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अनाथ लड़की

कितनी मासूम कितनी कोमल हृदय की वह है जो भी देखता है वह दया भाव से भर जाता है, किसे मालूम होता है की जन्म के बाद उसने बाहर क्या-क्या दिन देखे होंगे। ये मना जाता है अनाथ लड़को का गुजारा हो जाता है लेकिन अनाथ लड़कियों का गुजारा बडी मुश्किल होती है। पुरे दुनिया मे जाने कितने लड़के-लड़किया अनाथ है।
उस रोज लछमी बड़ी दुखी भाव से शीतल के घर पहुंची रात के 9 बज रहे थे शीतल ने लछ्मी को देखते ही पूछा इस वक़्त कहा घूम रही हो ये कोई घूमने का वक़्त है उच्ची अवाज मे शीतल ने लछ्मी से कहा। शीतल का हृदय उनके नाम के जैसा ही था तभी लछ्मी को इतना भरोसा था की वो दिल्ली जैसे शहर मे उन्ही के घर इतनी रात को आई लछ्मी ने शीतल को बताया की उसके चाचा उसे बहुत मार रहे है और कही बेच देंगे।
शीतल ने कहा की पुलिस को खबर देते है फिर कोई परेशानी नहीं होंगी। लेकिन लछ्मी रोते हुए कहती है आंटी मुझे रख लो कुछ दिन के लिए, हमारे एक रिस्तेदार है मै उनके यहा चली जाउंगी। शीतल उसे मना ना कर पाई शीतल का एक लड़का था और कोई लड़की नहीं होने के कारण शीतल ने यह सोचा की सायद भगवान ने उसे ये औसर इसी लिए दिया है।
लछ्मी - आंटी अगर आपको भरोसा ना हो तो मेरी
दीदी से बात कर ले।
शीतल - नहीं तुम रह सकती हो ।
लछ्मी के द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर से शीतल ने अपर्णा से बात की जो लछ्मी की बहन थी और उसकी सादी भी हो गयी थी।
लछ्मी का गाँव उत्तर प्रदेश मे था , वह दिल्ली अपने चाचा-चाची के पास रहती थी। उसके माता -पिता के मृत्यु हो जाने के बाद वो वहा गई थी कुछ दिन सब ठीक चला बाद मे उसके चाचा उसे बहुत मारते थे। उस रोज शीतल को बिलकुल समझ मे नहीं आ रहा था की वो लछ्मी के साथ क्या करे , कभी वो ये सोचती की लछ्मी उसके साथ रह जाती है तो वह उसे अपनी लड़की की तरह प्यार करेंगी और उसकी सादी किसी अच्छे लड़के को देख कर करेंगी , लेकिन यह बात सोचने मे जितना आसान मालूम पड़ता है उतना आसान नहीं है। शीतल के पति मानव भी इस बात के बिलकुल खिलाफ है वो यही कह रहे है की लछ्मी को वापस भेज दो , दूसरे की लड़की अपने घर रखना ठीक नहीं है , शीतल को ये बात समझ आ रही है।
शीतल - लछ्मी तुम अपने चाचा - चाची के पास
चली जाओ तुम्हारा इस तरह से बाहर रहना
ठीक नहीं है।
लछ्मी - दीदी मुझे अपने पास बस आज रात के
लिए रख लो आज अगर मै गयी तो मेरे
चाचा मुझे मार देंगे।
शीतल - तुम्हारे चाचा अगर यहा आ गए तो मेरे लिए
प्रॉब्लम हो जाएगी।
लछ्मी - मुझे मरना नहीं (आँखों मे आंसू भरे ) छोटी
सी लड़की जिसे कोई सहारा नहीं कहा जाये
इस दुनिया मे।
वो इतनी परेशान, इतनी छोटी उम्र शीतल फिर हृदय विभोर हो कर
शीतल - मानव रह लेने दो लछ्मी को ।
मानव - (गुस्से से) जैसी तुम्हारी मर्जी।
रात हो गयी थी सभी सो गए। लछ्मी की उम्र भले ही कम थी पर समझ बहुत थी वो ना जाने इतना समझदार कैसे है। उसे सब कुछ समझ आ रहा हो जैसे , सुबह हुई लछ्मी फिर अपनी दीदी (अर्पणा) से बात की जिसमे उसकी दीदी ने उससे कहा कि तुम परेशान ना हो मै तुम्हे अपने पास बुला लुंगी।
अर्पणा शीतल से बात करती है
अर्पणा - दीदी आप लछ्मी को ना भेजो कुछ वक़्त
बाद मै अपने पति को भेज कर उसे बुला लुंगी।
शीतल - ठीक है मुझे प्रॉब्लम नहीं है लेकिन जल्दी
बुला लेना।
अब शीतल , मानव , लछ्मी और उसका छोटा लड़का अंश जो अभी 5 वर्ष का है साथ रहने लगे। सब कुछ अच्छा करने की कोसिस मे शीतल दिन रात परेशान रहने लगी।
अभी दो दिन हुआ था शीतल ने ये सारी बाते पुरवा को बताया , तो उसका भी बिचार यही था की लछ्मी को कही अकेला नहीं छोड़ा जाये। पुरवा शीतल की सबसे छोटी बहन है जो शीतल के मायके मे रहती है। पुरवा ने शीतल से कहा की लछ्मी को वो गाँव भेज दे थोड़े दिन वो यहा रहेगी तो अच्छा रहेगा।
शीतल ने लछ्मी को पुरवा के पास भेज दिया। पुरवा को लछ्मी को अपने पास रखने मे कोई परेशानी नहीं थी लछ्मी को काम करने भी आता जिससे की पुरवा को मदत मिल जाती है। इस तरह से लछ्मी का पुरवा के यहा रहते पुरे एक महीना हो गया, थोड़े दिन बाद ही पुरवा की सादी हो गयी। अब लछ्मी को उसके दीदी अपर्णा के घर भेजने की सोची गयी, जब अपर्णा को फोन किया गया और बताया गया की लछ्मी को अपने घर बुला लो हम लोगो ने इतने दिन आपका इंतजार किया है लेकिन आप लोग आये नहीं। अपर्णा का एक ही जवाब था की हम बुला लेंगे अभी फुर्सत नहीं हमारे पती के पास।जैसे उन्हें फुर्सत मिलेगी मै भेज के बुला लुंगी।
इस तरह रोज के टाल मटोल से महीनों हो गए लछ्मी को यहा रहते। अब अपर्णा ने बात करना भी बंद कर दिया जब फोन किया जाये तो उठे ना।
लछ्मी ना जाने किस स्वभाव की थी ना उसे बच्चा कहा जा सकता था ना बड़ा , लछ्मी को जब पढ़ने के लिए पूछा गया तो उसने मना कर दिया। शीतल का अपना ब्यूटी पार्लर होने के कारण उसने लछ्मी को काम सीखाना चाहा तो उसमे भी उसका मन नहीं लगा , हर तरह का बर्ताव शीतल को परेशान करने लगा , लेकिन शीतल ने लछ्मी को कभी कुछ कहा नहीं।
इस तरह से लछ्मी को रहते हुए पुरे एक वर्ष होने वाले थे। अभी तक लछ्मी के घर से उसे कोई लेने नहीं आया , ना उसकी दीदी ना कभी उसके चाचा आये। जब शीतल ब्यूटी पार्लर चली जाती थी , तब लछ्मी घर पे रहती थी और वह फोन पर किसी लड़के से चुपके से बात करने लगी थी। इस बात की खबर किसी को नहीं थी। शीतल को एक दिन इस बात का पता चल गया।उसको ना जाने कहा से फोन मिला इस बात से शीतल हैरान थी। उस दिन शीतल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था , उसको लगा की उसने लछ्मी को सहारा दे कर उसने कुछ गलत किया है।
लछ्मी की ये आदत थी की अपनी गलती होने पर चुप हो जाती थी फिर कोई कितना भी पूछता रहे लछ्मी एक शब्द भी नहीं बोलती थी लछ्मी को पहली बार शीतल ने थपड मारा था और खूब रोइ भी।
बड़े पूछे जाने के बाद लछ्मी ने सब बताया , जिससे वह बात करती थी उसे फोन करके बुलाया गया। उस लड़के की उम्र 22 से 23 वर्ष रही होंगी रंग काला था और उसने अपना पता बिहार बताया , उसका नाम रानू था।
शीतल - रानू अगर तुम लछ्मी से सादी करना चाहते
हो तो कर सकते हो मुझे बस तुम अपना आधार
कार्ड और फोटो दे दो।
रानू - नहीं आंटी मै अब लछ्मी से बात नहीं करूँगा।
शीतल ने लछ्मी की पूरी कहानी रानू को बताया और कहा तुम चाहो तो अभी ले जा सकते हो।
रानू पेसे से मजदूर था , चार पांच लड़को के साथ एक कमरे मे रहता था , उसने साफ इंकार कर दिया लेकिन लछ्मी उस वक़्त रानू के पास खड़ी थी। शीतल ये कैसे बर्दास्त करती जिस लड़की को उसने इतने दिनों से अपने साथ रख कर उसकि सारी जरूरते पूरी करती रही , आज एक पल मे उसने साथ छोड़ दिया।
रानू ने हाथ छोड़ कर माफ़ी मांगी वो डरा हुआ था चुप चाप वहा से चला गया।
शीतल का क्रोध बढ़ गया उसने लछ्मी को भाग जाने को कहा उसने उसके कपडे और सामान भी फेक दिए।
लछ्मी चुप खड़ी रही। जब शीतल का क्रोध सान्त हुआ तो उसने अपनी बहन पुरवा से बात की
पुरवा - दीदी आप परेशान ना हो , गुस्से से लिए गए
फैसले अच्छे नहीं होते है।
शीतल - इस लछ्मी को रख कर मैंने सही नहीं किया
(रोने लगी )।
पुरवा ने समझाया की उसे थोड़ा वक़्त दे वो कुछ सोच कर इसका हल निकालेगी।
शीतल ने बताया की लछ्मी उस लड़के के साथ भाग जाने की तैयारी मे थी , आज मेरे सामने उस लड़के ने इसे ले जाने से इंकार कर दिया , पता नहीं इनके साथ क्या करता।
पुरवा - दीदी जो हो गया उसको भूल जाओ अभी उसमे
इतनी समझ नहीं है उसको गाँव भेजो।
शीतल लछ्मी को लेकर अपने गाँव आ गयी अब तरह -तरह की बाते दिमाग मे आने लगी क्योंकि लछ्मी को पास रखने का कोई लीगल पेपर भी नहीं था।
पुरवा की बड़ी बहन ने सुझाव दिया की क्यों ना सादी करवा दी जाये , ये सुझाव अच्छा था गाँव मे लछ्मी के लिए लड़का मिलना आसान था।
ये सोचा गया की कोई अच्छी खेती वाला लड़का लछ्मी से सादी कर ले तो इसका जीवन सवर जाये।
जिससे भी सादी होंगी उससे बस इतना ही बताया जाये की लछ्मी अनाथ है , कल को लछ्मी समझदार हो जाएगी तब इसे कोई ताने ना मारे। लछ्मी से भी पूछा गया की वह सादी के लिए तैयार है , उसने हा कह दी।
लड़के देखे गए कुछ उम्र मे बहुत बड़े थे बहुत खोजने के बाद एक लड़का मिला जो लछ्मी के उम्र से तीन वर्ष बड़ा था। उसके घर मे माँ , बहन और भाई बस इतने ही लोग थे , अच्छी खेती थी लड़का मजदूरी भी कर लेता था।
लछ्मी को भी सूरज पसंद है , लेकिन पुरवा ने एक वर्ष रुक जाने को कहा। अगर लछ्मी चाहे तो घर पे रह के सूरज से फोन पे बात कर सकती है। ये बिचार सबको ठीक लगा क्योंकि लछ्मी अभी ज्यादा बड़ी नहीं थी।
एक बार ऐसा लगा की सब कुछ ठीक हो गया है क्योंकि थोड़े ही दिन बाद लछ्मी सूरज से फोन पर बात करने लगी थी।
अब बस इतना काम बच्चा था की लछ्मी का आधार निकल आये , पता चला की बैंक मे निकल सकता है।
पुरवा लछ्मी को बैंक ले गयी कुछ एक जानने वाले के मदत से आधार निकल गया।
पुरवा एक रोज घर पर नहीं थी कुछ काम से बाहर गयी हुई थी , तभी लछ्मी ने रानू को फोन किया और बात की, ये बात सायद ना पता चलती। पुरवा के घर आने के बाद घर वाले नंबर पर ही रानू का कॉल आ गया। पुरवा ने बात की रानू ने बताया की लछ्मी का फोन आया था। पुरवा ने रानू पर बहुत चिल्लाया और लछ्मी पर भी।
रानी ने ये भी कहा कि लछ्मी उसके साथ भागना चाहती है , तुम लोग उसकी सादी कही और करवा रहे हो।
जब ये बाते लछ्मी से पूछी गयी तो वह कुछ बताने को तैयार नहीं थी। पुरवा ने सोच लिया की लछ्मी को अब साथ रखना सही नहीं है।
पुरवा ने चाइल्ड एसोसिएशन मे बात की और एक अप्लीकेशन देकर मंजूर करवाया।
उसमे भी ये था की लछ्मी के घर वाले से बात की जाएगी जो भी रिस्तेदार है अगर वो रखना चाहते है तो रख ले नहीं तो लछ्मी अनाथ आश्रम मे रहेगी जहा उसको पहुंचाया जायेगा और बाद मे उसकी सादी करा दी जाएगी। ये सब जानने के बाद भी पुरवा का मन नहीं था की वो लछ्मी को चाइल्ड एसोसिएशन भेजे , वो ये बात अच्छे से समझती थी की लछ्मी अभी बच्ची है, जब बड़ी हो तो सायद सब ठीक हो जाये।
पुरवा की भी अभी सादी हुए उतने दिन नहीं हुए थे की वो लछ्मी को अपने साथ रख सके।
जिस दिन ये सारी बाते पुरवा ने समझा उसको एक अजीब सा दर्द था , वो डर सी गयी थी , उसे लगता था की कही वो कोई पाप तो नहीं कर रही है।
जब लछ्मी को ये समझाया गयी तो वो तैयार हो गयी जाने के लिए। दूसरे दिन पुरवा लछ्मी को चाइल्ड एसोसिएशन भेज आई। लेकिन लछ्मी को भेजनें का दुख पुरवा को आज भी है , वो भगवान से मांगती है की सब कुछ सही हो लछ्मी के साथ कभी कुछ गलत ना हो।
समाप्त

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