राम रचि राखा - 1 - 2 Pratap Narayan Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राम रचि राखा - 1 - 2

राम रचि राखा

अपराजिता

(2)

तीसरे दिन, जब मैंने ऑफिस में अपना मेल बॉक्स खोला तो देखा अनुराग का एक मेल था। सब्जेक्ट में "गुड मोर्निंग" लिखा था-

हेलो वाणी! कैसी हो?

उम्मीद करता हूँ कि घर पर डांस प्रैक्टिस करती होगी। आज मैंने इंटरनेट से सालसा और चा चा चा के कुछ म्यूजिक डाउनलोड किए। मुझे लगता है कि इससे मुझे घर पर प्रैक्टिस करने में मदद होगी। तुम्हें भी भेज रहा हूँ।

सच कहूँ, मैंने डांस क्लास ज्वाइन तो कर लिया था लेकिन आश्वस्त नहीं था कि कितने सप्ताह रुक पाउँगा। लेकिन अब अच्छा लगने लगा है। तुम्हारा सहयोग मुझे प्रोत्साहित करता है। अब तो मन करता है कि रोज क्लास हो।

एक सुखद दिन की कामना के साथ...।

अनुराग

पढ़कर मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट उभर आई। उस दिन बातचीत के दौरान हमने एक दूसरे की इमेल आई डी ली थी। उसका लिखना मुझे अच्छा लगा। मैंने पत्रोत्तर लिखा-

हेलो अनुराग !

सर्वप्रथम मुझे पत्र लिखने के लिये धन्यवाद। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। प्रैक्टिस रोज तो नहीं हो पाती है फिर भी कोशिश रहती है कि जहाँ तक संभव हो कर लूँ।

निःसंदेह इस म्यूजिक के साथ प्रैक्टिस में सुविधा होगी। भेजने के लिये आभार।
तुम्हारा दिन बहुत ही सुखद हो।

वाणी

अगले शनिवार और रविवार की कक्षाएँ बहुत अच्छी रहीं। दो घंटे कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। मेरे और अनुराग के बीच की औपचारिकता धीरे-धीरे खत्म होने लगी थी। हम एक दूसरे के साथ अधिक सुविधा महसूस करने लगे थे।

रविवार को क्लास से निकलने के बाद जब हम पार्किंग में पहुँचे, तब अनुराग ने कहा, "क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें कभी एक साथ कॉफी पीनी चाहिए?"

"खयाल बुरा नहीं है।" मैने हँसते हुए कहा।

"तो चलें ?" उसने अपनी कार का दरवाजा खोलते हुए कहा।

"अभी…?" मैं थोड़ी हिचकिचाई। वास्तव में मैं इसके लिये पहले से तैयार नहीं थी। अनुराग ड्राईविंग सीट पर बैठ चुका था और मेरे बैठने के लिये दरवाजा खोल दिया।

"हाँ, अभी चलते हैं..."

"ओके, लेकिन तुम ऐसे ही जाओगे" मैंने कार में बैठते हुए कहा। उसकी टी-शर्ट पूरी तरह से भींग चुकी थी। उसे बहुत पसीना आता था।

"नहीं, चेंज कर लेता हूँ।" उसने पिछली सीट से एक टी-शर्ट उठाकर सामने रख लिया। सीट को थोड़ा सा पीछे झुकाकर पहने हुए टी-शर्ट को निकाल दिया। उसके चौड़े कंधे और बलिष्ट बाहें लेम्प पोस्ट के प्रकाश से चमक उठीं। मुझे कुछ झिझक सी हुई और मैं सामने देखने लगी।

"मैं यहाँ से जाने से पहले हमेशा चेंज कर लेता हूँ। रास्ते में पसीने से ठण्ड सी लगने लगती है।" उसने दूसरी टी-शर्ट पहनते हुए कहा, "इसलिए जब क्लास के लिये आता हूँ तो एक शर्ट रख लेता हूँ।"

हम लोग कॉफी हाउस चले गये। बातें करते हुए दो घंटे कब बीत गये पता ही नहीं चला। घर लौटते लौटते देर हो चुकी थी। रास्ते भर पिछले चार घंटों के बारे में सोचती रही।

डांस करते समय एक बार जब अनुराग ने मुझे अपनी ओर खींचा था, मैं अपना संतुलन खो दी थी और उनके सीने से जा लगी थी। हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। युगल नृत्य में प्रायः ऐसा होता है कि दोनों लोगों के शरीर एक दूसरे से छू जाते हैं। किन्तु इस बात का अहसास पहली बार हुआ था। मैं प्रायः ही अपने पुरुष मित्रों से हाथ मिलाती थी और गले भी मिलती थी, किन्तु आज उनके सीने से लगने पर एक अलग ही अनुभूति हुई।

अनुराग कम बोलता था। स्वभाव से अंतर्मुखी था। कॉफी हाउस में भी अधिकतर समय मैं ही बोलती रही और वह तन्मयता से सुनता रहा। उसके चेहरे पर उभरते भाव हर बात की प्रतिक्रया बड़ी आसानी से दे देते थे। उसका चेहरा एक आईने की तरह लगता था जिस पर मन का बिम्ब साफ उभर आता था। छोटी-छोटी आँखों की चमक मन में अन्दर तक प्रकाश सी भर देती थी। मैं बात करते हुए इतना सहज महसूस कर रही थी कि जैसे वह कोई पुराना मित्र हो। उसकी बातों में और आँखों में जो मेरे लिये सम्मान दिखता था, वह मन को छू लेता था।

घर पहुँची तो मेरी रूम मेट पूर्वी मेरा इंतज़ार कर रही थी। घर में घुसते ही उलाहना दी "अरे तू कहाँ रुक गई थी?" यह प्रश्न बहुत ही अपेक्षित था, "मैंने इंस्टिट्यूट में भी फ़ोन किया था । पता चला तुम वहाँ से सात बजे ही निकल गई थी"

अपना सैंडल उतारते हुए मैं सोच रही थी कि क्या जवाब दूँ। तभी उसने कहा, "मैडम, आप से ही बातें कर रही हूँ"

अचानक मुझे कुछ शरारत सी सूझी। मैं सैंडल उतारकर बेड पर उसके बिल्कुल करीब आ गई और उसे अपने हाथों में पकड़ कर मुस्कराते हुए बोली, "डेट पर गई थी।"

"हें...रिअली?" वह उछल पड़ी। उसकी आँखे बड़ी-बड़ी हो गई थीं। मैं मुस्करा रही थी। अगले ही पल उसकी खुशी विलुप्त हो गई। वह बोली, "गुड जोक...डेट पर...और वो भी तू...? सही बता न कि कहाँ इतनी देर हो गई थी।"

"अरे कहीं नहीं, वो जो डांस क्लास में मेरा पार्टनर है न, उसके साथ कॉफी पीने चली गई थी।" मैं बिस्तर से उतरकर कपड़े बदलने लगी।

"वैसे मेरे डेट पर जाने में कोई बुराई है क्या?" मेरा मूड बहुत अच्छा था। मैंने उसे छेड़ते हुए कहा, "या तुझे शक है कि कोई लड़का मुझे डेट पर ले जाएगा भी।"

"बुराई तो नहीं है..." मेरी तरफ लगभग घूरते हुए बोल रही थी, "लेकिन किसी लड़के की किस्मत चमके तब न वो तुझे डेट पर ले जा पायेगा...।"

मैं जानती थी कि कभी यदि मैं गंभीरता से भी कहूँ तो भी उसे विश्वास नहीं होगा। उसे पता था कि मेरे कई पुरुष मित्र थे। अधिकतर ऑफिस के और कुछ मेरे कालेज के। कुछ वे लोग भी जिनसे पेंटिंग के सिलसिले में जान पहचान हुई थी। मैं हमेशा ही उसके सामने ही लोगों से बात करती थी। इसलिए उसे पता था कि उन लोगों के साथ मेरे संबंधों की सीमाएँ तय थी। कभी-कभी वह कहती थी, "तेरे इतने फ्रेंड्स हैं, क्या इनमें से कभी किसी ने तुझे अट्रैक्ट नहीं किया?"

बहरहाल पूर्वी से अपनी प्रशंसा सुननी अच्छी लगी थी मुझे।

क्रमश..