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मोबाइल की जान और शान

मोबाइल की जान और शान

आर 0 के 0 लाल

सौरभ की शादी एक साल पहले हुयी थी । उसकी पत्नी रोज सुबह रोमांटिक तरीके से उसे जागती थी और दिन भर उसका पूरा ख्याल रखती थी, मगर वह पिछले एक महीने से अपनी मम्मी के घर चली गयी है इसलिए उसका यह काम अब उसके मोबाइल ने ले लिया है जो उसकी हर एक बात सुनता है और हर कदम पर उसका साथ भी देता है । मोबाइल के कारण अकेलापन उसे परेशान नहीं करता। इतना ही नहीं उसकी रोमांस-लाइफ भी बेहतर हो गयी है और आजकल एप्स की मदद से काफी कमाई अलग से हो जाती है। इन कारणों से सौरभ का उसके मोबाइल के बीच का रिश्ता भी और गहरा हो गया है ।

मोबाइल की तकनीक ने सौरभ की ज़िन्दगी को आरामदायक बना दिया है फलस्वरूप वह उसे किसी करीबी दोस्त से कम नहीं लगता । ऐसा दोस्त जिससे वह हर छोटी बड़ी बात पूछ सकता है, अपनी गोपनीय बात उससे शेयर कर सकता है और कोई भी राज पासवर्ड डाल कर छुपा सकता है। अपनी पत्नी से ज्यादा उसे अपने मोबाइल से प्यार है। सौरभ प्रतिदिन कम से कम दो सौ बार नोटिफिकेशन की आवाज़ आने के साथ ही सोशल मीडिया देखने के लिए अपना फोन उठता है और फिर उसमें कुछ मजेदार देखने में बिजी हो जाता है। सौरभ अब कलाई घड़ी नहीं लगाता लेकिन हाथ में मोबाइल फोन ज़रूर रखता है, चाहे खाना खा रहा हो, या फिर बाथरूम अथवा किसी यात्रा में हो। जब तक मोबाइल के रिमाइंडर की ट्वीनिंग नहीं बजती वह सुबह उठता ही नहीं, और रात को सोने से ठीक पहले बिना अपने मोबाईल में सर्फिंग किए उसे नींद भी नहीं आती।

एक दिन सुबह जब सौरभ उठा तो उसने अपने तकिये के नीचे से मोबाइल निकाल कर चूमा और चेक करने लगा। मगर यह क्या? उसमें नेट तो चल रहा था मगर ब्राउज़र नहीं चल रहा था, टिक- टॉक पर प्यारी सूरत वालों के विडियो नहीं चल रहे थे और हैलो के चटपटे मसाले नहीं चटक रहे थे। उसे लगा कि उसका मोबाइल हैंग हो गया है, लेकिन व्हाट्सऐप पर चेटिंग तो हो रही थी। सौरभ के मोबाइल में कई ऐप्स जैसे टिकटॉक , शेयर इट, केवई, यूसी ब्राउजर, बैडू मैप , शीईन, क्लैश ऑफ किंग , डीयू बैटरी सेवर आदि डाउनलोड थे। कुछ यूटीलिटी ऐप्स, कुछ वीडियो शेयरिंग तो कुछ सोशल मीडिया वाले ऐप्स थे। कोई नहीं चल रहा था। सौरभ ने सोचा कि कहीं सॉफ्टवेर में प्रोबलम तो नहीं आ गया इसलिए उसने अपनी पत्नी रत्ना को फोन मिलाया। रत्ना को आश्चर्य हुआ कि इतने सबेरे उनका फोन कैसे आ गया जबकि वे सुबह -सुबह घंटों हैलो या टिक- टॉक का मजा लेते रहते हैं।

सौरभ ने कहा कि पता नहीं क्या हो गया, मेरा फोन के सब फीचर ही नहीं काम कर रहे हैं। रत्ना एक आई टी इंजीनियर है। वह हंसने लगी और बोली, “तुम तो कहते थे कि तुम्हारे स्मार्ट फोन में टॉप क्लास के अप्लीकेशन हैं, जो विश्व के सबसे अच्छे और चायनीज़ हैं । तुम्हें पता नहीं कि चीन के साथ सीमा विवाद और देश की एकता और अखंडता पर खतरे के मद्देनजर भारत सरकार ने उनसठ चाइनीस ऐप पर बैन लगा दिया है, कहा जा रहा है कि इन ऐप के जरिए हिंदुस्तानियों का डाटा दूसरे देश में जा रहा था । इसीलिए तुम्हारा फोन बेहोश हो गया है। अब टिक- टॉक हेलो का मजा कैसे लोगे? बहुत मजा लेते थे उन पर हसीन महिलाओं का”?

सौरभ ने रत्ना से पूछा , “अब मेरा क्या होगा, तुम भी यहाँ नहीं हो, मेरा मन कैसे लगेगा? एप्स बंद होने की बात से तो मुझे हार्ट अटैक ही आने वाला है , मेरा तो सारा डाटा इन्हीं ऐप्स में है, उनका क्या होगा”?

रत्ना ने कहा, “बचपन में मैंने एक कहानी सुनी थी। एक जिन्न जब भी बाहर जाता तो अपनी जान एक तोते में रख जाता था और फिर खूब उत्पात मचाता था । उसे कोई मार नहीं पाता था। एक बार एक परी ने उस तोते को पकड़कर उसकी गर्दन मरोड़ दी और जिन्न तुरंत मर गया जिससे लोगों को जिन्न से छुटकारा मिल गया। ठीक उसी तरह आज मोबाइल में लोगों की जान बसती है। सुबह आंख खुलते ही पहला काम मोबाइल चेक करना होता है। मोबाइल से जगना, पैसों का ट्रांजेक्शन, बधाई संदेश देना आदि से लेकर के ऑनलाइन शिक्षा, इंटरटेनमेंट और गेम खेलने तक का काम होता है”। सौरभ ने कहा कि तुम मुझे दुष्ट जिन्न कह रही हो।

रत्ना ने समझाया, “ नहीं, मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रही हूँ। मोबाइल आज एक जिन्न की तरह ही है, जो मांगों, वह तुरंत पेश कर देता है। मैं तो कह रही थी कि मोबाइल लोगों की जान है तो विभिन्न ऐप्स मोबाइल में जान डालते हैं और उसे स्मार्ट बनाते हैं”। ऐप्स काम न करें तो लोगों की जान जाना स्वाभाविक है”।

सौरभ ने अपनी पत्नी रत्ना से कहा कि हमारी सरकार भी जनता को परेशान करती है, अचानक अब चाइनीज ऐप्स पर बैन लगा दिया। न जाने यूजर्स के पास अब क्या विकल्प बचे हैं? जो डाटा जाना था वो तो चला गया होगा। इसकी जगह सरकार
सेकुइरिटी बढ़ा देती। मुझे नहीं पता कि अब कौन से ऐप्स डाउनलोड करने चाहिए? रत्ना ने उत्तर दिया , तुम्हारी चिंता उचित है , परंतु इन सभी के विकल्प गूगल प्ले स्टोर और आइ ओ एस प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद हैं। भारत के इंजीनियरों ने भी कई ऐप्स बनाए हैं । शेयर चैट, चिंगारी, टिक किक, लाइट, शेयर चैट और रोपोसो भारतीय ही हैं । भारत में एनजीपे एक शानदार ऐप है जो आपको अपने फ़ोन डेटा कार्ड, डीटीएच को रिचार्ज करने के साथ-साथ फ्लाइट, बस, ट्रेन और मूवी टिकट की बुकिंग करने की सुविधा देता है। भारत का रोजगार समाचार ऐप, इंडिया कोड फाइंडर, जस्टडायल, भारतीय रेल ट्रेन इन्फो ऐप, ऑनलाइन शॉपिंग के लिए बाइहटके , मैप माय इंडिया ऐप , इंस्टा मनी ऐप आदि सभी भारतीय ऐप्स हैं ।

सौरभ ने कहा मुझे यह सब नहीं आता, मैं तो एक नॉन टेक्निकल आदमी हूँ। मोबाईल एप क्या होता है नहीं जानता । मैं तो शायद दो देश की पॉलिटिक्स में फंस गया हूँ।
रत्ना ने फोन पर ही बताया कि स्मार्ट फोन में मौजूद ऐप्स की मदद से हम कई मुश्किल काम पलक झपकते ही पूरा कर लेते हैं। ऐप्स मोबाइल की आन-बान-शान होते हैं । व्हाट्सऐप , फेसबुक , कैमरा , यू ट्यूब तो सभी में होते हैं। “मोबाईल एप” एक अप्लीकेशन सोफ्टवेयर होता है। ऐप नेटिव अर्थात किसी एक मोबाईल के लिए अथवा हाइब्रिड हो सकते हैं। वेब आधारित ऐप्स वेब ब्राउज़र से ही एक्सेस हो पाते हैं। अच्छे ऐप्स को तेज, सुरक्षित और आसान होना चाहिए। मोबाइल सेवा प्रदाता मोबाइल ऐप्स हमेशा एक डेडिकेटेड ऐप स्टोर के माध्यम से प्रदान कराते हैं।

यार रत्ना! मुझे बताओ कि कौन से ऐप्स मैं डाऊनलोड कर लूँ और उससे क्या कर सकता हूँ? रत्ना ने कहा, “तुम यू सी ब्राउज़र अथवा सी एम ब्राउज़र की जगह गूगल क्रोम , मोज़िला फायर फॉक्स या इंटरनेट ब्राउज़र का प्रयोग कर सकते हो । फाइल ट्रान्सफर के लिए शेयर इट की जगह फ़ाइल गो , शॉपिंग ऐप्स के रूप में शेन , क्लब फ़ैक्टरी की जगह मिंटरा ,फ्लिपकार्ट, स्नैप डील का प्रयोग कर लो । इसी प्रकार गेम के लिए लूडो किंग है। स्नैप शॉट, ओपेन कैमरा आदि भी अपने मोबाइल में डाल लो, अब वही काम आयेगा”।

सौरभ को समझना था कि वह तो कोई पैसा नहीं देता फिर ऐप्स के मालिक ऐप्स से कैसे पैसे कमाते हैं? रत्ना ने बताया कि ऐप्स के मालिक ज्यादातर एडवरटाइजमेंट या सब्सक्रिप्शन से कमाते हैं । उन्हें बहुत सी स्पॉन्सरशिप भी मिल जाती है। क्राउडफंडिंग भी कमाई का एक जरिया होता है। जब भी लोग कोई ऐप इंस्टॉल करते हैं तो जाने अनजाने ढेर सारी परमिशन दे देते हैं जिससे वे उनका डेटा अपने सर्वर पर ट्रांसफर कर लेते हैं, फिर उन्हें बेचकर पैसा कमाते हैं। इसी प्रकार रेफरल कमीशन द्वारा भी उन्हें पैसा मिलता है ।

अंत में रत्ना ने प्रश्न उठाया कि कब तक हम दूसरों के एवं अमेरिकन ऐप्स जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टि्वटर आदि पर निर्भर रहेंगे। आज हम क्यों नहीं बड़ी संख्या में अपना ऐप बनाते । अगर इस पर पूरा देश ध्यान दें तो हमारे यहां के छात्र एवं इंजीनियर इस काम को बखूबी कर सकते हैं । आज देश में ऐप्स डेवलपमेंट आंट्रीप्रिन्योर के लिए एक बहुत बड़ा मौका है जो अपना स्टार्ट अप शुरू कर सकते हैं और कोई भी ऐप बनाने की तकनीकी सीख कर, कारोबार शुरू कर सकते हैं । ऐप डेवलपर का काम अत्यंत लाभदायक हो सकता है। बंद चीनी ऐप्स के लिए भारत में काम करने वाले लोगों की मदद लेकर भारतीय ऐप्स का कारोबार फैलाया जा सकता है । ऐप्स बन जाने के बाद उसकी मार्केटिंग के लिए निवेश करने की जरूरत को शायद सरकारी मदद की जरूरत पड़े । कोई बड़ा उद्योगपति आगे आये तो बहुत अच्छा होगा।

रत्ना ने यह भी कहा कि लोग मोबाइल तो प्रयोग करते हैं लेकिन उसके बारे में बहुत थोड़ा जानते हैं। इसके लिए देश व्यापी प्रयास की जरूरत है। मीडिया अपने चैनल पर पॉलिटिकल बहस को कुछ कम करके उसकी जगह टेक्नालोजी समझाने, नया इनोवेशन के लिए प्रेरित करने और ऐप्स बनाना सिखाने का प्रोग्राम कर सके तो बहुत सफलता मिल सकती है ऐसा मेरा मानना है। यह सब सुनकर सौरभ ने भी ऐप्स बनाने का स्टार्ट अप शुरू करने का मन बना लिया है।

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