आधा आदमी - 3 Rajesh Malik द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधा आदमी - 3

आधा आदमी

अध्‍याय-3

और याद आते ही बोली, ‘‘तुम लोगों ने झमकना (नाचना) क्यों बंद कर दिया। उठो और शुरु हो जाओं‘‘

सानिया और साहिबा एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नाचने लगी।

दीपिकामाई बडी़ स्टाइल में गाने लगी-

एक कहै मैं सोडा पीऊ

एक कहै मैं लेमन पीऊ

ज्ञानदीप बड़ी बारीकी से उनके किया-कलापों और हाव-भाव को देख रहा था। दीपिकामाई के कहते ही करिश्मा उठी और कमर पर दुपटटा बाँधकर नाचने लगी।

लल्ली अम्मा के साथ-साथ सभी गाने लगी-

अरी मैं तो ओढ़ चुनरिया जाऊगी मेले में

ओ जी, मोरे बाँके सँवरिया मिलियो अकेले में।। अरी मैं तो........

मोटर गाड़ी में ना बैठूं ना बैठूं फिटफिटिया

ओ जी मैं तो सैर करुँगी

बैठ के ठेले में।। अरी मैं तो..........

एक पंइसे की बिंदिया लाई

एक धेले का सुरमा

करिश्मा नाच कम कूद ज्यादा रही थी। सभी उसके इस नृत्य पर चटखारें लेकर खिलखिला रही थी।

‘‘चल उठ री भईसी.‘‘ दीपिकामाई ने कहा।

‘‘अम्मा! आज हम झमक नहीं पाऊँगी.‘‘

‘‘काहे री महीना आया हयँ का?‘‘ बिल्ली जैसी आँख वाली हिजड़े ने पूछा।

सभी जॉनी लीवर अंदाज मे खिलखिलायी।

‘‘चल उठ! बहुत होय गई, अरी उठती हय कि बड़नी (झाड़ू) से लुगारुँ.” सहिबा उठी और उचक-उचक कर कूल्हे मटकाने लगी।

‘‘अरी बठली हिला रे, बठली.....।‘‘

‘‘आ हिजड़े तू ही बठली हिला दे, तेरी तो बठली भी नाजुक हैं.‘‘ साहिबा ने ताली बजाई।

‘‘पर तेरी तो मोहररम की ढोल हैं‘‘ चाँदनी आँख मटका कर बोली।

‘‘कपड़ा खाये हैं.‘‘ जीनत चिल्लायी।

हाल ठहाकों से गूँज उठा। कोलाहल इतना धमाकेदार था कि कैमरे में गड़ी लल्ला की आँखें भी एक बार को बुरी तरह हिल गई।

एक-एक करके कई लोगों ने गाया और डाँस किया। शाम होते-होते कार्यक्रम खत्म हो गया।

‘‘अच्छा मियाँ हम लोग चलती हैं, मियाँ पंचों ख़ता गुनाह माफ़ करना। हमारा सलाम लेना वन्दगी कुबूल करना.‘‘ नन्नी अम्मा ने उठकर सलाम किया।

‘‘वालेकुम सलाम, कुबूल करती जाओं जोबन वालिया.‘‘ दीपिकामाई ने उगलदान उठाकर पीक की। और बोली, ‘‘बिना टाकनी चिस करे (खाना खाए) कोई नहीं जाएगी। ओय री पायलिया इधर आ.....।‘‘

‘‘आई मइया.‘‘

‘‘जा छिबरी (लिंग रहित हिजड़ा) को टाकनी चिस करा दें‘‘

सभी गाती-मुस्कराती-मटकती-ताली पीटती हाल के बाहर चली गई। लल्ला ने अपना बैग बाँध लिया था।

‘‘अरे बेटा, यह क्या बिना खाए चले जाओंगे?‘‘

‘‘नहीं-नहीं अब हमें इज़ाज़त दीजिए.‘‘ लल्ला ने बड़ी शालीनता से कहा।

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यह खाना नहीं हमारी माता जी का प्रसाद हैं। वैसे अगर तुम्हें हमारे यहाँ खाने से परहेज़ हैं तो मैं दो थालियाँ होटल से मँगाये देती हूँ.‘‘

‘‘ऐसी कोई बात नहीं हैं.‘‘ ज्ञानदीप ने बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘खैर आपका आदेश सिर आँखों पर.‘‘

‘‘बेटा! हम हिजड़े समाज के ठुकराये और किस्मत के मारे हैं.‘‘ दीपिकामाई नम स्वर में बोली। ‘‘अम्मा ! बड़े पापा आये हैं.‘‘ साहिबा ने आकर टोका।

दीपिकामाई दोनों को बैठा कर चली गयी।

अँधेरा पूरी तरह से छा गया था। दिसम्बर का ज़वा मन्थ अपनी मस्ती में मस्त था। गुनगुनाती ठंड मौसम को मदहोश़् किये थी। खाना खाने के बाद दोनों ने दीपिकामाई से इज़ाज़त ली। जैसे महादेवी वर्मा से जयश्ंकर प्रसाद और प्रेमचंद ने ली थी।

यह जेनेटिक नेचर नहीं जेनेटिक डिस्आर्डर हैं

रात आधी से ज्यादा बीत गई थी। मगर ज्ञानदीप की आँखों से नींद ठीक वैसे ही दूर थी जैसे गरीबों के हाथों से सरकारी सेवायें।

उसकी आँखों में रह-रहकर दीपिकामाई का चेहरा उभर आता। उसने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था, कि हिजड़ों से उसे इतना प्यार मिलेगा। यहीं सोचने-विचारने में उसे कब नींद आ गई पता ही न चला।

तालियों की गड़गड़ाहट ज्ञानदीप के कानों में पड़ी तो लगा जैसे वह कोई ख़्वाब देख रहा हो। मगर पुनः तालियों की गड़गड़ाहट से उसकी आँखें खुल गई। वह तख़्त से उठकर खिड़की की तरफ़ भागा। सूरज सिर पर चढ़ आया था। ज्ञानदीप ने खिड़की से झाँककर देखा, तो सरदार जी के आँगन में हिजड़े झूम-झूम कर नाच रही थी।

चंदा ढोल बजाने में मस्त थी । श्रीदेवी नाचने में और शोभा गाने में-

गुरु नानक ने वो दिन दिखाया

साडे कार विच काका आया

आई-आई बहार दईयाँ दी पुकार

दईयाँ ने काका जनाया

साडे कार विच काका आया

आई-आई बहार मम्मी दी पुकार

मम्मी ने चरवा धराया

साडे कार विच काका जनाया

आई-आई बहार जेठानी दी पुकार

जेठनी ने पलंगा बिछाया

साडे कार विच काका आया

आई-आई बहार नंदनी की पुकार

ननदनी ने कज़रा लगाया

साडे कार विच काका आया

आई्र-आई बहार खुसरों की पुकार

खुसरो ने मंगल गाया

साडे कार विच काका आया।

एकाएक दरवाजें पर दस्तक हुई। ज्ञानदीप ने जाकर दरवाज़ा खोला तो देखा, दूधवाला खड़ा हैं। वह दूध लेकर वापस खिड़की की तरफ आया। कि तभी नीचे से तेज़ आवाज़ उसके कानों में पड़ी, ‘‘हम इससे ज्यादा नहीं दे सकती.‘‘

‘‘रूप्या लूँगी पाँच हजार नयी तो सूप उठा कर फेक दूँगी, उल्टा सगुन कर दूँगी। यह काले मुँह की ढोलक लेकर आई हूँ। हमारा सगुन होता हय अउर फकीर तो रोज आता हय पर हम तो उही दिन आती हय जब भगवान दिन दिखाता हय। वईसे भी हमें देने से आप लोगों को कमी नयी होती हय.‘‘ चंदा ने ताली बजाई।

‘‘देखिये इत्ती बड़ी रक़म देने की हमारी औकात नहीं है। हम तो आप को यहीं दे सकती हूँ। अब चाहे आप इसे दुआ दे या बद्दुआ.‘‘ कहकर सरदारिन ने बच्चे को चंदा के पैरों पर रख दिया।

चंदा ने झट से बच्चे को उठाकर सीने से लगा लिया, ‘‘अम्मा! हम हिजड़े तो जरुर हय पर हमारे सीने में भी दिल हय, इस चाँद जैसे बच्चे को कौन बद्दुआ दे सकता हैं.‘‘

श्रीदेवी बलईयाँ उतारती हुई गाने लगी-

जन्म लिया रघुरैया ।

अवघ में बाजे बधैयां।।

ऋषि मुनि सब शब्द उचारें।

जय जय राम रमैया। अवध में....

संग संग जनमे चारों भैया।।

वे सब गाती हुई फाटक से बाहर निकली ही थी कि कुछ मनचले लड़के उन्हें छेड़ने लगे, ‘‘क्यों री चिकनी चलेगी मेरे साथ.‘‘

‘‘चुप भड़वे, नहीं तो जूतियों से मारूगी.‘‘ शोभा ने ताली बजाई।

‘‘ऐसा मत करना मेरी जान, नहीं तो हाथ गंदे हो जायेंगे। फिर ताली कौन बजायेगा, ढोलक कौन बजायेगा.‘‘ उसने गुलशन ग्रोवर अंदाज में कहा।

‘‘तेरी अम्मा बजायेगी भड़वे.‘‘ चंदा ने भी ताली पीटी।

‘‘तो तुम लोग क्या गाँड़ मरवाओंगी.‘‘ कहकर लम्बे बाल वाले ने चंदा का हाथ मरोड़ दिया।

‘‘अबे पंडितवा! तू नहीं जानता, इतिहास गवाह हैं इन लोगों ने सिवाय गाँड़ मरवाने के आज तक कुछ नहीं किया.‘‘ सुवर जैसी आँख वाले ने श्रीदेवी के कूल्हे पर हाथ मारा।

वह फुदक कर एक किनारे खड़ी हो गयी। और बोली, ‘‘काहे बत्तमीजी कर रहे हय आप लोग, का हम्मरे सीने में दिल नाय हय या ज़िसम में खून नाय हय? का हम्में किसी बात की तकलीफ नाय होत हय? हम्में भी आप की तरह तकलीफ़ होत हय। आप लोग हम्म हिजड़ों को देखकर हँसते हय, छींटाकशी करते हय, गाली बकते हय, लेकिन हम्म हिजड़े फिर भी आप लोगों को दुवायें देते हय, मगर आप लोग.....।‘‘

एक-एक करके कई लोग वहाँ जमा हो गए थे।

ज्ञानदीप खिड़की पर खड़ा यह सारा नज़ारा देख रहा था। उसके मन में आया कि जाकर उन सबका मुँह तोड़ दे और कह दे, ‘‘खबरदार! अगर तुम लोगों ने इनकी तरफ आँख उठा कर भी देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.“

ज्ञानदीप खिड़की बंद करके जब तक बाहर आता। वे सब के सब चले गए थे।

ज्ञानदीप वापस कमरे में आया। अभी बैठा ही था कि दरवाजे की बेल बजी। दरवाज़ा खोला तो सामने ऋषि, गुलफाम, वरुण खड़े थे। हाय-हैलो कहकर वे लोग तख़्त पर बैठ गए।

‘‘समलैंगिकता सबंध अपराध नहीं हाईकोर्ट,‘‘ यह पढ़ते ही ऋषि आगबबूला हो उठा, “हाईकोर्ट का भी लगता हैं दिमाग खराब हो गया हैं। यह नहीं सोचा कि समाज के ऊपर इसका घातक प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण विवाह संस्था खतरे में पड़ जायेंगी। यह धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित भारतीय मूल्यों और परमपराओं के खिलाफ हैं.‘‘

समलैंगिकता एक नितांत वैयक्तिक रिश्ता हैं। अगर किसी पुरुष की पसंद पुरुष हैं, या स्त्री की पसंद स्त्री हैं, तो इससे किसी को या समाज को क्या नुकसान हैं?‘‘ वरुण ने राहुल गांधी के अंदाज में बताया।

‘‘माई डियर, इससे हमारी संस्कृति भ्रष्ट हो जाएगी। गुलफाम ने अपना ज्ञान उलेड़ा।

‘‘प्राचीन दार्शनिक श्वेतकेतु ने एक स्त्री एक पुरुष के अतिरिक्त बाकी संबंधों को अवैध ठहराया। समलिंगी संबंधों का उद्देश्य देह सुख हैं। बाजार हित और मुनाफ़ा हैं ऋषि अपनी बात पूरी की।

‘‘सिर्फ तुम्हारे मानने या न मानने से कुछ नहीं होता। रजोगुण-प्रधान सेक्स में ही स्त्री पुरुष मिल कर सेक्स का आनन्द लेते हैं। तपोगुण प्रधान सेक्स में पुरुष-पुरुष के साथ, या स्त्री-स्त्री के साथ सेक्स का आनन्द लेते हैं। या स्त्री-पुरुष आप्राकृतिक मैथुन करते हैं। हर एक मनुष्य में यह तीनों गुण पाए जाते हैं.‘‘ वरूण ने बताया।

यह सब सुनने के बाद ज्ञानदीप अपने आप को रोक न सका, “सबसे पहले यह जान लो कि समलैंगिकता होती क्या हैं? हमारे यहाँ होमोसेक्सुअलिटी के स्वरुप पर कभी ढंग से बातचीत नहीं हुई। हालाँकि यह हजारों वर्षों से हैं। मगर इस सच्चाई को स्वीकार करने में झिझक होती हैं। जबकि पश्चिम में इस समस्या पर रोशनी डालने के लिए कई इंस्टीट्यूट बने हुए हैं। नीदरलैंड में तो बकायदा एक म्यूजियम ही हैं म्यूजियम आफ बायोडाइवर्सिटी। समलैंगिकता कुदरतन होती है। इस जींस को एक्स-29 कहा गया हैं.‘‘

‘‘तुम्हरें कहने से थोड़े ही कोई मान लेगा। हत्या, बलात्कार, चोरी, मक्कारी भी तो हजारों वर्षों से होती आ रही हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम इसे भी मान्यता दे दें.‘‘ ऋषि के कहने का स्टाइल लाल कृष्ण आडवानी की तरह था

‘‘ऋषि! तुम्हे मालूम नहीं यह प्रवृत्ति कितनी प्राचीन हैं। और इसके अनेकों उदाहरण देखने को मिलेंगे कि कितने ऐतिहासिक हस्तियों के समलैंगिक या दोनो तरह के संबंध रहे हैं। जैसे इंग्लैंड के सम्राट एडवर्ड सेकंड, ब्रिटेन के मशहूर गायक सर एल्टन जान, पोप जूलियस सेकंड, इटली के प्रख्यात चित्रकार लियोनार्दो दा विंसी, महान शायर मीर तकी मीर के पिता और चेले के संबंध थे।

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