पर करुणा करने के लिए ऐसे कैसे धैर्य और हिम्मत से लिख दिया !

उसको लिखने के पहले उसके अंदर जो दुविधा थी उसके बारे में वह सोचने लगा। सोच-सोच कर परेशान होकर आखिर एक क्षण में मन में हिम्मत कर तुरंत लिखकर पोस्ट कर दिया-कोई पीछे से आकर मेरे गर्दन को पकड़कर रख रहा हो जैसे ! कौन है?

अंतरात्मा....

तू ! तेरा सर्वनाश होगा। तुम ही इस बात के साक्षी हो और हिम्मत से रह सकते थे। ओ, यस तुम में शक्ति ज्यादा है मुझे नहीं पता था। मैं हार गया। मैं हार.....

आज वह रघुपति आ जाएगा। ओ, यस ! यही मेरी पत्नी उमा है ऐसे बोलने वाला है। 'यह देखो फोटो' ऐसा फोटो दिखाने वाला है। लावण्या पहले तो बिदकेगी। बाद में फोटो को और उसकी बातों को सुनकर धर्मपत्नी जैसे उसके पैरों पर गिरकर उसके साथ रेल में चली जाएगी।

इतने दिनों मेरी देखभाल आपने की 'उसका बहुत धन्यवाद डॉक्टर' बोलेगी...... इतने दिनों एक अनजान बेहोशी में रहने के लिए शरमाई जैसे।

बस इतना ही मुझे बिलखते-बिलखते पराया बना........

गले में फिर कुछ आकर फंस गया उसने ऐसा महसूस किया।

"हेलो !"

उसने मुडकर देखा। कलेक्टर राजशेखर खड़े थे। जवाब में हेलो भी ना कह सका ऐसा गला सूख गया।

"क्या बात है, कहां पैदल जा रहे हो ?"

"ऐसे ही कुछ वाकिंग के लिए निकला था"

"वाक पर जा रहे हो, या किसी से मिलने जा रहे हो ?"

"किसी से भी मिलने नहीं जा रहा। नदी के किनारे जाने की सोच कर निकला।"

राजशेखर व्यंग से हंसे।

"मुझे क्या परेशानी है ‌। हां, आप जिसे देखने के लिए निकले थे उसी को जाकर देखो। मैं घर जा रहा हूं !"

"क्या है राजशेखर, मजाक कर रहे हो क्या ?"

"मुझे कोई और काम नहीं है क्या ? पूरा गांव जो कह रहा है वही मन में रखकर कुछ मैंने मजाक किया।"

उसका चेहरा हल्का सा लाल हुआ।

"गांव क्या कह रहा है ?"

"शादी की दावत के दिन नजदीक आ गये ऐसी बात करते हैं।"

"किसकी शादी ?"

"आपकी ही शादी। इस गांव के डॉक्टर की और टीचर की।"

अचानक उसके मन में एक डर उठा।

"यह सब उड़ाया हुआ है। पढ़े लिखे लोगों को इस तरह के बातों पर विश्वास करना चाहिए क्या ?"

"रूमर नहीं है ऐसा लग रहा है तभी तो विश्वास कर रहे हैं।"

"प्लीज, राजशेखर....!"

"ओ के.., ओ के। मैं कुछ नहीं पूछूंगा। जो बात है वह अपने आप ही बाहर आएगा। छोटे गांव में इन बातों को ढककर नहीं रख सकते।"

हे, भगवान ! अपने आप की पैदा की स्थिति को कैसे संभाल लूंगा !

"सोच कर देखो तो, आनंद, यह गांव की जनता ही ऐसा कुछ देखने के लिए तैयार है ऐसा लगता है। ऐसा सोच होना कोई बुरी बात है मुझे नहीं लगता है। इस तरह की लड़की लाखों में एक ही होती है।"

"प्लीज, मिस्टर राजशेखर !"

"चलो छोड़ो। आप इतना क्यों संकोच कर रहे हैं ?"

इनके पीठ पर चार मुक्का मारे ऐसा गुस्सा आनंद को आया। गाँव वाले जो बोल रहे हैं उसे ही पढ़े-लिखे लोग भी मान रहे हैं सोच की यह स्थिति बहुत खराब है उसे लगा।

हार्न की आवाज आई। तभी उसने कुछ दूर राजशेखर जी की गाड़ी को खड़े देखा, उसमें उनकी पत्नी, छोटा बच्चा बैठे हुए थे। राजशेखर गाड़ी को रोककर उसके पास आकर बात कर रहे थे उसके समझ में आया।

राजशेखर ने उसके हाथों को मित्रवत अपने हाथों में अपनत्व से लिया।

"मैं आता हूं । एक बड़ी शादी के दावत के लिए पूरा गांव तैयार बैठा है, उसे धोखा मत दीजिएगा।"

वह एक मूर्खों जैसी हंसी हंस कर सिर हिलाकर वहां से सरक गया । उसे लगा सिर पीटकर जोर-जोर से चिल्लाना चाहिए। मुझे छोड़ दो; मुझे छोड़ दो।

छोटे गांव में एक छोटी सी बात ने विश्व रूप धारण कर लिया। यह अच्छी बात है या अपनत्व या दया उसके समझ में नहीं आया। यह कुछ भी हो इन सब से दूर रहना चाहिए और यहाँ से भाग जाना चाहिए ऐसा उसे लगा । लावण्या को भी साथ में लेकर दौड़ सके...... उससे अलग होकर कैसे रह सकता हूं ? रह सकता हूं क्या ? उसे भूलना संभव है क्या ?

.........…...

रघुपति को देखकर एक प्रश्नवाचक चिह्न से देखती हुई वह आराम से चल कर आई।

रघुपति भावावेश में सांस भरने लगा।

"उमा....!"

आवाज धीरे से आई जो उसे भी सुनाई नहीं दी।

"आप कौन हैं ? आपको किससे मिलना है ?"

मन में जल रही ज्वाला एकदम से भडक गई।

वह पहचान नहीं पा रही है।

"डॉक्टर आनंद हैं क्या ?"

समझ गई जैसे अचानक से उसके चेहरे में एक प्रकाश की किरण चमकी।

"नहीं है आप ही मिस्टर रघुपति हैं क्या ?"

मिस्टर रघुपति ! अनजान जैसे पूछ रही है।

"हां। आपको मेरा नाम कैसे पता है ?"

"आनंद ने बोला था। उनका दोस्त रघुपति अहमदाबाद से आने वाले हैं ।"

"और कुछ नहीं बोला क्या ?"

उसने असमंजस से उसे देखा।

"नहीं, क्यों ?"

"कुछ नहीं !"

उस फोटो को अभी दिखा दो तो इसे कैसे लगेगा ऐसा उसने सोचा। आनंद रामाकृष्णन ने इससे इस बारे में कुछ भी नहीं बताया, उसने सोचा। क्यों नहीं बोला ? सच जानने के पहले बोलना ठीक नहीं है सोचा होगा उसके समझ में आ गया। बहुत होशियार है। डॉक्टर से मिलने की इच्छा बहुत है। इससे कुछ बात करके फिर उस फोटो को इसे दिखाता हूं ऐसे सोच कर वह बोला।

"डॉक्टर आएंगे क्या ?"

उसका चेहरा हल्का सा लाल हुआ उसने ध्यान दिया।

"आएंगे ऐसे ही सोचती हूं। अंदर आकर बैठिएगा।"

मन में दोबारा एक ज्वाला उठी। पुरानी सब बातें उसकी खुशी की बातें याद आ कर उसकी आग भडकाने लगीं। कितने दिन हो गए इसे देखे ! करीब-करीब एक साल हो गए। अतीत की बातें याद आने पर उसे पश्चाताप ने डुबाया । उसका दिल भर कर आलिंगन कर लूं ऐसे उसके हाथ और शरीर फड़फड़ाने लगे। इसको आलिंगन कर उसके अधरों में स्पर्श करने की इच्छा उसके अंदर उठी जिसे उसने बड़ी मुश्किल से दबाया।

अब वह गैर हो गई है। अपने पति को 'मिस्टर रघुपति' एक बाहर के औरत जैसे बुला रही है। मैं उसका पति हूं ऐसा उसको समझ में आने तक मैं अपनी भावनाओं को नहीं दिखा सकता। ऐसी एक सभ्यता मुझमें होनी जरूरी है......

...............................

क्रमश...