नमस्कार,
आज मै बात कर रहा हूं स्त्रियों के बारे में समाज की सोच आज के दौर में कैसे बदला जा सकता है।
समाज के वैसे लोग जिसके घर बेटी नहीं है अब उन्हीं लोगों की मानसिकता को बदलने की जरूरत रह गई है बाकी जिसके घर बेटियां है वो तो सब जानते है । वैसे इसकी शुरुआत अपने घर से ही करें बड़े तो समझने से रहें और उनको समझाने में समय बर्बाद ना करें वो बाद में सब समझ जाते है ,तो शुरुआत घर के छोटे से करें हर छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें। लेकिन हा जरूरी नहीं कि घर के बड़े बुजुर्ग हमेशा गलत ही हो उनकी बातों का भी ध्यान रहे कभी कभी बच्चे इसकी आड़ में ना जाने गलत संगत में भी आ जाते है ।
घर की सरदारनी मम्मियों को इसका पूरा दारोमदार लेना चाहिए क्योंकि ज्यादा समय बच्चे उनकी नजर में रहते है , वर्किंग वुमन भी अपने से बड़े बुजुर्ग की बात को भी अनसुना या मजाक में ना ले वो भी अपने बच्चो पर नजर बनाए रखे और बड़े बुजुर्ग से भी खुल कर किसी भी विषय पर चर्चा करें।
रही बात पुरुषवादी मानसिकता की इसके लिए किसी को दोषी ठहराते हुए जनसामान्य की ओर अग्रसर होने के साथ कनेक्ट होने वाली पीढ़ी को लेकर आज तक के सबसे जरूरी चीज है कि हर बात पर उंगलियां उठाना गलत है क्यूंकि वो अपनी जिम्मेदारी समझते है और सामाजिक लोकलाज की भी फिकर उन्हें बखूबी होती है।
महिलाओं के साथ होने वाली यातनाओं की जिम्मेदार अधिकांशतः महिला ही होती है पुरुष समाज तो बस इसका दंस झेलता है।
खैर कोई बात नहीं महिला अपने ससुराल को घर समझ ले तो बहुत हद तक घरेलू वाद विवाद कम हो जाए।
परिवार के बड़े बुजुर्ग हमेशा परिवार का भला ही चाहते है बस दूर का ढोल सुहावना लगता है।
घर के लोग ही मुसीबत में साथ खड़े होते है, हम लड़ते हैं झगड़ते है, इसका मतलब ये नहीं है कि घर और घर वालों को छोड़ दिया जाए , ये लड़ाई झगड़े ही तो बताते है कि हम सब एक है , प्यार की शुरुआत भी यही से तो होती है।
महिलाओं को परिवार की ज़िम्मेदारी को निभाने का अच्छा अनुभव होता है पर वो पूरा परिवार का साथ निभाने में कहीं न कहीं चूक कर जाती है और नतीजा ये होता है कि परिवार में विभेद आ जाता है। इस परिस्थिति में पुरुष चुप्पी साध लेते है जो मेरे समझ से गलत है परिवार में भी आपको सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ आगे की रणनीति बनानी चाहिए ताकि दो लोगों के बीच टकराव न हो और परिवार की पराकाष्ठा बनी रहे।
मेरी एक छोटी सी कविता का रसपान करें।
बेवकूफी है !
अपने नए रिश्ते बनाने को
पुराने रिश्ते को छोड़ना
बेवकूफी है !
किसी खूबसूरत बला के लिए
अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना
बेवकूफी है!
अपनी खुशी के लिए
अपनों की खुशी को छिनना
बेवकूफी है !
मोबाइल, टेक्नोलॉजी के बहाने
परिवार से दूर जाना
बेवकूफी है !
पैसों को पाने के लिए
रिश्तो से मुंह मोड़ना
बेवकूफी है !
अब एक बात और बता दूं कि महिलाओं का शोषण वोशन नहीं होता दरअसल शोषण तो पुरुषों का होता है समाज में ये गलत बात फैलाई गई है कि महिलाओं का भविष्य अंधकारमय है अब तो मुझे लगता है पुरुषों का भविष्य अधर में लटक रहा है।
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