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गुब्बारों की एकता

रामू गुब्बारे वाले ने गुब्बारे फुलाने शुरू किए। वह एक-एक के बाद एक ढेरों गुब्बारे फुलाता चला गया। फिर वह उन सब गुब्बारों को एक कमरे में बंद करके कुछ देर के लिए बाहर चला गया।


रामू के जाते ही कमरे में बंद गुब्बारे कुछ देर तो चुपचाप बैठे रहे पर फिर वे आपस में झगड़ा करने लगे।


लाल गुब्बारे ने हरे गुब्बारे को कहा- थोड़ा पीछे हटो। मेरे ऊपर क्यों चढ़े आ रहे हो? देखते नहीं मेरा पेट कितना फूला हुआ है। रामू ने बहुत सी हवा भर दी है मेरे पेट के अंदर और तुम हो कि मुझे चैन से लेटने भी नहीं दे रहे हो। जाओ, अरे हटो भी।


लाल गुब्बारे की बात सुनकर हरे गुब्बारे का भी पारा चढ़ गया। वह बोला- मैं कहाँ जाऊँ? देखते नहीं यह पीला गुब्बारा कब से मेरे नीचे पड़ा हुआ मुझे गुदगुदी कर रहा है। उसी की वजह से तो मैं बार-बार हिल-डुल रहा हूँ। इधर-उधर तिल धरने की जगह भी नहीं है। मैं खिसकने की सोच भी नहीं सकता।


हरे गुब्बारे की बात सुनकर पीला गुब्बारा भी बोल उठा- ओ भाई हरे गुब्बारे! तुम कब से मेरे सिर पर सवार हो। मैं तुम्हें इसलिए गुदगुदी कर रहा हूं ताकि तुम मेरे सिर पर से उतर जाओ तुम हो कि लाल गुब्बारे से झगड़ा कर रहे हो।


धीरे धीरे कमरे में पड़े सभी गुब्बारे आपस में इसी तरह झगड़ा करने लगे। कोई कह रहा था मेरा दम घुट रहा है। कोई कह रहा था मेरे बदन पर रगड़ लग रही है। हर गुब्बारे की अलग शिकायत थी और सबसे अधिक शिकायत तो उन्हें रामू से थी जो उन्हें फुलाकर इस कमरे में बंद कर गया था। सारे गुब्बारे ठीक उसी प्रकार से झगड़ा कर रहे थे जैसे बहुत से शरारती बच्चों को किसी ने एक कमरे में बंद कर दिया हो। कोई किसी का साथ पसंद नहीं कर रहा था।


अभी वे आपस में लड़-झगड़ ही रहे थे कि रामू लौट आया। रामू को आया देखकर सभी गुब्बारे चुप हो गए। रामू अपने साथ कुछ सामान लाया था। उसने वह सामान कमरे में एक ओर रख दिया तथा इत्मीनान से बैठ गया। कुछ देर आराम करने के बाद उसने रंग-बिरंगे गुब्बारों को जोड़ना शुरू किया। गुब्बारों को जोड़कर उसने उन्हें एक लंबाकार आकृति दे दी। फिर उसने उस आकृति के ऊपर अपने साथ लाए हुआ खरगोश का सिर लगा दिया तथा नीचे एक प्लास्टिक का स्टैंड। अब बहुत से गुब्बारे मिलकर एक एक बड़े लुभावने खरगोश की आकृति बन गए थे। धीरे-धीरे सभी गुब्बारों को जोड़ कर रामू ने इस तरह की चार आकृतियां तैयार कर लीं।


अपनी कला देखकर रामू बहुत खुश था। अब वह आकृतियां गुब्बारों के रंग-रंगीले खरगोश लग रहे थे। शीघ्र ही रामू उन्हें लेकर एक प्रदर्शनी की ओर चल पड़ा।


प्रदर्शनी हॉल के बाहर एक बहुत सुंदर हरा-भरा लॉन था। प्रदर्शनी के आयोजकों के कहने पर रामू ने वह चारों गुब्बारों वाले खरगोश उस लॉन में सजा दिए।


प्रदर्शनी में आते-जाते लोग जब उन गुब्बारों को देखते तो उनके मुंह से निकलता- वाह! कितनी सुंदर सजावट है। भला गुब्बारों का कोई ऐसा रूप कैसे बना सकता है? यह तो आश्चर्यजनक है? ऐसा आकृति बनाने के लिए बहुत सारे गुब्बारों को इकट्ठा करना जरूरी होता है।


सभी गुब्बारे भी हरे-भरे मैदान में आकर बहुत खुश थे। वे अपनी प्रशंसा सुनकर फूले नहीं समा रहे थे।


अभी भी नीले गुब्बारों के ऊपर लाल तथा उनपर पीले गुब्बारे सवार थे परंतु अब किसी को किसी से शिकायत नहीं थी क्योंकि उन्हें यह बात समझ में आ गई थी कि उनके इकट्ठे मिलजुल कर एक साथ रहने से ही उनकी सुंदरता बढ़ी है।


वे सब मुस्कुरा कर आते-जाते अतिथियों का स्वागत करने लगे।

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