एपीसोड ---१६
समिधा जल्दी से बोली, “फ़िल्म का नाम तो मुझे भी याद नहीं आ रहा लेकिन इस फ़िल्म में हेमामालिनी कैमिस्ट्री की लेक्चरार है, धर्मेन्द्र हिन्दी का लेकिन तुम झूठ क्यों बोल रही हो उसमें नृत्यनाटिका कोई है ही नहीं।” कहते हुए उसने अभय की तरफ देखा जो मंत्रमुग्ध से कविता की तरफ देखते हुए मुस्करा रहे थे। उसने कविता की तरफ़ चेहरा घुमाया वह भी शरारती होठों से मुस्कराती उनकी आँखों में आँखें डाले उन्हें घूरे जा रही थी। समिधा का खून सनसना उठा। पति शहर से बाहर गया है कविता का उसकी उपस्थिति में इतना बेबाक इशारा ! इतनी हिम्म्त को कोई बदमाश औरत कर सकती है।
“फ़िल्म में इस गाने के साथ पानी बरसते में नृत्य नाटिका होती है।”
“ कविता ! उसमें कोई नृत्यनाटिका नहीं है।”
“मुझे ऐसा लगा था कि उसमें नृत्यनाटिका है। ”
“कल ही तो तुमने फ़िल्म देखी है फिर कैसे भूल गई?”
“मैं चाय बनाकर लाती हूँ।” वह फक्क पड़े चेहरे से अंदर चली गई।
दूसरी सुबह समिधा बहुत बैचेन थी कि कविता की हिम्मत का कैसे जवाब दे? फ़ोन करे, नहीं, ये ठीक नहीं है। कुछ तो करना ही होगा। दोपहर में वह थरथराते हाथों से उसका नम्बर डायल करती है, “हलो !” “ नमश्का ऽ ऽ ऽ र जी !”
“तुम्हें तकलीफ़ देनी थी। नीता की सहेली कहानी लिखती है। उसने एक थीम पर हम सबकी राय माँगी है ।”
“मेरी भी?”
“हाँ, एक स्त्री ने एक पड़ोसन को जिठानी बना लिया है व जेठजी पर इतने ड़ोरे डालती है कि वह छत पर से इशारेबाजी करते रहते हैं।”
“ये तो सरासर पाप है। ये भी हो सकता है। जेठजी ने उस औरत को फँसा लिया हो।”
“नहीं, कथाकार को पता है गलती उस औरत की है क्योंकि वे लोग बरसों से उसी घर में रह रहे हैं । इस कहानी का अंत कैसे हो? बहुत सी स्त्री संस्थायें हैं, पुलिस का नारी सुरक्षा सेल है। आजकल जासूसी एजेंसी के पास भी डिजिटल कैमरे होते हैं। उस औरत को अपनी हरकतें बंद करनी चाहिए या नहीं।”
“आप मुझसे ही पूछ रही हैं या किसी और से भी पूछेंगी।”
“तुम हमारे ग्रुप में शामिल हो गई हो इसलिए पूछ रही हूँ। तुमने तो सुना ही होगा डाइन भी सात घर छोड़कर डाका डालती है।” कहते हुये उसकी आवाज़ काँपती जा रही है।
कविता बेसाख़्ता हँसती चली गई, “आपने भी क्या कहावत याद दिलाई है। आपको तो पता है मैं अकेली ‘ट्रेवल’नहीं करती हूँ। बाज़ार तक इनके साथ ही जाती हूँ या बच्चों के। मैं तो घर में ही पड़ी रहती हूँ। मैं क्या जानूँ इन कहावतों का असली अर्थ ?”
समिधा दूर-दूर तक सोच नहीं सकती थी कि इस पुरानी कहावत के गूढ़ अर्थ को कविता ही समझाने जा रही है, घर पर पड़ी रहने वाली औरत।
अभय के ऑफ़िस के लिए निकलते ही समिधा का अजीब तरह दम घुटने लगता है। ये कैसे भय से घिरी जा रही है? तीसरे पहर वह आराम से सोती थीं। लेकिन उस समय बेचैन करवटें बदलती रहती है।
एक दिन वह आठ बजे घूमकर लौट रहे हैं। सामने से बबलूजी आते दिखाई दिये वे पास आकर कहते हैं, “ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा हूँ। बाद में बात करता हूँ।” कहते वे सड़क पर लम्बे-लम्बे डग भरते चले जा रहे हैं ।
“आपके फ़ादर ठीक है?”
“पहले से ठीक हैं।”
समिधा को लगता है वह ठीक से साँस ले पा रही है। उनकी ड्यूटी रात आठ बजे की है तो दिन में घर ही रहते होंगे।
महिला समिति की तीज के बाद की मीटिंग में वह थोड़ी देर से पहुँच पाती है । कविता अपने पास वाली कुर्सी की तरफ़ बैठने का इशारा करती है।
समिधा के चेहरे पर एक घृणा की पर्त फैल गई। उसने होठ टेढ़े करके मना कर दिया। वह हॉल के दूसरी तरफ़ बैठ गई। सचिव कुछ घोषणा कर रही हैं वह बाँयी तरफ दूर बैठी कविता के चेहरे का जायज़ा लेने लगती है। काले गालों पर एक मुरझायापन है, आँखों के चारों तरफ की कालिमा बता रही है कि कहीं कुछ डर है। अच्छा है कम्बख़त को टोक दिया, पता नहीं क्या गुल खिलाती। समिधा सोचती है उसका दिल न ‘हाऊसी’ में लग रहा है, न गेम्स में । ये औरत है कि क्या है ? बबलूजी के परिवार से दो पीढ़ियों की जान-पहचान के बावजूद अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रही । इस शहर में ही कितने परिवार है जो दोनों परिवार के परिचित हैं।
“मैड़म ! तीज के फ़ोटो ज़ का एलबम कहाँ हैं?”
सोशय वेल्फ़ेयर इन्सपेक्टर खड़ी होकर कहती है, “ मैम ! समिति की ‘हिस्ट्री’ में पहली बार ऐसा हुआ है कि फ़ोटोग्राफर की दोनों रोल्स ख़राब हो गई। जो भी सीडी लेना चाहे अपने नाम लिखवा दें। ”
समिधा सोचती है कविता के कालेपन ने रोल्स को भी डस लिया। नाश्ते की प्लेट लेकर कविता उसके पास आ गई। “नमश्का ऽ ऽ ऽ रजी ! आप हमारे पास क्यों नहीं आई?”
“मेरा मूड़।”
“रोल्स ख़राब हो गई, मुझे बहुत बुरा लग रहा है।”
“अच्छा ही हुआ।”
कविता सकपका गई फिर सहज़ होकर बोली, “चलिए सेक्रेटरी से सीडी देखने के लिए माँग लें। हमारे यहाँ कमप्यूटर नहीं है। आपके यहाँ देखने आ जायेंगे।”
“ठीक है।” वह एक कद़म बढ़ाकर रुक गई, “सीडी देखने की कोई ज़रूरत नहीं है।”
“क्यों?”
वह उसे उत्तर न देकर प्रियंका के साथ घर की तरफ़ चल दी, कहीं उसे नीता व अनुभा न घेर ले ।
घर लौटते हुए सड़क पर चलते हुए उसने प्रियंका से पूछा, “ रुपाली कैसी है? ”
“ ठीक ही होगी।”
“ क्यों, ऐसे क्यों कह रही हो?”
“रुपाली बहुत टेलेन्टेड है, हमें पसंद है लेकिन उसके रंग ढंग से मैं श्योर नहीं हूँ कि वह मिलिंद से शादी करेगी।”
“ और मिलिंद? ”
“वह तो ‘ट्रु लवर’ है। आजकल ऐसे लवर मिलते कहाँ हैं ? उसे नौकरी पर दूसरे शहर में गये बस एक महीना हुआ है और एक गुल खिल गया।”
“क्या हुआ ?” उसे लगा प्रियंका बतायेगी नहीं लेकिन वह कहती जा रही है, “रुपाली ने ज़बरदस्ती गिफ़्ट दे देकर हमारे घर आकर हमारे घर में भी जगह बना ली है। मेरे बेटे को शहर से गये एक महीना भी नहीं हुआ। रुपाली का एक स्टुडेंट इसके पीछे लगने लगा तो उसके साथ होटल में जाकर कॉफ़ी पी आई। इसने मोबाइल पर मिलिंद की ‘कॉल्स’ काटनी शुरु कर दी । मिलिंद एक बार रुपाली से झगड़ा भी कर आया है।”
“तो अब?”
“मैंने मिलिंद को समझाया है कि तेरे शहर से जाने के एक महीने बाद ही इसने नई दोस्ती कर ली फिर भी तू इसके लिए गम्भीर है ? तो वह कह रहा है ग़लती किससे नहीं हो जाती? रिलेशनशिप में एक दूसरे को स्पेस देनी चाहिये।”
“ अब तो उसे समझ जाना चाहिये। ”
“ वह क्या समझेगा? अब जो भगवान की मर्ज़ी होगी वही होगा।” प्रियंका की निश्वास निकल जाती है।
शाम को अभय आदतन पूछते हैं, “कैसी रही आज की मीटिंग।”
“मीटिंग तो अच्छी थी लेकिन तुम्हारी विपाशा बसु को देखकर मेरा ख़ून खौल रहा था।”
“मेरी कौन सी विपाशा बसु?”
“वही कविता। अभय ! उसका चेहरा बेहद डरा हुआ था। मुँह सूख रहा था।”
“तुम्हारे शक का कोई इलाज नहीं है। तुम जानो, तुम्हारी ही सहेली है।”
“सहेली, माई फ़ुट तुम्हारे दोस्त के भतीजे की बीवी है। तुम इस औरत से सम्भल जाओ। जो रिश्तों को ताक पर उठाकर मान नहीं रही है। अपनी लड़की को अक्षत के पीछे लगा दिया।”
“तुम मान नहीं रही हो।” अभय गरजे ।
“अभय ! बबलू जी छः सात वर्ष बम्बई रहे हैं। ये कोई ‘निम्फ़ो लेडी’ है। जिसकी आदतें बिगड़ गई है । ऐसी औरतें बिना ‘रिलेशन’ बनाये रह नहीं सकती। उसे इशारे से कितनी बार समझा चुकी हूँ।”
“ये क्या ‘निम्फ़ो लेडी’ लगा रखा है । वह एक सीधी सादी औरत है।”
“उसका पति शहर से बाहर गया है एक पत्नी के सामने झूठी नृत्यनाटिका का सहारा लेकर एक आदमी को उसकी पत्नी के सामने इशारा कर रही थी-` प्रेम है पिया मन की मधुर एक भावना`।”
“कब?”
“अभय बनो मत। उस दिन तुम इस इशारे पर मुस्करा रहे थे।”
“ समिधा !ऊटपटाँग मत बोलो। ”
“अभय तुम अपने को सम्भालो । इसके पास का सामान व ज्वैलरी देखो तो पता लगेगा ये एक डिनर के लिए किसी के भी साथ जाने वाली बदमाश औरत है। बबलू जी पर तरस आता है किससे उनकी शादी हुई है।”
“बिना सोचे समझे इलज़ाम लगा रही हो।”
“उसकी मैं अक्ल ठीक करूँगी। विपाशा बसु बनने का सारा नशा उतार दूँगी।”
“तुम बकवास मत करो।”
“एक बाजारू औरत ही पत्नी के सामने प्रेम की बात करने की हिम्मत कर सकती है ।”
“यू शट अप।”
X X X X
“मॉम ! कल मैं शाम को घर आ रही हूँ ।” रोली का फ़ोन है ।
“शुक्रवार को कैसे आ रही है?”
“मुझे इंटर्व्यू लेने आनंद जाना है।”
समिधा को लगता है उसे ग़लत सुनाई दिया है इसलिए उसने पूछा, “अभी ये नई नौकरी के लिए इन्टर्व्यू? ”
“अरे! बाबा ! इंटर्व्यू देने नहीं, लेने जाना है। कम्पनी की तरफ़ से वहाँ वॉक -इन इंटर्व्यू है।”
समिधा की हँसी निकल जाती है, “नौकरी किये हुए छः महीने भी नहीं हुए और महारानी इंटर्व्यू लेंगी ?”
“मेरे बॉस बाहर गये हैं। मेरी सीनियर व मैं इंटर्व्यू लेने जा रहे हैं।”
“चल, एक अनुभवी बंदा तो तेरे साथ है।”
“ सुनिये तो। मैंने डरते हुए मिसिज थॉमस से कहा था कि मैंने कभी इंटर्व्यू नहीं लिया, तो बोली मैंने कभी कौन-सा इंटर्व्यू लिया है... हा...हा...हा... बट वी विल मैनेज।”
समिधा सुन ही चुकी थी इस नई एम.एन.सी. की पॉलिसी है अधिक से अधिक युवा उम्र के लोगों को नौकरी देना इसीलिए इस कम्पनी में कर्मचारियों की औसत उम्र अठ्ठाइस वर्ष ही हैं।
समिधा एक सप्ताह से अस्पताल जाना टाल रही थी। कल घर की दादी यानि रोली उसकी दवाई का डिब्बा खोलकर चिल्लायेगी,“आपकी कैल्शियम टैबलेट्स समाप्त हो रही हैं। ध्यान रखा करिए।”
दूसरे दिन उस दादी माँ की डाँट से बचने के लिए तैयार होने लगी। अभय लंच के लिए घर आये तो बाहर निकल आई, “जरा हॉस्पिटल ड्रॉप कर दीजिए।”
अस्पताल में वह जब स्कूटर से उतरी तो उन्होंने पूछा,“ तुम्हें कितनी देर लगेगी ? ”
उसने डॉक्टर के कमरे के बाहर देखा चार पांच ही लोग लाइन में थे। वह बोली,“अधिक देर नहीं लगेगी।”
“मेरा इंतज़ार करना मैं पेट्रोल भरवा कर आता हूँ।”
समिधा को उनका चेहरा देखकर अज़ीब लगा। एक अज़ीब सी हड़बड़ाहट भरी सनसनाहट उनके चेहरे पर थी। हर पत्नी की तरह समिधा उनके एक-एक मूड को समझती है।
समिधा अस्पताल के बरामदे की सीढ़ी चढ़कर ऊपर आई कविता का बेटा राजुल सामने से आता दिखाई दे गया, “बेटे! क्या हो गया है?”
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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