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आधा आदमी - 1

आधा आदमी

राजेश मलिक

अध्‍याय-1

नंगी राजनीति: चिथड़ी सड़कें और बज़बज़ाती गलियां

ज्ञानदीप ने दरवाजा खोला तो सामने लल्ला खड़ा था।

‘‘आइये ज़नाब, आज इधर का रास्ता कैसे भूल पड़े?‘‘

‘‘क्या करुँ, जा रहा था पानी टंकी़ गलती से मेरी बाइ़क तेरे दरवाज़े की तरफ़ मुड़ गई.”

लल्ला कुर्सी खींच कर बैठ गया।

“साले, गलती से मुड़ गई अभी बताता हूँ“ ज्ञानदीप ने उसका कान पकड़ लिया।

‘‘ अच्छा बाबा, भूल हो गई अब तो छोड़ दें.‘‘

‘‘ अब दोबारा ऐसी गुस्ताख़ी मत करना.‘‘

‘‘ नहीं होगी मेरी जान.‘‘

‘‘ अब उठ, बहुत हो गई तेरी नौटंकी ले चाय पी.‘‘

‘‘पर तेरी चाय?‘‘

‘‘ इसमें से आधी पी ली है.

साला! आधी चाय वह भी झूठी.‘‘

‘‘ पीना है तो पी वरना वापस कर.‘‘

‘‘ले पकड़.‘‘ लल्ला ने खाली कप उसकी तरफ़ बढ़ा दिया।

‘‘तू कभी नहीं सुधरेगा.‘‘

‘‘ अच्छा अब जल्दी से तैयार हो जा.‘‘

‘‘कहाँ जाना है?‘‘ ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘पहले चलेगा भी कि सारा इण्टरव्यू यहीं ले लेगा?‘‘

‘‘मुझे एक लेख लिखना है.“

‘‘अब चलता है कि लगाउ दो लात.“

लल्ला का आदेश हो और ज्ञानदीप नाफरमानी करे। यह हो ही नहीं सकता। वह झट से तैयार हो गया।जैसे जाने के लिए बाहर निकला, दो बच्चे आ गये और नोटबुक उसे दिखा कर कुछ पूछने लगे। ज्ञानदीप ने नोटबुक पर सरसरी निंगाह डाली और कुछ कहने ही जा रहा था कि दूसरे बच्चे ने अपनी बात रख दी, ‘‘भैया! यह देखो मैने पहाड़ा लिखा हैं.‘‘

‘‘ठीक है, शाम को आ कर देखूगा‘‘

बच्चे चले गए थे।

‘‘क्या तू इन बच्चों को भी पढ़ाता हैं?‘‘ लल्ला ने बाइक में चाभी लगाकर पूछा।

‘‘हाँ! ये बच्चे अनाथ हैं और पीछे वाली झोंपड़ पटटी में रहते हैं। इन बच्चों को पढ़ाने से मुझे बहुत सुकून मिलता है.‘‘ ज्ञानदीप के बैठते ही लल्ला ने बाइक स्टार्ट की।

चैराहा पार करते ही लल्ला ने एक किनारे बाइक रोकी। और ज्ञानदीप को वहीं रोक कर,स्वयं सड़क के उस पार आ गया। इधर-उधर देखा, जब उसे कोई दिखायी न पड़ा तो उसने चबूतरे पर बैठे बूढ़े से पूछा, ”बाबा, यहाँ हिजड़े कहाँ रहते हैं?“

“का कहेव?“

‘‘यहाँ हिजड़े कहाँ रहते हैं?‘‘

‘‘जरा तेज़ बोलव.”

लल्ला को समझते जरा भी देर नहीं लगी कि बूढ़े ऊँचा सुनता हैं। बिना कुछ कहे लल्ला दायीं तरफ़ मुड़ गया।

दरवाज़े पर दो भारी ज़िस्म की औरतें मैक्सी चढ़ाए बैठी थीं। लल्ला ने सहमे सहमे पूछा, ‘‘बहन जी, यहाँ हिजड़े कहाँ रहते हैं?“

‘‘ओय, बहन जी किसको बोला?‘‘महिला ने सिगरेट का कश लेकर पूछा।

‘‘हिजड़ा!‘‘ मोटी गर्दन वाली महिला ने मुँह ऐसे बनाया जैसे उसके मुँह में नीम का घूँट आ गया हो। बोली, ‘‘अजीब है ये मरद की जात भी जो औरतों को छोड़ कर हिजड़ो के......।‘‘

“तुझे नहीं मालूम कामनी, जो हिजड़े कर सकते हैं वह हम तुम नहीं कर सकती.‘‘ महिला के कहने का अंदाज ‘डर्टी पिक्चर‘ की विद्या बालन की तरह था।

उस महिला की बातों से लल्ला झेंप गया था और बिना कुछ कहे ही वहाँ से पलटा। मगर पलटते ही उस महिला के शब्द लल्ला के कानों तक आ गये, ‘‘अरे सुन तो, कहाँ चला निर्मोही! एक बार हमें भी मौका दे ऐसा मजा दूँगी कि....।‘‘

आगे बढ़ते ही तालियों की गड़गड़ाहट से लल्ला का ध्यान दायीं तरफ़ घूम गया। कुछ युवा, बूढ़े हिजड़े ताली बजाती, मटकती, दमकती, हँसती चली आ रही थी। सभी के चेहरों का मेकअप कुछ इस तरह का था जैसे रेगिस्तान को रंग पोतकर हरा-भरा बनाया गया हो।

लल्ला के मुख़ातिब होते ही सभी हिजड़ों की निगाहें नदीदो की तरह उसे टुकूर-टुकूर देखने लगी, “ऐ री, गिरिया (आदमी) देख कितना सुरीला (अच्छा) हैं.“

“अरी झावली (आँखे) तो देख.“ रोशनी आँख मटका के बोली।

लल्ला जैसे आसमान से गिरा खजूर पर अटक गया हो। अंततः लल्ला ने हिम्मत करके पूछ ही लिया, ‘‘आप लोग कहाँ रूके हैं?‘‘

‘‘काहे राजा, रात में आई के बिस्तर गरम करयव?‘‘ हिना ने लल्ला का गाल दबा कर पूछा।

लल्ला बुरी तरह झेंप गया। जैसे बीच चैराहे पर उसे नंगा कर दिया गया हो।

‘‘उ मंदिर देख रहे हैं, बस उसी के सामने दो मंजिले वाले मकान में हम सब ठहरी हैं.‘‘ श्रीदेवी मुस्करा के बोली।

‘‘थैन्क्यू.‘‘

‘‘अरी ऐ, वह तुझे थैंकू बोल रहा हैं.‘‘

‘‘अरी भाग.‘‘

‘‘ऐ री तू भी कुछ बोल दे.‘‘

‘‘अरी भाग हिजड़े.‘‘ मोनिका ने पान की गिलौरी मुँह में रखी और भड़ास निकालने लगी, ‘‘जहाँ गिरिया देखी नहीं बस लपलपाने लगी। एक से तो तेरा पेट भरता नहीं तू तो अठारह खाने वाली हैं। कभी सब्जी वाले, तो कभी खोंचे वाले, कभी ठेले वाले, कभी रिक्शे वाले से एक पान की (दस रुपए) तो किसी से दो पान की (बीस रुपए).‘‘

“चल भक, हम अठारह यारों से खाऊ या बीस से, तेरी क्यों फटती हैं.‘‘ सन्नो ने ताली बजाकर कहा, ‘‘रही बात यारों की तो आज के जमाने में कोई पवित्तर नहीं हैं, कि अल्लाह के घर से आया हो और बठली में सुई न गई हो। अपने-अपने हुस्न पर सभी करती है.‘‘

“बूड़ी गाँड़ पर अंग्रेजी बाजा.‘‘ चाँदनी ने आँख मटका कर ताली बजायी।

‘‘अन्धे की चोदइयाँ बुर की खराबी.‘‘

यह सुनते ही वहाँ खड़े सभी लोगों ने एक साथ ठहाका लगाया। जैसे सांसद भवन में नेताओं को लड़ते देख, देश की जनता ठहाका लगाती है।

‘‘चल री, जहांदेखो तुम दोनों बिलपन (लड़ाई) चालू कर देती हो। देखों वे सब कैसे बिला (हँस) रहे हैं.‘‘

‘‘अरे भागव, बिला कर रहे हैं तो करने दे क्या हम किसी से डरती हैं.‘‘ सन्नो ने ताली बजाई।

‘‘अच्छा चल.‘‘

वे ताली पीटती, मटकती, बायीं तरफ मुड़ गयी।

रहस्यमय तीसरी दुनिया की भाषा

हालनुमा कमरा हिजड़ों से भरी थी। सभी के काले, गोरे, साँवले गाढ़े ओवर मेकअप से सजी थी। कानों में बालियां, नाकों में नथनियाँ और गले में सोने की चेन। कलाईयाँ हरी नीली- पीली गुलाबी बैगनी चूड़ियों से सजी थी। पूरी तरह नारीयोचित परिधान और हाव भाव से आच्छादित। गाने बजाने की कर्णभेदी आवाजों से पूरा हाल संगीतमय हो गया-

शादी ना कईला।

बरबादी कईला

हम्के बुढ़वा भतार काहे खोज करेला।

शादी न कईला

आधी-आधी रतिया मुरहा पानी मांगेला।

अइ उके बड़ा-बड़ा दाँत देखे डर लागै ला।

आधी-आधी रतिया बुढ़ऊ तेल मांगे ला।

अइ उके पातर-पातर टाँग देखे डर लागै ला।

शादी न कईला़

आधी-आधी रतिया बुढ़ऊ चुम्मा माँगे ला।

अइ उकर पाकल-पाकल दाढ़ी देखे डर लागै।

हमका बुढ़वा भतार काहे खोज करे ला ।

रानी मुँह चलाने के साथ-साथ मटक रही थी। कई हिजड़े बैठी ताली बजा रही थी। कई रानी के सुर में सुर मिला रही थी। तभी कम्मो ने अपना राग छेड़ दिया-

कमरिया की पीर सईयां सह नायी जाला।

पहली पीर जेस बरछी चलत है।

दूसरी पीर सईयां तारू चट जाला।।

कमरिया की पीर सईयां सह नायी जाला।

तीसरी की पीर सईयां सबसे कठिन है।

चौथी पीर जेस भाला चलाला।।

कमरिया की पीर सईयां सह नायी जाला।

पंचई पीर तब होरीला गिराला।।

कमरिया की पीर सईयां सह नायी जाला।

कम्मों के बैठते ही बड़की और फुनकी उठकर नाचने लगी।

‘‘अरी ऐ मोर बेटा, झलके (पैसे) हैं?‘‘ मुनिया बाई ने आकर पूछा।

कुल्ली के ढोलक बंद करते ही दोनों ने नाचना बंद कर दिया। सभी का मुँह बन गया। अगर उन सबका बस चलता तो वे मुनिया बाई को धक्के देकर भगा देती। मगर वे सब विवश थी। क्योंकि यह कार्यक्रम दीपिकामाई के यहाँ हो रहा था।

‘‘अरी भागो गुरू, ज़हर खाने के लिए तो झलके हैं नहीं.‘‘ फूली लैला ने मुँह बिचकाकर कहा।

जबकि करीना जानती है कि फूली लैला झूठ बोल रही हैं।

‘‘अरी मोर बच्चा, उधारे समझ के देइ देव.‘‘

‘‘वाह री गुरू, तोहरे जयसी मंगतिन नाय देखा.‘‘ फूली लैला ने पर्स से बीस का नोट निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ाया।

पैसा पाते ही मुनिया बाई चली गई।

‘‘देख ले बड़कीवा, तुमरो हाल बुढ़ापे में मुनिया बाई की तरह होइय्हे।

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