जननम - 11 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जननम - 11

जननम

अध्याय 11

गुणों में कोई अंतर ही न हो तो जोड़ी बन सकती है क्या ? जहां तक उसे पता है उमा में कोई भी कमी नहीं थी। बिना बोले अचानक गायब होने लायक कोई भी कमी मैंने भी नहीं रखी......

"रघु......!"

जल्दी से वह अपने स्वयं की स्थिति में आया। कमरे के दरवाजे पर उसका दोस्त खड़ा था।

"क्या है ?"

"खाना खाने आ रहे हो क्या ?"

"भूख नहीं है संपत......"

संपत के नजर में एक सपना दिखाई दिया।

"यह देखो रघु इतने दिनों इस तरह ठीक से खाना खाए बिना सोए रहोगे ? हमसे जितना बना वह सब कोशिश हमने करके देख लिया। भगवान से ही तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए......."

कुछ देर बिना कुछ बोले रघुपति आकाश को देखता हुआ खड़ा रहा।

"वह जीवित नहीं है पक्का पता चल जाए तो भी ठीक है ऐसा लगता है संपत। जिंदा है इस उम्मीद के कारण कहां पर फंसी हुई है क्या कष्ट पा रही है यह फ़िक्र है....

"इसलिए तो कह रहा हूं रघु। यह तुम्हें बहुत बड़ा दुख है मैं मानता हूं। परंतु तुम दुखी होकर बिना खाना खाए, बिना सोए, बिना नौकरी पर गए रहोगे तो कुछ फायदा होने वाला नहीं। धीरे-धीरे तुम्हें ही अपने आप को संभालना चाहिए....."

"यह बहुत ही कष्टदायक काम है संपत।"

"दुख को अनुभव करने पर ऐसा ही होता है रघु। उस सब से पार जाकर देखने के सिवा दूसरा कुछ नहीं है यह दुख तुम्हें ही खत्म ना कर दे। अच्छी बात है रघु....."

"तुम जो कह रहे हो वह सुनने में बहुत ही आसान लगता है संपत। परंतु मेरा मन बहुत ही बल हीन है कमजोर है। ऐसे सदमे को बर्दाश्त करना आसान नहीं है...."

"यू मस्ट ट्राई। मैं जो कह रहा हूं उसे तुम गलत मत लेना रघु। तुम मेरे घर में जितने दिन चाहो रह सकते हो। परंतु तुम्हें वापस अमेरिका जाकर अपने काम को ज्वाइन करना है तभी तुम्हारे मन में थोड़ी तसल्ली पैदा होगी ऐसा मैं सोचता हूं।"

रघुपति की निगाहें फिर से आकाश की तरफ गई। बहुत देर तक मौन रहा जैसे बीच की दूरियां बढ़ी। उसका जवाब बहुत धीमी आवाज में आया।

"तुम जो कह रहे हो वह बिल्कुल सही है। दुख में मैं बुरी तरह से खत्म हो जाऊं इससे बचना चाहिए। स्वयं का पश्चाताप भी इसका कारण है मुझे लगता है। दुख के बारे में सोचते रहने से कोई फायदा नहीं है। आई मस्ट गेट ओवर इट. यहां आए मुझे तीन महीने हो गए। अभी तक उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला। अगले हफ्ते अमेरिका वापस चला जाऊंगा।"

"मैं यहां कोशिश करता रहूंगा......"

"थैंक यू......!'

"खाना खाने आ रहे हो ?"

"आ रहा हूं।"

उन लोगों के खाना खाते समय संपत की पत्नी कमला ने बोला "आज रात को टीवी में एक हिंदी नाटक आ रहा है देखोगे ?"

"मुझे इंटरेस्ट नहीं है क्या नाम है ?"

"मयूर पंख। कमरे में ही बंद रहने से तो थोड़ा अच्छा नहीं है ?"

उसने सिर ऊंचा करके कमला को देखा। यह और संपत रोज मेरी स्थिति के बारे में बात करते हैं उसे ऐसा लगता है।

वह हल्का सा हंसते हुए बोला "ठीक” है।

उस रात उस नाटक ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं परंतु मन में एक बाधा भी उत्पन्न कर दी।

ऐसा सचमुच के जीवन में होता है क्या ? उनमें आपस में बड़ी चर्चा हुई।

"विश्वास ना करने लायक कहानी" कमला बोली। "जो त्याग कर सकता है वही प्रेम भी कर सकता है। स्वार्थ के रहने से वह प्रेम नहीं है।"

"प्योरली ड्रैमेटिक" संपत बोला। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तभी एक समाचार मिला।

श्री सभानायकम पहले से एक जानकार थे। किसी काम से उन्हें देखने आए। बातों ही बातों में संपत ने उनसे पूछा "गांव में सब ठीक हैं ?"

"अरे ऐसा क्यों पूछ रहे हो ! एक बड़ी दुर्घटना में हमारा पूरा परिवार ही चला गया !"

"क्या... क्या बोले !"

"हमारी बड़ी बहन, उसका पति उसकी बेटी सभी बस में गए थे वे सब दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गए।"

"अरे ईश्वरा ! कब हुआ ?"

" हुए चार महीना हो गया। उसमें खास बात यह है हमारे पास समाचार आने में भी चार दिन लग गए। मेरे भाई के गांव से निकलकर दुर्घटना स्थल पर जाने के पहले ही उन्होंने बॉडी को दहन कर दिया। हम तो आखिरी बार उसका चेहरा भी ना देख पाए।"

"अरे बाप रे ! वे कहां से वहां गए आपकी बहन ?"

"तिरची से लौटते समय बस से रवाना हुए। रास्ते में बहुत तेज बारिश और तूफान था । वहां के नदी में बाढ़ आई हुई थी। उसमें बस डूब गई और सभी लोग खत्म हो गए।"

"सभी लोग ?"

"हां... नहीं एक लड़की उनमें से किसी तरह भगवान की कृपा से बच गई ।"

रघुपति एकदम से सीधे बैठ गए।

"कैसे ?"

"यही तो आश्चर्य है । एक लड़की जिंदा है ऐसा पेपर में देखने के बाद शायद मेरी बहन की लड़की होगी ऐसा सोच मेरे भैया भाग कर गए.... पर वह कोई और थी ?"

"कितनी उम्र की होगी ?"

"20 से 25 के बीच के उम्र की होगी ऐसा भैया बोल रहे थे।"

रघुपति के बड़े ध्यान से सुनते हुए संपत ने उस पर ध्यान दिया।

"कौन सी गांव की लड़की है वह ? उसको कोई गहरी चोट लगी है ?"

"कुछ भी पता नहीं चला । इसमें एक दया की बात तो यह है उसके सिर पर लगी है इसलिए वह लड़की पुरानी सब बातें भूल गई वह कहां की है कहां रहती थी कुछ भी पता नहीं। किसी को भी पता नहीं । तमिलनाडु के अखबारों में डाला कोई भी अभी तक आया नहीं ।'

रघुपति को इसे सुनकर सदमा लगा। "वह लड़की शायद उमा होगी क्या ? दुर्घटना घटे चार महीने हो गए। अब तक वहां होगी क्या वह लड़की ? उसे तुरंत एक योजना सूझी तमिलनाडु के एक कोने में कैसे जाकर फंसी होगी ?"

"अच्छी पढ़ी-लिखी लड़की है ऐसी दिख रही है। सिनेमा स्टार जैसे सुंदर लड़की है।"

वह सकपकाया-उमा ही होगी ?

क्यों नहीं हो सकती ? तिरुपति जाना है सोच कर अचानक कहीं से रवाना हुई हो सकती है ? उसने जल्दी से सभानायकम को देख कर बोला "वह पता, वह किस अस्पताल में है उस डॉक्टर का नाम वह सब मुझे आप दे दोगे ?"

"यह सब मुझे नहीं पता ! यह मेरे भैया को लिखकर पूछना पड़ेगा। आपको क्यों चाहिए ?"

"आपको मैं फिर विस्तार से बताऊंगा शुभानायकम।" संपत बोला "हां आप तुरंत अपने भाई को लिखकर पूछिएगा ?"

गुणों में कोई अंतर ही न हो तो जोड़ी बन सकती है क्या ? जहां तक उसे पता है उमा में कोई भी कमी नहीं थी। बिना बोले अचानक गायब होने लायक कोई भी कमी मैंने भी नहीं रखी......

"रघु......!"

जल्दी से वह अपने स्वयं की स्थिति में आया। कमरे के दरवाजे पर उसका दोस्त खड़ा था।

"क्या है ?"

"खाना खाने आ रहे हो क्या ?"

"भूख नहीं है संपत......"

संपत के नजर में एक सपना दिखाई दिया।

"यह देखो रघु इतने दिनों इस तरह ठीक से खाना खाए बिना सोए रहोगे ? हमसे जितना बना वह सब कोशिश हमने करके देख लिया। भगवान से ही तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए......."

कुछ देर बिना कुछ बोले रघुपति आकाश को देखता हुआ खड़ा रहा।

"वह जीवित नहीं है पक्का पता चल जाए तो भी ठीक है ऐसा लगता है संपत। जिंदा है इस उम्मीद के कारण कहां पर फंसी हुई है क्या कष्ट पा रही है यह फ़िक्र है....

"इसलिए तो कह रहा हूं रघु। यह तुम्हें बहुत बड़ा दुख है मैं मानता हूं। परंतु तुम दुखी होकर बिना खाना खाए, बिना सोए, बिना नौकरी पर गए रहोगे तो कुछ फायदा होने वाला नहीं। धीरे-धीरे तुम्हें ही अपने आप को संभालना चाहिए....."

"यह बहुत ही कष्टदायक काम है संपत।"

"दुख को अनुभव करने पर ऐसा ही होता है रघु। उस सब से पार जाकर देखने के सिवा दूसरा कुछ नहीं है यह दुख तुम्हें ही खत्म ना कर दे। अच्छी बात है रघु....."

"तुम जो कह रहे हो वह सुनने में बहुत ही आसान लगता है संपत। परंतु मेरा मन बहुत ही बल हीन है कमजोर है। ऐसे सदमे को बर्दाश्त करना आसान नहीं है...."

"यू मस्ट ट्राई। मैं जो कह रहा हूं उसे तुम गलत मत लेना रघु। तुम मेरे घर में जितने दिन चाहो रह सकते हो। परंतु तुम्हें वापस अमेरिका जाकर अपने काम को ज्वाइन करना है तभी तुम्हारे मन में थोड़ी तसल्ली पैदा होगी ऐसा मैं सोचता हूं।"

रघुपति की निगाहें फिर से आकाश की तरफ गई। बहुत देर तक मौन रहा जैसे बीच की दूरियां बढ़ी। उसका जवाब बहुत धीमी आवाज में आया।

"तुम जो कह रहे हो वह बिल्कुल सही है। दुख में मैं बुरी तरह से खत्म हो जाऊं इससे बचना चाहिए। स्वयं का पश्चाताप भी इसका कारण है मुझे लगता है। दुख के बारे में सोचते रहने से कोई फायदा नहीं है। आई मस्ट गेट ओवर इट. यहां आए मुझे तीन महीने हो गए। अभी तक उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चला। अगले हफ्ते अमेरिका वापस चला जाऊंगा।"

"मैं यहां कोशिश करता रहूंगा......"

"थैंक यू......!'

"खाना खाने आ रहे हो ?"

"आ रहा हूं।"

उन लोगों के खाना खाते समय संपत की पत्नी कमला ने बोला "आज रात को टीवी में एक हिंदी नाटक आ रहा है देखोगे ?"

"मुझे इंटरेस्ट नहीं है क्या नाम है ?"

"मयूर पंख। कमरे में ही बंद रहने से तो थोड़ा अच्छा नहीं है ?"

उसने सिर ऊंचा करके कमला को देखा। यह और संपत रोज मेरी स्थिति के बारे में बात करते हैं उसे ऐसा लगता है।

वह हल्का सा हंसते हुए बोला "ठीक” है।

उस रात उस नाटक ने सिर्फ मनोरंजन ही नहीं परंतु मन में एक बाधा भी उत्पन्न कर दी।

ऐसा सचमुच के जीवन में होता है क्या ? उनमें आपस में बड़ी चर्चा हुई।

"विश्वास ना करने लायक कहानी" कमला बोली। "जो त्याग कर सकता है वही प्रेम भी कर सकता है। स्वार्थ के रहने से वह प्रेम नहीं है।"

"प्योरली ड्रैमेटिक" संपत बोला। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तभी एक समाचार मिला।

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क्रमश...