(ये एक सत्यघटना है। अवश्य पढ़ें। इसमें कुछ भी कल्पनिक या मनगढ़ंत कहानी नही है। जो स्वयम मेरे साथ कभी घटी थी। हो सकता है ये किसी को मनोरंजक ना लगे क्योंकि सत्यघटनाओ को आप काल्पनिकता की उड़ान नही दे सकते। उन्हें उसी रूप में व्यक्त करना पड़ता है।)
जो दृश्य है हमसभी उसी पर विश्वास करते हैं। जिनकी गुत्थी विज्ञान सुलझा चुका है जो हमारी बुद्धि और तर्क शक्ति के दायरे में है हमारे लिए वही सत्य है । परंतु सत्य और असत्य की कसौटी से परे भी ऐसा कुछ है जो हमको अपना आभास कराता है, लेकिन उनमें भी एक सबसे अजीब प्रकार है "चकवा"। गांव के पुराने लोगों को इस चकवा के बारे में अच्छी तरह जानकारी है। चकवा एक ग्रामीण शब्द है जिसका अर्थ है छलावा, चकमा देने वाला।
छलावा के बारे में लोगो की ऐसी मान्यता है कि ये सिर्फ आपके किसी पहचान के मित्र या रिश्तेदार का वेष में ही आपको दृष्टिगत होते हैं। और मात्र 1 या 2 बार ही आपका नाम पुकारते हैं। ये कभी तीसरी आवाज़ नही लगाते।
एक बार मे अपने मौसी के यहाँ उनके गांव गया था। नसरूल्लाह गंज से 20 km दूर गोपालपुर गांव पड़ता है जहां से एक कच्चा रास्ता जो अब वर्तमान में पक्की सड़क का रूप ले चुका है लगभग 10 km अंदर को पैदल या बैलगाड़ी या साइकिल से आप कुछ ही देर में बोरखेड़ा गांव पहुंच जाते हैं। अब तो खैर वहां पक्की सड़क बन गई तो तमाम आवागमन के साधन मौजूद हो गए। में काफी समय पहले गया था तब वहां ज्यादा डेवलपमेंट नही हुआ था। बारिश में तो उस रास्ते पर चलना और भी दूभर हो जाता था। जब में अपने भैया के साथ गया था तब बारिश का मौसम तो नही था। पर सर्दी के दिनों में मावठा गिरने से वैसा ही वातावरण बन गया था। हमलोग गोपालपुर पहुंचकर बैलगाड़ी का इंतज़ार करने लगे। बैलगाड़ी के आते ही हमलोग रवाना हो गए। बरसात में मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू और हिचकोले लेकर चलती बैलगाड़ी का आनंद मन को रोमांचित और उल्लासित किये जा रहा था। रास्ते मे जंगल पड़ता था। उसी रास्ते से होते हुए हम शाम तक बोरखेड़ा पहुंच गए थे। सबसे मिलनी की रस्म अदा करने के बाद खाना वगेरह खा पी कर हम सो गए। गांवों में रात को 8-9 बजे ही सो जाते थे क्योंकि बिजली सिर्फ दिन में 4-5 घण्टे ही आती थी। शाम को 5 के बाद पूरी रात लालटेन मोमबत्ती की रौशनी में ही गुजारनी पड़ती थी। चूंकि में बहुत कम ही ग्रामीण अंचलों में गया था सो ये मेरे लिए एक नया अनुभव था।
मुझे फोटोग्राफी करना और वीडियो बनाने का शौक बचपन से ही है। पर जब वीडियो कैमेरा अपनी पहुंच से दूर हुआ करता था इसलिए मन की भड़ास सिर्फ फ़ोटो खींच कर ही निकालनी पड़ती थी। यकीन मानिए यदि उस समय मेरे पास वीडियो कैमेरा होता तो में जीवन के हर पड़ाव को एक उत्सव की भांति उसमे कबका कैद कर चुका होता। उस समय सिर्फ कोडेक का मात्र एक कैमरा था मेरे पास ,जहां भी जाता अपना कोडेक KB10 कैमेरा ले जाना नही भूलता था। विचित्र जगहों जंगलों में फ़ोटो खींचना मुझे बहुत भाता था।
तो अब किस्से पर आते हैं। अगले दिन वहां के मेरे हमउम्र लड़कों से मेरी पहचान और दोस्ती करा दी गई जिनकी जिम्मेदारी में जब तक वहां था मुझे घुमाने फिराने और मेरे साथ समय बिताने की थी। मेने वहां के खेतों पहाड़ों रमणीय स्थलों प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों का खूब भृमण किआ बहुत आनंद लिया। रोज़ कही ना कही घूमने का प्रोग्राम बन ही जाता था। एक दिन हमलोगों का प्रोग्राम डोटखेड़ा गांव जाने का बना। जहां मेरी एक रिश्तेदार और रहते थे। सोचा वापिस जाने से पहले उनसे और मिल आऊं। हमलोग बस से ना जाकर भैया की मोटरसाइकिल से निकले। डोटखेड़ा उस समय हरसूद से होकर जाना पड़ता था। बाद में जलमग्न होने पर अब छनेरा से होकर रास्ता जाता है। जब हरसूद में थोड़ा ब्रेक लेकर डोटखेड़ा की और निकले तो तब तक शाम हो चुकी थी। वैसे तो हरसूद से कुल 1 घण्टे में डोटखेड़ा पहुंच जाते हैं। पर उस दिन हमारे साथ ना जाने क्या हुआ कि हम रास्ता भटक गए। ऊपर से हमारा दो बार बुरी तरह एक्सीडेंट होते होते बचा । घूम फिरकर वापिस उसी रास्ते पर आ जाते। इधर अंधेरा होने को था। में रह रहकर भाईसाहब से बोलने लगा कि हमको बस से आना चाहिए था। जब रास्ता नही पता था तो मोटरसाइकिल से आकर गलती की। भाईसाहब भी कुछ नही समझ पा रहे थे। वो बोले कि में गाड़ी से पहले भी 2-4 बार आ चुका हूं। पर आज पता नही क्या हो रहा है। हम बस रास्ते पर चले जा रहे थे। ना कोई गांव दिख रहा था ना ही कोई इंसान। था तो बस वो रास्ता।
शाम के 7 बजने को आये पर हम डोटखेड़ा नही पहुंचे थे। बस मसनगांव और धन्ति के बीच ही घूमते रहे। जैसे तैसे हिम्मत कर हम दोनों आगे बढ़े जा रहे थे। कुछ देर बाद सामने एक बैलगाड़ी आती दिखी। उसे देखकर हमको कुछ हिम्मत आई। जब हमने उससे रास्ता पूछा और अपनी परेशानी बताई तो वो बैलगाड़ी वाला बोला कि होता है इस रास्ते पर चौदस अमावस अक्सर ऐसा होता है। दुर्घटनाएं होना आम बात थीं । फिर उसने जो तरीका बताया वो मुझे बड़ा अजीब और हास्यादपद लगा। उसने कहा कि आपलोग एक काम करो यहां रुककर रास्ते के किनारे पर पेशाब कीजिये , और फिर उसपर अपना पांव रखकर सीधे गाड़ी चालू कर निकल जाइये। उस समय उस जगह उसकी बात मानने के अलावा हमारे पास कोई चारा नही था। हमने वैसा ही किआ। फिर लगभग 20-25 मिनिट बाद एक मोड़ दिखा जहां से डोटखेड़ा का रास्ता जाता था। उस मोड़ को देखकर मेरे भाईसाहब को रास्ता याद आ गया। और हम सही सलामत गांव पहुंच गए। उस समय तो गांव में लोग लगभग सौ चुके थे। सो हम भी खाना वगेरह खा खाकर सो गए।
रात में मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे दो बार अतुल अतुल आवाज़ दी। वो आवाज़ मुझे अपने भैया की लगी। जबकि वो तो मेरे पास सो रहे थे। मे वहम समझकर सो गया। लेकिन कुछ देर बाद फिर आवाज़ आई। मेने खिड़की खोलकर बाहर देखा तो ओटले पर जैसे भैया बैठे देखे। अंधेरे में चेहरा ज्यादा साफ नजर नही आ रहा था। पर दूर से भैया जैसे ही लग रहे थे। मेने वापिस पीछे कमरे में देखा तो भैया वहीं सोए पड़े थे।में भी कुछ कुछ डर गया। हिम्मत नही हुई तो चुप चाप सो गया।
सुबह जब सब लोग उठे और आगे दिल्लान ( गांवों में घर के अंदर एक सिर्फ छत डली चारों तरफ से खुली जगह को दिल्लान कहते हैं) में बैठकर चाय पी रहे थे तब हमने वो शाम वाला वाक़या सबको बताया। सुनकर सभी चकित तो हुए पर उन्होंने इसे सामान्य घटना बताया। लेकिन कुछ लोगो ने बताया कि आपको चकवा लग गया था। जिसमे इंसान भृमित होकर भटक जाता है। आप दो लोग थे तो इतने समय भटककर भी सुरक्षित रहे यदि अकेले होते तो कोई ना कोई दिख भी सकता था। यहां अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहतीं हैं। वो तो आपके माता पिता के करम अच्छे कह लीजिए या किस्मत। जो वो बैलगाड़ी वाला मिल गया और आपको रास्ता बता दिया। वरना कोई घटना भी घट सकती थी।
मुझे डरता देखकर उनकी बात सुनकर वहां बैठे बुजुर्गों ने उन भैया लोगों को डांट दिया। क्यो फालतू में डर फैला रहे हो। ऐसे कुछ नही होता। उनके इतना कहने पर ही वहां बैठे लोगों में आपस मे बहस होने लगी। एक पक्ष इसे सत्य और दूसरा फसाना बताने में लगे थे। बाद में जब मैने किसी के रात में मेरा नाम लेकर आवाज़ देने की बात कही तो आधे लोगों ने इसे भी वहम बताया, जबकि मुझे स्पष्ट आवाज़ आई थी। खैर वहाँ इस बात पर ज्यादा बहस करने के बजाए हम वापिस बोरखेड़ा की और निकले।
वापिस आकर जब हमने बोरखेड़ा में ये बात बताई तो वहां भी एक भैया ने तो और डरा दिया। वो बोले कि हां आपको चकवा लग गया था इसलिए आप उसी जगज गोल गोल घूमते रहे। और जब उस बैलगाड़ी वाले ने आपको बताया कि आप पेशाब करके उसपर पैर रखकर आगे बढ़ो तो आपको आगे जाकर वो मोड़ नज़र आ गया और आप सही जगह पहुंच गए। वरना यदि रात ज्यादा होती तो आपको चकवा इंसानी रूप में दिख भी सकता था। ये अच्छा हुआ कि आप दो लोग थे। ये चीज़े स्थानीय लोगों को इतना परेशान नही करतीं पर नए इंसानों को देखकर उनके पीछे लग जातीं हैं। अतुल भाई को रात में जो दो बार आवाज़ आई ये वही चकवा की होगी। आपलोगो को देखकर आपके पीछे पीछे वहां तक आ गया होगा। यदि अतुल भाई उस आवाज़ को अपना रिस्पॉन्स दे देते और उठकर उस दिशा में चले जाते तो फिर इनको कोई नही ढूंढ पाता। ....... उसके बाद उन भैया ने उनके साथ घटी एक पुरानी घटना भी बताई जब वो एक जगह घूमने गए थे। और वापिस धर्मशाला में आकर रुके। तो रात को उनको उनके ही एक साथी की आवाज़ आई जो उनका नाम लेकर उन्हें पुकार रहा था। जब उन्होंने उठकर देखा तो उनको दिखने में तो वो उनका ही साथी लग रहा था पर आंख बार बार झपक रहा था। और जब उसके पैरों पर नज़र पड़ी तो उसके पैर उल्टे दिखे। ये देखकर वो घबरा गए पर चूंकि वो बचपन से गांव में रहे थे। इसलिए हिम्मत दिखाकर जोर से आवाज़ देकर सबको जगा दिया। और जैसे ही सब जागे उसके बाद वो फिर वहां कही भी दिखाई नही दिया। उनकी बात सुनकर में डर गया।
रात को बिस्तर पर लेटे लेटे उन भैया की बात मेरे कानों में गूंज रही थी। उन्होंने कहा कि चकवा ने आपको देख लिया था और आपके पीछे पीछे वो भी वहां पहुंच गया। बस उन भैया की ये बात मुझे अंदर तक इतना डरा गई कि में वही सोचता था। और सुबह तक तो मुझे बुखार आ गया। जब मौसजी आये और उनको ये बात पता चली तो वो उन भैया पर इतना नाराज़ हुए बता नही सकता। आधे घण्टे तक मेरे मौसाजी ने उन भैया की ऐसी क्लास ली । खामखां बच्चे को डरा दिया। ऐसा कुछ नही होता। बाद में मौसी ने मुझे गूगल का धुंआ दिया और नज़र उतारी।
में वापिस भोपाल आ तो गया पर काफी समय तक उसी किस्से के बारे में सोचता रहता। आज भी जब वो घटना याद आती है तो में अंदर तक सिहर उठता हूँ। उसके बाद तो ना जाने कितने लोगों ने उन भैया की बात को सही ठहराया होगा।
वैसे ये आवाज़ वाली घटना तो आज भी मेरे साथ कभी सभी होती ही रहती है। जब में अपने रूम में बैठे कुछ काम कर रहा होता हूँ तो ऐसा लगता है कि जैसे मम्मी ने आवाज़ दी हो या पापा आवाज़ देकर बुला रहे हो। और जब में बाहर निकलकर देखता हूँ तो कोइ दिखाई नही देता। नीचे जाकर पूछने पर सभी मना कर देते हैं कि तुझे तो किसी ने नही दी आवाज़ । तेरा वहम होगा।
बस यही वहम अभी तक बना हुआ।
(इस घटना का जिक्र करने का उद्देश्य किसी अंधविश्वास को बढ़ावा देना नही पर जो हुआ उसे भी नकारा तो नही जा सकता।)
Atul Kumar Sharma ' Kumar '