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आधा आदमी - 2

आधा आदमी

अध्‍याय-2

अभव कहित हय सुधर जाव.‘‘ कुल्ली ने हाथ हिला कर कहा।

‘‘अरी जा पहिले अपनी सोच, बड़ी आई हैं भविष्यवाणी माता बन के.‘‘

‘‘अरी ऐ करमजलियों, ई डिग्गी (ढोलक) काहे बंद कर दी.‘‘ दीपिकामाई की आवाज़ हाल में गूँजी।

यह सुनते ही कुल्ली ढोलक बजाने लगी। एक बार फिर बेसुरा संगीत छिड़ गया।

दीपिकामाई ऊँचे से आसन पर आसीन थी। उनके चेहरे पर गाढ़ी मेकअप थी। पतली-पतली भौंहे काजल से बनी थीं। बालों पर डाई ऐसी जैसे किसी ने काले रंग से पेंट कर दिया हो। कान, नाक, गला, कलाईयां, उंगलियाँ सोने से चमक रही थी। अपनी देहदशा के कारण वह दूसरों से निहायत अलग ही दिखती। रेशमी वस्त्र, शिफाँन की साड़ियाँ, गद्देदार ब्रा और उनके होंठों की लिपिस्टिक उनकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी।

साहिबा ने ट्रे लाकर रख दिया। जिसमें पान मसालों के पाउच, सिगरेट की डिब्बी और माचिस रखी थी। उनके एक तरफ पानदान दूसरी तरफ नक्काशीदार थूकदान रखा था।

‘‘मइया! फोटोग्राफर आये है.‘‘ पायल ने आकर बताया।

‘‘उन्हें अंदर ले आओं.‘‘

पायल के साथ-साथ वे भी अंदर आ गये। और दीपिकामाई से मुख़ातिब होते ही दोनों ने हाथ जोड़ कर अभिवादन किया और कुर्सी पर बैठ गए।

‘‘यह लो.‘‘ दीपिकामाई ने नाश्ते की ट्रे उनकी तरफ बढ़ा कर पूछा, “क्या इससे पहले भी तुम लोगों ने ऐसे किसी फंक्शन में शिरकत की है?‘‘

‘‘जी नहीं.‘‘ लल्ला ने जवाब दिया।

इस बीच दीपिकामाई का सेलफोन बजा। वह हैलो कहती हुई हाल से बाहर चली गई।

‘‘यार! इन्हें देखकर कौन हिजड़ा कहेगा इन लोगों ने तो लड़कियों के भी कान काट दिए.“ ज्ञानदीप ने टिप्पणी की।

‘‘सही कह रहे हो, इन्हें देखकर कोई भी गफ़लत में पड़ सकता हैं.‘‘

‘‘अरी बहिनी, अब तुमसे का बताई़ हमरा गिरिया हम्में बहुत लुगारता (मारता) है.‘‘ चाँदनी की आवाज़ उन दोनों के कानों में पड़ी।

‘‘अल्ला कसम! अगर हम्मरा गिरिया अईसा होता तो हम्म उका लम्बड़ (लिंग) काट लेती.‘‘

सलमा ने ताली बजाई।

‘‘अरी भाग हिजड़े, तू नाय जानत हय हमरे गिरिये को.‘‘

‘‘हम्मे ना बताव हम्म सबका जानित हय.‘‘

“अरी ई सब छोड़, ई बता तेरा शास्त्रे (कपड़ा) तो बड़ा चीसा (सुन्दर) हय कहाँ से लाई हय?‘‘ रानी ने आकर पूछा।

‘‘हमरे गिरिये ने दिया हय.‘‘ सलमा ने आँख मटका कर बताया।

दोनों बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे।

दीपिकामाई ने आकर पूछा, ‘‘यह क्या, तुम लोगों ने कुछ खाया नहीं?“

इससे पहले कि दोनों में से कोई जवाब देता। दीपिकामाई ने उनका परिचय पूछ लिया, “आप लोगों ने अपना नाम नहीं बताया.”

‘‘मेरा नाम लल्ला हैं.‘‘

‘‘और मेरा ज्ञानदीप.’’

मुझको फ़रेब देकर मेरे रहनुमा ने लूटा।

दामन छुड़ा लिया है मंजिल के करीब आकर।।

हाल के कोने से यह भर्रायी आवाज़ उठी तो सभी की नज़रें उस तरफ घूम गई।

दीपिकामाई ने पायल से मुनियाबाई को अंदर ले जाने को कहा।

‘‘क्या हुआ इन्हें?‘‘ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘का बताउ बेटा, बेचारी दर्द की मारी है.‘‘ कहकर दीपिकामाई शायराना अंदाज में बोली,

तू ना समझे मेरी नज़रों का तक़ादा क्या है।

कभी जलवा कभी परदा यह तमाशा क्या है।।

देख लैला तेरे मजनू का इरादा क्या है।

ख़ाक़ में मिलकर भी कहता है अभी बिगड़ा क्या हैं।।

‘‘बहुत खूब.‘‘

‘‘बेटा! हम तुम्हें कोई वाहवाही के लिए नहीं सुना रही। यह तो हम हिजड़ों का दर्द हैं, पीड़ा हैं, व्यथा हैं। खैर, यह तो जीवन हैं.‘‘ दीपिकामाई बातों ही बातों में बहुत कुछ कह गई थी।

“यह बताइए मुझे फोटो कहाँ से लेनी हैं? लल्ला ने पूछा।

लल्ला का यह पूछना ज्ञानदीप को जरा भी अच्छा नहीं लगा। उसने आँखों के इशारे से समझाना चाहा कि स्थितियों को समझो। मगर लल्ला उसका इशारा समझ नहीं सका।

‘‘उसे देख रहे हो.....जो लाल चुनरी ओढे बैठी हैं.‘‘

‘‘जी.‘‘

‘‘पहली फोटो उसी की, फिर आगे जो-जो होता जाए उसकी, दरअसल यह ज़लसा उसी के लिए है.‘‘ दीपिकामाई के बताते ही लल्ला कैमरा लेकर उनकी तरफ़ बढ़ गया।

पूरी फर्श पर बिछी कालीन के बीचोबीच चुनरी वाला नवयुवक बैठा था। वे सभी उसके चारों तरफ़ गोला बना कर बैठी थी। घेरे के भीतर कई रंग-बिरंगे घड़े, डलवे, साड़ियाँ, चूड़ियाँ व अन्य कई चीजें रखी थी।

लल्ला दायीं तरफ जाकर अपने विजुअल्स के लिए एंगिल तलाशने लगा।

एक साथ इतने बड़े समूह में हिजड़ों को देखकर ज्ञानदीप आश्चर्य चकित था। जैसे वह किसी रहस्यमय दुनिया में आ गया हो। वह दुनिया जिससे वह आज तक अनभिज्ञ रहा। ऐसी रहस्यमय दुनिया की तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उसने इन्हें कभी रोड पर कभी घर के आँगन में देखा था। मगर पहली बार आज उसने इन्हें इतने करीब से देखा। ऐसी भाषा जो दुनिया में कहीं ना बोली जाती हो।

‘‘यह सब क्या कर रहे हैं?‘‘ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘यह हिजड़ा संस्कार हैं.‘‘

‘‘यह क्या होता हैं?‘‘

‘‘मसाला चलेगा.‘‘

‘‘जी शुक्रिया, मैं मसाला नहीं खाता.‘‘

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात हैं वरना आज कल के लड़के पान-मसाला तो छोड़ों, जाने क्या-क्या नशा पत्ती करते हैं। हम भी कभी पान-सिगरेट नहीं लेती थीं। पर हालात ऐसी बिगड़ी कि पान, शराब, सिगरेट, हमारी आदत में शुमार हो गई। खैर, यह तो बीती बातें थी.“ कहती-कहती दीपिकामाई भावुक हो गई, ‘‘हाँ! तो मैं बता रही थी हिजड़ा संस्कार यानी हिजड़ा बनाने की रस्म.‘‘

हिजड़ों को अंग्रेजी में हरमोफ्रोडाइटस कहते हैं। अंग्रेजी के इस शब्द की स्थापना ग्रीक भाषा के ‘‘हरम‘‘ और ‘‘एफ्रोडाइटस‘‘ शब्दों से मिल कर हुई।

‘‘अम्मा! नानी ने आप को याद किया हैं.‘‘ साहिबा ने आकर बताया।

‘‘ठीक है, तू जा हम अभी आ रही हैं.‘‘

दीपिकामाई, ज्ञानदीप को बैठा कर चली गई।

रेशमा को जैसे अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गयी, ‘‘अरी ऐ गांडू देख न उसकी छज्जे (मूँछें) कितनी सुरीली हैं.“

‘‘अरी भक, वह तो पूरा का पूरा सुरीला हैं.‘‘ कहकर रानी ने ज्ञानदीप को कामुकता से देखा।

‘‘हाय अल्ला! काश हमारा गिरिया भी इतना सुरीला होता तो कितना जौबन करती.“ रेशमा आँख मटका कर बोली।

वे आपस में क्या बात कर रही थी। ज्ञानदीप की कुछ समझ मे नहीं आ रहा था। मगर उनके चेहरे के हाव-भाव को देखकर ज्ञानदीप को उनकी नियत भाँपने में जरा भी देर नहीं लगी।

‘‘अरी जाव बहिनी, अपनी अईसी किसमत कहा.” चम्पा मुँह बनाकर बोली।

‘‘अगर ई मुँह चोदी मइया ने सुन ली तो दंड ले लेगी बेटा.‘‘

‘‘अरी भक मेहरे,जो रखेगी लंड वही देगी दंड....रही बात मइया की वह कोई दूध की धोयी नहीं हैं.‘‘ रानी ने मुँह बिचकाया।

पोव-पोव-पोव.ऽऽऽऽ...करती सुर उठी और फिनिश हो गई। कम्मो ने कूल्हा उठाकर हवा छोड़ी।

‘‘अल्लाह-तौबा करे तुम्हारी गाँड़ पर.‘‘ कुन्नी हाथ हिलाकर बोली।

‘‘अरी जाव बहिनी, अईसी बीसइदी गाँड़ को तो भौंकनी (कुत्ता) भी ना चाटे.‘‘ फूली लैला ने हाथ हिलाकर कहा।

‘‘तू तो अईसे बोल रही हय जईसे तुम्हारी गाँड़ से इतर निकलत हय.‘‘ कम्मो ने आँख तरेर कर कहा।

‘‘मातो बात करे महातिन झाँट उखाडे.‘‘ रेशमा ने आँख मटका कर ताली बजाई।

‘‘अरी ऐ, तेरी अम्मा बहिन को सुवर चौंदे, ऐ मुसलमंडा की झाँट ढाई किलो का पेल्हर लिये घूमत हव.‘‘ रानी ने भौंह नचायी।

‘‘चुप री हिजड़े की झाँट, ओय गद्दा चोर, मक्कार, डकैतवा पकड़ा गवा तो हरिगंगा.‘‘

‘‘चल उड़ काले कव्वे मूत के पीते, लीकम (लिंग) नाय पाय हव तभई तो सिरियाई गई हव.‘‘

‘‘अरी भाग, हिजड़ा हव कि बवाल.‘‘ रेशमा ने नाक सिकोड़ कर कहा।

दीपिकामाई के हाल में आते ही वे सब चुप्पी साध गईं। ज्ञानदीप बड़े ध्यान से उनकी बात सुन रहा था।

‘‘अरी ऐ चाँदनीरात, जा-जा के धौकनी (सिगरेट) ले आ और सुन उस चालकी वाले (रिक्शे- वाला) का क्या हुआ?‘‘

‘‘उ मरा अभी तक नाय आवा.‘‘

‘‘तुझसे कितनी बार कहा हैं ज़बान सीधी निकाला कर.‘‘ दीपिकामाई ने डाँटा।

चाँदनी चुपचाप चली गई।

वक्त की नज़ाकत को देखते हुए ज्ञानदीप ने पुनः पूछा, ‘‘आप ने बताया नहीं यह हिजड़ा संस्कार होता क्या हैं?‘‘

‘‘क्या करोंगे यह सब जानकर, वैसे भी अपने समाज की बातें हम किसी को नहीं बताते.‘‘ ज्ञानदीप ने सोचा भी नहीं था कि उसे प्रत्युत्तर में यह ज़वाब मिलेगा।

दीपिकामाई का आदेश हेाते ही ज़लसा शुरु हो गया। ढोलक के साथ-साथ पायल, चाँदनी, कैटरीना कैफ की स्टाइल में कमर चलाने लगी। कई ऐसे दाँत दिखा रही थी जैसे टूथब्रश की एडवरटाइजिंग कर रही हो। कई सुदेश भोसले की स्टाइल में गा रही थी।

‘‘ले बेटा, हमरी तरफ से एक बड़मा (सौ रूपये) चूड़ी पहनने के लिए.‘‘ जानी लीवर की फेश कटिंग वाले हिजड़े ने कहा।

‘‘ले री बेटा, आधा बड़मा (पचास रूपये) चूड़ी पहनने के लिए.‘‘ लल्ली अम्मा मुस्करायी।

‘‘यह ले हमारी तरफ से एक बड़मा (सौ रूपया) श्रंगार के लिए.‘‘ नन्नी माई बलईयाँ उतारती बोली।

फिर पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी, ना जाने कितनी उठती और बैठती गई।

करिश्मा ने चूड़ी के पैसे पाने के बाद ‘उमराव जान‘ की रेखा स्टाइल में सलाम किया, ‘‘पंचों सलावालेकुम.‘‘

‘‘वालेकुमसलाम, जियो बेटा खुश रहो.‘‘

‘‘करिश्मा रानी आज से हमारी चेला हुई। अगर मियाँ पंचों हमारे घर से मूरत जाएगी तो मुँह माँगा टका लूंगी.‘‘ बकरीदी ने बड़ी फख्रा से कहा।

‘‘चल उठ बेटा, डिग्गी उठा.‘‘ दीपिकामाई ने पान की गिलौरी मुँह में रखी।

सानिया हाथ हिलाने के साथ साथ कूल्हा मटकाने लगी। पूरा हाल तालियों से गूँज उठा। दीपिकामाई ने अपना अलाप छेड़ी-

तीनों तिरिया के बीच अकेला बलमा ।।

एक कहै मैं गंगा नहाऊ ,

एक कहैमैं यमुना नहाऊ

सुनलेबिजली के बोल

त्रिवेणी नहाऊगी।। तीनों..........

एक कहै मैं पेड़ा खाऊ ,

सुन ले बिजली के बोल

कचैरी खाऊँगी।। तीनों............

दीपिकामाई कहरवा गाती-गाती रुकी और आगे की लाइन याद न आने पर झल्लायी, ‘‘मादरचोद! पेट में हय मुँह में नाय हय.‘‘ सिर पर हाथ रखकर दिमाग़ पर जोर देने लगी।

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