दीवाली का उपहार Kusum Agarwal द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दीवाली का उपहार

पिया और उसके परिवार को ‘आकाश-गंगा’ सोसाइटी में शिफ्ट हुए एक महीना ही हुआ था। यह सोसाइटी शहर के बाहर बनी एक नई सोसाइटी थी। पिया के पापा ने अपनी कुछ जमा पूंजी तथा बैंक-लोन दोनों पैसों मिलाकर यहां एक घर खरीदा था।


यह सोसाइटी बहुत सुंदर थी तथा सभी तरह की आधुनिक सुविधाओं से भी परिपूर्ण थी परंतु पिया की मां का मन अभी तक इस सोसाइटी में नहीं लगा था। यहाँ अभी तक उनकी किसी पड़ोसी से अच्छी तरह जान पहचान भी नहीं हुई थी।


कई बार तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता था यहां के लोग कुछ घमंडी हैं तथा उन्हें एक दूसरे से बोलने की फुर्सत ही नहीं है। या फिर यह भी हो सकता था वे बोलना ही नहीं चाहते हो? इस सोसाइटी के निवासी अधिकतर नौकरी-पेशा स्त्री-पुरूष थे जो दिन भर तो ऑफिस में रहते और शाम को घर आकर अपने घरेलू कामकाज में व्यस्त हो जाते थे। पिया की मां यह भी सोचती कि उनके मुझसे ना बोलने का एक कारण यह भी हो सकता है कि वे सभी कुछ आधुनिक हैं जबकि मैं एक सीधी-सादी घरेलू महिला जो कि सारे दिन अपने घर के कामकाज में व्यस्त रहती हूं।


हां एक बात अवश्य अच्छी थी कि पिया की मां खाली समय में अपने छोटे-मोटे शौक पूरे कर लेती थी जिससे उसको ये अकेलापन अधिक महसूस नहीं हो रहा था। परंतु फिर भी उसे लोगों से मिलना-जुलना और बातें करना भी अच्छा लगता था और यहां वह किससे दोस्ती करे, उसे समझ नहीं आ रहा था।


कई बार तो उसे लगता था कि उन्हें इस सोसाइटी में घर नहीं लेना चाहिए था। इससे पहले वे एक पुराने मोहल्ले में रहते थे जहां हर घर एक दूसरे से सटकर बना हुआ था। वर्षों से वहां रहने के कारण सबकी एक-दूसरे से अच्छी पहचान थी तथा आते-जाते एक दूसरे से हंसना-बोलना उस मोहल्ले की परंपरा ही बन गई थी। वहाँ सभी लोग मिल- जुल कर रहते थे तथा सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे जिसमें बड़ा मजा आता था।


आज भी पिया की मां को अपने पुराने मोहल्ले की बहुत याद आ रही थी क्योंकि दीवाली का त्योहार आ गया था परंतु अभी तक इन सोसाइटी में कोई चहल-पहल नहीं थी। ड्यूटी पर जाने- आने का वही पहले वाला ढर्रा अभी भी चल रहा था।


खैर कोई कुछ भी करे, पिया की मां ने अपने घर में त्यौहार की तैयारी हमेशा की तरह जोर-शोर से कर ली थी। अब वह पिया की मदद से घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाने जा रही थी।


- पिया, रंगोली के रंग तथा चॉक ले आओ। आओ अब हम अपने घर के मुख्य द्वार पर रंगोली सजा दें , उन्होंने पिया को आवाज़ लगाई। पिया को भी रंगोली बनाने का बहुत शौक था। वह झटपट रंग और चॉक ले आई। पिया की मां ने चॉक से जमीन पर एक सुंदर आकृति बना दी तथा फिर उसे रंगोली के सुंदर रंगों से भर दिया। इस तरह जल्दी ही घर के मुख्य द्वार पर सुंदर रंगोली तैयार हो गई।


अभी रंगोली बनकर तैयार ही हुई थी पड़ोस की सीमा भाभी उधर से गुजरीं।


- अरे वाह! इतनी सुंदर रंगोली । बहुत सुंदर रंगोली बनाती हैं आप, उन्होंने पिया की मम्मी को कहा। मुझे भी रंगोली बनाने का बहुत शौक है परंतु मुझे इतनी सुंदर रंगोली बनानी नहीं आती है और ना ही मेरे पास इतना समय है क्योंकि मुझे रोज ड्यूटी पर जाना पड़ता है। काश! कि मेरे घर के मुख्य द्वार पर भी इतनी सुंदर रंगोली बन पाती।


- यदि आप चाहें तो मैं और पिया मिलकर आपके घर के मुख्य द्वार पर भी रंगोली बना देंगे, पिया की मां ने कहा।

यह सुनकर सीमा भाभी खुश हो गई।

-सचमुच! आप बना देंगी? हां ,हां क्यों नहीं, मैं अवश्य बनवाना चाहूंगी- यह कहकर वह पिया और उसकी मां को अपने घर ले गई। पिया और उसकी मां ने वहां भी बहुत सुंदर रंगोली बना दी। इतनी देर में वहां रेखा भाभी भी आ गईं। सुंदर रंगोली देख कर उनकी भी इच्छा हुई मेरे घर के आंगन में भी ऐसी रंगोली बने। उन्होंने पिया की मां से आग्रह किया कि वे उनके घर भी चलें और रंगोली बना दें।


धीरे-धीरे पूरी सोसाइटी में यह बात फैल गई की पिया की मां को बहुत सुंदर रंगोली बनानी आती है। फिर क्या था जिस-जिसकी इच्छा थी, उस-उसके घर जाकर पिया और उसकी मां ने सुंदर रंगोली बना दी।


आज पिया की मां बहुत खुश थी क्योंकि उसकी बहुत लोगों से जान-पहचान हो गई थी जिससे त्यौहार का अकेलापन भी खत्म हो गया था। शाम तक पिया और उसकी मां ने तकरीबन 15 घरों में रंगोली बना दीं।


तब मोहल्ले की औरतों ने पिया की मां से कहा- आपने बड़ी मेहनत से हमारे घरों में रंगोली बनाई है इसलिए हम आपको इसका काम का कुछ पारिश्रमिक देना चाहते हैं।


परंतु पिया की मां ने लेने से इंकार करते हुए कहा- नहीं, मैं इसका पारिश्रमिक नहीं ले सकती। भला अपने परिवार के काम का भी कोई पारिश्रमिक लेता है क्या? दीवाली के अवसर पर मेरी आप सबसे दोस्ती हो गई, यही बस मेरा सबसे बड़ा पारिश्रमिक है।


अगले दिन दीवाली थी। पिया की मां ने लक्ष्मी पूजन की पूरी तैयारी कर ली थी। अब वह हाथ-मुंह धो कर कपड़े बदलने ही जा रही थी कि अचानक दरवाजे पर जोर से खटखटाहट हुई।


पिया की मां ने दरवाजा खोला और देखा कि उस के दरवाजे पर मोहल्ले की वह सभी औरतें खड़ी हैं जिनके घर में उसने रंगोली बनाई थी।


- दीवाली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं! सभी एक साथ बोलीं।


पिया की मां ने सब को अंदर बुलाया और पिया को आवाज दी - पिया, देखो कौन आया है। आओ सब को नमस्ते करो और फिर सबके लिए नाश्ता भी लगा दो।


इतने सारे मेहमानों को घर पर आए देखकर पिया और उसकी मां दोनों खुश थीं। पिया ने झटपट सब मेहमानों के लिए नाश्ता लगा दिया। नाश्ता कर के सभी महिलाएं खड़ी हो गई तथा एक उपहार पिया की मां को देते हुए बोली- यह हमारी ओर से आपके लिए दीवाली का तोहफा है। कृपया इसे स्वीकार करें वरना हम समझेंगे कि आप हमें अपना नहीं मानती हैं। अब पिया की मां मना नहीं कर सकी।


सभी के जाने के बाद पिया और उसकी मां ने उपहार खोलकर देखा तो आश्चर्य-चकित रह गईं। उसमें पिया की मां के लिए एक सुंदर साड़ी और पिया के लिए एक सुंदर फ्रॉक थी। फिर क्या था, दीवाली पूजन के वक़्त दोनों ने उपहार में मिले हुए अपने नए वस्त्र पहन लिए।


पूजन के बाद पिया व पिया के पापा- मम्मी सब को मिलने के लिए सोसाइटी में निकल गए। आज उन्हें यह नई सोसाइटी भी अपने पुराने मोहल्ले जैसी ही अच्छी लग रही थी।


अब पिया की मां को यह भी समझ आ गया था कि उसने इस सोसाइटी के लोगों के प्रति जो धारणा बना ली थी, वह गलत थी। वे आधुनिक, घमंडी या व्यस्त नहीं थे बल्कि सच्चाई तो यह थी कि जान-पहचान होने में थोड़ा समय तो लगता ही है।


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