ये दिल पगला कहीं का - 10 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 10

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-10

"जी हां। आपकी अस्वीकृति मुझे मिल चूकी है। फिर भी मुझे यह आभास हुआ है की अपने हृदय की बात आप तक पहूंचाना मेरे लिए परम आवश्यक है। इसके पीछे आपके निर्णय को बदलने की मेरी कोई योजना नहीं है। हां मगर यह अवश्य चाहता हूं कि अपने इस प्रयास से हमारे भावि रिश्ते की कोई भी संभावना बनती है तो यह मेरी उपलब्धि होगी।" निर्मल बोला।

"मगर मैं एक बार निर्णय ले चूकी हूं। इससे पलटना मेरे लिए असंभव है।" शिखा बोली।

"मेरी आपसे यह भेंट किसी दबाव अथवा आपको परेशान करने के उद्देश्य से कतई नहीं है। मैं यह चाहता हूं कि जो मैं आपके विषय में समझ सका हूं वह आपको बताऊं।" निर्मल सीधे उद्देश्य पर आने को लालायित था।

"मगर इससे क्या लाभ होगा? आप मेरी प्रशंसा में कुछ बढ़ा-चढ़ाकर कुछ कहेंगे। मुझे प्रभावित करने की हरसंभव कोशिश करेंगे। और मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता।" शिखा ने काॅफी का अंतिम घूंट खत्म करते हुये कहा।

"शिखा जी। में यह तो नहीं कह सकता कि मैं आपकी प्रशंसा नहीं करूंगा। जो वास्तविकता मुझे अनुभव हुई वह मैं स्वीकार कर चूका हूं। आपको भी सुनना चाहिए।" निर्भीक निर्मल बोला।

"ठीक है। कहिए जो आपको कहना है।" अधीर शिखा बोली।

"मैंने अपने विवाह हेतु बहुत सी लड़कीयां देखी। सुन्दर और सुशील। सभी तरह की। कुछ तो मुझसे भी अधिक सफल है अपनी लाइफ में। एक दो लड़कीयां मुझे पसंद भी आई थी। जिनसे विवाह होने की पुरी-पुरो संभावना भी बन रही थी।" निर्मल बोला।

"फिर क्या हुआ?" शिखा बोली।

"मेरी तरफ से भी हां ही थी। बस कुछ समय चाहिए था हमें, एक-दूसरे को जानने-समझने का। रितुपर्णा बहुत खुले विचारों की थी। उसे अपनी स्वतंत्रता अत्यंत प्रिय थी। जिसे बनाएं रखने के लिए वह हर संभव प्रयास करने और कुछ भी कर गुजरने वाली लड़कियों में से थी।" निर्मल ने बताया।

"इसमें मुझे कोई गल़त नही लगा। सभी को स्वतंत्रता से जीने का पुर्ण अधिकार है।" शिखा बोली।

"सही कहा। किन्तु स्वतंत्रता और मनमानी में अंतर होता है। स्वतंत्रता मर्यादित हो तब रूचिकर लगती है किन्तु मनमर्जी के व्यवहार से परहेज करना चाहिए।" निर्मल ने तर्क दिये।

"आप लड़के लोग भी तो अपनी स्वतंत्रता से किसी भी तरीके का समझौता नहीं करते हो। लड़कीयां यह सब करे तो इसमें आपको इतनी आपत्ति क्यों है?" शिखा बोली।

"जो युवक ऐसा करते है मैं उनका भी विरोध करता हूं। स्वतंत्रता के साथ संयमित आचरण और उच्च आदर्शों का परिपालन या समर्थन एकसाथ हो तो एक बेहतर जीवन जीया जा सकता है।" निर्मल ने आगे कहा।

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं आपकी इच्छानुसार एकदम फीट बैठती हूं।" शिखा अब निर्मल की बातों में रूचि लेने लगी थी।

"शिखा! मुझे लगता है कि विवाह, जिसे एक बंधन भी कहा गया है, इसे नियमों का बंधन कहूं तो अनुचित नहीं होगा। पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार एक-दूसरे के हितार्थ होना चाहिए। जिसके लिए उन दोनों के मन में विवाह संबंध के प्रति गहन आस्था का होना आवश्यक है। विवाह एक औपचारिकता भर न हो। इसमें दोनों के पारिवारिक सदस्यों और स्वंय वर-वधु की प्रसन्नता और अनुमति परम आवश्यक है। इसके परिणामस्वरूप ही यह बंधन संबंध बनकर आगे बढ़ेगा और सफलता प्राप्त करेगा।" निर्मल बोल रहा था। शिखा ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी।

"जहां तक तुम्हारी बात है तो मुझे तुम्हारी विवाह के लिए असहमती ने प्रभावित किया है। व्यक्ति को न कहना भी आना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मुझे इससे पहले लड़कियों ने न की हो! मगर मुझे उन लड़कियों की न में उनके भविष्य के प्रति चिंता दिखाई दी। जबकी तुम्हारी न में एक असीम आत्मविश्वास था। मानो तुमने अप्रत्यक्ष रूप से मुझे यह बता दिया हो कि तुम मुझसे ही नहीं अपितु अभी किसी भी लड़के से शादी नहीं करना चाहती। तुम अपने भविष्य के प्रति आशान्वित हो और हो सकता कि किसी मुकाम पर पहुंचने के बाद ही तुम शादी करो?" निर्मल ने बताया।

"ऐसा नहीं है। मुझे कोई भी बंधन अपने लक्ष्य को हासिल करने से रोक नहीं सकता।" शिखा बोली।

"ये तो ओर भी अच्छी बात है शिखा! देखो। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करने के लिए तैयार हूं।" निर्मल ने कहा।

"निर्मल! आप निश्चित ही एक अच्छे इंसान है और मुझे विश्वास है कि आप एक अच्छे पति सिध्द होंगे। किन्तु अभी विवाह के लिए में तैयार नहीं हूं। और मैं यह भी नहीं चाहती कि आप मेरा इंतज़ार करे!" शिखा बोली।

"शिखा! मुझे समझने में यहां तुम चूक गई।" निर्मल ने कहा।

"वह कैसे?" शिखा ने पुछा।

"मैंने यह अवश्य कहा कि मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करने के लिए तैयार हूं किन्तु तब जब तुम मेरे प्रति सकारात्मक सोच न बना लो तब तक। उस पर यह भी की मैं वैवाहिक जीवन जीने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तैयार हूं। और चूंकि मैं भी एक सामाजिक प्राणी हूं अतएव एक निश्चित समय तक मैं तुम्हारी प्रतिक्षा करूंगा तदउपरांत अपने लिए उचित जीवन साथी तलाश कर उससे विवाह करना मेरे लिए न्याय संगत होगा।" निर्मल बोला।

"लेकिन आपको तो मैं युनिक लगती हूं। सबसे अलग। फिर मेरे जैसी लड़की क्या आपको मिल पाएगी?" शिखा ने व्यंग्य कसां।

"शिखा! हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिन्दगी मेंsss! मैंने अपना जीवन बेहतर बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया है और आगे भी करता रहूंगा। मुझे यह भी विश्वास है कि जिस प्रकार मुझे किसी की तलाश है ठीक उसी तरह किसी को मेरी भी तलाश होगी?" निर्मल बोला।

"इसका अर्थ है कि आप किसी से भी विवाह करने के लिए तैयार हो जायेंगे?" शिखा ने पुछा।

"नहीं। जो मुझसे विवाह करने को तैयार होगी अंततः मुझे उसे स्वीकार करना होगा। अधिक बेहतर की अभिलाषा में कम बेहतर भी हाथ से निकल सकने की पुर्ण संभावना बनी रहती है।" निर्मल बोला।

"तब आप यह निर्णय मुझसे मिलने से पहले भी ले सकते थे।" शिखा बोली।

"जरूर ले सकता था। किन्तु आखिर में मैं भी सामान्य आदमी हूं। एक प्रयास करने भर से यदि तुम्हारी जैसी लड़की जीवनसाथी के रूप में मिल जाए तो इससे अच्छी बात मेरे लिए और क्या होगी?"

निर्मल बोला।

"युं मीन! मेरे इन्कार के बाद आप अन्यत्र विवाह कर लेंगे?" शिखा ने पुछा।

"जी हां! लेकिनssss?" निर्मल बोलते-बोलते रूक गया।

"लेकिन क्या? " शिखा ने पुछा।

"मुझे यह भरोसा हो जाये कि तुम मुझसे विवाह नहीं करोगीं तब निश्चिंत होकर मैं अन्यत्र विवाह कर सकूंगा।" निर्मल ने बताया।

"निर्मल! आपसे इतनी सारी बातें करने और आपके विचार जानने के बाद भी यदि मैं आपसे शादी न करूं तब निश्चित ही यह अनुचित होगा। आप जैसा समझदार जीवनसाथी मिलना सौभाग्य की बात है।" शिखा ने निर्मल से शादी करने की सहमति दे दी।

"आज मेरी प्रसन्नता का छोर नहीं है। मुझे स्वीकार कर तुमने अपना बड़प्पन दिखाया है।" निर्मल उत्सुक था।

"विवाह की शेष बातें अब हम अपने-अपने घरवालों को करने दें तो उचित होगा।" शिखा कुर्सी से उठते हुए बोली। दोनों ने हाथ मिलाकर विदा ली।

निर्मल मुस्कुरा रहा था। उसका यह प्रयास सफल हो चूका था।

जैसे-जैसे न्यूज चेनल पर इस रियलिटी शो के एपीसोड प्रसारित हो रहे थे। अभय और डिम्पल से मिलने के लिये होड़ मच गयी थी। अगली कहानी नई दिल्ली से आई थी--

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विभा ने किया ही क्या था, जिसके कारण समाज उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था? उसका दोष मात्र इतना था कि विवाहिता होते हुये उसने अश्विन से प्रेम किया। क्या हुआ यदि वह दो बच्चों की मां थी? प्रेम तो कभी भी, किसी से भी, कहीँ भी हो सकता है। विभा यही विचार कर स्वंय के निर्णय को सही स्वीकार लेती। पति रामभरोसे सरल, शांत संकोची स्वभाव के थे। न विभा ने और न ही बच्चों ने अपने पिता का क्रोध कभी देखा था। अश्विन को बच्चों ने भी अपना लिया था। क्योंकि जितना प्रेम बच्चों को रामभरोसे से मिला उतना अश्विन भी दे रहा रहा था। रामभरोसे सदैव कामकाज में व्यस्त रहा। घर बार के विषय वह अनभिज्ञ था। जब विभा ने अपनी गृहस्थी में अश्विन को प्रवेश दिया तब भी रामभरोसे ने आशानुरूप इसका विरोध नहीं किया। अश्विन ने रामभरोसे को उसके ही घर से बेदखल कर दिया और स्वयं दो पले-पलाये बच्चों का पिता बन बैठा। पास-पड़ोस में इस अनोखे परिवार को लेकर बहुत कानाफूंसी होती। रहवासियों ने विभा से दुरी बना ली। वे नहीं चाहते थे की विभा का चाल-चलन उनके परिवार के भावि व्यवहार को प्रभावित करे। अश्विन अब गृह स्वामी था। विभा सामाजिक भेदभावी व्यवहार को सहजता से सह रही थी। रामभरोसे को छोड़ उसने अपना सर्वस्व अश्विन को मान लिया था। स्कूल में बच्चों के पिता का नाम रामभरोसे ही प्रचलन में था और रहवासी भी जानते थे कि बबलू और चिन्टू का वास्तविक पिता रामभरोसे ही है। इसलिए भी विभा ने रामभरोसे को घर में कभी-कभार आने-जाने की स्वीकृति दे रखी थी। अश्विन को इस बात से कोई ऐतराज नहीं था। लम्बे समय से स्वयं के विवाह की बांट जोह रहे अश्विन ने विभा को अपना जीवनसाथी बनाना अधिक सरल लगा। विभा और रामभरोसे के बीच आये दिन की अनबन से अश्विन परिचित था। प्रथम विवाह से असंतुष्ट विभा उसके लिये आसान शिकार थी। अश्विन और रामभरोसे अक्सर साथ में खाना खाने बैठते। वह भी विभा के हाथों से बना हुआ। बच्चें बड़े हो रहे थे। उन्हें यह सब तब तक ही अच्छा लगा जब तक लोगों ने उनके कान भरना शुरू नहीं करे दिये। हिन्दी फिल्म का 'मेरे दो-दो बाप' हिट डाॅयलाॅग बोलकर बच्चें उन दोनों भाईयों को चिढ़ाने लगे। जिनसे बबलू और चिन्टू नाराज हो जाते। वे चिढ़चिढ़े भी हो गये थे। विभा ने उन दोनों को समझाने का बहुत प्रयास किया। उसने अश्विन से भी मदद मांगी। किन्तू बाल मन को समझाने इतना सरल कार्य नहीं था। मोहल्ले वाले विभा के विरूध्द हो चूके थे। यहां तक एक दिन अश्विन को अवसर पाकर रहवासियों ने पीट दिया। पुलिस ने आकर मोर्चा संभाला। अश्विन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। विभा के लिये यही सही समय था अपने व्यवहार को सुधारने का। उसने रामभरोसे से माफी मांगी। रामभरोसे ने विभा को क्षमा कर दिया। दोनों पुनः एक हो गये।

क्रमश..