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फ्रेंड विथ बेनिफिट्स

- एफडब्ल्यूबी

लाइफ में अच्छे दोस्तों का होना बहुत ज़रूरी है, बाकी उतना ही ज़रूरी है कुछ खुरापाती दोस्तों का भी होना। क्योंकि आज ज्यादातर लोग दोहरी ज़िंदगी जी रहे हैं। पहली - वो जो वे लोगों की नज़रों में हैं यानी समाज के सामने जिस चेहरे, चरित्र के साथ जी रहे होते हैं। दूसरी वह जो अकेले में बंद कमरे में जीते हैं अपने अंतर्द्वंद्व के साथ। और उसी जीवन को वह जीना चाहता हैं अपने खुरापाती दोस्तों के साथ। सो ऐसे दोस्त तो सबकी लाइफ में हों ही जिनसे वह बिना किसी संकोच के मन की सारी बातें कह डालें।

यार लाइफ़ झंड सी लगने लगी है, करो बे कुछ!
तुम लोग बस साले खाने पीने के समय ही याद किया करो। पेल के खाओ और बिल मेरे लिए छोड़ जाओ। और जब लाइफ़ मेरी लेने लगी तो ? हम सबके लाइफ़ में कुछ ऐसे खुरापाती दोस्त हों ही जिनसे सारी बातें बिना टेंशन के कह दीं जाएँ। बाकी मैं शुरू से ही काफी इंट्रोवर्ट रही हूँ। बाकी अपने आप को जो हम अपनों के सामने दिखा रहे होते हैं, उतना असल में कितने प्रतिशत रहते होंगे ? ये खुद से सवाल करने पर ही पता चल पाएगा। बाकी ये सब किसको पड़ी है! सो लेट्स एन्जॉय योर लाइफ़।

मेरी लाइफ़ स्कूल से कॉलेज और फिर यूनिवर्सिटी। स्कूलिंग एक बोरिंग सी गर्ल्स स्कूल में हुई और कॉलेज लाइफ़ उससे थोड़ी कम बोरिंग रही। क्योंकि ये भी गर्ल्स कॉलेज ही था। पढ़ाई में नार्मल स्टूडेंट्स से थोड़ी ठीक पढ़ने वाली थी। बारहवीं कक्षा में धोखे से सही स्कूल टॉपर बन गयी। मेडल और कुछ पैसे भी मिल गए। कुछ शॉपिंग करी और बाकी के पैसे मम्मी को दे दी। लिफ़ाफ़े में इक्कीस सौ जो मिले थे। बाकी जब कुछ स्कूल में आयोजन होता खेल कूद या और कुछ तो। प्लेट। गिलास वगैरह वगैरह सम्मान में मिला करता। इसीलिए भी गाँव के बच्चे ज्यादा किसी में रुचि नहीं लेते है। भई! सम्मान के नाम पर आप मेडल, सील्ड की जगह प्लेट, थाली को ट्रॉफी समझ कर देंगे तो कोई क्या ही तीर मार लेगा ? अगर कभी मुझे प्रिंसिपल बना देते तो पूरा मेडल और ट्राफी बाँट कर बच्चों का हौसला बढ़ाती, ताकि वे अपनी मेहनत की सम्मान को किचन में रखने के बजाय किसी आलमारी, सज्जा पर सजाते और आने जाने वाले मेहमान भी देखते। देखो कितने मेडल, ट्रॉफी हैं। ख़ैर! छोड़ो अब वह परंपरा बदल गयी होगी। मैंने तो एक सलवार सूट और एक टी, शर्ट लोवर ख़रीदी थी, पंद्रह सौ का बिल बना और मम्मी को बाकी के छः सौ दे दी थी। ताकि जब कॉलेज में जाऊँ तो ख़र्च के काम आएंगे। सोची शहर के बड़े से कॉलेज में पढूंगी ख़ूब सारे दोस्त होंगे। लेकिन यार!

बहुतों के घर वाले ये सोच लेते हैं कि स्कूल में था तो बच्चा हमारे आसपास ही था, अब कॉलेज में अलग - अलग प्रकार के लोगों से सामना होगा। और आजकल की दुनिया में क्या घट रहा है ये सोशल मीडिया और पड़ोस की आंटीज़ को ज्यादा पता होता है। इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है हम जैसे को! मम्मी तो पापा को बोल ही दी - "सुनो जी आयशा को गर्ल्स कॉलेज में ही भेजो"। आजकल की दुनिया के लोगों का कोई भरोसा नहीं। कैसे - कैसे लड़के आते होंगे कॉलेज में"
पापा बस हाँ! कहके चुप रह गए और उनके हाँ में, मैं अपने ना को भी हाँ में बदल दी। कॉलेज के तीन साल जैसे तैसे बीते। गणित लेकर टॉप करो और ज़माने के डर से आर्ट्स में ग्रेजुएशन कर लेना मात्र मजबूरी ही तो थी। घर वालों को कौन समझाए की वयस्क होने के साथ हम समझदार भी होते जाते हैं। समझ सकते हैं अपने लिए अच्छा बुरा। मोबाइल और लड़के दोस्त ही किसी को नहीं बिगाड़ देते हैं। घरेलू और बहुत संस्कारिक जीवन जीना आज के ज़माने में बस किसी पुराने ख्याल के लोगों द्वारा नई पीढ़ी पर थोपा जाने वाला ख़्वाब है, जो उनके नज़रों के सामने ही दिखावे के लिए जिया जाता है।

ग्रेजुएशन पूरा कर लिया, अब यूनिवर्सिटी तो जाना ही था। मेरी गणित और इंग्लिश अच्छी थी। सो आर्ट्स के बाद गणित तो पढ़ नहीं सकते। एम.ए इंग्लिश में सीट मिल गयी। एडमिशन हुआ और क्लास भी शुरू।
क्लास के बाहर नोटिस बोर्ड में मेरिट लिस्ट देखी टॉप थ्री में मैं सेकेंड नंबर पर थी। फस्ट में कोई आरोही सिंग सेकंड में मैं आयशा और थर्ड में था, आर्यन। ऐसे जब लिस्ट जारी होती है तो नाम के बाद सरनेम और डेट ऑफ बर्थ को पहले ही देख लिया जाता है। एम.ए क्लास का पहला दिन और 29 स्टूडेंट्स क्लास रूम के अंदर क्योंकि यहाँ की तीस सीटों में एक सीट पाना ही अपने आप में ओलंपिक में मेडल जीतने जैसा होता था। एक स्टूडेंट के लिए मैम ने क्लास रोक कर रखी थी। 5 मिनट तक सब क्लास में शांत ही बैठे रहे। फिर दरवाजे के बाहर से आवाज़ आयी। मेआई कम इन मैम ? वाईट शर्ट और ब्लेक पेंट, पैरों में ब्लेक कलर की शू और हाथ में पट्टे वाली ब्लेक टाइटन की घड़ी। कंधे पर कॉलेज बैग। क्लास की सारी लड़कीयाँ दरवाजे के बाहर उस लड़के को देख रही थीं। वैसे तीस सीट में बीस लड़की और दस ही लड़के थे। और दस में ये टॉप का बंदा था। मैम ने कहा, स्टॉप नो एंट्री! व्हाई आर यू लेट ? टूडे इस फ़स्ट डे! यश और नॉट ? सॉरी मैम। दीस इज़ माय फस्ट एंड लास्ट मिस्टेक। नेक्स्ट टाइम नो मिस्टेक मैम।
- Hopefully... Ok come...

लड़के का पूरा हूलिया ही मैं बता दिया, इसका मतलब ये नहीं कि मेरी आँखों में इसकैनर है। बस मैं फ़स्ट बेंच पर बैठी थी। इस क्लास में नंबर के आधार पर सीट मिलती है। सो मैं जिस बेंच पर बैठी थी उसी के बगल में आर्यन आकर बैठा। और पूरी क्लास की लड़कीयों की नज़रें मेरी बेंच पर। एक लंबी बेंच पर तीन स्टूडेंट्स बैठा करते थे। सो टॉप थ्री पहली बेंच पर। क्लास सबके इंट्रो से स्टार्ट हुई। पहली. आईएम आरोही सिंह। । फिर मेरी बारी आयी। मैं बोली आईएम आएशा फिर दीस इस आर्यन सिंह। और सबने बारी बारी से अपना इंट्रो दिया। आज की क्लास इंट्रो पर खत्म और कल से सिलेबस स्टार्ट होगा। मैम ने वाईट बोर्ड में डस्टर चलाते हुए कहा।

दूसरी दिन क्लास स्टार्ट हुई। इंग्लिश लिटरेचर मेरे लिए एकदम नया था। एक नाम जो सबसे ज्यादा सुनी थी, माल गुड़ी डेज के राइटर के आर.के. नारायण का। और फिर क्लास में अपनापन सा लगा। पापा की आज याद आयी। उनके साथ ही तो बचपन में टीवी सीरियल देखा करती थी। माल गुड़ी डेज के लक्ष्मण के बचपन और उनके दोस्त। । रोलर मशीन, डॉक्टर और न जाने कितनी ही कहानी देख बड़े हुए थे। वापस फ्लेशबैक से क्लास में आयी तो। आर.के. नारायण बारे में बातें शुरू हुई और पूरी क्लास में उनकी बायोग्राफी और उनके लिटरेचर पर बातें हुई। क्लास होती रही दिन बीते टेस्ट के दिन आये। जो टॉप थ्री थे, पोजिशन में थे उनके नंबर बरकरार रहे, एग्जाम हुए और जो टॉप थ्री थे, भी हम तीन ही। मेरे लिए तो ये यूनिवर्सिटी लाइफ़ अलग ही थी एकदम से गर्ल्स कॉलेज के बाद लड़कों वाले क्लास में बैठना, पढ़ना नया अनुभव था। अब तक सभी लड़कियों से बातें सामान्य रूप से होती रही। एक दिन का क्लास मिस कर गायब रहने वाले लड़के, आर्यन ने मुझसे पूछा। कल की क्लास में क्या हुआ प्लीज़ बताओगी ? शांत सी रहने वाली मैंने न जाने कैसे कह दिया ? बदले में कैंटीन में चाय पिलाओगे, कुल्हड़ वाली ? उसने हँस कर ओके कहा और मेरी नोट का कॉपी कर थैंक्स बोला और बोला - लेस्ट गो, कैंटीन फ़ॉर कुल्हड़ चाय ? मैंने कहा - ओह! मज़ाक से कहा था। नहीं लगता। मैं रिश्वत नहीं लेती। और वो हँसकर बोला। ओह! इतना हैंडसम लड़का चाय के लिए बोल रहा वादा पूरा कर रहा और तुम हो की ? मैं बोली हुज़ हैंडपंप बॉय ? और हम दोनों हँस दिए।

कैंटीन में चाय के साथ कुछ बातें हुईं उतनी ही जितनी पहली बार में होती हैं। नेम सेम। कैसे ग्रेजुएशन का एक्सपीरियंस और और लाइफ में कोई है ? वाली बात। आर्यन बहुत फ्रेंक लड़का है। सबके सामने तो कभी इतनी बातें करते नहीं देखी थी। शायद आज हम दोनों ही खूब बातें कर रहे थे। बात के दौरान हम कैसे किस लिंक को कहाँ से जोड़ बातें करते रहते हैं, पता ही नहीं चलता, वक्त बीतता गया और हम और भी अच्छे दोस्त बनते गये।

यूनिवर्सिटी की कैंटीन की चाय अब शाम किसी कैफे में होने लगी और नोट्स ग्रुप स्टडी के चलते हम किसी लायब्रेरी में भी पढ़ते मिल सकते थे। क्योंकि घर वालों को पीजी के लिए मुझे यूनिवर्सिटी भेजना ही पड़ा था और यहाँ के हॉस्टल में निर्धारित समय में पहुँचना ही होता था। मैं तो शुरू से ही अपने समय की पंचुवल थी। क्लास के बाद एक दिन हम शाम एक कैफे में बैठे थे। इस कैफे की एक खास बात ये थी कि ये एक बड़े से जगह में बना था। क्या गज़ब के क्लासिक डेकोरेशन था। ओल्ड इस गोल्ड पूरा। शुरुआती दौर का टेलीफोन, टीवी, कंदील, बांस से बनी कुर्सी टेबल वगैरह सब उसी दौर में ले गए थे। हम अवशेष वस्तुओं से ही तो उस दौर के दृश्य को महसूस कर सकते थे।

उस कैफ़े में एक टेबल हमारे लिए बुक था। एक ऐसा कोना जहाँ लैंप लाइट धीमी रोशनी में जल रही थी, चंदन की खुशबू से वो कोना महक रहा था। एक बार आर्यन के पूछने पर मैंने बताया था कि चंदन की खुशबू बहुत पसंद है मुझे। और आज इस सुंदर से कैफे में अपनी सबसे पसंदीदा खुशबू को जी रही हूँ। जब भी ये चंदन की खुशबू आती है मुझे माँ और स्कूल की वो टीचर रेणु कश्यप याद आती है। मेरे जिद पर माँ ने एक दिन स्कूल ड्रेस में चंदन की इत्र लगा दिया था। क्योंकि मुझे पता था कि उस दिन कश्यप मैम की क्लास नहीं रहती। शुक्ला मैम की अपसेन्ट में कश्यप मैम खाली क्लास में आयी और मैं क्लास से बाहर कर दी गयी थी क्योंकि जितना मुझे कश्यप मैम पसंद नहीं थी उससे ज्यादा उनको इत्र पसंद नहीं थे।

एक ऐसे जगह में आज मैं अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ बैठ चाय पी रही हूँ, जहाँ चंदन की खुशबू है और अपनापन। मैं पढ़ाई में तेज तो थी लेकिन दुनियादारी की बातों को इग्नोर कर देती थी। प्यार का तो मैं सोची नहीं थी कभी लेकिन एक झुकाव जरूर महसूस किया था। आर्यन के लिए। चंदन इत्र की ख़्वालों में खोई हुई मैं। आर्यन ने जब कहा क्या लेंगी मैम ? वेटर पूछ रहा! मैं बोली जो आप मंगाएंगे आप अकेले ही खाएंगे। हमें तो बस एक कुल्हड़ वाली चाय चाहिए, मेरी इस अंदाज़ पर वेटर ने हल्के से मुस्कुराते हुए आर्यन से पूछा - सर आप ? चाउमीन और एक कोल्ड कॉफी। फिर आर्यन एक कॉल आया। ऑडर के आते तक मैं टेबल पर रखे पुराने उंगली से नंबर घुमाने वाले टेलीफोन से खेलने लगी। आर्यन आकर कुर्सी पर बैठा ही और ऑर्डर भी आ गया। मैं कुल्हड़ चाय उठाई और पीने लगी। आर्यन फोक स्पून से चाउमीन खाने लगा कोल्ड कॉफी पीते हुए। आर्यन ने एक बात कही। जो मुझे इसलिए ठीक से शुरू में समझ नहीं आयी क्योंकि मैंने इससे पहले तक ऐसी बातें न की थी न ही बस एकात बार सुनी थी।

आर्यन बोला आई लाइक यू आयशा। मैंने बात को हँसी में टाली क्योंकि आर्यन ऐसे मज़ाक कभी कर देता है। लेकिन आज गम्भीरता दिखी। मैंने भी कहा आई आल सो लाइक यू। इसीलिए हम यहाँ साथ बैठे है और चाय पी रहे हैं, या बट! आर्यन ने जोर देकर कहा। एफडब्ल्यूबी मैंने आश्चर्य से पूछा! क्या मतलब ? एफडब्ल्यूबी मीन्स ( फ्रेंड्स विथ बेनेफिट्स ) सच बताऊँ तो मुझे जरा भी पता नहीं था। मैंने हँसते हुए कहा। हम फ्रेंड्स है इसी लिए तो यहाँ बैठे साथ चाय पी रहे है। आज मेरी टिप थी तो तुमको आज पैसे नहीं देने है। बेनिफिट्स तो है।

आर्यन मेरी आँखों में शिकायत की नज़रों से देखा, जैसे पूछ रहा हो तुम्हें सच में नहीं पता ? कि फ्रेंड विथ बेनिफिट्स क्या होता है ? मेरे मन में चल रही इस बात को उसने कहा भी... मैंने कहा, जब तुम क्लास नहीं आ पाते तो मेरी नोट्स कॉपी कर लेते हो। एक बेनिफिट ये है। जब तुम्हारा पहली बार ब्रेकअप हुआ था उस समय तुम्हारी लाइफ को वापस ट्रैक पर लाने में हेल्प की। कितने ही बेनिफिट्स हुए है तुमको।
अब और क्या बेनिफिट ?

- यार आई नीड फिजिकल रिलेशनशिप। और आर्यन 2 मिनट तक खामोश रहा। थोड़ी देर में बोला, आई नो दैट, दीज़ आर फॉरेन कॉन्सेप्ट! मैंने बीच में कहा ओह्ह! और उसने कहा - आर यू मैरी मी ?
आर्यन दिल का बहुत अच्छा था और पढ़ाई में भी हम दोनों ही नेट के लिए साथ एग्जाम दिए थे और आज सुबह ही रिजल्ट जारी हुआ था और हम दोनों ने असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए निर्धारित अंक को पा लिया था। मेरा नंबर ज्यादा था सो आज की टिप मेरी थी।
मैंने कहा, ये सब चार दिन वाला लाइफ नहीं पसंद। प्रोफेसर साहब शादी करना है तो बताओ ? और आर्यन को नौकरी और छोकरी दोनों मिल गयी। हम दोनों ने घर वालों की मर्ज़ी से शादी कर ली। और लाइफ इस गोइंग वेल। मैं फ्रीलांस में ट्रांसलेशन करती हूँ और आर्यन पीएचडी कर एक प्राइवेट कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है।


- तेज साहू

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