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परवरिश


आज न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। चारों तरफ खुशी का माहौल था। लोग न्याय व्यवस्था की तारीफ कर रहे थे। हो भी क्यों ना, आखिर पहली बार महीने भर के अंदर आरोपी को अपराधी घोषित कर फांसी की सज़ा दी गई थी। वहीं परिसर में दो माताएं खड़ीं थी। दोनो की आंखों में आंसू थे। पर इन आसुंओं में अंतर था। एक की आंख में आगे होने वाली घटना को लेकर पीढ़ा और बेचैनी थी। तो वहीं दूसरी की आंखों में पहले हो चुकी घटना की पीढ़ा और जो होने वाला था उसे लेकर शांति खुशी और सन्तोष के मिले जुले भाव थे। एक खूनी को कई मासूम जिंदगियों को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले दरिंदे को अंजाम भुगतने के लिए आदेशित किया जा चुका था।

मोंनित उर्फ मोंटू , जी हाँ उसे सभी लोग इसी नाम से जानते थे। धनाढ्य खानदान की इस पौध ने बचपन से ही अपने पांव पलने में ही दिखाने शिरू कर दिए थे। अपने उद्दंडी स्वभाव और दूसरों को नुकसान पहुंचाकर उसे बड़ा सुकून मिलता था। बचपन से ही हर खेल में बेईमानी करने वाला मोंटू अपनी माँ रेखा का दुलारा था। पड़ोसियों को उसका जो चेहरा दिखता था , वो चेहरा उसकी माँ कभी नही देख पाई। जब पहली बार उसकी शिकायत घर आई तो मोंटू मन ही मन बहुत डर गया। प्यार करने वाली माँ कहीं आज उसे डांट ना लगा दे, मार न दे, इसी डर से वो दीवार से सटकर एक दम चुपचाप खड़ा था। उसने सोचा वो माँ को सब सच बताकर माफी मांग लेगा। पर ये क्या??......माँ ने उसपर गुस्सा होने के बजाए उल्टा पड़ोसियों को ही खरी खोटी सुना दी। अब तो जैसे मोंटू में एक नई हिम्मत आ चुकी थी। उसे अपनी माँ अपनी ढाल के रूप में दिखने लगी। फिर तो वो बेधड़क मन की करने लगा।

पर मोंटू की माँ भी क्या करे वो भी तो आखिर एक माँ है, जिसकी ना जाने कितनी मन्नतों के बाद ईश्वर ने उसे उनकी गोद मे डाला था। पिता को तो कुछ कह नही सकते थे। हर समय अपने बिजनेस में लगे रहने और फुर्सत मिलने पर एक राह पकड़ के मधुशाला तक पहुंच ही जाते थे। उस पिता की दुनिया बस यहीं तक सीमित थी। रुपये पैसे की कोई कमी नही थी। नन्हा मोंटू ये सब देखता रहता। पिता के कमरे में रखी बोतल में पड़ा रंगीन पानी उसे भी अपनी और आकर्षित करता। एक दिन उसने सबकी नजर बचाकर पहली बार अपने पिता के अधूरे छोड़े काम को पूरा कर दिया। और बोतल को बाहर फेंक दिया । जब उसकी माँ को इसका पता चला तो उसे अंदर से थोड़ा गुस्सा आया । पर अपनी ममता के आगे विवश वो मजबूर माँ उसे डांटने की हिम्मत नही जुटा सकी।

मोंटू के पिता को तो घर परिवार से कोई सरोकार था नही । ले दे कर मोंटू की माँ ही उसके आगे पीछे घूमती रहती थी । पर उसकी परवरिश सवालों के घेरे में थीं । मोंटू का बर्ताव घर के नॉकरों से भी बहुत बुरा था। पर रेखा को अपने पुत्र के मोह ने अंधा बना दिया था। उसकी हर गलती को वो छिपा जाती थीं । उसे लगता था धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जायेगा। पर धीरे धीरे कभी कुछ ठीक हुआ है क्या??.......

उसके उद्दंडी स्वभाव और छुट पुट वारदातों के चलते उसके स्कूल से कई बार नोटिस मिल चुका था। पर वो था कि दिन पर दिन और उग्र होने लगा। नतीज़न उसे स्कूल से निकाल दिया गया। इधर पिता के देहांत के बाद तो जैसे मोंटू और आज़ाद होगया था। माँ का डर तो उसे पहले ही नही था। अब तो पुरुष के नाम पर भी घर मे वही था। उसने आगे की पढ़ाई छोड़कर चोरी छिपे गलत काम धंधे चालू कर दिए। रेखा ने उससे उसकी जिंदगी के बारे में पूछना कभी जरूरी नही समझा। उसे लगता था कि उसे काम की क्या जरूरत। इतना रुपया पैसा है इतना बड़ा बिज़नेस है, जिसे वो सम्भाल ही रही है, बाद में मोंटू भी समझ जायगा। अभी तो उसके खेलने खाने के दिन हैं।

समय के साथ साथ मोंटू तगड़ा जवान हो चुका था। अपनी दबंग प्रवृत्ति और धौंस के चलते उसने अपना काफी दबदबा कायम कर लिया था। कोई उसके मुंह लगना उचित नही समझता था। नशे की दुनिया से वो कब अपराध की दुनिया मे आ गया इसका पता ना उसे चला उसकी माँ को। लड़ाई झगड़ा मारपीट , से लेकर अब मोंटू ड्रग्स बलात्कार और हत्या की दुनिया मे कदम रख चुका था। धीरे धीरे अपराध की दुनिया का जाना माना नाम बन चुका था मोंटू । अपनी पुश्तैनी दौलत को लुटाते हुए वो अपने बिगड़ैल दोस्तों की गैंग बनाकर अपराधों को अंजाम देने लगा। ड्रग्स सप्लाई और बलात्कार के ढेरों मामलों में वो अपनी माँ के रसुख के चलते बच निकलता। बड़े बड़े नामचीन वकील उसका केस देखते।

उस कॉलोनी के पास ही कुछ दूरी पर एक बस्ती थी। जहाँ कई गरीब परिवार रहते थे। ये दोनों दुनियाएं एक दूसरे से बहुत जुदा थीं । एक तरफ नरक समान वो बस्ती तो दूसरी तरफ स्वर्ग का आभास कराती वो शानदार बंगलों की पाश कॉलोनी।

उसी बस्ती की करिश्मा जो देखने मे बहुत सुंदर और पढ़ने में बहुत तेज़ थी। अनुशासन की पक्की थी। सुबह उठते ही उसका टाइम टेबल चालू हो जाता। हर चीज़ टाइम टू टाइम। उठते ही घर के सारे काम करना माँ को उनके काम मे हाथ बंटाना। फिर 10 बजे अपनी कोचिंग के लिए निकल जाना। शाम को वहीं से सीधा पार्ट टाइम जॉब के लिए जाती । फिर 8 बजे वापिस घर आना। करिश्मा अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर अपना एक एक कदम आगे बढ़ा रही थी। उसके परिवार में सिर्फ उसकी माँ कुसुम ही थी। दरअसल करिश्मा कुसुम की सगी बेटी नही थी। बल्कि उसे बचपन मे एक शादी में चोरी करते हुए मिली थी। कुसुम अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में गई थीं । वहीं उसे ये गरीब बच्ची शादी के उपहारों को चुराती हुए मिली थी। जब उसने उसे वहां चोरी करते देखा तो पकड़ लिया। पर किसी को बताया नही बल्कि उसे अकेले में डांटा और समझाया। जब पूछने पर उस बच्ची ने बताया कि उसका कोई नही इस दुनिया मे , वो बिल्कुल अकेली है और भूखी है तो कुसुम में ममता जाग उठी। चूंकि उसकी कोई संतान नही थी। पति को गुज़रे ज़माना होगया था। ऐसे में कुसुम को उसपर बहुत दया आई। वो उसे अपने साथ अपने घर ले आई। और बड़े जतन से उसे रखने लगी। मेहनत मजदूरी करके उसने उसे पढ़ाया। बस्ती वालों ने बहुत कहा कि इसे भी काम पर लगा दे ताकि 2 पैसे ज्यादा मिलें। पर कुसुम ने किसी की नही सुनी। करिश्मा से कभी उसने मज़दूरी नही कराई। उसने हर दुख तकलीफ उठाकर उसे पढ़ाया। समाज मे उठने बैठने लायक बनाया। वो खुद तो अनपढ़ थी, इसलिए इसका दर्द अच्छे से जानती थी। पर उसने करिश्मा की परवरिश में अपनी हैसियत अनुसार कोई कसर नही छोड़ी। जो बन पड़ा किआ। उसे अच्छे बुरे की शिक्षा के साथ साथ संस्कार दिए। करिश्मा ने भी कभी उसे सौतेली माँ नही समझा। जब वो अपना भार उठाने लायक हुई तो एक जगह पार्ट टाइम नॉकरी कर ली। ताकि माँ को भी अब थोड़ा आराम मिल सके।

आज करिश्मा अपने सपने को सच करने जा रही थी। जिस दिन का उसे बेसब्री से इंतज़ार था, आज वो दिन आ गया था। IAS बनने के लिए आज उसने पहला कदम बढ़ाया था। एग्ज़ाम की तैयारी तो उसने कबसे रख रखी थी। आज मैदान में उतरने का वक़्त आ चुका था। सुबह जल्दी उठकर वो तैयारियों में लग गई। रेडी होने के बाद उसने कुसुम के पांव छू आशीर्वाद लिया , और फिर पड़ोस के बुज़ुर्ग लोगों से भी आशीर्वाद ले कर अपने सपने को सच करने निकल गई। पूरी बस्ती की शान थी करिश्मा। सबसे हंसते बोलते , सबका काम करते वो सभी की चहेती बन गई थी।

खैर परीक्षा भी हो गई। और परिणाम का दिन भी आ गया। लिस्ट में टॉप पर उसी का नाम था। मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान हासिल करने पर सब तरफ उसी की चर्चा थी। अखबार में न्यूज़ में चारों तरफ इसी गरीब लड़की की संघर्ष की दास्तान कही जा रही थी। साधनहीन होने पर भी सबसे उच्च स्थान हासिल करना अपने आप मे एक करिश्मा ही था। ये उस की मेहनत और लगन का ही नतीजा था जो आज उसे ये स्थान हासिल हुआ था। कुसुम के लिए तो जैसे उसकी जीवन भर की मेहनत और सदभावना का ईश्वर ने एक मुश्त भुगतान कर दिया था। पूरी बस्ती में उत्सव का महौल था। कल तक सिर्फ बस्ती की चहेती करिश्मा आज पूरे शहर की शान बन गई थी।

सभी उस जश्न में खुशी में सराबोर थे। अगले दिन उससे पास ही कुछ दूर एक मार्केट में करिश्मा अपनी सहेलियों के साथ खरीददारी कर रही थी। तभी काले कलर की एक स्कार्पियो अचानक आकर रुकी। जिसमें से 6-7 मुस्टंडे जैसे लड़के बाहर निकलकर एक दुकान के बाहर फैल गए। सबसे आखिर में एक तगड़ा नोजवान उतरा। ये था मोंटू......

एक दुकानदार को घसीटते हुए वो लड़के बाहर लाये और मोंटू के कदमों में पटक दिया।

मोंटू ने तैश में आकर उस दुकानदार से बोला...."" बता साले कहां छिपा रखा है अपने लड़के हो। कई महीनों से मेरे पीछे पड़ा है साला । मेरा पर्दाफाश करेगा , मेरा !!!!!!!!! ...... आज बराबर करके रहूंगा उससे अपना हिसाब बोल किस बंकर में छिपा रखा है उसे ..रिपोर्टर है ना साला , आज सारी रिपोर्टरगिरी निकाल दूँगा उसकी .."""""....

तभी दुकान से एक छोटी बच्ची दौड़ती हुई बाहर आई, और उस बुज़ुर्ग दुकानदार से लिपट गई.....""""" दादू को छोड़ दो, मत मारो....""""" और ये कहते कहते रोने लगी।

मोंटू की ड्रग्स से बुझी नज़र जैसे ही उसपर पड़ी। अंदर का हैवान जाग उठा। कुटिल हंसी हंसते हुए उसने तेज़ चिल्लाते हुए उस बुज़ुर्ग दुकानदार से बोला """.....अच्छा तो ये है तेरे रिपोर्टर की छोटी सी दुनिया , अब देख पूरी भीड़ के सामने कैसे उसकी दुनिया को बर्बाद करता हूँ....कोई मेरे ख़िलाफ मुंह तक नही खोल पायगा, है कोई हीरो, जो इसे बचायेगा...."""...... उसने चारों तरफ गर्दन घुमा के देखा ......... आसपास खड़े सभी लोग तितर बितर हो गए, कोई कुछ नही बोला। ये देख मोंटू जोर से अट्टहास करता हुआ उस बच्ची को गोद मे उठाकर गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा। बुज़ुर्ग दुकानदार छटपटाते हुए गिड़गिड़ाने लगे। पर उनकी इस हालत का किसी पर कोई असर नही पड़ा। मुर्दों के गांव में जिंदादिली की उम्मीद करना बेकार था।

""' छोड़ दो उस बच्ची को , वरना पुलिस को खबर दूंगी। ..."""""" ये तेज़ स्वर मोंटू के कानों में पड़ा। उसने नज़र उठाकर देखा तो सामने करिश्मा खड़ी थी। ......

""" अरे भाई ये तो वही है जिसका फ़ोटो अखबारों में आया था। अरे हाँ होने वाली कलेक्टर साहिबा .....""""".....मोंटू के दोस्त की बात सुनकर सभी हंसने लगे। लेकिन मोंटू गौर से करिश्मा को देखने लगा। उसने बच्ची को एक तरफ फेंक दिया और करिश्मा की तरफ बढ़ गया।

उसने करिश्मा का हाथ पकड़ लिया, और कुटिल अंदाज़ में बोला...""""" ओह तो तुम ही हो पूरे शहर का नाम रौशन करने वाली , आज हमे भी रौशन कर दो।

किसे फ़ोन करोगी कानून को। वो देखो कानून भाग रहा है । और उसने वहाँ से भागते एक हवलदार की तरफ इशारा किया । करिश्मा उससे अपना हाथ छुड़ाने की भरसक कोशिश करने लगी। लेकिन खुद को असफल देख उसने जम के मोंटू के पेट पर एक लात मारी। और खुद को छुड़ाके दूर कर लिया। वो अब भी चारों तरफ से घिरी थी। लेकिन मज़ाल वहां मौजूद लोगों में से कोई उसकी मदद को आगे आता। मदद करना छोड़ किसी ने पुलिस को फोन तक नही किआ। सभी थर थर कांप रहे थे। मौके पर मौजूद हवलदार तो पहले ही भाग गया था ।क्योंकि वो मोंटू के रसूख को अच्छे से जानता था।

करिश्मा की सहेलियां घबरा के पहले ही भाग चुकीं थी। इन सबके बीच करिश्मा अकेली खड़ी थी। पर उसने हिम्मत नही हारी। उसने बुज़ुर्ग को उठाया और बच्ची को उनको सौंप कर एक तरफ कर दिया। और भिड़ गई उन हैवानो से अकेली। लेकिन कब तक??????

उसका शरीर जवाब दे चुका था, लड़ते लड़ते वो बेदम होकर गिर पड़ी। उसने एक हाथ से मोंटू का हाथ पकड़ रखा था जो उसकी गर्दन पर था और दूसरे से पास में पड़े लोहे के छोटे से सरिया को उठाने की कोशिश कर रही थी। जैसे ही सरिया हाथ मे आया उसने मोंटू के सर पर वार कर दिया। उसके सर से खून बहने लगा। अपना खून बहता देख मोंटू पागल हो गया। उसने अपने दोस्त से चाकू छीनकर करिश्मा के पेट मे कई वार एक साथ किये। करिश्मा दर्द से तड़पकर चीखती हुई ज़मीन पर गिर पड़ी। मोंटू और उसके दोस्त ये देख घबरा गए, और वहाँ से भाग लिए। करिश्मा बीच सड़क में पड़ी दर्द से कराह रही थी। मोंटू के जाते ही सारे लोग करिश्मा के आसपास जमा हो गए।

पूरे शहर में हंगामा मच गया। भावी IAS का सरे आम कत्ल हो चुका था। पुलिस और प्रशासन सब हरकत में आ गए। देखते ही देखते सड़कों पर लोगों का हुजूम हाथों में बड़े बड़े होर्डिंग्स लेकर निकल पड़ा था । चारों तरफ न्याय के लिए आवाज़ उठने लगी। अपराधियों की धरपकड़ को पुलिस ने दिन रात एक कर दिया।

रेखा अपनी तमाम पहुंच लगाने के बाद भी अपने लड़के को कानून की पकड़ से नही बचा सकी। वो आज भी मोंटू की गलती को नज़रअंदाज़ करते हुए उसको बचाने में लगी रही। चारों तरफ से फांसी की मांग तेज़ होरही थी। सरकार पर दवाब बढ़ रहा था। जब रेखा ने देखा कि अब सारे सबूत मोंटू के खिलाफ जा रहे हैं और समूचा जनाक्रोश सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है तो उसने अपने वकीलों से फांसी की सज़ा की जगह सिर्फ उम्रकैद हो इसके लिए कहा। लेकिन ईश्वर का इंसाफ होना था। तमाम सबूतों और गवाहों को मध्येनजर रखते हुए कोर्ट ने मोंटू को फांसी की सज़ा सुनाई।

जब मोंटू को ले जाया जा रहा था तो रेखा अपने आंसुओ को रोक नही पाई, और मोंटू से लिपटकर रोने लगी।

ये देख मोंटू रेखा से बोला ..."""" मुझे तो तूने उसी दिन फांसी दे दी थी माँ जिस दिन में पहली बार गलती करके आया था, शायद उस दिन से में सुधर भी जाता , मन मे डर जो गया था। पर तूने ही मेरा वो डर खत्म किया माँ। आज क्या रोती है तेरा बेटा तो उसी दिन फांसी पर चढ़ गया था माँ .........""""" कहते हुये मोंटू अपने से रेखा को अलग कर पुलिस की हथकड़ी में जकड़ा हुआ आगे बढ़ गया।

इधर कुसुम को इंसाफ तो मिल गया था। पर क्या ये इंसाफ उसकी खुशियों को वापस ला सकता था। हम आंसू पोछने में तो माहिर हैं , लेकिन क्या ऐसा जतन हो सकता है जिससे किसी के आंसू निकलें ही ना। ये समाज अपने आसपास महसूस तो सब करता हैं। लेकिन कई बार संवेदनहीन बन जाता हैं । वे वकील जो अपनी योग्यता को चंद पैसों के लिए बेच देते हैं। सबकुछ जानते हुए भी कानून के साथ ही खेलते हैं। और ऐसे अपराधियों को बचाते हैं जो इस समाज के लिए एक अभिशाप हैं। एक नासूर हैं। रेखा जैसी माताएं जो अपनी ममता में अंधी होकर परोक्ष रूप से अपने ही खून का खून करतीं हैं। और स्वयम को समाज को शर्मसार करतीं हैं।

परवरिश तो रेखा और कुसुम दोनो ने की। एक कि परवरिश ने चोरी करती लड़की को संस्कार देकर समाज मे उसे प्रतिष्ठित होने लायक बना दिया। तो दूसरी ने उसी समाज को अपनी परवरिश से शर्मसार किआ।

जब हम सभी जानते हैं कि बुराई का अंत एक दिन निश्चित होना ही हैं , उसके बाद भी हम बुराई का हिस्सा बनते हैं। भृष्टाचार करते हैं या उसमे अपना सहयोग किसी ना किसी रुप में देते हैं।। बुराई कोई भी हो , हर बुरे इंसान की अंतरात्मा एक ना एक दिन उसे कचोटती अवश्य है।
ईश्वर को किसी ने देखा नही शायद इसीलिए इंसान उसे मानता जरूर है पर डरता नही।।।।।

Atul Kumar Sharma "Kumar"

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