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बेआवाज़ तमाचा

बेआवाज़ तमाचा

“उफ़ दीदी कितना पढ़ोगी ?”

छोटे भाई के सवाल पर एकता ने मुस्कुरा कर कहा, “बिट्टू किताबें तो मेरी जान हैं | तू भी अपना समय बर्बाद ना कर | जा गणित की किताब ले आ, तुझे भी पढ़ा ही दूँ |”

“न बाबा ना ! मुझ पर ये जुल्म ना करो” कह कर बिट्टू भाग गया और एकता फिर से अपनी किताबों में डूब गयी |

इलाहाबाद में पली बढ़ी एकता की साँसों में इलाहाबादी अमरूदों की खुशबु मिली हुई थी और और जुबान में अमरुद् सी मिठास | माँ -बाबूजी के प्यार का संगम, घर में रोज ढेर सारे रिश्तेदारों का आना -जाना, दीदी. भैया से रूठना, मनाना, खट्टे -मीठे झगडे और उनके पीछे छिपा ढेर सारा प्यार और अपनापन जीवन की यही परिभाषा जानती थी एकता | दुःख तो दूर से भी नहीं छू गया था उसे |

स्वाभाव से अंतर्मुखी एकता पढाई में भी शुरू से बहुत होशियार थी | उसका एक ही सपना था ...डॉक्टर बनना | फिर उस सपने के लिए उसने नवीं कक्षा में आने के बाद से जी जान से मेहनत भी की थी | आखिरकार उसकी मेहनत रंग लायी और उसका चयन मुंबई के मेडिकल कॉलेज में हो गया | घर में ख़ुशी की लहर दौड़ उठी | दूर -दूर से रिश्तेदारों के फोन आने लगे | खुशियाँ जैसे खुद ही उसके दामन में भर जाना चाहती थीं | पर यही वो समय था जब उसे अपने परिवार से दूर जाना था | स्नेह के आँचल में पली -बढ़ी एकता घबरा तो बहुत रही थी परिवार से दूर हॉस्टल में रहने के नाम पर | लेकिन अपने कैरियर के लिए जाना तो था ही |

उसका का सामान बाँधा जाने लगा | माँ ने ढेर सारे लड्डू, आचार, पंजीरी आदि भी बाँध दिए | क्या पता उनकी लाडली को वहाँ का खाना पसंद आये या ना आये | बाबूजी ढूँढ -ढूंढ के सामान ला कर ले जाने वाले सामानों के साथ रखने लगे | कई सामानों को ढूँढने में तो उन्होंने सारा इलाहाबाद छान मारा था |

"अरे आप लोग तो ऐसे तैयारी कर रहे हैं जैसे कालापानी की सजा हुई हो | हॉस्टल ही तो जा रही हूँ | वहां सब मिलता है |” उसने डब्बे में से एक लड्डू निकाल कर खाते हुए कहा |

“लो लड्डू तो यहीं निकाल कर खाना शुरू कर दिया और कहती है सब मिलता है | ये तो हमें भी पता है कि मिलता है पर उसमें माँ का दुलार कहाँ होगा |” माँ ने सर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा और सभी की आँखें नम हो गयीं |

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मुंबई नया शहर, नयी पढाई, नया जीवन | कभी माँ के खाने की याद आती, कभी भाई-बहनों के साथ की शरारतों की, तो कभी पिता का विश्वास, " परेशान क्यों होती हो, मैं हूँ ना” मन को भिगो देता था | धीरे -धीरे उसने खुद को संभाल ही लिया | कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हुई | सब एक दूसरे की मदद करतीं | अब यही उनका परिवार था | और इसी परिवार के सहारे पढने और आगे बढ़ने का सपना पूरा करना था |

हॉस्टल में तो नहीं, हाँ कॉलेज में उसे थोड़ी दिक्कत आती थी | को. एड. जो था | अभी तक तो गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ी थी वो | फिर इलाहाबाद शहर भी तो ऐसा था, जहाँ खुलापन इतना नहीं था, भाई लोग भी थे जिनके साथ आना -जाना हो ही जाता था | लड़कों को भैया के अतिरिक्त दोस्त भी समझा जा सकता है ये उसकी परिभाषा में नहीं था | लड़कों से बात करने में एक स्वाभाविक हिचक से गुज़रती थी वो |

उसी के क्लास में एक लड़का था सौरभ | अपने नाम की तरह अपनी हँसी की खुशबु लुटाता हुआ | सौरभ ने ही उसके आगे दोस्ती का हाथ बढाया था, पर उत्तर में अपने में ही सिमिट गयी थी वो | कई बार सौरभ क्लास में उसके यूँ शर्मा जाने की मिमिक्री भी करता | सब उसको देख कर हँसते और वो वहीँ जमीन में गड़ जाती | कभी –कभी जी करता कि बताये इन सबको, पर लिहाज था कि जाता नहीं था | खैर समय के साथ वो लड़कों से थोडा-थोड़ा बात करने लगी पर सौरभ के सामने आते ही हकला जाती | आखिर ऐसा क्या था सौरभ में जो उसे उसकी तरफ खींचता था |

इसी तरह पूरे दो साल बीत गए | सौरभ रोज उससे मिलना और बात करना नहीं भूलता | सौरभ उसके सामने एक खुली किताब था और वो तहखाने में बंद डायरी | सौरभ की आँखों में प्रेम दिखता था और शब्दों में भी | उसका मन भी प्रेम के रेशमी अहसास से खुद को कहाँ मुक्त कर पा रहा था | क्लास में उनके दबे -छुपे चर्चे होने लगे | एक समय ऐसा आया कि अकेले कमरे में भी सौरभ हमेशा साथ रहता, भले ही यादों के रूप में |मन पर एक मदहोशी छाने लगी | अपने में गुम खामोश रहने वाली लड़की का सौरभ से बात करने का सिलसिला कभी खत्म ही ना होता | हालांकि उसकी बातों में कभी पढाई होती, कभी इलाहाबाद तो कभी माँ और परिवार |

थर्ड इयर के फाइनल सेमिस्टर के बाद की वो एक खास शाम थी | जब सौरभ ने उससे साथ में कॉफ़ी पीने को कहा तो वो उसे रोज की बात समझ कर चल दी | बातों ही बातों में सौरभ बोला, "अरे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा तुम ने मुझ से I Love You कहा |" एकता ने हतप्रभ होते हुए कहा, " अरे, ऐसा कैसे, मैंने ऐसा तो नहीं कहा |"

सौरभ मुस्कुराया, "तो अब कह दो ना !!!"

एक दिलकश हँसी के साथ प्रेम की स्वीकारोक्ति की पहली बयार की खुशबु वातावरण में फ़ैल गयी |

अगले दो साल .... प्रेम के दिन थे और प्रेम की रातें | वो एक दूसरे से घंटों बातें करते | साथ -साथ घूमने जाते | एक दूसरे की तस्वीरे खींचते, प्रेम पत्र लिखते | कॉलेज में उनके प्रेम की किस्से सब को को पता थे | कितनी बार ऐसा हुआ की सौरभ ने उसके इतना नजदीक आना चाहा कि कोई दूरी ही ना रह जाए पर प्रेम की गंगा के इस बहाव में उसने अपनी मर्यादा की सीमाओं को कभी बह जाने नहीं दिया | वो दिन भी आया जब उन्हें डिग्री ले कर कॉलेज के फेयर वेल के बाद जब अपने -अपने घर जाना था | विदाई की बेला में आँखों में आँसू भर कर उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि जल्द ही अपने माता -पिता को मना लेंगे और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जायेंगे |

एकता इलाहाबाद लौट तो आई थी वो पर मन सौरभ के ही पास रह गया था | उसने सौरभ से कह रखा था, पहले तुम अपने माता -पिता से बात कर लेना, फिर मैं कर लूंगी | उसे विश्वास था कि उसके माता –पिता उसकी पसंद से इनकार नहीं करेंगे | सौरभ ने भी तो हामी भरते हुए अपनी माता –पिता की शीघ्र स्वीकृति मिल जाने की बात कही थी | कहीं से कोई दिक्कत थी ही नहीं | पर मुंबई से कलकत्ता जाने के बाद ना जाने क्यों हर फोन पर वो इस सवाल को टालने लगा था | धीरे -धीरे उसके फोन ही आने कम हो गए | वो फोन मिलाती भी तो फोन व्यस्त है का टेप किया हुआ मेसेज सुनाई देता | अब एकता के हिस्से में केवल इंतज़ार था |बिना सौरभ की राय जाने वो अपने माता –पिता को भी अपने दिल की बात नहीं कहना चाहती थी |

दिन भर घर में बात करने वाली एकता मौन रहने लगी | गुलाब के फूल सा चेहरा मुरझाने लगा | माँ -पिताजी पूछते तो काम का प्रेशर बता कर बात टालती थी | हालांकि कि वो जानती थी कि हॉस्पिटल के लम्बे घंटों की ड्यटी भी उसे उतना नहीं थकाती, जितना एक पल का ये ख्याल कि कहीं सौरभ उसे भूल तो नहीं गया उसे थका देता | उसका फोन सौरभ उठाता नहीं था, खुद उसका फोन आता नहीं था | मन अनजानी आशंकाओं से घिरने लगा था कि सौरभ ठीक तो है ना ?तो कभी वो खुद से ही प्रश्न करती कि कहीं वो धोखा तो नहीं खा गयी प्यार में | कितने किस्से सुने थे प्यार में धोखे के | अपने विश्वास को बनाए रखने के लिए उसने कभी किसी कॉमन फ्रेंड से सौरभ के बारे में नहीं पूछा | कभी कोई फ्रेंड पूछता भी तो हँस कर कहती की हमारी बात होती है |

साल भर के लम्बे इंतज़ार और आशा-निराशा के मध्य झूलते मन को सँभालने के बाद वो दिन भी आया जब एकता को मेडिकल कांफ्रेस के लिए कलकत्ता जाना था | पूरे देश से डॉक्टर बुलाये गए थे | उसे लग रहा था कि ईश्वर ने आखिरकार उसकी दुआएं कबूल कर ली हैं | उसने सौरभ की पसंद के कपड़े और ढेर सारे गिफ्ट्स पैक किये और कलकत्ता की और रवाना हो गयी | पल -पल इंतज़ार को खत्म करने वाला वो सफ़र बेहद हसीं था |

वो सोच -सोच के खुश हो रही थी कि मेडिकल कांफ्रेस में वो सौरभ के लिए कितना बड़ा सरप्राइज़ होगी | वो कितना खुश हो जाएगा | खुद ही रूमानी कल्पनाएँ करती और खुद ही रोमांचित हो जाती | कलकत्ते पहुँचने तक रात ज्यादा हो गयी थी, उस दिन वो होटल में रुक गयी | अगले दिन सौरभ से मिलने की सोच उसके मन की वीणा के तार बज रहे थे | कांफ्रेस दूसरे दिन थी | सुबह जल्दी तैयार हो कर होटल लॉबी में उतरी ही थी की वहाँ सौरभ बैठा दिखाई दिया | उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ |

पर ये क्या उस के साथ बैठी औरत मांग में सिंदूर, हाथ में चूड़ा, गले में मंगलसूत्र और ...गोद में बच्चा | क्या .... क्या सौरभ ने शादी कर ली ? मन आशंकाओं से काँप उठा | नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, ये उसका भ्रम ही होगा, ये उसकी कोई रिश्तेदार होगी, ये सोच कर उसने खुद ही अपने मन को दिलासा दी |

तभी सौरभ का एक दोस्त उसके पास आया | सौरभ ने उससे धीमे से कुछ कहा | प्रतिउत्तर में उसने जोर से उस औरत की तरफ देख कर कहा, यार सारी दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की से तो तूने शादी कर ली, अब मुझे तो कुवारा ही रहना पड़ेगा | उनकी तेज हँसी में एकता की हिचकी की आवाज दब गयी | हँसी की आवाज़ से सोता हुआ बच्चा कुनमुनाया | शायद वो भूँखा था, बच्चे को लेकर सौरभ की पत्नी टॉयलेट की तरफ चली गयी |

एकता के जी में आया कि अभी जाकर सौरभ से पूंछे कि उसने उसके साथ धोखा क्यों किया है ? तभी सौरभ के शब्द उसके कानों में पड़े | जानते हो सुमित सर्वमिष्ठा मेरे बचपन का प्यार है | हम बगल ही बगल रहते थे | आठ्वी तक साथ पढ़ें | फिर उसने ह्यूमैनिटी चुना और मैंने विज्ञान | पर उसको पाने की एक तमन्ना हमेशा दिल में रही | हालांकि हम दोनों में से किसी ने इज़हार नहीं किया था | पर जब डिग्री ले कर यहाँ आया और माँ ने शादी के लिए पूछा तो मेरे दिमाग में पहला ख्याल सर्वमिश का ही था |

"अच्छा, और वो एकता जिससे साथ तुम्हारे प्यार के चर्चे मेडिकल कॉलेज पार कर हमारे इंजिनीयरिंग कॉलेज में भी तैर रहे थे ?"सुमित ने आश्चर्य करते हुए कहा |

" यार, वो तो बस टाइमपास था | तुम तो जानते ही हो कि मेडिकल कॉलेज की लाइफ कितनी बोरिंग होती है | बस यूँ ही उसके साथ कट ही गयी | मैंने कोई कमिटमेंट नहीं किया था पर वो थोडा सीरियस हो रही थी लिहाजा यहाँ आने के कुछ समय बाद से मैंने फोन भी नहीं उठाया | और ना ही पता किया की उसने आगे क्या किया | मने शादी की या अभी भी मेरे इंतज़ार में टेसुए बहा रही है |"कहते हुए सौरभ के चेहरे पर गर्व था |

“वाओ हीरो, हम तो तुम्हें आशिक समझे थे पर तुम तो नटवरलाल निकले | सबसे इंटेलिजेंट लड़की का दिमाग अपने काबू में कर लिया और सबसे खूबसूरत लड़की से शादी कर ली|”

“हमारे इश्क में मरने वाले बहुत हैं | क्या करें ?” सौरभ ने आँख मरते हुए कहा |

फिर से एक जोरदार ठहाका गूंजा |

अब आगे कुछ भी सुनना उसके लिए बर्दाश्त से बाहर था | अपने रूम के बिस्तर पर आ कर वो गिर पड़ीं | रोते -रोते तकिया गीला हो गया | उसे अपना जीवन बेमानी लगने लगा | क्यों जी रही है वो | जिसके लिए उसने एक –एक दिन इंतज़ार किया उसके लिए वो क्या है एक टाइम पास | इतना अपमान वो सह नहीं सकेगी | नहीं .... अब उसे ये जीवन नहीं चाहिए |

चाय को भी हाथ ना लगाने वाली नताशा ने उस दिन पहली बार शराब पी | बेतहाशा पी | नशे की हालत में चल दी अपने जीवन को खत्म करने | बड़कातल्ला की एक व्यस्त सड़क पर उसके लड़खड़ाते कदम जैसे भागती गाड़ियों से उसे कुचल देने की गुहार कर रहे हों | पर मौत उससे पिछले १० मिनट से आँख मिचौली खेल रही थी | गाड़ियाँ खुद उससे बच के उसके पास से सर्र से निकल जातीं | तभी एक तेज रफ़्तार टैक्सी जो ठीक उससे दो अंगुल दूर थी | तेज ब्रेक लगाया |

उससे एक 34 -35 साल की औरत उतरी | एकता अपना संतुलन खो कर सड़क पर गिर चुकी थी | उस औरत ने एकता को उठाया | उस के पास से आती शराब की गंध से मामला समझ एक जोर का तमाचा एकता के गाल पर मारा," मरने चली है, मतलबी लड़की, माँ -बाप भाई -बहन किसी का ख्याम नहीं है तेरे को, खुद तो मर जायेगी पर उनको रोने के लिए छोड़ देगी |

अचानक से एकता को ये ख्याल आया, " ओह, वो ये क्या करने जा रही थी | उसके लिए जान देने जा रही थी, जिसको उसके होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता | और वो .... उसके माँ -बाप भाई बहन, वो तो उसके लिए रोते - रोते मर जायेंगे | शायद, जिन्दगी में कभी सामान्य ना हो पाएं | परिवार का ख्याल आते ही शर्मिंदा हुई एकता उस औरत से लिपट रोने लगी | और आँसुओं के बीच अपनी कहानी सुना दी | वो औरत उसे अपने साथ गाडी में बिठा कर अपने घर ले आई |

एक चाल नुमा मकान में उसका भी एक कमरा था, जिसे वो घर कह रही थी | नीम्बू पानी देते हुए उसने कहा, " बहुत प्यार करती थी मैं अपने मर्द से, उडीसा से भाग कर आई थी उसके साथ यहाँ, वो भी मुझसे बहुत प्यार करता था, पर मुझसे कहीं ज्यादा शराब से | यही किराए की गाड़ी चलाता था वो | एक दिन ..... ये शराब उसको लील गयी | वो मेरे साथ अपने बच्चों को भी छोड़ कर भाग गया | दो जुडवाँ बच्चे, जिनमें से एक पोलियो से अपाहिज,पैसे -पैसे को मोहताज जिन्दगी | क्या करती मैं ... ख़ुदकुशी कर लेती ?बच्चों के साथ ले चली जाती दूसरे लोक | बड़ा आसान लग रहा था | एक झटके में सब परेशानियां खत्म | पर नहीं मैंने जिन्दगी की लड़ाई को चुना |

मैं तो चली जाती पर बच्चों का सास -ससुर का क्या होता ? मैं उसी किराए की गाड़ी को चला कर अपने बच्चे पालती हूँ | सास -ससुर की सेवा करती हूँ | कभी भर पेट नहीं खाया पर तसल्ली है जब ईश्वर के पास जाउंगी तो आँख मिला कर बात करुँगी, तूने जो जिन्दगी दी थी ना उसको पूरी मेहनत से जी के आई हूँ .... मुंह चुरा कर भाग कर नहीं आई रे तेरे पास | और तू .... तू क्या कहेगी ? एक प्यार के धोखे में, सारे रिश्ते, सारे कर्तव्य से अधूरे छोड़ के आ गयी |फिर तू तो डॉक्टर है रे, कितनों की जान बचा सकती है | उनकी और उनके आँखों में ख़ुशी की चमक दे सकती है | कभी सोचा है |

एक अनपढ़ स्त्री से जीवन की सच्चाई जान कर एकता शर्म से पानी -पानी होने लगी | ओह, वो ये क्या करने जा रही थी | उसे अपने माता -पिता, भाई बहन परिवार नाते -रिश्तेदार सबके आँसुओं से भरे चेहरे दिखाई देने लगे | सब की आँखों में एक ही सवाल था, " एकता तूने ऐसा क्यों किया ? आखिर हमारे प्यार में क्या कमी थी ? सारा क्रोध अपमान आँसुओं में बहने लगा |

वो होटल लौट आई | दूसरे दिन कांफ्रेस के लिए अच्छे से तैयार हुई | वहां उसने सौरभ की ओर बस एक हल्की सी परिचय वाली मुस्कान बिखेरी और अपने काम में लग गयीं | कॉलेज के शुरुआती दिनों की तरह एक बार फिर सौरभ उससे बात करने के लिए बेताब था, पर उसने ज्यादा तवज्जो नहीं दी और अपने काम में डूबी रही | उसे रह –रह कर सौरभ का वही वाक्य याद आ रहा था, “ पता नहीं उसने शादी भी की होगी या अभी भी मेरी याद में टेंसुये बहा रही होगी |” हर बार उसका संकल्प और द्रण हो जाता | सौरभ एक अवरेज स्टूडेंट था पर शुरू से ही पढाई में धाकड़ रही एकता के डिस्कशन सुन कर सीनियर डॉक्टर्स बहुत प्रभावित हुए |कई ने तो अपनी दलीलों में उसके पॉइंट्स भी शामिल कर लिए | सारे समय सौरभ बस उसे ही देखता रहा |

शाम के डिनर में भी वो सौरभ से अकेले मिलने से कतराती रही | लेकिन जब वो, सुमित व् कुछ अन्य दोस्तों के साथ खड़ा था | तो एकता अपने एक दोस्त से मिलने के बहाने वहाँ पहुँची | बातों ही बातों में उसने जता दिया कि उसे अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल गया है और कुछ समय बाद वो उससे शादी कर लेगी |

"अरे, हमने तो सौरभ के साथ आपके रोमांस के बड़े किस्से सुने थे " सुमित ने चुटकी ली |

"ओह वो" एकता ने सौरभ की और देखकर हँसते हुए कहा, " वो तो टाइम पास था, आप तो जानते ही हैं मेडिकल कॉलेज की लाइफ कितनी बोरिंग होती है | घर -परिवार से दूर इतनी सारी पढाई करने के लिए थोडा सा सॉफ्ट टच तो जरूरी है |"

"लो जी, तो मैडम का भी टाइम पास था |" सुमित ने फिर चुटकी ली |

हँसते हुए एकता आगे बढ़ गयी | थोड़ी दूर जा कर उसने पलट कर देखा | सारे दोस्त अभी भी हँस रहे थे |

और सौरभ के चहरे पर कलके गर्व मिश्रित भाव के स्थान पर अपमान का भाव था | जैसे किसी ने जोरदार तमाचा उसके गाल पर मार दिया हो | उसकी आशा के विपरीत ... अचानक |

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