अमर जवान Atul Kumar Sharma ” Kumar ” द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अमर जवान

कितना काम करते हैं सभी कितने समझदार हैं। सबने अपनी अपनी जिम्मेदारी संभाल ली जिम्मेदार हो गए। और तू अभी तक अपने पांव पर खड़ा भी नही हुआ, पता नही इस कामचोर बदसूरत को कौन अपनी लड़की देगा। जब तक जिंदा हूँ इसी की चिंता खाये जाती है। सबने मुझे गर्व करने का कितना अवसर दिया पर तू गर्व करना तो छोड़ और शर्म से मेरा सर झुका देता है। तुझे पैदा करने की सज़ा भुगत रहा हूँ। ""........

अमर के पिताजी आये दिन उसे ताने देते रहते.....

अमर बचपन से देखने मे कोई खास सुंदर नही था। उसके चारों भाई एक से बढ़कर एक खूबसूरत थे। किसी फिल्मी हीरो की तरह। सब अमर का मज़ाक उड़ाते उससे अपनी तुलना कर उसे नीचा दिखाते। अकेले में अपनी किस्मत पर रोता हुआ अमर आसमान में टकटकी लगाए प्रश्नवाचक मुद्रा में घण्टो देखता रहता। सूने आकाश में अपने सवालों के जवाब खोजता । मन का भोला और पूरी दुनिया से अलग अमर अपनी खामोश वीरान जिंदगी में कदमताल करता और सपने बुनता।

अमर के पिता हमेशा दूसरे भाइयों का उलाहना देते । पर वो चुप चाप सब सुनता रहता, कभी किसी को पलटकर जवाब देना उसकी फितरत में नही था। ये सच है आजकल की दुनिया मे अमर जैसा इंसान बिल्कुल फिट नही बैठता। क्योंकि इस काले युग मे श्वेत आत्माओं के लिए कोई स्थान नही। अमर की सोच अपने हमउम्र साथियों से बिल्कुल जुदा थी, वो मौजमस्ती से ज्यादा वतनपरस्ती के सपने देखता और जब भी मौका मिलता आर्मी कैम्प के बाहर घण्टो खड़ा रहकर जवानों को बड़े गौर से देखता।

अमर की माँ अमर के बाबूजी से हमेशा कहतीं....""" देखना मेरे बच्चे पर एक दिन पूरा संसार गर्व करेगा , ये एक माँ के शब्द हैं एक माँ का विश्वास है।""""' ....

माताजी के इस कथन पर सभी भाई और बहुएं खिलखिलाकर हंस दिए.....

समय गुज़रता गया और सभी अपने अपने मुकाम पर अच्छे से काबिज हो गए। कोई बिज़नेसमैन बन गया तो कोई डॉक्टर , कोई सरकारी ओहदे में बड़ा हो गया तो कोई राजनीति का खिलाड़ी बन गया। सभी अपनी अपनी जिंदगी में सेटल हो गए थे। सबकी शादियाँ भी हुई सुंदर बहुयें घर मे आई। कहते हैं बेटा भले कितना भी बदसूरत क्यों ना हो पर एक माँ की नज़र में दुनिया का सबसे खूबसूरत इंसान होता है। अमर की माँ भी अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी। उसके मन को समझती थी।

एक दिन अमर सबके तानो से तंग आकर घर छोड़कर कही चला गया। धीरे धीरे सभी उसे भूल गए। पर माँ रोज़ अपने बेटे के लिए दुआ करती।

वक़्त अपनी रफ्तार से पहचान बनाता रहा.....

बहुत समय गुज़र गया पर अमर लाख कोशिशों के बाद भी ज्यादा कुछ हासिल नही कर पाया। एक दिन खुद से निराश अमर दिशाहीन चलता जा रहा था , बस चलता जा रहा था। आंखों में एक अनंत खामोशी का सूना आकाश लिए अमर जिंदगी को अलविदा कह देना चाहता था उसने अपने जीवन का अंत करना ही उचित समझा। मन ही मन वो कोई निर्णय लेकर उठ के खड़ा हो गया। उसके कदम अनजान दिशा की और बढ़ गए। वो अभी कुछ दूर चला ही था कि उसने देखा एक उसका ही हमउम्र जो दोनों पांवो से लाचार था सड़क किनारे एक दरी बिछाकर तिरंगे झंडे बेच रहा था। 15 अगस्त आने को थी। शरीर से लगभग खत्म हो चुका वो इंसान पर मन से कही शक्तिशाली अमर से मानो बहुत कुछ कह रहा था। अमर कुछ देर रुक कर उसे बड़े ध्यान से देखने लगा।

अमर से रहा नही गया , वो फ़ौरन उस व्यक्ति के पास गया जो दिव्यांग था। उसने नीचे झुककर उससे पूछा।....

"" क्यों भाई कितना कमा लेते हो?????.....""''

ये सुनकर उस व्यक्ति ने बड़े गौर से अमर को देखा और बोला...."""" बस बाबूजी पेट भर जाता है और मन तर जाता है । कभी कुछ अधिक मिल गया तो उसे सबमे बांट देता हूँ। ज्यादा की मुझे जरूरत भी नही । .....

अमर ने फिर पूछा।...""""घर मे कौन कौन है तुम्हारे?????...."""""

"" कोई नही है बाबूजी, माँ - बाप बचपन मे ही भगवान के पास चले गए। जन्म से ये दोनों टाँगे भी इस लायक नही की मेरा बोझ उठा सके, बस जैसे बनता है जीवन की गाड़ी खींच रहा हूँ। लेकिन कभी किसी के आगे हाथ नही फैलाये। खुद्दारी से रहता हूँ जो भी मिलता है उसे ईश्वर का प्रसाद समझ ग्रहण कर लेता हूँ। """.....चेहरे पर एक अलग ही सन्तोष लिए वो अमर से बोला ।......

अमर कुछ देर खामोश उसे देखता रहा।

"" क्या हुआ बाबूजी आप तिरंगा झंडा नही लोगे, स्वतन्त्रता दिवस आने वाला है। हम वीर जवानों की तरह सरहद पर देश की हिफाज़त तो नही कर सकते, पर उनको यही से मेरा सलाम है।"".....वो अमर से बोलते हुए सेल्यूट की मुद्रा में आ गया।.....

उसकी बात सुन अमर को अपना बचपन याद आ गया, जब वो भी एक सैनिक बनने के सपने देखा करता था।

अमर ने उससे बोला....""" अरे भाई हम क्या कर सकते हैं, तुमको नही लगता की तुम्हारा कोई मोल नही इस दुनिया मे। अपने आसपास देखो, सभी अपने लिए जी रहे हैं। किसी को किसी से कोई मतलब नही। पैसा ही सबकुछ है। पैसा है तो आप आसमान छू सकते हो वरना धरती भी नसीब नही। गरीबों की चिंता तो भगवान भी नही करता। ...."""".....

वो व्यक्ति अमर की बात सुन कुछ देर चुप रहा फिर बोला..."'"" बाबूजी कौन कहता है किसी को हमारी चिंता नही, भगवान का तो नही जानता पर जो दिन रात हमारी हिफाज़त में लगे रहते हैं अपनी जान हथेली पर लेकर , उनसे पूछिये वो किसके लिए ऐसा करते हैं । हमारे लिए ही ना इस देश के लिए ही ना। इस धरती पर कोई बिना उद्देश्य नही आता बाबूजी, कोई ना कोई मकसद होता है हर एक का। जो वो नही जानता पर ईश्वर उससे वो मकसद पूरा करवाता है। इसलिए खुद को लाचार और अकेला समझना उस ईश्वर की अवहेलना है। स्कूल तो कभी गया नही पर बचपन मे एक मास्टरजी थे जो खाली समय मे मुझे पढ़ाया करते थे। ये सब बातें उन्हीं से सीखी । कभी मन किआ की इस जीवन को खत्म कर लूं, लेकिन तभी मन मे विचार आता है कि यूँ फ़ालतू बेवजह आत्महत्या करने से अच्छा कुछ सार्थक करते हुए किसी के काम आते हुए यदि ये प्राण निकलें तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है। में फ़ौज में जाना चाहता था पर मेरा सपना सपना ही रह गया। लेकिन फिर भी जो बन पड़ता है में जरूर करता हूँ, उन वीर जवानों को मेरा सलाम। "".......

उसकी बात सुन अमर उससे एक तिरंगा लेकर चुप चाप वहाँ से चला आया। उधर देश के हालात कुछ ठीक नही थे। सेना में जल्दी जवानों की भर्ती के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किये जा रहे थे। अमर ने भी कोशिश की और उसका सिलेक्शन हो गया।

_________________दृश्य द्वतीय________________

पोस्ट पर सिर्फ कम्पनी कमांडर के अलावा चन्द सैनिक ही थे। अंधेरा घिरता जा रहा था, और खतरा बढ़ता जा रहा था। खबर पक्की थी कुछ आतंकवादी उस रास्ते देश मे घुसना चाहते थे। और अपने नापाक मंसूबो को अंजाम देना चाहते थे। मदद आने में 24 घण्टे लगते। तबतक उनको ही सामना करना था। किसी भी तरह उनको रोकना था। तभी अचानक पीछे से गोली बारी शिरु हो गई। सबने अपनी पोजिशन सम्भाल ली। पर दुश्मन संख्या में ज्यादा थे। दोनो तरफ से अंधाधुंध फायरिंग होने लगी। अमर और उसके साथी सैनिक बड़ी हिम्मत और बहाद्दुरी से डटे हुए थे। पर जैसे जैसे वक़्त गुज़रने लगा असला बारूद खत्म होने लगे। आतंकवादियों ने हथियारों के जखीरे को बम से उड़ा दिया था। कम्पनी कमांडर के साथ साथ सभी सैनिक लड़ते लड़ते शहीद हो चुके थे। अब अमर अकेला ही था । अब देश की हिफाज़त उसके हाथ मे थी। उसे उस झंडे वाले दिव्यांग की बात याद आई कि कोई भी बिना मकसद के इस दुनिया मे नही आता।अगर आज ये लोग सीमा में घुस गए तो पता नही क्या करेंगे। यही मौका है इनको यही मारना होगा।उसने मन ही मन कुछ निर्णय किया, और केम्प के अंदर चले गया।

इतने में वो लोग गोली बारी करते हुए भारतीय चौकी में घुस चुके थे। उन्होंने अमर को पकड़ लिया। वो लोग संख्या में 20-22 थे। उनमें से एक जोर से अट्टहास कर हंसा और घूरते हुए अमर से बोला...

""".....देख लिया चूहै..आखिर हम शेरों के आगे तुम्हारी कोई औकात नही...कैसे कुत्तो की तरह मार डाला सबको, अब तू भी मरेगा । हम शेर है हमसे टकराकर तुमलोगों ने अपनी मौत को दावत दी है... जान की खैरियत चाहता है तो हमसे यारी कर ले..हमें आगे का नक्शा सीधे से दे दे, और जरूरी जानकारी भी। तेरी जान बख़्श दी जायेगी। क्यों बाकियों की तरह कुत्ते की मौत मरना चाहता है। ""......और जोर जोर से हंसते हुए अचानक आंखों में शोले लिए उसने अमर की तरफ देखा।......

अमर की आंख में एक अलग ही चमक थी..वो सर ऊंचा कर भयंकर अट्टहास करते हुए चिल्लाते हुए बड़े रौब से गरजा....

"" अपने आप को शेर कहते हो और कायरों की तरह वार करते हो,कान खोलकर सुन लो तुम शेर हो तो हम शेरों के शिकारी हैं, और असली शिकारी कभी अपने शिकार से यारी नही करता ।"".....

और इतना कहते ही अमर ने अपनी अपनी जैकिट ऊपर कर पेट पर बंधे बेल्ट का बटन दबा दिया। एक जोरदार धमाका हुआ और चारों तरफ धुँआ ही धुँआ हो गया। सब कुछ जलकर खाक हो चुका था। वीरता की नई इबारत लिखी जा चुकी थी।

अगले दिन TV पर खबर आने लगी।... सरहद पर फिर से आतंकवादी हमला हुआ था। और सैनिकों ने बड़ी दिलेरी और हिम्मत से लड़कर उन आतंकवादियों के सारे मंसूबे नाकाम कर दिए थे। सैनिकों ने बड़े शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी जान देकर देश की रक्षा की थी। TV पर जैसे ही वीर सपूतों के नाम और फ़ोटो आये अमर के घर मे सबके मुंह खुले के खुले रह गए......सामने स्क्रीन पर उनमे से एक सैनिक अमर था जिसके सम्मान में आज पूरा देश नतमस्तक था।

आज गांव में जब उसका कई हिस्सों में बंटा शहीद पार्थिव शरीर लाया गया तो तीन रंगों में लिपटा हुआ अमर जिसने एक पिता ही नही एक गांव ही नही बल्कि पूरे देश का सर गर्व से ऊंचा कर दिया था।

माँ आज दुखी नही थी ना ही रोई , बल्कि अपने बेटे की अगवानी को पूजा की थाली लेकर पहुंची जैसे एक बेटा दुल्हन ब्याह के लाया हो....और उसके तिरंगे में लिपटे शरीर को प्रणाम किया और बेजान होकर एक तरफ ढुलक गई।।.....

#जय_हिंद_जय_हिंद_की_सेना

अतुल कुमार शर्मा "कुमार"