आधा आदमी - 24 Rajesh Malik द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधा आदमी - 24

आधा आदमी

अध्‍याय-24

छोटी के आते ही मैं लेट्रीन के बहाने उसे मैदान में ले गया और बड़ी चालाकी से उससे बात उगलवाने लगा, ‘‘आय री, तैं कल रात में आई राहैं न?‘‘

‘‘भागव बहिनी.‘‘

‘‘भागव बहिनी नाय, हमका सब उ बताई दिहिस हय। हम्म रोज तुमरे हाथ की रोटी सब्जी खाइत हय तो का हम्म नाय जानित हय कि उ रोटी को बनाईस हय। हम जानित सब कुच्छ हय पर तुमरे मुँह से सुनना चाहित हय.‘‘

‘‘तुमरे जाने के बाद उसने हम्में रोक लिया अउर रात भर खूब जौबन लगाया अउर सुबह होने से पहिले हम्में भेज दिया जिससे तुम जान न पाव.‘‘

यह सुनते ही मैं तिलमिला उठा और ताली बजाकर बोला, ‘‘देखा भड़वे को अभई हमरा इका समबध नाय हुआ तो इ हाल हय। मैं उकी नस-नस से वाकिफ हूँ। अगर उ बाभन हय तो हम्म भी डांसर हय। अगर मैं उसे बेचकर पैरों में जूतिया न डाल लूँ तो मेरी डांसरी पै लानत हय। फिलहाल उसने मुझे कुच्छ नाय बताया। तुम दोनों को लेकर मेरे मन में पहिले ही संका थी। आख़िरकार मेरी संका सच साबित हुई। खैर, अगर तुमैं वह पंसद हय तो तुम उससे कुच्छ भी करवाओं मुझे कोई एतराज़ नाय हय। मुझे तो केवल उकी दौलत चाही.‘‘

बात करते-करते हम-दोनों कमरे पर आ गए। बलराम त्रिपाठी जाने के लिए तैयार बैठा था।

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूँ.‘‘

मैं अंदर ही अंदर अपने क्रोध को पी गया था। उसे जरा भी महसूस नहीं होने दिया कि मुझे कुछ पता हैं। मैंने एक बार फिर से उसे कड़ी हिदायत दी, ‘‘अगर आप को आना होगा तो पक्का वादा करना। नही तो साफ-साफ कह देना। क्योंकि हमें झूठ बोलने वालों से सख़्त नफरत हैं। अब अगर आपका दिल राजी हैं तो जय श्री राम नहीं हैं तो जय हनुमान....।‘‘

‘‘मेरा भगवान जानता हैं कि मैं आपको कितना चाहता हूँ.‘‘ कहकर बलराम त्रिपाठी चला गया था।

‘भोसड़ी के बंदर अगर तुम मुझे चाहते तो रात में किसी और के साथ न लेटते, तुमरी नाश हो जाय.‘ मन ही मन मैंने गाली दी।

मैं क्वाटर बंद करके अपने घर आ गया था। अभी दरवाजें पर पहुँचा ही था कि बीबी की तेज-तेज आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘‘तुमने ही मेरे आदमी को छीन लिया हैं। वह मेरा भतार नहीं तुम्हारा हैं। तुम अम्मा नहीं! डायन हो एक नागिन हो जिसे डस लो वह पानी न माँगे। तुमने ही हमारा घर बर्बाद किया हैं। भगवान चाहेगा तो तुम लोग कभी खुश नहीं रहोंगे.‘‘

इतना सुनना क्या था कि मेरे काटों तो खून नहीं। मैं तिलमिलाता हुआ अंदर आया और उसे बाल से पकड़ कर लात-घूसों से मारने-पीटने लगा, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी अम्मा को ऐसा कहने की....।.‘‘

‘‘तुम करो इनकी गाँड़-गुलामी मुझे नहीं करनी हैं.‘‘

‘‘अगर तुम्हें गाँड़-गुलामी नहीं करनी हैं तो भाग यहाँ से.‘‘

हम-दोनों की लड़ाई देख के हमारी बेटी रोने लगती हैं। मैं उसे गोदी में उठाकर छत पर चला आया था। जब नीचे आया तो अम्मा ने बताया, वह कहीं चली गई हैं।

मैंने बाहर जाकर इधर-उधर देखा पर मेरी बीबी का कहीं अता-पता नहीं था।

इसराइल जब शाम को आया तो मैंने उससे सारी बात बतायी। तो उसका जवाब यही था, जायेगी कहा, सिर्फ तुम्हें परेशान करने के लिए इधर-उधर बैठी होगी। अब चिंता छोंड़ो आज नहीं तो कल आये जायेगी।

अगले दिन सुबह उठकर मैंने बस स्टैण्ड पर मालूम किया तो पता चला, कि कल वह साढ़े तीन बजे वाली बस से चली गई हैं।

मेरे घर वालों के साथ-साथ इसराइल भी नहीं चाहता था कि मेरी बीबी मेरे साथ रहे। वह भी उससे बहुत चिढ़ता था। मन ही मन इसराइल बहुत खुश था। पर कहीं न कहीं बीबी के जाने का ग़म मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा था।

6-5-1989

मैंने इधर-उधर से पैसो का इंतज़ाम करके मकान की छत डलवा दी थी। इस काम में इसराइल ने मेरी बहुत मदद की थी। पर मेरे घरवालें मदद करना तो दूर वे पूछने तक नहीं आते थे। वाह रे नसीब! जिनके पीछे हम दिन-रात मर रहे थे उन्हें हमारी जरा भी चिंता नहीं थी। सही कहती थी मेरी बीबी, पर मैंने उसकी कभी न सुनी। यह पछतावा मुझे जिंदगी भर रहेगा।

रात को जब इसराइल शराब के नशे में आया। तो मैंने उसे डाँटा, ‘‘अगर तुम्हें शराब ही पीना हैं तो कही और जाकर रहो। इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं हैं.‘‘

‘‘अब वैसे भी इस घर में मेरे लिए जगह क्यों होगी। मकान तो बनवाये दिया हैं। तुम्हारा मतलब तो निकल ही गया। अब तो कहोगी यहाँ से चले जाओं.‘‘

मैंने ताली बजाई, ‘‘कौन-सा मतलब? ताज़महल बना दिया हैं क्या? कोई तुम्हारे पुरखों की जयदाद बेचकर नहीं लगा दी हैं। कमा के देते थे तो खाते भी थे और मौज नहीं मारते थे। कोई मादरचोद फ्री में किसी के ऊपर एहसान नहीं करता। तुम चाहते हो मैं दिन-रात खिलौना बनकर तुम्हारे साथ खेलूँ, क्या नहीं किया मैंने तुम्हारे लिए.‘‘

‘‘तो मत खेलो वैसे भी तुमने आज तक मेरे लिए किया क्या हैं?‘‘

‘‘यह पूछो मैंने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया। सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए मैं अपनी बीबी के पास नहीं लेटता था। मगर तुम्हें तो सिर्फ अपनी हवस चाहिए। किसी की खुशी से तुम्हें क्या लेना-देना। कौन बीबी नहीं चाहेगी कि उसका पति कुछ घँटें उसके साथ बिताये। मगर तुमने हर बार मुझे उसके पास जाने से रोका.‘‘

‘‘हाँ रोका तो, मैं नही चाहता था कि तुम उसके पास जाओं, उसके पास लेटों-बैठो, उसके साथ हँसों, मुझे नफ़रत थी उससे.‘‘

‘‘भगवान जो करता है वह सही करता हैं। चलो इसी बहाने तुम्हारी नफ़रत बाहर तो आई। आज अगर मेरी बीबी मुझे छोड़कर गई हैं तो उसके सबसे बड़े कारण तुम हो.‘‘

इसराइल गाली-गलौच देता हुआ छत पर चला गया था।

जब मैंने छोटी को बताया। तो वह मुझे समझाने लगी, ‘‘अरी भक, यार के खातिर रोवत हव अभी तुम खुद चिकनी-शुआब हव जितनी चाहव लौन्डों की लाइन लगा सकती हव। अउर वईसे भी उ बाभनवा चार दिन बाद आवत हय, खूब लूटा खावा जियैं.‘‘

‘‘चल मेहरे, मोरे तो करेजे में आग लगी हय अउर तुमका अपनी पड़ी हय। गंडुवेन का गडुवेन दिखाई पड़त हय.‘‘

‘‘हाँ! तुम तो बड़ी सती अनसुईयां हव न, ई नाय सोचत हय बनी रहिये चूतड़ तो यार मिलिये दूसर, यार का ग़म करके अपना जामा जलाई, तुमैं ग़म लेई के बइठव.‘‘

‘‘मैं तो तुमारे पास अपना दिल बहलाने अउर दिल को दिलासा देने को आई थी। मगर तुम अईसी बात करके हमारा दिल दुखाई दियव। रही बात बाभनवा की तो ऊ कोई हमरा परमानेंट आदमी नाय हय। पहिली मुलाकात में तो ऊ हमरा विश्वास खोय दीस.”

10-10-1989

बलराम त्रेपाठी अपने वादे अनुसार आ गया था। मैं छोटी को लेकर उसके साथ बाजार गया। वहीं मैंने सोने-चाँदी से लेकर साज-श्रंगार और शादी के जोड़े खरीदे और अपने क्वाटर वापस आ गया।

सारी मेहरे-जनानियाँ आ गयी थी। सभी ने मिलकर मुझे दुल्हन बनाया और फिर हम-दोनों ने एक-दूसरे को जयमाल पहनाया, मिठाई खिलायी।

‘‘शादी मुबारक हो.‘‘ कहकर छोटी बाभन की तरफ मुख़ातिब हुई, ‘‘हमारे हिजड़ो में ऐसे ही शादी होती हैं। आज से तुम दोनों मियाँ-बीबी.‘‘

एक-एक करके सभी लोगों ने हमें बधाइयाँ दी और फिर डांस का प्रोग्राम शुरू हो गया। छोटी ने मेरे साथ-साथ बलराम न्निपाठी को भी नचाया। पूरी रात डांस प्रोग्राम चलता रहा।

15-1-1990

इसी तरह बाभन आता रहा और जाता रहा। मैं उसके साथ प्रोग्राम करता रहा। उस दिन जब मैं उसके गाँव में प्रोग्राम कर रहा था तो वही एक सज्जन ने मुझसे बताया, कि जिसकी पार्टी में आप नाच रही हैं वह एक खतरनाक आदमी हैं और नम्बर दो का काम करता हैं।

मैं उसकी हकीकत जानने के बाद, उसे बिना कुछ कहे मैं चुपचाप वहाँ से अपने शहर चला आया था।

अगले दिन वह मेरे क्वाटर पर आ धमका और मुझे साथ चलने को कहने लगा। मैंने साफ मना कर दिया, ‘‘मुझे ऐसे आदमी के साथ कोई भी काम नहीं करना हैं जो गैर-कानूनी काम करता हो.‘‘

वह मुझे मरने-मारने पर आ गया था। तो मैं भी आवेश में आ गया था, ‘‘चल भाग भड़वे, यह धमकी किसी और को देना मुझे नहीं। मैं तुम्हारें जैसे बदमाशों को लौड़ें पर रखती हूँ। आज से तुम्हारा-हमारा कोई रिश्ता नहीं हैं। अगर हमारे साथ तुम्हारा जयमाल न पड़ा होता तो हम तुम्हें जेल भेजवा देती.‘‘ मेरी बातें सुनकर बलराम मुँह बिचका कर चला गया था।

28-2-1990

ज़माना हैं कि गुज़रा जा रहा हैं

यह दरिया हैं कि बहता जा रहा हैं।।

ज़ामाने पै हँसे कि कोई रोये।

जो होना हैं, वोह होता जा रहा हैं।।

उस दिन घंटाघर पर मेरी मुलाकात मुन्नी जनानी से हुई। उसने आँख मटका कर कहा, ‘‘खूब बहिनी, गिरयेन को फंसाती हव। अगर अइसे कोई मिले तो हमऊ का फँसाये देव.‘‘

‘‘अरी अपनी-अपनी किसमत हय पर तुम लोग जहाँ देखयाव सुरवा उही होई जियव हुकूरवा, तुमरे अइसे गांडुवेन का कहूँ आदमी नसीब होइय्हें। हम्म तो बेटा, जराबन की कसी, शहर की बसी धक्के दिये तीन पइसे लिये छीन। हमरा नाम दीपिका मादरचोद हय.‘‘

‘‘अरी जाव बहिनी बड़ी बीली हो, तुमरे को खोमड़ लगे जो अपनी कच्ची करावे.‘‘ मुन्नी जनानी मुँह बिचका के बोली।

‘‘नाच न जाने आँगन तेड़ा, काहें तुमने हमसे कहा कि गिरिया फसवाये देव। कोई हम्म गिरियेन की फैक्टी खोलय हय जो हमसे कहत हव। तुमरे पास कोई अउर बात तो हय नाय बस खाली गिरिया पंती की बात करव अउर चोदन भोजन की, तो तुम बड़ी खुश....तुमरा का, कोई पाँच-दस दिखाइस बस गाँड़ मराने के लियें तईयार होई गई.‘‘

‘‘हम्म पाँच में धुराई या दस में तुमरी काहे गाँड़ फटत हय.‘‘

‘‘देख हम्म पहिले से इत्ती थकी हूँ ऊपर तुम हमरा भेजा मत खाव.‘‘

हाँ बहिनी! काहे न थकी होईयव, बाभन खूब उठाई-उठाई के रात भर लिहिस होइय्हें.‘‘

‘‘बाभन की माँ का भोसड़ा अउर तुमरी माँ की चूत बेटा, हम्म ई सब नाय करती। कला बेचती हूँ इज्जत नाय। अपनी कलाकारी से जोन इलाका कहव लूट के चली आई। दुई हजार उ बाभनवा का खाई लिया हय पर उ हमरे गाँड़ के रोवा तक नाय देख पाईस हय बेटा, इत्ती भागदार हमरी गाँड़ हय। पर तुम अपनी कंलकखी गाँड़ लेकर घूमव। इहाँ गिरिये आगे-पीछे चक्कर लगावत हय कि एक बार दीपिका हमसे बात कर लें, पर मैं मुँह नाय मारती हूँ.‘‘ मैं कहकर चला आया था।

7-8-1990

सुबह हम लोग नाश्ता कर रहे थे कि अचानक पिताजी की तबियत खराब हो गई। मैंने उन्हें तुंरत जाकर डाक्टर को दिखाया। मगर भगवान को कुछ और ही मंजूर था। पिताजी हम सब को रोता-बिलखता छोड़ कर चले गए थे।

पिताजी का देहांत हुए एक सप्ताह हो गया था। दिन पर दिन मैं उनकी याद में ढलता जा रहा था। इसराइल भी मुझे छोड़कर चला गया था। मैंने सोचा, ‘क्यों न नगीना मैय्या के पास चली जाऊँ। देवा शरीफ का मेला भी घूम लूँगी.‘

मैं दोपहर वाली गाड़ी से उनके घर पहुँच गया। वहाँ पहले से ही कई हिजड़े बैठी थी। दुआ-सलाम होते ही मैं वहाँ बैठ गया।

वैसे ही सुरैया हिजड़ा आयी और ताली ठोकने लगी, ‘‘क्यो बेटा! उस दिन तो तुम बड़ा बात लड़ा रही थी अब हिजड़ो के सामने.....।‘‘

‘‘तुमने यहाँ भी बात छेड़ दी। देखो मैंया हिजडे़ पेट से नहीं पैदा होते पहले मेहरे होते हैं, फिर जनाना तब कहीं हिजड़े बनते है.‘‘ कहकर मैं सुरैया की तरफ़ मुखातिब हुआ, ‘‘इस दौर से आप भी गुज़र चुकी हैं पहले आप भी जनानी थी। फिर आप हम जनानियों की बेइज्ज़ती क्यों करती है? हम कुकूरमुन्डे हैं तो क्या मगर बात तो पन की करते हैं.‘‘

सारी बात सुनने के बाद नगीना मैंया ने सुरैया हिजड़ा पर दो सौ रूपये का दंड किया। फिर मेरी तरफ मुख़तिब हुई, ‘‘देखो बिटिया, अगर तुम हिजड़ो में आना चाहती हो तो तुम हिजड़ो की इज़्ज़त करना सीखों और अगर नहीं आना चाहती हो तो तुम हिजड़ो से मत मिलो.‘‘

‘‘मैंया जी, अभी हम आप के आगे बच्चा हैं। आप से ज्यादा जानकारी इस लाइन में नहीं हैं। जब आप हमें बतायेगी तभी तो हम ऐसा करेगी, क्योंकि हमारा दिल भी जनाना है। हमारे भी अरमान है कि आप लोगों के साथ रहूँ और आप जैसा पहनुँ और आप लोगो में ढल जाऊँ.‘‘

‘‘ठीक है बेटा, अगर तुम हमें कुछ समझती हो तो जैसा हमने अपने हिजड़े पर दो सौ का जुर्माना किया हैं वैसे तुम भी ज़बानदराज़ी का और गुनहगारी का पचास रूपया दण्ड भरो.‘‘ नगीना मैंया ने ताली बजाई।

‘‘मैंया! आप तो जानती हैं कि इस समय हमारे हाथ पैसे से तंग चल रहे हैं, पर हम वादा करती हैं कि ज़ल्दी ही यह जुर्माना चुका देगी.‘‘

‘‘वह तो ठीक है पर तुम किसी हिजड़े की चेला क्यों नहीं बन जाती। तभी तुमारी हिजड़े इज़्ज़त करेगी.‘‘ नगीना मैंया ने समझाया।

‘‘आप बताइए हम किसकी चेला हो जाऊँ.‘‘

‘‘बेटा! तुम सुरैया की चेला हो जाओं.‘‘

सारे हिजड़े हमें सुरैया की चेला और बिरादरी में शामिल करने के लिए हुक्कारी भरवाती हैं। मैं उनके लोतर में फँसकर हामी भरती हूँ।

‘‘मूरत के सर पर दुपट्टा लाकर रखो.‘‘ नगीना मैंया का हुक्मरान जारी हुआ।

मेरे सिर पर दुपट्टा रखकर, कान में चुना लगाकर। सभी हिजड़े एक साथ तालियाँ बजाते हैं, ‘‘हाँय सुरेया! चेला मुबारक हो.‘‘

सभी ने हमे बधाई दी। फिर हमने उठकर सभी को सलाम किया, ‘‘गुरू सलावालेकुम.‘‘

‘‘वालेकुमसलाम.‘‘

‘‘दादी सलावालेकुम.‘‘

‘‘वालेकुमसलाम बेटा.‘‘

‘‘ले बेटा, झलके चाहे चूड़ी पहनना चाहे जनना शूट बनवाना, क्योंकि हिजड़ो में जनाने कपड़े ही चलते हैं”. नगीना मैंया ने पान की गिलौरी मुँह में रखी।

‘‘ठीक हैं गुरू.‘‘

‘‘अब हम तुमारी गुरू नहीं, दादी हूँ.‘‘

‘‘वह कैसे?‘‘

‘‘क्योंकि मैं सुरैया की गुरू हूँ उस रिश्ते से मैं तुम्हारी दादी हूँ.‘‘

‘‘समझ गई.‘‘

‘‘चल बेटा, हमारी खोली घूम आओं दो-चार दिन रहकर हमारे वहाँ से आओं। अगर तुम्हारा दिल लग जाए तो तुम रहना महीना-पन्द्रह दिन.‘‘ तोते जैसी नाक वाली हिजड़े ने आँख मटकायी।

‘‘मैंया अभी मैं नहीं जा पाँऊगी फिर कभी....।‘‘

‘‘देखो बेटा, हम जोर-जबरदस्ती नहीं कर रही हूँ.‘‘

मैंने बहाना बनाया, ‘‘मैंया जी, हम चलने के तैयार हूँ मगर हम दुनियादार से कह आई हूँ कि दो-चार दिन के बाद आ जाऊँगी। वैसे भी आप के साथ गई तो फिर जल्दी नहीं आ पाऊँगी। इसलिए मैंया, आप अपना पता दे दों हम आप के पते पर पहुँच जाऊँगी.‘‘

15-12-1990

तमाम ज़िस्म ही घायल था घाव ऐसा था,

कोई न जान सका रख-रखाव ऐसा था।

बस इक कहानी हुयी ये पड़ाव ऐसा था,

मेरी चिन्ता का भी मंजर अलाव ऐसा था।

मैंने सोचा, ‘ऐसा काम करे जिससे हमारा हुस्न बना रहे और अगर हमारा हुस्न बना रहेगा तो मै अपने परिवार का पेट भर सकूँगी। यह डांसरी कोई ज़िंदगी भर की तो है नहीं। जब तक की मासूमियत हैं तब तक के पेट की रोटी चलेगी। और अगर बुढ़ापे में गई तो हिजड़े भी हमें ज़लील करेगी, कि जिंदगी भर तो तुमने स्टेज प्रोग्राम किया हैं। अब बुढ़ापे में हिजड़ो का सर खाने आई हय। यही सब सोचते-विचारते मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अब मैं हिजड़ो में जाऊँगा।

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