आधी दुनिया का पूरा सच
(उपन्यास)
13.
ब्यूटी के दिए हुए कपड़े पहनते ही रानी के मनःमस्तिष्क में एक भयावह कल्पना ने आकार लिया और उसके मुँह से निकल पड़ा -
"इस मैडम ने इतने छोटे कपड़े क्यूँ पहनाये हैं मुझे ?"
कहते-कहते रानी की आँखों में आँसू बहने लगे । तभी कमरे में आकाश नाम के एक पुरुष ने प्रवेश किया और रानी को अपनी बाँहों में भरकर बोला -
"कल रात नेताजी के साथ खूब मजा आया ?"
रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अपना विरोध दर्ज कराते हुए उसकी बाँहों से छूटने के का भरसक प्रयत्न किया । आकाश की बाहों से छूटने के अपने प्रयास में वह पूरी तरह विफल रही । उसकी पीड़ा मुँह के मार्ग से रह-रहकर बाहर निकलना चाहती थी, परन्तु आकाश ने अपना हाथ उसके मुँह पर इतना कसकर रखा था कि कराहने-चीखने का स्वर अंदर ही रह गया और उसकी सारी पीड़ा आँखों के रास्ते बाहर निकलने लगी ।
रानी बहुत कुछ अनुमान लगा चुकी थी कि उसके साथ पिछली रात जैसा ही कुछ होने वाला है ! उसको पिछली रात का ही यह अनुभव भी था कि अपनी पूरी शक्ति के साथ संघर्ष करने के पश्चात् भी वह नेता की क्रूरता से स्वयं की रक्षा करने में सफल नहीं हो सकी थी ! पिछली रात के बुरे अनुभव को याद करने के बावजूद रानी को बिना संघर्ष किये पराजय स्वीकार नहीं थी । अतः रानी ने अपनी पूरी शक्ति के साथ वार्डन का विरोध किया और तब तक करती रही, जब तक कि उसके शरीर ने उसका साथ दिया । लेकिन, रानी का यह विरोध अधिक देर नहीं चला, क्योंकि रानी के तन-मन की अत्यधिक शक्ति तो पिछली रात नेताजी के साथ संघर्ष करने में ही क्षीण हो चुकी थी । रानी के विरोध और ढीली पड़ती हुई उसकी देह को लक्ष्य करके उसके मुँह को दबाये हुए.ही आकाश ने कहा -
"मेरी शायरा बानो, यह सब हमें पसन्द नहीं है ! हमें तो लड़कियों की सिर्फ चटपटी अदाएँ पसन्द हैं !"
"आकाश सर, आप बस थोड़ा-सा सब्र रखिए और मुझे पाँच मिनट दीजिए ! इसको बहुत-कुछ सिखाना बाकी है, पर आप चिन्ता मत कीजिए ! मैं इसको लेकर आती हूँ !"
उत्तर ब्यूटी ने दिया, जो उस समय उसी कमरे के दरवाजे पर खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी । ब्यूटी से अपनी आशा के अनुरूप उत्तर पाते ही वार्डन ने रानी के मुँह से अपना हाथ हटाया और हँसता हुआ उस छोटे कमरे से बाहर निकल गया ।
कमरे से वार्डन के बाहर निकलते ही ब्यूटी ने कमरे में प्रवेश करके एक स्विच ऑन किया, जिससे दीवार पर लगी हुई स्क्रीन ऑन हो गयी और उस पर अश्लील नृत्य की पिक्चर आने लगी । स्क्रीन ऑन होते ही एक बार रानी ने स्क्रीन की ओर देखा और अगले ही क्षण उसने अपनी दृष्टि नीचे कर ली । रानी की नजर नीची होते ही ब्यूटी ने उस पर टोंट मारते हुए हँसकर कहा -
"ए शर्मीली ! उधर देख, तुझे भी ऐसे डांस करना है ! चल कर जल्दी ! डांस करने में आनाकानी या गलती करेगी, मुझे तेरे गाल लाल करने पडेंगे !"
रानी चुप खड़ी रही । वह ऐसा कुछ नहीं कर सकी, जैसाकि ब्यूटी ने कहा था । उसकी आँखों से अभी भी धाराप्रवाह आँसू बह रहे थे,.लेकिन उसके आँसुओं की परवाह न करते हुए ब्यूटी ने उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा और तुरन्त ही दूसरा थप्पड़ मारने के लिए जैसे ही उसने हाथ उठाया, रानी ने भय से काँपते हुए आर्द्र स्वर में कहा -
"करती हूँ ! करती हूँ मैं ! मत मारिए !" ब्यूटी ने.अपना हाथ वहीं पर रोक लिया और हँसते हुए कहा -
"चल, नहीं मारती ! कर डांस ! और हाँ, कोई गलती नहीं होनी चाहिए !"
रानी ने रोते-रोते नाचना शुरू कर दिया । लेकिन वह ऐसा प्रदर्शन करने में पूर्णतः असमर्थ थी, जैसा स्क्रीन पर चल रहा था । ब्यूटी ने स्क्रीन पर चल रहे डांस के कई स्टेप स्वयं करके रानी को बताये और सिखाये । ब्यूटी की मार से बचने के लिए रानी ने अपनी पूरे परिश्रम से उसका अनुकरण किया ।
कुछ मिनटों तक रानी को अश्लील डांस कराने के बाद ब्यूटी हँसते हुए उसका हाथ पकड़कर उस बड़े कमरे में ले गयी, जहाँ पर आकाश के अतिरिक्त दो अन्य पुरुष तथा रानी की उम्र की दो लड़कियाँ पहले से ही मौजूद थी । उस कमरे में भी दीवार पर एक स्क्रीन लगी थी और उस स्क्रीन पर भी एक अश्लील फिल्म चल रही थी ।
कमरे में प्रवेश करती हुई रानी ने देखा, कमरे में उसकी उम्र की दो लडकियाँ उसी तरह अश्लील डांस कर रही हैं, जैसा ब्यूटी ने उसको सिखाया और स्क्रीन पर दिखाया था । वहाँ पर उपस्थित आकाश और दोनों अन्य पुरुष उन दोनों लड़कियों को नोंचते-खसोटते हुए हँस रहे थे ! ब्यूटी ने रानी को कमरे के अन्दर लगभग धकियाते हुए डाँटा -
"चल, आगे बढ़कर डांस कर, जो तुझे सिठाया है !"
रानी के कमरे में प्रविष्ट होते ही तीनों पुरुष बाज की भाँति उस पर झपट पड़े । ब्यूटी अभी भी रानी को भयभीत करके अश्लील डांस करने के लिए बाध्य करती रही और तीनों पुरुष शराब के ज़ाम हाथ में लेकर रानी के साथ डांस करती हुई चारों लड़कियों को जबरदस्ती शराब पिलाते रहे और उन्हें लगातार नोंचते-खसोटते-दाँत काटते रहे । डांस करते-करते थकने के बाद चारों लड़कियों को नशे के इंजेक्शन दिये गये । उसके बाद उन सबके साथ क्या हुआ ? उनमें किसी को कुछ पता नहीं था ।
प्रातः जब रानी की नींद टूटी, रानी ने कमरे में स्वयं को अकेले और नग्न अवस्था में पाया । ब्यूटी, अन्य तीनों लड़कियाँ तथा कोई पुरुष अब वहाँ पर उपस्थित नहीं था । स्वयं को निर्वस्त्र पाकर रानी ने रात में उसके साथ हुए कुकृत्य का अनुमान लगाया और सोचने लगी कि पिछली रात की भाँति वह आज भी स्वयं की रक्षा करने में सफल नहीं हो सकी । रानी की भाँति अय तीनों लड़कियाँ भी रात में उनके साथ हुए कुकृत्यों का अनुमान-भर ही कर सकती थी ।
प्रातः सूर्योदय से पहले ही परिचारिका ने आकर रानी को डाँटते हुए कहा -
"ऐ ! यहीं पड़ी सोती रहेगी ? चल खड़ी हो, अपने कमरे में चल !" रानी उठकर परिचारिका के साथ चल पड़ी । रास्ते में आते हुए परिचारिका ने रानी से कहा -
"किसी से इस बात का जिक्र किया तो जिंदा जमीन में गाड़ दूँगी !"
रानी ने कोई उत्तर नहीं दिया । चुपचाप परिचारिका की साथ-साथ चलती रही और कमरे में आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी । उस दिन भी रानी का पूरा दिन रोते सुबकते हुए बीता ।
रात होते ही निर्धारित समय पर परिचारिका पुनः आ पहुँची और रानी को वार्डन का आदेश सुनाकर अपने साथ चलने के लिए कहा । ना चाहते हुए भी रानी रानी के पास परिचारिका के साथ जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था । न चाहते हुए भी उसे परिचारिका के साथ जाना पड़ा ।
परिचारिका इस रात भी रानी को बालिका-गृह के गेस्ट हाऊस में लेकर गयी । आज वहाँ पर आकाश के साथ एक अन्य पुरुष वाढरा तथा रानी के अतिरिक्त चार और लड़कियाँ थी । आज भी रानी को ब्यूटी के हाथों में सौंपकर परिचारिका उसी समय वापिस चली गयी । आज रानी को ब्यूटी सीधे अतिथिगृह के बड़े कमरे में लेकर गयी थी और वहाँ जाकर वाढरा की ओर संकेत करके बोली -
"आज रात तुझे वाढ़रा साहब को खुश करना है ! ये जो चाहें, जैसे चाहें, तुझे सब करना और इन्हे इतना मज़ा देना है कि इनकी कोई शिकायत न रहे ! वरना, तुझे पता है, मैं क्या ... ?"
रानी मौन खड़ी रही । ब्यूटी निर्देश के साथ चेतावनी देकर कमरे से बाहर निकल गयी और दरवाजा बन्द कर दिया । उस तीसरी रात भी रानी के साथ वही हुआ, जो पिछली दो रातों में हुआ था । अंतर था तो केवल इतना कि आज रात चेहरा फिर बदल गया था । रानी विरोध भी आज रात पिछली दो रातों की अपेक्षा कम कर सकी थी, क्योंकि अब उसके शरीर में शक्ति कम तथा हृदय में निराशा अधिक हो गयी थी ।
अगले कुछ समय तक बालिका-गृह में रानी के साथ हर रात यही कार्यक्रम चलता रहा । परिचारिका रात को निर्धारित समय पर आकर रानी को अपने साथ चलने का आदेश सुनाती और रानी बेबस-लाचार उसके पीछे-पीछे चल पड़ती । परिचारिका द्वारा रानी को अतिथि-गृह में छोड़ दिया जाता और रानी को पूरी रात अश्लील डांस करते हुए आकाश के साथ उसके दोस्तों की नोंच-खसोट और उनकी वासना का शिकार होना पड़ता । जिस रात बालिका-गृह में आकाश और उसका कोई दोस्त नहीं होता था, उस रात वार्डन की वासना को शांत करना रानी की विवशता बन जाती ।
रानी के दिन-रात अपने दुर्भाग्य पर रोते हुए बीत रहे थे। अब उसको वहाँ से निकलने के लिए कहीं कोई आशा की किरण आती दिखाई नहीं पड़ती थी । जीवन में चारों ओर निराशा का घना अंधेरा छाया था !
आकाश और वाढरा के नौंचने-खसोटने के निशानों के अलावा रानी के कोमल शरीर पर कई जगह दाँत काटने के गहरे घाव पड़ गए थे । रानी के शरीर पर उनके दाँत इतने गहरे और इतनी बार गड़े थे कि शरीर के किसी भी अंग को हल्का-सा छूते ही रानी को बहुत पीड़ा होती थी । पीड़ा को सहते हुए आकाश और वाढरा के अत्याचारों के प्रति रानी के हृदय में क्रोध और घृणा के साध प्रतिशोध की भावना धधक उठती थी । वह सोचने लगती थी -
"आने वाली रात को मै उन दोनों की आखिरी रात बनाकर ही दम लूँगी, भले ही वह पल मेरी जिन्दगी का भी आखिरी पल क्यों न बन जाए !"
अत्याचार-अनाचार-दुराचार के विरुद्ध उठ खड़े होने की यह भावना दिन-प्रतिदिन बलवती होती जा रही थी । उसी दौरान एक रात बालिका-गृह के अतिथि-कक्ष में शराब का दौर और अश्लील डांस चल रहा था । अचानक आकाश के दाँत रानी के स्तन पर उसी जगह गड़ गये, जहाँ पिछली रात उसके दाँत गड़े थे । अभी उसका पिछली रात का घाव भी ताजा था कि इस रात फिर उसी घाव पर दाँत पड़ते ही रानी का रोम-रोम असह्य पीड़ा-क्रोध और घृणा से भर उठा ओर उसका हाथ अचानक आकाश के मदिरा से भरे गिलास पर जा लगा । रानी का हाथ लगते ही आकाश के हाथ से छूटकर गिलास फर्श पर गिर पड़ा ।
गिलास गिरने और शराब बिखरने से आकाश के आनन्द में जो व्यवधान आया, उसका दंण देने के लिए उसने रानी के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया । रानी फर्श पर गिलास के टूटे हुए काँच के टुकड़ों पर गिर पड़ी । काँच का एक टुकड़ा रानी के हाथ में चुभ गया, जिससे उसके एक हाथ से रक्त बह चला ।
रानी कुछ क्षणों तक उसी स्थान पर पड़ी रही । कुछ क्षणों के पश्चात् वह काँच का एक टुकड़ा हाथ में लेकर उठी और अपनी पूरी शक्ति के साथ काँच के टुकड़े का नुकीला हिस्सा आकाश के मुँह पर दे मारा । काँच का टुकड़ा आकाश के गाल में घुस गया । काँच घुसते ही उसकी चीख निकली, तो रानी ने कहा -
"अब पता चला, दर्द कैसे होता है ? सोचके देख, तेरी गैंडे-जैसी खाल में जरा-सा काँच चुभने से तू इतना चिल्ला रहा है, तो मेरी इस नाजुक शरीर पर तेरे अत्याचार से कितना होता है ?"
रानी की बात का जवाब देने के लिए आकाश पीड़ा से कराहता हुआ रानी पर झपटा -
जीने लायक नहीं छोडूँगा तुझे ! तेजाब में झुलसवा दूँगा !"
आकाश की गुर्राहट के आतंक से रानी के साथ डांस कर रही लड़कियाँ खिसककर एक कोने में खड़ी हो गयी । आकाश के चीखने-चिल्लाने का स्वर सुनकर वार्डन जल्दी से दौड़कर आया और वहाँ आकाश की हालत देखकर मरहम पट्टी कराने के लिए प्राथमिक चिकित्सा-कक्ष से चिकित्सक को बुलाया ।
आकाश को तड़पते देखकर रानी कुछ क्षणों के लिए अपने हाथ से बहते रक्त और तज्जन्य पीड़ा को भूल गयी थी । उसके हृदय में अपने कृत्य को लेकर किसी प्रकार कोई पछतावा नहीं था, बल्कि संतोष का भाव था । लेकिन साथ ही अपने कृत्य के परिणाम को लेकर धीरे-धीरे उसके मनःमस्तिष्क में भय व्याप्त था और स्वयं को बचाने की चिन्ता होने लगी थी ।
भय से प्रेरित होकर अपने बचाव के लिए रानी के मस्तिष्क में कमरे से बाहर निकल भागने का विचार आया और उसी क्षण उसने उस ओर अपने कदम बढ़ा दिये । रानी ने अपने विचार को कार्य में फलीभूत करने और साहस का परिचय देते हुए अपनी पूरी शक्ति से कमरे से बाहर निकलने का प्रयास किया, लेकिन वार्डन और उसके अन्य कई सहकर्मियों ने, जो आकाश की सहायता के लिए वहाँ पर पहुँच चुके थे, रानी के प्रयास को विफल कर दिया और उस पर वहशी दरिंदे बनकर टूट पड़े । उन्होंने रानी को इतना मारा कि वह अधमरी हो गयी । अत्यधिक पिटाई के बावजूद रानी के प्राण तो बच गए, परन्तु वह अपने पैरों पर खड़ी होने लायक नहीं रही । रानी महीनों तक उन की मार से चीखती-कराहती हुई बिस्तर पर पड़ी रही, लेकिन बालिका-गृह के किसी अधिकारी-कर्मचारी ने डॉक्टर को बुलाकर रानी का इलाज कराने या उसको दवाई दिलाने की आवश्यकता नहीं समझी ।
क्रमश..