नाम
" लगता है, पागल हो गए हो "
" क्या हुआ, मैंने बावलों जैसा कौन सा काम किया है ? "
" रोज - रोज फोन और वो भी ठीक इसी वक्त, क्या यह पागलपन नहीं है ?"
" प्यार में दीवानगी न ही तो वो प्यार कैसा ? "
" तभी तो कह रही हूँ कि लगता है पागल हो गए हो !"
" शालू ! कुछ भी कह लो या सुन लो, बस यूँ समझ लो कि शायद अपनी शालिनी के लिए पागल ही हो गया हूं । मुझे इस नाम में अपना अस्तित्व नजर आता है । "
" वाह ! मेरे रांझे जी, क्या बात है, आपको हमारे नाम में ही अपना अस्तित्व नजर आता है । तब तो आप बड़े मुगालते में हैं कि आप हमें प्यार करते हैं ।"
" तो फिर इम्तहान लेकर देख लो, हमारी हर सांस के साथ एक ही शब्द निकलेगा और वह होगा, शालू,सिर्फ शालू!"
" पता भी है, मेरा असली नाम क्या था ? "
" नाम भी असली या नकली होता है क्या ?"
" जन्म से मेरा नाम अनुराधा निकला था. शालू तो बाद में न जाने कैसे हो गया । "
" जानू ! अनु होता या जो अब है,तुम किसी भी नाम में समा जाओ, असल में तो तुम्हारे अपनत्व, स्नेह, ममता, समर्पण या फिर मुझे लेकर तुम्हारे वह सलोने या मासूम भाव जो मेरी हर अच्छाई या हो बुराई,जिस तरह तुम्हारे पूरे अस्तित्व को इस तरह प्रभावित करती है कि तुम झंकृत भी उसी से होती हो, तुम अपने सभी भावों का संचालन भी उसी से करती हो। तुम्हारी सारी सम्वेदना वहीं से उद्वेलित होती है । यहाँ तक कि अपनी सम्पूर्ण तन्द्रा से अपनी हर अगली गतिविधि का निर्धारण भी उसी के आलोक में करती हो, तुम्हें लेकर एक विश्वास मेरे अंदर जग जाता है,जो मेरी हर ऊर्जा का स्रोत होता है, इसलिए जब भी मैं एक नाम लेता हूं,शालू, जो कि मैं हर पल लेता हूं ।"
"...............................................!"
यह बड़ा अजीब पागल है ! शालू ने मन ही मन सोचा पर उसकी इच्छा हुई कि सुमेर को अपनी बाँहों में भर ले पर फोन पर ऐसा हो नहीं सकता था ।
" और अगर वह नाम अनू होता तब भी, कोई फर्क नहीं पड़ता .मेरे अंदर तब अनु नाम की स्मृति के साथ यही संवेग आते रहते और जाते रहते, नाम तो तुम तक पहुंचने का एक रास्ता भर है अनु . "
शालू के पूरे अस्तित्व ने चाहा कि वह अपने हर कोने में सुमेर को समेट ले और उसी की तरह पागल भी हो जाए ।
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा,