RAJ BOHARE KI KAHANI KA GULDASTA books and stories free download online pdf in Hindi

राज बोहरे की कहानी का गुलदस्ता: डॉ. पद्मा शर्मा

कहानी का गुलदस्ता: मेरी प्रिय कथाएं डॉ. पद्मा शर्मा

मेरी प्रिय कथाएं

लेखक राजनारायण बोहरे -

पिछले दिनों प्रकाशित ‘ मेरी प्रिय कथाएं ’ के लेखक राजनारायण बोहरे की आठवें दशक में आये कहानीकार हैं, उनकी कहानियों का सघन विवेचन किया जाये तो हम पाते हैं कि उनकी कहानी दूसरे समकालीन कहानीकारों से अलहदा किस्म की हैं। वे कहानी में वृत्तांत की उपस्थिति को वे पहली प्राथमिकता देते हैं। उनकी कहानी में प्रवाहमयता, संवादात्मकता और औत्सुक्य भरपूर है। पाठक एक बार उनकी कहानी पढ़ना शुरू करे तो पूरी पढ़कर ही छोड़ता है। पाठक को अपने साथ बांध लेने की कला में बोहरे माहिर हैं जो शायद कहानी की पहली प्राथमिकता भी है। कहानी कहने के अनेक नायाब तरीके उनके जादू के झोले में है, उनके पास कई ऐसे शिल्पगत प्रयोग हैं जिन्हें अपनाकर वे अपनी बात इस तरह से कह जाते हैं कि कहन तथा संदेश में कहानी का शिल्प और भाशिक शब्दावली बाधा नही बनती और कहानी सहज भाव से अन्तस् तक गहन पैठ जमा लेती है। उनकी कहानी में पुनसर््मरण का दृश्यमान है तो नदी के प्रवाहमान की सी गति। प्रभावशाली स्थिति से वे कहानी आरंभ करते हैं तो कभी किसी चमत्कारिक वाक्य से ...जैसे अस्थान कहानी का आरंभ ”अखिल ब्रह्माण्ड नामक परात्पर ब्रह्म परमात्मा की जय !सम्प्रदाय के आदि आचार्य महाराज की जय! गददीधारी आचार्य महाराज की जय ! अस्थान के महन्त मण्डलेश्वर की जय ! सन्त -पुजारी की जय! दाता भण्डारी की जय! अपने-अपने गुरू महाराज की जय!

राजनारायण बोहरे जमीन से जुड़े कथाकार हैं। अनुभव और भाषा की विरासत उनके पास है।उन की कहानियों के चरित्र जिस समाज से आते हैं उस समाज की रीति-नीति और बोली-भाषा के साथ कहावतों-मुहावरों की पूरी समृद्ध विरासत साथ में लेके आते हैं। ‘चम्पा महाराज’... में समाज के तीज-त्यौहार, व्रत-पर्व और लोकगीत व लोक परम्पराओं की खूबसूरती इस अदंज मे आती है कि पाठक को कहानी में धक-धक करता जीवन महसूस होने लगता है। अस्थान में साधुओं की सधुक्कड़ी भाषा, मुहिम में चम्बल घाटी की भदावरी भाषा, चम्पामहाराज में बुंदेलखण्डी बोली का जिस अधिकार और लालित्य के साथ प्रयोग किया गया है वह आम लेखकों में दुर्लभ है।

राजनारायण बोहरे की कुछ प्रमुख कहानियों का विश्लेषण किया जाना समीचीन होगा। सर्वप्रथम भय कहानी की बात करते हैं। भय कहानी में एक उदार और छात्र-मित्र प्रोफेसर द्वारा परीक्षा में नकल पकड़ने के बाद उनके साथ मारपीट करने की मंशा से पीछा कर रहे उददण्ड छात्रों की कहानी है, कि एक ऐसा पुलिस अधिकारी मिलता है जो कि उनका पुराना छात्र है और उसको भी रवि सर नकल करते हुए पकड़ चुके हैं। रवि पहले तो पीछा कर रहे छात्रों को समझाता है और बाद में अपने गुरूजी को बहुत भावुक होकर निवेदन करता है कि इस तरह के भय और घटनाओं से आप सत्य का रास्ता न छोड़ियेगा। उल्लेखनीय है कि यह कहानी अखिल भारतीय प्रतियोगिता में चयनित की जाकर पच्चीस हजार के पुरस्कार से प्रधान मंत्री द्वारा पुरस्कृत की गयी है।

‘‘ इज़्ज़त-आबरू ’’ उनकी एक बहुचर्चित कहानी का है । अकाल राहत के लिए खोले गये सरकारी काम देख रहे निर्माण विभाग के इंजीनियर द्वारा काम कर रही एक मजदूर युवती को रेस्ट हाउस लाने की इस कहानी में एक युवक के विरोध करने की कहानी है। ‘‘ गोस्टा ’’ ऐसी कहानी है जिसमें कि गांव के सामूहिक कार्य बारी-बारी से अवसर (ओसर) दे कर निपटा देने के लिए गोष्ठी, ओसर या समझाौता (गोस्टा) की कथा है । जब इसका दुरूप्योग निजी हित के लिए होता है तो अंततः एक दिन वह गोस्टा तोड दिया जाता है । कहानी के अंत में समाज के पिछले तबके का अपना अलग गोस्टा बनाने का संकेत देते हुए बहुत अच्छे मोड़ पर यह कहानी समाप्त की गयी है।

राजनारायण बोहरे की एक कहानी बहुत चर्चित हुई ‘‘ चम्पामहाराज, चेलम्मा और प्रेमकथा’’ यह कहानी राजनारायण ने अपनी अद्वितीय भाषा क्षमता और सर्वश्रेश्ठ रचना-कौशल के साथ लिखी है। ग्रामीण महाजन पण्डित चंपाप्रसाद के अधेड़ और विधुरवत जीवन जीते बड़े भाई कालकाप्रसाद ग्रामीण अस्पताल की नर्स चेल्लम्मा के प्रेम में डूबे है। यह खबर चम्पाप्रसाद को विचलित कर देती है। वे यह रिश्ता और आगे के संभावित ब्याह की घटना को किसी भी तरह पचा नही पाते। इस रिश्ते को तुड़वाने के लिए वे हर हथकण्डा सोच लेते है। लेकिन किसी से भी संतुश्ट नही हो पाते। उनका महाजनी मन तमाम रास्ते सुझाता है एक यह कि मनुस्मृति के मुताबिक लड़की का कोई गोत्र नही होता, वह जहां ब्याही जाती है उसका वही गोत्र हो जाता है, तो क्यों न इस गोत्र बदलने के सिद्धांत को जाति बदलने तक विस्तृत कर दिया जाये ! वे तय करते हैं कि यह ब्याह आयोजित कर लेते हैं और समाज से कह देते हैं कि चेल्लम्मा दक्षिण भारतीय ब्राह्मण आयंगर की कन्या है , जिसे वे उत्तर भारत के ब्राह्मणों में चल रहे उपजाति भेद समाप्त करने के आंदोलन के अगले क्रम में उत्तरी और दक्षिणी ब्राह्मण के भेद को मिटाने के सोपान तक ले जाके यह ब्याह स्वीकार कर रहे हैं।

‘‘ मुहिम’’ बोहरे की एक महत्वा कांक्षी आर श्रमसाध्य कहानी है जिसको उन्होने बाद में उपन्यास के रूप् में विस्तार दिया और मुखबिर उपन्यास के रूप् मे यह कहानी चम्बल घाटी का एक प्रामाणिक आख्यान बन कर पाठको व आलोचको के समक्ष आयी। लम्बे समय से पुलिस की पकड़ से दूर रहते एक ऐसे डाकू की कहानी एक अलग शिल्प मे कहते हुए बोहरे ने चम्बल घाटी के समाज में तेजी से फैल रहे सामाजिक बदलाव की कहानी कही है जहां कि राजनीति की तरह अब हासिये पर बैठे लोग ही अपना रौब और नाम स्थापित कर रहे है भले ही वह डकैती का क्षेत्र क्यों न हो। डकैत की पकड़ मे रहे गिरराज और लल्ला पंडित जब फिरौती के बाद छूट कर आतेहैं तो पुलिस उन्हे अपने साथ इस आशय से ले लेती है कि वे लोग उन स्थानों के पते बतायें जहां डाकू कृपाराम को शरण मिलती है और वह पुलिस की पकड़ से दूर छिपा रहता है। इस सुरागरसी और तलाश में पाठक को डाकुओं की जिंदगी के अनजाने सच, भयावह जिंदगी की दिनचर्चा, चम्बल के लोगों का अभिशापित जीवन और पुलिस वालो की अपनी मुसीबतों की जानकारी मिलती है।

सारिका , साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशन का सिलसिला आरंभ कर कथादेश, हंस सहित हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं में राजनारायण बोहरे की की कहानियां छपती रही है।

शोरगुल और समारोही हाजिरीयों से दूर रह कर चुपचाप लेखन करने वाले राजनारायण बोहरे के शांत लेखन में रची गयी कथाओं में एक तरफ हिन्दी कहानी की समकालीन प्रवृत्ति दृश्टिगोचर होती है और समाज के सामने व्याप्त संकट, नये चलन, मुख्य दुनिया के समानांतर चल रही जिंदगियां, परम्परागत जीवन उभर के आता है। दूसरी तरफ वे अपने अंचल की सांस्कृतिक समृद्धि को पूरे गौरव के साथ प्रस्तुत करते हैं।

उनके साथ उनके अंचल की भाषा, बोली , मुहावरे, रीतिरिवाज और मान्यतायें हिन्दी साहित्य को समृद्ध ही करती है।

डॉ. पद्मा शर्मा

श्रीमंत माधवराव सिंधिया शास0महाविद्यालय शिवपुरी

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED