औरतें रोती नहीं
जयंती रंगनाथन
Chapter 17
मन्नू की जिंदगी का का-पुरुष
फरवरी 2007
मीटिंग लंबी चली। महिला कल्याण विभाग की मीटिंग जल्दी खत्म हो सकती थी भला? मन्नू सुबह जल्दी जगी थी। इस समय उसे इतनी नींद आ रही थी कि आंखें खुली रखना मुश्किल हो रहा था। मीटिंग खत्म होते ही वह झटपट उठकर बाहर आ गई।
सुशील उससे पहले बाहर आ चुके थे। मन्नू को देखते ही उसके पास आ गए और बहुत मुलायम आवाज में पूछने लगे, ‘‘कैसी हो? कुछ सीखने को मिला मीटिंग में। नीरजा जी तो बहुत अच्छा बोलती हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं। कालका जी और गोविंदपुरी के आसपास की झुग्गियों में वे काफी काम करती हैं। मैं बात करूंगा उनसे। तुम उनके साथ जाया करो वहां। पब्लिक में दिखना चाहिए तुम्हें...’’
मन्नू धीरे से मुस्कराई। अपनी इस नई भूमिका में उसे मजा आने लगा है। वह ठीक-ठाक भाषण दे लेती है। सुशील कहते हैं कि उसमें एक किस्म की स्वाभाविकता है। सुशील उम्र में मन्नू से काफी बड़े हैं। बीसेक साल। लेकिन एकदम बलिष्ठ शरीर। घनी मूंछें। सफेद। सिर पर घने बाल हैं, जिन्हें हमेशा रंगवाकर रखते हैं। हल्के रंग का पजामा और चैक वाला कुर्ता पहनते हैं। इन दिनों ठंड की वजह से खादी का कोट डाले नजर आते हैं। कंधे पर सफेद किनारी वाला शॉल। दोनों हाथों में घड़ी बांधते हैं। चार अंगूठी। मन्नू से भी कह रहे हैं कि अपने ज्योतिषी के पास ले चलेंगे। बहुत अच्छी कुंडली बांचते हैं।
मन्नू की आंखों में अजीब सा नशा तिर आया है। सुशील ने जैसे ही उसे गर्म चाय का कप पकड़ाया, उसने कुछ झुककर शुक्रिया कहा। धीरे-धीरे चाय पीते हुए मन्नू ने गौर किया कि सुशील के बिल्कुल पीछे वो आ खड़ी हुई है- अस्मिता सोनी। उसने सुशील के बिल्कुल करीब जाकर कुछ कहा। सुशील के चेहरे पर अजीब से भाव आए, फिर वे सिर झटकते हुए तेजी से वहां से चले गए।
मन्नू को पता था, दो महीने पहले तक सुशील और अस्मिता के बीच बड़े मधुर संबंध थे। अस्मिता तीसेक साल की चुस्त युवती थी। शादीशुदा। एक बच्चे की मां। अस्मिता के जेठ और सुशील बचपन में साथ पढ़े थे। एक बार किसी शादी में मुलाकात हुई तो सुशील ने अस्मिता को समाज सेवा और फिर राजनीति में आने का निमंत्रण दे डाला। अस्मिता फौरन तैयार हो गई। घर-बार से अलग हो गई। मन्नू ने सुना था कि वसंत कुंज के जिस महान में वह रहती है, वह भी सुशील का ही है।
सुशील चारेक साल रहे अस्मिता के साथ। बहुत तरह के फायदे कराए। फिर आ गई मन्नू। अधेड़ मन्नू। छोटे कद की। अपने को फिर से समझने की कोशिश करने वाली एक स्वतंत्र नारी। अब वह साड़ी पहनती है, पहले की तरह लदर-फदर सलवार कमीज में नहीं रहती। पिछले दिनों सुशील के ही साथ फैब इंडिया से कुछ सिल्क् और कॉटन की साड़ियां खरीद लाई है। न जाने कैसे मन हुआ कि ब्यूटी पार्लर जाकर बाल भी सीधे करवा आई। पद्मजा ने पहले ही उसे बालों को कलर करना सिखा दिया था। महीने में एक बार खुद आईने के सामने खड़ी होकर वह लॉरियल हेयर कलर लगाती है। आइब्रो भी बनवाती है। कभी-कभार स्लीवलेस पहनती है, इसलिए वैक्सिंग भी करवाने लगी है। मन्नू को कभी-कभार खुद आश्चर्य होता है कि वह इतनी जल्दी इतना कैसे बदल गई?
कोई शिकायत नहीं। जिंदगी पहले से कहीं ज्यादा रोमांचक है। आने वाला दिन गुजरे दिन से कहीं अलग है। उसकी पहचान बन रही है। जिंदगी में देर से ही सही, जीने का मकसद तो मिला।
मन ने पूछा कई बार- क्या वाकई उसे समाज सेवा करके आनंद आता है?
मन्नू ने टटोला। कहा- हां। उसे अच्छी तरह पता था कि यह सही जवाब नहीं है। लेकिन अब अपने मन को वह मनवाने लगी है कि दूसरों की सेवा, खासकर अनजान आदमियों के लिए लड़ने में उसे मजा आता है। वह अपने लिए कुछ नहीं चाहती। कुछ भी नहीं। बस अच्छा दिखने के लिए कुछ महंगी साड़ियां, एकाध सोने के गहने और ठीक-ठाक लाइफ-स्टाइल मिल जाए, और क्या चाहिए।
चाय खत्म हो चुकी थी। वह सधे कदमों से कप रखने आगे बढ़ी। उसी की तरफ चली आ रही थी अस्मिता। मन्नू बचकर चल देना चाहती थी, पर अस्मिता एकदम सामने आ खड़ी हुई और दोनों हाथ जोड़कर बोली, ‘‘नमस्ते दीदी।’’
मन्नू ने उसकी तरफ देखा। आंखें चौकन्नी। सतर्क और एक किस्म की ललकार। अस्मिता उसे पसंद नहीं करती। उसे अपना प्रतिद्वंद्वी मानती है या फिर सौत?
मन्नू को हंसी आ गई। सुशील की पत्नी है अभी, साथ ही रहती है। तीन लड़के हैं। तीनों शादीशुदा। पोते-पोती वाले हैं सुशील। लेकिन अस्मिता और मन्नू के लिए अब भी बांके जवान ही हैं।
‘‘क्या दीदी, मुस्करा रही हो? कोई बात हो गई क्या? हमारी नमस्ते का जवाब नहीं दिया...’’ अस्मिता की आवाज बहुत पैनी थी, तीखी और सूखी।
मन्नू जरा सा डर गई। यह औरत उससे चाहती क्या है?
उसने धीरे से कहा, ‘‘तुम पहली बार यूं पास आकर नमस्ते करोगी, तो अजीब तो लगेगा ना। अभी तक तो हमारा ठीक से किसी ने परिचय भी नहीं करवाया। बस नाम पर पता है तुम्हारा।’’
‘‘दीदी, यह तो पता लोगा न कि सुशील जी से हमारा क्या रिश्ता है? पता नहीं आप तक कैसी बात आई है, आपको कितना बताया, किसने बताया। हम ही बताए देते हैं दीदी, हम उनकी, एक तरह से कहें तो रखैल हैं। पिछले चार साल से अपना घर-बार, पति-बच्चा छोड़कर सुशील के साथ रह रहे हैं। उन्होंने भी पूरा साथ दिया। लेकिन अब बदल गए हैं... वजह मालूम है या वो भी मैं ही बताऊं?’’
मन्नू की रीढ़ की हड्डी में सिहरन सी दौड़ गई। आगे क्या कहेगी यह पगली औरत?
अस्मिता ने मन्नू का हाथ् पकड़ लिया, कसकर। हाथ का कसाव बढ़ा और मन्नू छटपटा गई। अस्मिता अचानक फुफकारी, ‘‘देख मन्नू, तेरे से मेरी कोई दुश्मनी नहीं। मैं सब जानती हूं तेरे बारे में। तेरा पति गुजर गया, सालों तू अपने जेठ का बिस्तर गर्म करती रही। होता है... ऐसा होता है कई बार। तेरी गलती नहीं। पर मेरी किस्मत। सुशील लट्टू हो रहा है तेरे पीछे। मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी। तेरे लिए मुझे छोड़ रहा है। मुझे... मैंने उसके लिए क्या-क्या नहीं किया। स्साला, कुत्ता... जब जी चाहा, मुझे नंगा करके बाजार में खड़ा कर दिया। जानना चाहोगी कैसे इस्तेमाल किया उसने मेरा? तुम कर पाओगी ऐसा? क्या है तुम्हारे पास? ढलती जवानी, उजड़ा रूप...’’
अस्मिता हांफने लगी। मन्नू ने जोर लगाकर अपना हाथ छुड़वा लिया। कलाई पर लाल निशान पड़ गए थे। अस्मिता का एकालाप डराने लगा था। अगर कहीं उसने गला ही दबा दिया तो? तेजी से उसने नजरें दौड़ाई। खुले मैदान में सैकड़ों चेहरे थे। इन सबके सामने तो कुछ कर नहीं पाएगा अस्मिता उसका। हां, सुशील से बात करनी ही होगी उसे...
मन्नू तेजी से पीछे हुई और लगभग भागती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई। सीधे टकराई सुरुचि एन.जी.ओ. की नीरजा शर्मा से। लगभग उसकी उम्र की भव्य महिला। मन्नू को पसंद करती हैं। नीरजा ने एक हाथ से रोककर पूछ लिया, ‘‘कहां से आ रही हो हांफती हुई। सब ठीक तो है? कैसी लगी आज की मीटिंग?’’
मन्नू ने संयत किया अपने आपको। वह खुद भी नीरजा के साथ काम करना चाहती है। बहुत कुछ सीख पाएगी। नीरजा कितनी अच्छी और धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलती हैं। मन्नू को अजीब लगता है। पद्मजा भी तो इसी तरह फर्राटे से इंग्लिश बोलती थी।
मन्नू ने नीरजा का हाथ कसकर पकड़ लिया और सांस को काबू में करके बोली, ‘‘मीटिंग अच्छी रही। ...सच कहूं, तो आधी बातें समझ में ही नहीं आईं।’’
नीरजा हंसने लगी, ‘‘तुम्हारी यही बात अच्छी लगती है मुझे। तुम दिल की बहुत साफ हो। मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम मेरे साथ जुड़ोगी...’’
नीरजा उसका हाथ दबाकर निकल गईं। मन्नू ने लंबी सांस ली। पीछे मुड़कर देखा, कहीं अस्मिता तो नहीं आ रही? क्या करे? क्या सुशील को बता दे? सुशील यकीन करेंगे? अस्मिता के साथ पुराना और निजी संबंध रहा है। पता नहीं क्या सोचेंगे?
वह थके कदमों से कार पार्किंग के पास आ गई। सुशील ने कहा था कि वे उसे घर तक छोड़ देंगे।
तकरीबन सभी मेहमान जा चुके थे। इक्की-दुक्की गाड़ियां खड़ी थीं। वह सुशील की गाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई। हल्की हवा चल रही थी। उसकी जामावार सिल्क की साड़ी का भारी पल्लू हवा से उड़ कर चेहरे पर टकरा रहा था। हल्की सी सिहरन हुई, तो उसने पल्लू को कंधे पर डाल लपेट लिया। एक क्षण को लगा कि वह अकेली यहां कर क्या रही है? किस दिशा में जा रही है?
सोचा भर था कि पीछे से सुशील ने आकर उसके इर्द-गिर्द बांहों का घेरा सा बना लिया। मन्नु पुलक उठी। इतने बड़े आदमी उस पर स्नेह रख रहे हैं, उसका अरमान कर रहे हैं, तो वह क्यों पीछे हटे?
सुशील ने उसी तरह घेरकर उसे गाड़ी की पिछली सीट पर बिठा दिया। उनके हॉर्न बजाते ही न जाने कहां से अदृश्य हुआ ड्राइवर दौड़ता चला आया।
ड्राइवर ने गाड़ी में बैठने से पहले कुछ अदब से पूछा, ‘‘हुजूर, अस्मिता मैडल आपके साथ चलने के लिए कह रही थीं। गेट पर इंतजार कर रही हैं। क्या कहूं उनसे?’’
मन्नू चौंकी। पर सुशील शांत स्वर में बोले, ‘‘तुम गाड़ी पीछे के गेट से बाहर निकालो।’’
गाड़ी मेन रोड पर पहुंचने के बाद सुशील सहज होकर बैठ गए। मन्नू का पुष्ट गुदगुदा हाथ उनकी गोद में था। वे धीरे से थपथपा रहे थे। अचानक से बोले, ‘‘तुम गाड़ी चलाना सीखोगी मन्नू? बोलो?’’
मन्नू के हां या न कहने से पहले उन्होंने ड्राइवर को आदेश दे दिया, ‘‘चरण... तुम ऐसा करो, यहीं उतर जाओ और बस पकड़कर निकल जाना। आगे गाड़ी हम चलाएंगे।’’
चरण ने उतरकर अदब से गाड़ी की चाबी हुजूर को पकड़ाई। उसके पांच कदम जाते ही सुशील पिछली सीट से उतर ड्राइविंग सीट पर बैठ गए। मन्नू को इशारा किया कि वो भी आगे आ जाए।
सुशील समझाने लगे। ‘‘इसे गीयर कहते हैं, यह इस तरह से काम करता है। यह ब्रेक है। यह एक्सीलरेटर है। इस तरह से एक्ीलरेटर दबाकर गीयर बदलते हैं और गाड़ी भागने लगती है। फस्र्ट गीयर और सैकंड गीयर। डरो मत। चलाते-चलाते ही सीखोगी। ऐसे-ऐसे मूर्ख आदमी गाड़ी चलाते हैं, तो तुम क्यों नहीं चला सकतीं? चलो, अब मैं बगल में बैठता हूं और तुम स्टीयरिंग संभालो।’’
मन्नू डर गई। पर सुशील ने एक तरह से धकेलते हुए उसे भारी-भरकम स्कॉरपियो की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया। मन्नू ने चाबी घुमाई। घर्र-घर्र की आवाज आने लगी। सुशील आदेश देने लगे, ये करो... वो करो। मन्नू करती चली गई। गाड़ी जरा सा आगे बढ़ी, तो बड़ा सुकून मिला। ‘‘वाह, यह तो मजेदार काम है।’’ सुशील हंसे, ‘‘इसी तरह प्रेक्टिस करती रहीं, तो दस-पंद्रह दिन में फर्राटे से चलाने लगोगी, मेमसाब!’’
मन्नू मुस्कराई। तो यह जिंदगी है। इस जिंदगी में अस्मिता और उसकी धमकियों का क्या मतलब?
क्रमश..