*** पात्र परिचय ***
रामलाल - एक सरकारी कर्मचारी एवम मध्यम वर्गीय परिवार
मुखिया।
भाग्यलक्ष्मी - रामलाल की "" धर्मपत्नि ""
रमेश - रामलाल का बड़ा पुत्र
नलिनी - पुत्रवधु
जटाशंकर एवम मोहन - मित्र एवम सहकर्मचारी
लल्लू - चायवाला
((एक मध्यमवर्गीय खुशहाल परिवार का दृश्य ))
रामलाल : भाग्यवान अरी ओ भाग्यवान , कहाँ हो, मुझे आफिस को देरी हो रही है। मेरा टिफिन लगाया या नही।
(रामलाल बड़ी अधीरता से घड़ी की तरफ देखते हुए बोले)...
भाग्यलक्ष्मी : अरे इतना चिल्लाते क्यों हो, अब समय तो लगेगा
ही, राजेश और छोटी बहू तो तबादला हो आगरा
चले गए। अब बड़ी बहू से जितना काम हो रहा है
कर रही है। कोई 8 भुजाएं तो हैं नही उसकी।
(रामलाल की बात से खीझती भाग्यलक्ष्मी प्रतिउत्तर
में बोलीं)
रामलाल : अरे तो एक नोकर क्यों नही रख लेतीं ।
भाग्यलक्ष्मी : एक नॉकरानी तो पहले से ही है, अब एक नोकर
रखकर और खर्च क्यों बढ़ाना।
रामलाल : अरे इसकी चिंता तुम क्यों करती हो, बाप -बेटे
दोनो ही तो कमा रहे हैं।
भाग्यलक्ष्मी : तुम तो अगले महीने रिटायर हो रहे हो। फिर???
रामलाल : तो क्या हुआ , अपने दोनों बेटे तो कमा ही रहे हैं,
रमेश बाहर से कुछ पैसे तो भेजेगा ही, और रमेश
तो अपने पास है ही। फिर मुझे भी पेंशन तो
मिलेगी ना। सब अच्छे से हो जायेगा।
भाग्यलक्ष्मी : अच्छा अच्छा अब जल्दी जाओ वरना बस निकल
जायगी।
रामलाल : अरे हाँ , में तो तुम लोगों की बातों में भूल ही गया।
चलो में चलता हूँ, राजेश उठ जाए तो बोलना पानी
की मोटर सही करवा दी। वरना पानी की दिक्कत हो
जायेगी।।
( इतना बोलते हुए रामलाल तेज़ी से बाहर चले गये)
(( ऑफिस का दृश्य ))
(आफिस में रामलाल जी के सभी सहकर्मियों ने उनको देखते ही टोका)
जटाशंकर : अरे रामलाल जी आज़ फिर लेट हो गए प्रभु। किसे
ज्ञान पिला आये आज, जो देरी हो गई।
( कटाक्ष करते हुए हंसते हुए बोले)
रामलाल : (हंसते हुए) अरे नही भाई, में तो समय पर निकला था,
पर क्या करूँ ससुरी देर हो ही जाती है।।
( कमरे में लल्लू चाय वाले का प्रवेश)
लल्लू : (सभी को हंसते हुए देख पूछता है) का बात है बाबूजी,
आज तो सभी खिलखिला रहै हैं। और ई का चमत्कार
हुई गवा, रोजीना तो आप 12 तक आते हो आज 11
बजे । 2 के बजाए सिरफ 1 ही घण्टा लेट।
जटाशंकर : अरे भाई लल्लू अब ये सन्यास लेने वाले हैं।
लल्लू : (आश्चर्य से) सन्यास!!!!!!!!!...
मोहन बाबू : हाँ भाई ये अगले महीने रिहा हो रहे हैं इस सरकार
दफ्तर की कैद से। इसलिए तुझसे भी बोलता हूँ ,
अपना चाय का हिसाब क्लियर कर ले, वरना तू
ढूंढता रह जायेगा इनको।
(कमरे में सभी जोर का ठहाका मार हंसने लगते हैं)
लल्लू : (भावुक होते हुए )..ई का बाबूजी, आप चले जाओगे तो
पूरा ऑफिस सूना-सूना हो जाई। आप लोगन से ही तो
सब रौनक है। वरना इहाँ तो बस खाली दीवारें ही हैं।।
रामलाल : अरे ललुये , में रिटायर हो रहा हूँ, कोई मर नही रहा,
और फिर तेरे हाथ की चाय पीने तो यमराज के यहां
से भी आ सकता हूँ। ला फटाफट अब चाय पिला।
(( शाम को घर का दृश्य))
(रामलाल जैसे ही घर मे प्रवेश करते हैं, बहु उठकर खड़ी हो जाती है। और सर पर पल्लू लिए अंदर चली जाती है।)
रामलाल : (हांफते हुए ) उफ्फ , ये बस की झूमाझटकी। अब तो
बस जल्दी से रिटायर होकर दिन भर आराम करूंगा।
भाग्यलक्ष्मी : (साड़ी का पल्लू लेते हुये) तो इसमें चिंता की क्या
अगले महीने से बस आराम ही आराम।
रामलाल : (भावुक होते हुए) हाँ भाग्यवान , अब तो सच मे बहुत
थक गया हूँ। घर मे बच्चों और तुम लोगो के साथ
जीवन के अंतिम दिन बिताना चाहता हूँ।।
(कमरे में बड़ी बहू नलिनी का हाथ मे चाय लेते हुए प्रवेश)
नलिनी : बाबूजी चाय, अरे आप तो पसीने से नहा रहे हैं। में
कूलर चला देती हूँ, थोड़ी राहत मिलेगी।
रामलाल : (एक राहत भरी ठंडी सांस छोड़ते हुए)... इस स्वर्ग
का आनंद भला कौन नही लेना चाहेगा।
(तभी अचानक कमरे में रमेश दाखिल होता है)
रमेश : बाबूजी ये देखिए आपके लिए छड़ी लाया हूँ, उस
एक्सीडेंट के बाद आपको चलने में दिक्कत होती थी।
मुझसे देखा नही जाता, अब आप इसके सहारे चलना।
रामलाल : अरे बेटा इसकी क्या जरूरत थी। तुम लोगो ने तो
सच मे मुझे बूढ़ा ही बना दिया है। (हंसते हुये )
(( एक महीने बाद रिटायरमेंट वाले दिन ऑफिस में ))
जटाशंकर : भाई रामलाल , इतने सालों तक निष्पक्ष होकर
पूरी ईमानदारी से काम किया बहुत बहुत बधाई।
अपना ऑफिस का साथ यही तक था। अब तो तुम
बड़े आराम से घर मे रहने का आनंद उठाना।
रामलाल : (खुशी से)...हां भाई सच मानो तो हर इंसान को एक
उम्र के बाद रिटायरमेंट ले ही लेनी चाहिए। काम कोई
भी हो , नॉकरी या बिज़नेस ।। सरकार ने 2 साल
बढाकर ठीक नही किया। अरे इंसान कोई मशीन थोड़े
जो 24 घण्टे निरन्तर चलता ही रहे। सबको
अपने परिवार के साथ समय बिताना ही चाहिए। इतने
साल तक हम लोग सिर्फ अपनी जिम्मेदारी में ही
पिसते रहे। अब आराम से घर पर ध्यान लगेगा। प्रभु
भक्ति और आत्मशक्ति का अवलोकन और मिलन
होगा ।
(मुस्कुराते हुए एक ऊर्जा से भरे हुए लहज़े में रामलाल
बोले)
मोहन : कह तो आप ठीक रहे हो। पर हर आदमी आपके जैसी
किस्मत लेकर थोड़ी ना आया। 2-2 लड़के और बहुओं
बच्चों से भरा पूरा परिवार है तो सरकार को तो गलत
ठहराओगे ही। (सभी हंसने लगते हैं)
((रामलाल सबसे मिलकर घर पहुंचकर सबको आवाज़ देते हैं))
रामलाल : अरे भाई कोई है।
भाग्यलक्ष्मी : जल्दी आ गए आज, बहुत खुश लग रहे हैं।
रामलाल : अरे भूल गईं, अपनी सरकारी जिम्मेदारियों से आज
मुक्त होकर आ रहा हूँ। बस प्राविडेंट फंड और पेंशन
का कुछ मामला उलझा हुआ है। कुछ महीने का
वक़्त लगेगा, पर सब सेटल हो जायेगा।
भाग्यलक्ष्मी : ओह, तभी में कहूँ की इतना खुश क्यो हो रहे हो।
पसीने की एक बूंद नही, चलो कूलर का खर्च
बचेगा। ( हंसते हुए)
(( कुछ दिनों पश्चात सुबह पेपर पढ़ते हुए रामलाल ))
रामलाल : आजकल पेपर में भी कुछ नही रखा है। हर जगह
भृष्टाचार, लूट मार, गन्दी राजनीति,, बेटा बाप की जान ले रहा है। बाप बेटे को जेल भेज रहा है। पता नही दुनिया कहाँ जाकर रुकेगी।
भाग्यलक्ष्मी : दुनिया की छोड़ो, अपने घर की चिंता करो। महीने
का राशन लेकर आना है। अभी और पता नही कितना वक्त लगेगा तुम्हारी पेंशन का मामला सेटल होने में।
रामलाल : क्यो रमेश नही लाया क्या, हमेशा तो वही लाता है।
भाग्यलक्ष्मी : अरे वो बेचारा क्या क्या करेगा, सारी जिम्मेदारी तो
अब उसी पर आन पड़ी है। उधर आगरा में राजेश का भी पूरा नही पड़ रहा अपने परिवार को। यहाँ क्या खाक भेजेगा।
रामलाल : क्यों,, मेरी पेंशन आज नही तो कल मिलना शिरू हो
जाएगी, थोड़े दिनों की और समस्या है। जबतक रमेश
सम्भाल लेगा। उसकी तनख्वाह तो अच्छी है। घर का अब तक खर्चा तो मेरी तनख्वाह से ही चलता था ना। उसकी तनख्वाह तो जमा ही हो रही है अब तक। कुछ दिन उसे निकाल कर घर के काम कर ले। जैसे ही मेरा पैसा आयेगा सब ठीक हो जायेगा।
भाग्यलक्ष्मी : तुम्हारी पेंशन आएगी जब आएगी, पर अभी तो सब
देखना ही पड़ेगा ना। मेरी बहु से बात हुई थी , बोल रही थी, की उनलोगो ने कोई फ्लेट देखा है। उसी में कुछ पैसा भरा है। ये घर छोटा पड़ने लगा है अब। और उसके सभी दोस्त नए जमाने के हैं । फ्लेट में सब सुविधाएं होंगी। यहां तो बिना मोटर के पानी तक नही भर सकते। वो भी मुई बार बार खराब होती रहती है। उसके पास अभी इतना पैसा नही है।
रामलाल : तो क्या हुआ हमने भी तो अपने माँ बाप का खर्च
उठाया था। उनको तो पेंशन भी नही मिलती थी। हमने घर नही चलाया क्या!!!!!....
भाग्यलक्ष्मी : (मुंह बनाते हुए)... उस ज़माने की बात अलग थी।
आज मंहगाई कितनी है। ठीक है जब तुम्हारा पैसा आयेगा तब आएगा तब तक हाथ पांव से ही मदद कर दिया करो। बिट्टू को स्कूल बस तक छोड़ आया करो। ले आया करो। कुत्ते को घुमा दिया करो सुबह शाम। वैसे भी अब तुमको काम ही कौनसा है, दिन भर पलंग ही तो तोड़ोगे।
रामलाल : (बात बदलते हुए)...अच्छा अच्छा अब बेटे की
वकालत करना छोड़ो। और एक कप चाय पिलाओ।
((अगले दिन रामलाल अपनी बहू नलिनी से बोलते हुए ))
रामलाल : अरे बहु, आज मेरे कुछ दोस्त शाम को घर आ रहे हैं।
रिटायरमेंट की पार्टी लेने। कुछ नाश्ता पानी बना लेना। पीछे पढ़ें हैं बहुत। मेने सोचा 2-4 को घर बुलाकर खातिर वातिर कर ही देता हूँ। वरना मुझे कंजूस बोलते रहेंगे।
नलिनी : (मुंह बनाते हुए)...हुंहह,, एक तो मंहगाई इतनी ऊपर से
इनका और इनके दोस्तो का खर्चा।।
(( रात को सोते समय ))
रामलाल : अरे भाग्यवान सो गई क्या, पहले रोज़ रात को तो तुम
याद से मेरे पांव दबा दिया करतीं थीं। आज चलना ज्यादा हो गया, जरा थोड़ा सा दबा दो। आराम लग जायेगा।
भाग्यलक्ष्मी : चुपचाप सो जाओ अब, बाम लगा लो। कल दिन में
दबा दूंगी। घर पर ही तो रहोगे।
(( अगले दिन सुबह रामलाल बेटे रमेश से बोलते हुए))
रामलाल : बेटा जरा इधर आना, ये मेरी आराम कुर्सी थोड़ी टूट
गई है। आते वक्त किसी कारपेंटर को लेते आना। बना देगा। इसपर बड़ा आराम मिलता है मुझे। ये खानदानी है। पहले इसपर तेरे दादाजी बैठा करते थे, अब में बैठा करूंगा।।
रमेश : अरे बाबूजी बेकार का खर्चा है। कितनी पुरानी भी हो
गई है। बेच दीजिए कुछ पैसा मिल जायेगा। और इतनी कुर्सियां हैं घर मे, उनपर बैठ जाइए। लेटना हो तो पलंग है।।
(ये कहते हुए रमेश बाहर जाने लगा )
रामलाल : (टोकते हुए)... एक मिनिट ठहरो बेटा।
रमेश : अब क्या हुआ बाऊजी???...
रामलाल : ये छड़ी भी लेते जाओ, वापिस कर आना। इसकी भी
कोई जरूरत नही। में तो इसके बिना भी चल सकता हूँ। अभी हाथ पांव सलामत हैं मेरे।
(रमेश बिना कुछ बोले निरुत्तर होकर चला जाता है)
(( एक दिन बाजार में रामलाल को अपने मित्र जटाशंकर मिल जाते हैं))
जटाशंकर : अरे भाई रामलाल आज़कल कहाँ रहते हो। ईद का
चांद हो गए तुम तो।
रामलाल : (चेहरे पर मुस्कान लाते हुये)... अरे आओ आओ
जटाशंकर, तुम भी तो इतने दिन से याद नही किये।
जटाशंकर : भाई क्या करें, हमारी किस्मत तुम्हारे जैसी कहाँ
हमे तो अभी 4 साल और सरकारी गुलामी करनी है। ऊपर से बिटिया की शादी की भी चिंता है। अब बड़ी हो गई है।
रामलाल : (गंभीर होते हुए)...यार जटाशंकर , मेरे लिए कोई
नोकरी हो तो देखना।
जटाशंकर : क्यो!!!... अभी तो कुछ दिन पहले तुम इस उम्र में
नोकरी के सख्त खिलाफ थे। अब क्या हो गया???
रमाशंकर : नही यार ऐसी बात नही। पर इतने दिन घर मे रहकर
अहसास हुआ कि वाक़ई में इंसान खाली बैठे बेठे बेकार हो जाता है। मेने जिंदगी भर सिर्फ कर्म किआ है , इसलिए खाली बैठने में बड़ा अजीब सा लगता है। पेंशन बनने को भी अभी कुछ वक़्त और लग सकता है। तब तक क्या करूंगा, कम से कम कोई काम करूंगा तो मन तो लगा रहेगा। और घर मे 2 पैसे की मदद भी हो जायेगा। वरना यूँ खाली बैठे बैठे तो हाथ पांव के सारे नट बोल्ट जाम हो जाएंगे। (हंसते हुए)
जटाशंकर : (ठंडी सांस छोड़ते हुए)...तुम शायद ठीक कहते हो
भाई। में भी तुम्हारी ही उम्र का हूँ, समझ सकता हूँ। तुमको अब और कुछ कहने की कोई आवश्यकता नही। और पेंशन कि चिंता मत करो। में जल्द से जल्द सब सेटल कराने की कोशिश करता हूँ। तुम बस खुश रहो यार। और चलो बहुत दिन हुए अपने लल्लू के हाथ की चाय पिलाता हूँ।।
अतुल कुमार शर्मा " कुमार "