ये दिल पगला कहीं का - 16 - अंतिम भाग Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 16 - अंतिम भाग

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-16

इन्ही विचारों मे मग्न निधि की आंखों से नींद गायब थी। वह करवट बदल रही थी। रात बितने का नाम ही नहीं ले रही थी। फोन की घंटी ने उसे झंझोड़ा।

"हॅलो मेम! दरवाजा खोलिये। मैं बाहर खड़ी हूं।" फोन पर तमन्ना थी।

"ओह! तुम हो। मुझे लगा•••।" कहते हुये निधि रूक गयी।

"आपको क्या लगा! आप पुनित के फोन का इंतजार कर रही थी न!" तमन्ना ने मसखरी की।

" अरे नहीं! आ गई तुम। रूको मैं अभी आती हूं।" निधि की चोरी पकड़ी गयी थी।

"इतनी देर कहां लगा दी तुमने?" गेट खोलते हुये निधि बोली।

"आप ही का काम करने गयी थी। भुल गयी आप?" तमन्ना अंदर आखर बोली।

"हां अब रहने दो। रात बहुत हो गयी है अब जाकर सो जाओ।" निधि बोली।

"नहीं दी। पहले आपको उस आशिक का चेहरा तो बता दूं।" तमन्ना बोली।

"क्या मतलब?" निधि ने पुछा।

"दी! मैंने सुबह आपसे कहा था न! शाम तक मैं उसकी पुरी जन्म कुण्डली निकाल लुंगी।" तमन्ना ने मोबाइल निकाला।

निधि ध्यान से उसकी बात सुन रही थी।

"देखो दी! मैंने पुनित से सोशल मीडिया फर दोस्ती की। उसे अपना झुठा परिचय दिया। वह तो जैसे एक दम तैयार ही बैठा था।" तमन्ना ने उन दोनों की टेक्स चैटिंग दिखाई।

"मैंने यह भी पता किया है कि वह दिल फेंक आशिक है। उम्रदराज औरतों को अपने झुटे प्रेम जाल में फंसाचर उनसे रूपये ऐंठता है।" तमन्ना ने पुनित की अलग-अलग आई डी बताई। जिसमें पुनित धनाढ्य और अकेली महिलाओं के साथ विभिन्न मुद्राओं में आनंद लुट रहा है।

निधि को धंका लगा। वह स्वयं पुनित पर हजारों रूपये उड़ा चूकी थी। पुनित ने झुठ बोलकर निधि से रूपये उधार लिये और अपनी ऐशो-आराम पर खर्च कर दिये। निधि कहीं न कहीं पुनित को अपने हृदय में जगह दे चूकी थी। लेकिन उसकी वास्तविकता जानकर वह शोक में डुब गयी। पुनित भी बाकी युवकों की ही तरह निकला। उसकी आंखों से झर्र-झर्र आंसुओं की धार बह निकली।

"ऑह कमाॅन दी! आप कोई नई नवेली प्रेम में पड़ी लड़की नहीं है जो दिल टुटने पर यूं दहाड़ मारकर रो रही है।" तमन्ना ने मजाक किया।

"शटअप! तमन्ना। बुरा तो लगता है। उस चीटर को मैं छोड़ूगी नहीं।" निधि गुस्से में आगबबूला थी।

"ठीक है। आप उसे सुबह यहां बुलाईये। मिलकर उसकी धुनाई करते है।" तमन्ना बोली।

"मगर यहां। सभी मेरे विषय में क्या सोचेंगे? उफ्फ! मैं कैसे बेवकूफ बन सकती हूं।"

"दी! आपने कोई गलत नहीं किया। बल्कि गलत तो पुनित ने किया है आपका विश्वास तोड़कर।" तमन्ना बोली।

निधि अपने आसुं पोछ रही थी।

"आब सबकुछ भुलकर सो जाईये। कल सनडे है। सुबह जब पुनित यहां आयेगा न तब हम हाॅस्टल की सभी लडकियां मिलकर सनडे मनायेंगी। आप उसे कल यहां आने का मैसेज कर दो।" तमन्ना उत्साहित थी।

निधि ने ऐसा ही किया। तमन्ना की जासुसी ने उसकी आंखें खोल दी थी। निधि अब स्वयं को पहले से अधिक हल्का महसुस कर रही थी। उसने ठण्डे पानी से मुंह धोया और बिस्तर पर लेट गयी। एक लम्बी सासं लेकर वह नींद के आग़ोश में चली गयी।

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अगली कहानी मेरठ से आई थी--

"मुझे पता है कि तुम मुझसे अधिक सक्षम हो। और तुम्हारी बहन कनुप्रिया बिना तुम्हारी अनुमती को कोई कदम नहीं उठायेगी।" राज कह रहा था।

"इसके बाद भी तुम उसका हाथ मांगने आ गये।" सुरज क्रोधित था।

"हां। मुझे यह कहने में कोई डर या शर्म नहीं है कि मैं कनुप्रिया से प्रेम करता हूं और कनुप्रिया भी मुझे पसंद करती है।"

"ये कहने वाले तुम कौन होते हो? तुम्हें अपना दोस्त समझा था मैंने। लेकिन तुम आस्तिन के सांप निकले।"

सुरज आग उगल रहा था।

"सुरज! मेरी बात समझने के प्रयास करो••।" राज ने कहा।

"इससे पहले की मेरे हाथों कुछ गलत हो जाये! तुम यहां से चले जाओ।" सुरज ने धमकाया।

सुरज ने उस समय वहां से जाना ही उचित समझा।

तब ही कनुप्रिया वहां आ पहूंची।

"तुझे शर्म नहीं कनु। एक ही मोहल्ले में रहने वाले राज से प्रेम करते हुये?" सुरज की आग अब बहन कनुप्रिया के लिए थी।

"भैया! मैं जानती हूं मैंने जो किया वह वह आपके लिए दुःखदायी है। मगर भैया किसी अनजान युवक से विवाह करने से अच्छा है एक जाने पहचाने युवक को जीवनसाथी के रूप मे चुना जाये।" कनुप्रिया बोली।

"इसके लिए अभी हम लोग है।" सुरज बोला।

"आप सब है इसलिए तो मुझे भरोसा है कि आप मेरा भविष्य सुखमय हो यही चाहेंगे।"

"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि राज ही तुम्हें प्रसन्न रखेगा! कोई ओर नहीं?" सुरज ने पुछा।

"भैया। राज पढ़ा-लिखा है बिलकुल मेरी तरह। हम दोनों के विचार बहुत मिलते है। हां वह कभी-कभी बीयर पीता है। वह भी मैं जब कहूं छोड़ने को तैयार है।" कनुप्रिया बोली।

"लेकिन वह इतना सक्षम नहीं की हमारी बराबरी कर सके।" सुरज बोला।

"सही कहा। लेकिन वह आत्मनिर्भर है। मेरा और अपने परिवार का दायित्व निर्वहन करने में समर्थ है।" कनुप्रिया समर्थन करते हुये बोली।

"हूंअ। समर्थ है। शादी के कुछ ही सालों में अगर तुम्हें नौकरी न करनी पड़े तो मुझे कहना!" सुरज ने व्यंग्य कसा।

"तो इसमें बुराई ही क्या है भैया? मैंने पढ़ाई लिखाई क्या सिर्फ चूल्हा-चौंका संभालने के लिये की है? मुझै नौकरी करने में कोई बुराई नहीं लगती। बुरा तो घर पर रहकर पति की कमाई पर निर्भर रहना लगता है।" कनुप्रिया ने समझाया।

"लेकिन हमने तेरी शादी के कितना कुछ सोचा है।" सुरज अब भावुक था।

"भैया! राज को आपसे कुछ नहीं चाहिए। वह दहेज लेने के विरूद्ध है। राज बहुत स्वाभिमानी है। और उसकी बहादुरी देखीये, बिना हिचके वह आपसे मेरा हाथ मांगने आ गया। यहां अन्य कोई है जो इतनी सज्जनता के साथ अपनी बात आपके सामने रख सके?" कनुप्रिया बोली।

सुरज विचार मग्न था।

"भैया! आप सोच रहे होंगे कि यदि आपने शादी का विरोध किया तो हम दोनों कोई गलत कदम उठा लेंगे? नहीं। आप निश्चिंत रहे। आपके आशीर्वाद के बिना यह विवाह नहीं होगा।" कहते हुये कनुप्रिया अंदर कक्ष में चली गई।

'जब लोगों को राज और कनुप्रिया के रिश्तें के विषय में पता चलेगा तब सुरज की कितनी बदनामी होगी? इससे भी अधिक यदि राज और कनुप्रिया बिना किसी को बताये शादी कर लेते है तब और भी अधिक बदनामी मिलेगी। लोग तो यह भी कहेंगे की ऐसे दोस्त को अपना कहा जिसने अपने ही दोस्त की पीठ पर छुरा घोंप दिया। सुरज की छवी कुशल राजनितिज्ञ थी। जो अपना घर नहीं संभाल पाया, क्या लोग उसे शहर संभालने की जिम्मेदारी देंगे? इस शादी से कहीं उसका चुनावी टीकीट केसंल न हो जाये?' सुरज विचारों के भंवर में था।

उसे कनुप्रिया की भविष्य की चिंता अवश्य थी और राज ने प्रभावित अवश्य किया था। वह राज को जीजाजी बनाने के लिये सहमत हो गया।

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इन प्रेम कहानीयों में सच्चे प्रेम की जीत होते पुरी दुनियां देख रही थी। इस जीत के साथ ही अभय और डिम्पल का रिश्ता भी जीत गया था। राष्ट्रपति जी ने विशेष अनुमति दे दी थी। जेल परिसर को दुल्हन की तरह संजाया जा रहा था। परिसर के बाहर सामुहिक विवाह सम्मेलन हेतु मंडप लगाया गया। जिसमें अभय और डिम्पल के साथ आमंत्रित वर-वधु का विवाह संपग कराया जायेगा। प्रशासन ने दोनों पति-पत्नि को विवाह उपरांत परिसर की खुली जेल में रखने का निर्णय लिया। इस ऐतिहासिक प्रेम कहानी की सफलता ने अभय और डिम्पल को स्टार बना दिया था। दोनों के बीच आज भी वैसा ही प्यार है जैसा पहले था।

समाप्त

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