जननम - 10 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जननम - 10

जननम

अध्याय 10

आनंद ने कुछ सोचते हुए पत्र को बंद किया। इस पत्र ने जो सदमा दिया है उससे बाहर निकलना नहीं हो सकता उसे लगा। ऐसा एक सदमा ! अचानक ऊपर से एक नक्षत्र सिर के ऊपर गिरा जैसे ! अभी तक मैं थोड़ा पागलपन में भटक गया उसके समझ में आया। उसकी शादी हो गई हो सकता है मुझे यह बात क्यों नहीं समझ में आई ? शादी होने के कोई भी तो पारंपरिक चिन्ह उसके ना होने के कारण एक अज्ञानता में रह गया ? नदी के बाढ़ में उसका मंगलसूत्र गिर गया होगा। शायद किसी ने चोरी कर ली होगी। अंगूठी भी गिर गई होगी। कॉलेज की लड़की जैसे दिख रही थी। उसकी सुंदरता को देखकर सुंदर, हंसी को देखा, उसके मां-बाप के बारे में भी सोचकर देखा परंतु वह शादीशुदा है और एक पति उसका इस दुनिया में होगा ऐसा मुझे नहीं लगा?

एम.ए., पढ़ी है। इसीलिए इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल रही है। कविता उसे पसंद है। पेड़ों से उसे लगाव है....

ओह.... ! यही है..... यही है वह। गोरी, अच्छी सुंदर.... यही है।

लावण्या, तुम दूसरे की पत्नी हो।

उसका बिलख-बिलख कर रोने का मन हुआ। सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर यह अन्याय है ऐसा जोर-जोर से चिल्लाए ऐसा उसे लगा। इतने दिनों इन इच्छाओं के बोझ को लादे.... बड़े-बड़े सपने बांधकर आकाश में उड़ता रहे.... वह सब.... व्यर्थ..... अट्ठाईस साल तक बिना किसी बेहोशी के रहे इस मन को इस तरह से भटकने की जरूरत नहीं थी। उसे यहां नहीं आना चाहिए था।वह आई वही नहीं अपने आप की पूर्व स्थिति को भूली हुई और स्थिति में आपसे शादी करने को तैयार हूं बोलने लायक निकटता तो नहीं आई होती.... इतनी क्रूरता से भगवान उनसे ना खेला होता। जानबूझकर धोखा देने जैसा ..... कितना बड़ा दंड के लिए मैंने ऐसी कौन सी गलती थी ?

लावण्या- तुम दूसरे की पत्नी हो- यह उसको मालूम हो जाए तो उसे कैसे लगेगा ?

सोच के देखने में ही उसे डर लग रहा था । फूल जैसा उसका मन टुकड़ों-टुकड़ों में टूट जाएगा। इस सदमे को वह.... कैसे सहन कर सकेगी ?

वह आंखों को बंद करके सोच में बहुत देर डूबा। मुझे अब क्या करना चाहिए ? एक इज्जतदार सभ्य व्यक्ति के लिए क्या करना चाहिए ?

अचानक मन में एक वक्र बुद्धि आई। मुझे क्यों सभ्यता से पेश आना है ? इस विधि ने मुझे कुरूप जैसे धोखा दिया तो मैं क्यों नहीं होशियारी दिखाकर कुछ कर लूं ?

रघुपति को जवाब देने की जरूरत नहीं है। तुमने जो वर्णन किया है ऐसी कोई लड़की यहां पर नहीं है ऐसे लिख दो। रघुपति के पत्र के बारे में किसी को भी पता ही ना चलने दे.....

अपने ही विचारों को देखकर उसे लगा मुझे क्या हो गया । कौन सा शैतान आकर मेरे मन में घुस गया ? इस तरह के असभ्य, विचार कैसे उठे ? दो-तीन महीनों में मुझे एकदम पागल कर देने वाली के ऊपर उसके पति को कितना प्रेम और स्नेह होगा ! उसे देखे बिना। उसके बारे में कुछ भी पता ना चलने पर वह कितना तड़पा होगा ? कितने बड़े दुख में डूबा होगा ?

आनंद को अचानक जोर से हंसना चाहिए कैसे लगा। कितना अजीब स्थिति है उसकी ! मिस्टर रघुपति, आप भाग्यशाली हैं। मेरे पास आपकी पत्नी आने का तात्पर्य मुझे अभी समझ में आया। आप की वस्तु को सुरक्षित आपको वापस देना है ऐसा इसीलिए यह आपका भाग्य है इसका कारण मेरे समझ में आ गया। वह किसी और के पास चली गई होती तो निश्चित रूप से वह आपको नहीं मिलती।

उसकी आंखें पनीली हो गई थी जिसे महसूस कर वह आश्चर्यचकित हो गया। उसे उससे मिलकर बात करने तक इस बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है ऐसा उसने सोचा।

किसी बहुत ही नजदीकी रिश्तेदार के मर जाने पर अनायास ही अपने आप आंसू आ जाते हैं। आज इस पत्र को पढ़ते ही एक बहुत बडी दुख की खबर सुने जैसे मेरा दिल घबरा रहा है।

वह बहुत देर तक चिंता में डूबे रहने के बाद उठा। रघुपति को सामने देखकर बातें करने तक इसके बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं है उसने ऐसा सोचा।

उसने मुंह धोकर पानी को बार-बार अपने चेहरे पर उछाला और मन में बोला

'आई है वटूडू बेस्ट इट ! एक समस्या को छोड़ कर भाग जाना मूर्खता है उसे होशियारी से संभालना ही विवेक है ऐसा उसने कल लावण्या को बताया था उसे याद आया। हो... हो..... करके हंसना चाहिए उसे ऐसा लगा। अभी दिमाग में जो समस्याएं हैं उसे कैसे संभालूं? मैं हार गया यह निश्चित करने के पहले विवेक से सोचना चाहिए। उसके मन में एक विचार उठा आदमी कितना कमजोर है। जे कृष्णमूर्ति ! आपके जीवन में आपको ऐसे कोई समस्याएं नहीं आई होगी। इसीलिए आपने इतने आराम से वेदांत के बारे में बोलते हो !

उसने अपने आपको किसी तरह संभाला और अस्पताल के लिए रवाना हुआ। मुझे कुछ नहीं हुआ। मुझमें कोई भी आश्चर्य की बात को संभालने के लिए हिम्मत है इसे बार-बार दोहराता रहा। परंतु दिल में कोई चीज खुल गई ऐसा भ्रम पैदा हुआ। उस दिन अस्पताल के काम में मन नहीं लगा।

'मेरी चिंता आप समझोगे ऐसा सोचता हूं'

समझ नहीं आ रहा है रघुपति। बहुत अच्छी तरह समझ आ रहा है। मुझे समझ में आ रहा है इसीलिए तो मुझे इतनी पीड़ा.... वह तुम समझोगे ?

जरूरी केस कुछ ना होने के कारण सिर दर्द हो रहा है कहकर वह घर रवाना हो गया।

"डॉक्टर को उस पीपल के पेड़ के पास जाते ही सिर दर्द उड जाएगा !" निर्मला अंदर किसी से बोल रही थी सुनाई दिया।

इस गांव में अभी लावण्या और उसकी बात ना करने वाले ही कोई नहीं है यह सोचते ही इस तरह के किस संभावित स्थिति में मैं फंस गया सोचने लगा और एक अपमान की भावना उसे महसूस हुई।इन सब बातों को मैं कैसे संभालूंगा ?

लावण्या के घर को पार कर जाने का उसका मन नहीं हुआ। एक छोटा सा प्रयास करके देखेँ सोच उसने गाड़ी रोकी।

गाड़ी की आवाज को सुन लावण्या दौड़कर आई। उसके चेहरे पर निष्कपट जो खुशियां दिखी उसे देख उसे उस पर दया आई। अरे यह उस सदमे को कैसे बर्दाश्त कर पाएगी ?

"हेलो उमा !"

वह उसे एक क्षण देख कर हंसी।

"क्या बेहोशी में है ? मेरा नाम भी भूल गए?"

"ओ सॉरी ! कुछ सोच में था।"

मैं अंदर घुसा।

"वह उमा कौन है ?"

"मालूम नहीं।"

"लावण्या, तुम्हारे पास एटलस है क्या ?"

"है।"

"जरा लेकर आना।"

वह लेकर आकर दी।

वह भारत के नक्शे में अहमदाबाद को दिखाकर पूछा "इस जगह गई हो क्या ?"

उसने उसको घूर कर देखा।

नहीं "क्यों?"

"वहां एक मेडिकल कांफ्रेंस है।मैं जाने वाला हूं।"

"कब ?"

"अगले हफ्ते। वहां एक रघुपति मेरा दोस्त है उसके साथ रहूंगा।"

उसने बड़े ध्यान से उस की तरफ देखा। उसके चेहरे पर कोई बदलाव नजर नहीं आया।

"कितने दिन रहोगे ?"

"एक हफ्ता।"

उसकी आंखों में घबराहट साफ नजर आई।

"एक हफ्ते के लिए !"

उसके ऐसे उम्मीद के बिना वह अचानक उसके पास आकर उसके कंधे को छूने लगी।

"आनंद ! एक हफ्ता आपको देखे बिना मैं नहीं रह सकती ?"

उसके शरीर में कंपन हुआ। ऐसा कल होता उसके हाथ लगने से मन में एक प्रवाह पैदा होकर बहने लगता। आज कुछ बीच में रुकावट खड़ी हो गई।

वह तुरंत थोड़ा सरक गया।

"मरकदम बाहर गई हुई है !" कहकर वह हंसी।

इस निष्कपट हंसी को देखकर, 'हे भगवान मुझे शक्ति दे हिम्मत दे।'

और अधिक देर यहां बैठे रहा तो मैं अपने को भूल जाऊंगा उसे डर लगा।

"मैं जल्दी आ जाऊंगा लावण्या। डोंट वरी। मैं जल्दी से जाकर एक केस को संभालने के लिए जा रहा हूं फिर आजाऊंगा।" कह कर रवाना होते समय उसके माथे पर मोती जैसे पसीने की बूंदें आने लगी।

वह अपने घर पहुंचते ही अपने कमरे में जाकर जल्दी से दरवाजा बंद करके लिखना शुरू किया।

'प्रिय रघुपति को:

एक बार वह अपने मित्र के बच्चे को स्कूल में एडमिशन दिलाने गया। वहीं पर उसकी मुलाकात उससे हुई। वह एक टीचर थी। पहली बार मिलते ही उसने उसके दिल पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया। वह धीरे-धीरे उसको समझा। उसके मां-बाप एक विमान दुर्घटना में 3 साल पहले मर गए थे। उसके पिता एक बहुत बड़े राजकीय पद पर थे। मां-बाप के मरने के बाद वह अहमदाबाद में अपने दूर के रिश्तेदार के घर में रहती थी।

उसने उससे अपना संबंध बनाया उस के रिश्तेदारों से मिलकर अपनी इच्छा प्रकट की । बिना किसी झंझट के आराम से शादी हो गई। उसके बाद 2 साल.... बड़े आराम से अद्भुत ढंग से गुजरे"..!

अचानक उसे अमेरिका में एक अच्छी नौकरी मिली। यह वर्ष पूरा करके मैं स्कूल से रेजिग्नेशन देकर अमेरिका आ जाऊंगी उसने कहा।

उसने सोचा उससे क्या फर्क पड़ता है उसको छोड़ कर वह चला गया। उसका फैसला इतना गलत हो गया ?

'आपके साथ वह खुश थी क्या ?'

वह अपने माथे पर शिकन डालकर सोचने लगा।

उसे पता नहीं चला। अब कभी खुशी नहीं मिलेगी उसे ऐसे लगा। किसी भी दिन उसके चेहरे पर कोई शिकन, कोई कमी उसने नहीं देखी। बहुत सोच कर देखा वह खुश थी क्या उसके समझ में नहीं आ रहा था । बीच-बीच में पेड़ों, फूलों को ढूंढते हुए अकेले जाकर उनके पास खड़े होकर रहना उसे अच्छा लगता था। वह कविताओं को पसंद नहीं करता था जबकी वह पेड़ के नीचे बैठकर घंटों पढ़ती थी यह गुण उसमें था। उस समय वह उमा दूसरी दुनिया में रहती थी ऐसा भ्रम उत्पन्न होता था। यह निश्चित तौर पर उसके गायब होने का कारण हो ही नहीं सकता ऐसा वह अपने अंदर कहने लगा। पति पत्नी के बीच कितने लोगों का एक जैसा टेस्ट होता है ?

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क्रमश...