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सफाई-मंडली


ब से छुट्टियां हुईं हैं, बोर हो गया हूं। मन ही नहीं लगता। ऐसा लगता है जैसे बिल्कुल निकम्मा हो गया हूं। करूं तो क्या करूं? मनीष बड़बड़ाता हुआ इधर से उधर घूम रहा था कि मां ने आवाज दी।


- अभी आया मां, कह कर मनीष मां के पास गया जोकि रसोईघर में थी।


-कहिए मां, क्या काम है? मनीष ने पूछा।


- बेटा, अब तुम्हारी छुट्टियां हो गई हैं। अब तुम्हें घर के काम में मेरी थोड़ी मदद करनी चाहिए।


- हां मां जरूर करूंगा। मैं तो खुद ही कुछ करना चाहता हूं। बताइए क्या करुं?


- यह देखो, मैंने घर का सारा कूड़ा-करकट एक थैली में भर कर रखा है। तुम जाकर इसे फैंक आओ।


मनीष ने देखा मां ने सब्जियों के छिलके, व्यर्थ कागज के टुकड़े, टूटा-फूटा प्लास्टिक का सामान आदि सारा कचरा एक ही थैली में भर रखा था।


यह देखकर मनीष बोला - यह क्या मां, मैंने समझाया था ना कि इस तरह हर प्रकार का कूड़ा -करकट एक साथ नहीं भरते। उन्हें छांटकर अलग-अलग थैलियों में भरना चाहिए था।


- बेटा घर में और कई काम भी तो रहते हैं। उसी चक्कर में सब भूल जाती हूं। आज तो फेंक आओ। मैं आगे से ध्यान रखूंगी।


मनीष ने कचरे की थैली हाथ में पकड़ी और बोला - मगर कचरा फेंकना कहां पर है? कचरा पात्र कहां है?


- बेटा, हमारे मोहल्ले में कचरा पात्र नहीं है इसीलिए मोहल्ले वाले सामने के खाली मैदान में ही कचरा फैंकते हैं। तुम भी ये कचरा उसी मैदान में फेंक आओ।


आठवीं कक्षा के विद्यार्थी मनीष को मां की यह बात नागवार गुजरी। उसने अपनी पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ा था कि हमें कूड़ा-करकट उचित स्थान पर ही फेंकना चाहिए। इधर-उधर कूड़ा-करकट फेंकने से गंदगी तो फैलती ही है तथा कई तरह की बीमारियों को भी बढ़ावा मिलता है। उससे यह भी पढ़ा था कि नगर में सफाई की व्यवस्था रखना नगरपालिका की जिम्मेदारी है और इसके लिए उसे स्थान-स्थान पर कचरा-पात्र लगवाने चाहिए।


- फिर हमारे मोहल्ले में कचरा पात्र क्यों नहीं है? हो सकता है नगर पालिका का ध्यान हमारे मोहल्ले की ओर गया ही नहीं हो। जब पूरे देश में स्वच्छता -अभियान जोर-शोर से चल रहा हो, हमारा मोहल्ला गंदा रहे यह ठीक नहीं।


पर मरता क्या ना करता मजबूर था इसलिए वह कचरा फेंकने मैदान की ओर चल दिया। उस मैदान में पहले से ही कचरे का एक बड़ा ढेर था। उसी में एक-दो गायें भी खड़ी थीं और वह उसी कचरे के ढेर में मुंह मार रही थीं।


बेचारी गायें, सब्जियों के छिलके आदि खाद्य-सामग्री खाने के चक्कर में प्लास्टिक की थैलियां भी चबा रहीं हैं। ऐसे तो ये बीमार हो जाएगीं और फिर ये मर भी सकतीं हैं -मनीष सोच ही रहा था कि सामने से उसे विकास आता दिखाई दिया।


वह भी उसी मैदान में कचरा फेंकने आया था। मनीष ने विकास को कहा - क्या इस तरह हमारा यहां कचरा फेंकना गलत नहीं है? क्या हमें इस कचरे के ढेर को यहां से हटाना नहीं चाहिए?


विकास ने कहा -है तो ये सरासर गलत। पर हम इसे यहां से कैसे हटा सकते हैं?


- क्यों ना हम एक पत्र लिखकर नगरपालिका के अध्यक्ष तक पहुंचा दें? वह हमारी इस समस्या का अवश्य ही कोई हल निकालेंगे ,मनीष ने कहा।


विकास ने कहा - बात तो तुम्हारी ठीक है। ऐसा हो भी जाएगा परंतु तुम तो जानते हो कि ऐसी कार्यवाही होने में थोड़ा समय तो लगता ही है। तब तक क्या ये सब ऐसे ही चलता रहेगा?


विकास की बात सुनकर मनीष ने कहा - नहीं, यदि ऐसा ही चलता रहा तो हम शीघ्र ही कई नई समस्याओं की चपेट में आ जाएंगे जैसे - मक्खी, मच्छर व अन्य कीटाणु तथा वायु प्रदूषण आदि। सुनो, मेरे दिमाग में इस समस्या-निवारण का एक तत्कालीन उपाय आया है।


- वह क्या?


- जब तक हमारे मोहल्ले में कचरा पात्र नहीं लग जाता क्यों ना हम बच्चे मिलकर इस समस्या को सुलझा दें।


-वह कैसे?


- हम सब बच्चे मिलकर एक ग्रुप बनाएंगे जिसका नाम होगा - सफाई वाले बच्चे। अभी हम सब बच्चों की छुट्टियां भी हैं इसलिए हम सब यह काम आसानी से कर सकते हैं। हम सभी घरों से कचरा इकट्ठा करेंगे तथा फिर उसे एक गड्ढे में डाल कर जला देंगे।


- उपाय तो अच्छा है, मगर यह काम इतना आसान नहीं है। हो सकता है हमारे घर वाले हमें यह काम करने ही ना दें और मुझे लगता है कि वह हमारी कचरा यहां नहीं फेंकने की बात भी इतनी आसानी से नहीं मानेंगे ।


मनीष ने कहा - उसका भी उपाय है मेरे पास, कहकर वह मन ही मन मुस्कुराया और विकास को अपने पीछे आने की कह कर अपने घर की ओर चल दिया।


अगले दिन सुबह सब ने देखा कि उस कचरे वाले खाली मैदान के पास वाली दीवार पर एक पोस्टर चिपका हुआ था जिस पर लिखा था -


सावधान! नगरपालिका-अध्यक्ष का आदेश है कि आज के बाद कोई इस मैदान में कचरा नहीं डालेगा। यदि कोई दोषी पाया गया तो उसे ₹500 जुर्माना भरना होगा और उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी की जाएगी


पोस्टर देखकर पूरा मोहल्ला सकते में था कि अब क्या करें? बहुत से मोहल्लेवासी कचरे से भरी थैलियां लेकर उस मैदान में फेंकने आए परंतु वह पोस्टर देख कर उलटे पांव लौट गए।


- अब कचरा कहाँ फेकेंगे, अभी वे यह सोच ही रहे थे कि एकाएक पूरे मोहल्ले में टनाटन घंटियां बज उठीं। कई साइकिल-सवार मुंह पर कपड़ा बांधे मोहल्ले भर में घूमने लगे। वे घर-घर जाकर आवाज़ लगा रहे थे - सफाई-मंडली आई है, कचरा दे दो।


मोहल्ले वाले पोस्टर देखकर यह तो समझ ही गए थे कि अब खाली मैदान में कचरा फेंकना खतरे से खाली नहीं है इसलिए उन्होंने अपने-अपने घरों का कचरा उन साइकिल -सवारों को देने में ही अपनी गनीमत समझी। हालांकि वे कौन हैं, यह पहचानना उनके लिए मुश्किल था क्योंकि वे सब मुंह पर कपड़ा बांधे हुए थे।


कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। रोज साइकिल सवार मोहल्ले में आ जाते और कचरा इकट्ठा करके ले जाते। इसी बीच में मैदान का कचरा भी सूख गया था और एक दिन बच्चों ने चुपचाप उस कचरे को भी जला दिया। अब मोहल्ला साफ सुथरा लगने लगा था।


एक सुबह जब मनीष इसी काम के लिए अपनी साइकिल लेकर जा रहा था तो उसकी मां ने पूछा - आजकल रोज सुबह-सुबह साइकिल लेकर कहां जाते हो?


मां की बात सुनकर मनीष हंसने लगा और बोला - कहीं नहीं मैं बस यूं ही। समझ लो अपने ही काम से ।


दिन यूं ही बीत रहे थे कि एक दिन मनीष और उसके साथियों ने देखा कि उनके मोहल्ले में नगरपालिका अध्यक्ष आए हैं। नगर पालिका अध्यक्ष ने पूछा -क्या यही मीरा नगर है। हमें यहां से एक पत्र मिला है कि यहां सफाई की व्यवस्था ठीक नहीं है परंतु यह मोहल्ला तो बहुत ही साफ-सुथरा लग रहा है। लगता है इन्हें हमारी व्यवस्था की जरूरत नहीं।


- नहीं साहब, जरूरत है। वरना जब हमारी छुट्टियां खत्म होंगी, यह मोहल्ला फिर से गंदा हो जाएगा। फिर बच्चों ने सारी बात अध्यक्ष महोदय को बताई किस तरह से वे सफाई वाले बच्चे बनकर सारा कूड़ा-करकट इकट्ठा करके एक स्थान पर ले जाकर जला देते हैं।


उन्होंने अध्यक्ष महोदय को ये भी कहा - माफ करिए ! हमें यह काम करने के लिए आपके नाम का सहारा भी लेना पड़ा फिर उन्हें वह पोस्टर जो मोहल्ले वालों को डराने के लिए उन्हें लगाना पड़ा था, दिखाया।


सारी बात सुनकर अध्यक्ष महोदय मुस्कुराए भी और ही मन ही मन शर्मिंदा भी हुए कि नगरपालिका की जरा सी लापरवाही की वजह से बच्चों को कितना कार्य भार उठाना पड़ा था। उन्होंने बच्चों से कहा -माना कि ऐसे पोस्टर लगाना गलत है पर इसमें गलती हमारी भी है । काश! कि हमने वक्त पर अपने काम पर ध्यान दिया होता तो तुम्हें यह झूठा पोस्टर नहीं लगाना पड़ता।


उन्होंने अगले ही दिन मीरा नगर में कचरा-पात्र रखवा दिया तथा समय-समय पर उसकी सफाई का निर्देश भी दे दिया।


अब तक मोहल्ले वाले भी सारी बात समझ चुके थे। वे बोले - कई बार बच्चे हम बड़ों से ज्यादा समझदार और जागरुक होते हैं और क्यों ना हो वही तो भारत के भावी नागरिक हैं। आज इन बच्चों ने हमारी आंखें खोल दी हैं क्योंकि इस मामले में हम सब भी उतने ही दोषी हैं जितनी नगरपालिका। हम चाहते तो जो काम बच्चों ने कर दिखाया है हम बड़े भी कर सकते थे परंतु अपनी सुविधा और आलस की वजह से हमने यह नहीं किया। बस आंख-मीचे खाली मैदान में कचरा फेंकते रहे।


इस पर मनीष बोला - कोई बात नहीं, हम सब वक्त पर संभल गए यही सबसे अच्छी बात है और यदि आप लोग अनुमति दे तो हमारा सफाई-वाला ग्रुप अगली छुट्टियों में अपना यह अभियान फिर जारी रखना चाहेगा ताकि अन्य मोहल्लों में भी सफाई की अलख जगाई जा सके।


-हमें मंजूर है -सब एक साथ बोले। फिर पूरे मोहल्ले में यह नारा गूंज उठा - सफाई-मंडली, जिंदाबाद।


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