ये दिल पगला कहीं का - 7 Jitendra Shivhare द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ये दिल पगला कहीं का - 7

ये दिल पगला कहीं का

अध्याय-7

बबली के पैर एक बार फिसले तो फिर फिसलते चले गये। उसके चरित्र पर उंगलियां उठने लगी थी। एक समय वह भी आया जब बबली के पिता को ग्राम पंचायत के सम्मुख बबली के होने वाले अनचाहे बच्चे के पिता की खोज के लिए पंचायत बुलानी पड़ी। बबली की मां ने ही यह साहस अपने पति रामभरोसे को दिया। उसने यह भी कहा- 'बबली के माता-पिता होकर गल़त हम नहीं है। इस भूल में बबली के साथ वह पुरूष भी जिम्मेदार है जिसने उसे गर्भवती किया है।' बबली की मां नारंगी ने अपनी बेटी के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ने की ठानी। पंचायत ने सुनवाई आरंभ कर दी। पांच बेटियों के पिता रामभरोसे सब्जी बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। उनकी बड़ी बेटी बबली इस कार्य में पिता की सहायता करती। गांव के हाट मैदान के मुख्य मार्ग पर उनका सब्जी का ठेला निश्चित स्थान पर खड़ा मिल जाता। रामभरोसे और बबली समय-समय पर सब्जी के ठेले पर अपनी सेवायें देते। बबली के साथ उसकी छोटी बहन अलका भी वहां आती-जाती। संदेह की पहली सुई गांव के युवा रमेश पर गई। बबली के ठेले पर रमेश अक्सर आया करता। वह भी तब जब रामभरोसे ठेले पर नहीं होते। बबली भी बड़ी आत्मीयता से उससे मिला करती। रमेश को पंचायत में बुलाया गया। उसने भरी पंचायत में बबली के गर्भ में पल रहे बच्चे को अपनाने से इंकार कर दिया। पंचगणों ने दबाव बढ़ा दिया। इस पर रमेश ने बबली के चरित्र पर ही पश्न खड़े कर दिये। बबली ने गांव के गोकुल पर भी उंगली उठाई। रमेश की ही तरह गोकुल ने भी बबली से संबंध होने से असहमति जताई। अधेड़ उम्र के विधूर दयाराम से शारीरिक संबंध होने की बात बबली ने स्वयं स्वीकार की। पंचायत ने बबली के चरित्र और व्यवहार पर विस्तार से विचार-विमर्श किया। चूंकि बबली और उसके गर्भ में पल रहे बच्चें की भलाई आवश्यक थी इसलिए पंचायत ने अपना निर्णय सुनाया।

"बबली और उसके बच्चे के हितार्थ पंचायत उसे विवाह करने का सुझाव देती है। इन तीनों पुरूषों में से किसी एक को बबली से विवाह करना होगा। इसका चयन बबली करेगी। शेष दोनो बबली को एक-एक लाख रुपये की राशी भरण-पोषण हेतु देने को बाध्य होंगे। पंचायत का यह अंतिम निर्णय है।" सरपंच सुमेर सिंह ने कहा।

इस ऐतिहासिक घटना ने समूचे रामपुरा और आसपास के गांवों में बबली को प्रसिद्ध कर दिया। बबली का तीन पुरूषों में से किसी एक के साथ विवाह करने का पंचायती निर्णय हर किसी की जिव्हा पर था। इस घटनाक्रम की मीडिया को भनक लगी। अखबारों में बबली के यौन उत्पीड़न की खबरें मय फोटो के प्रकाशित होने लगी। पुलिस को विवशता में एक्शन लेना पड़ा। यह स्ववंर विवाह अनुठा था। मगर पुलिस के हस्तक्षेप पर इसे रोका गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बहस छिड़ हुई थी।

"आखिर बबली के पेट में पल रहा बच्चा किसका है?" न्यूज एंकर टीवी पर दहाड़ रहा था।

"बबली वह भारतीय वीरांगना है जो एक साथ कई पुरूषों को संतृप्त करने का सामर्थ्य रखती है।" वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ अपनी राय दे रहे थे।

"नहीं, यह बबली के साथ संपूर्ण नारी जाति का अपमान है। भोली-भाली बबली को बदनाम किया जा रहा है।" महिला सशक्तिकरण की जानकार रीदिमा बोली।

"मगर सवाल अभी भी वही है! आखिर में ये बच्चा किसका है?" न्यूज एंकर टीवी पर पुनः चीखा। रामभरोसे परिवार सहित शौक में डुब गये। बबली का घर से निकलना सरल कार्य नहीं था। बबली की असावधानी आज उसे ही बहुत भारी पड़ रही थी। वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने को तैयार थी।

अलका ने रामभरोसे को बताया कि बबली जब मौसी के यहां गई थी। तब वहां बबली मनोहर नाम के युवक के संपर्क में आई। मनोहर ने बबली को झुठे प्रेम जाल में फंसा लिया। रूपयों के लोभ में वह शहर के टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर गई थी। मनोहर ने उसे ऐसा करने पर मानसिक रूप से तैयार कर लिया था।

रामभरोसे को समझने देर न लगी। वे शहर गये। टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर पर जाकर रामभरोसे ने बबली के संबंध में जानकरी प्राप्त करना चाही। बबली के पिता होने के नाते सेन्टर ने उन्हें सबकुछ बता दिया। दो लाख रुपये के बदले बबली सरोगेसी मदर बनने के लिए राजी हो गई थी। सेन्टर ने उपलब्ध पुरूष वीर्यं बबली के गर्भाशय में प्रविष्ट करवाया था। सावधानी रखने की सलाह के साथ बबली को सेन्टर पर प्रसव होने तक रूकना था। मगर एक माह में ही बबली की तबीयत बिगड़ने लगी। मनोहर वहां से फरार हो गया। सेन्टर ने घबराकर बबली को शहर से गांव लौट जाने को कहा। बबली वहां से गांव लौट आई। देशी उपचार उपरांत वह ठीक होकर अपने व्यवसाय में व्यस्त हो गयी।

राजनितिक गलियारे में बबली का नाम चर्चित हो गया। प्रत्येक राजनितिक पार्टी इस मुद्दे को उछालकर राजनीतिक लाभ उठाने से पीछे नहीं थी।

लोकसभा में यह प्रश्न उठाया गया। विपक्ष ने सत्तारूढ़ पार्टी के गृहमंत्री को आड़े हाथों लिया।

"समाज में आज नारी सुरक्षित नहीं है। आज गृहमंत्री को बताना ही होगा कि बबली के पेट में पल रहा बच्चा आखिर किसका है?" सांसद महोदय के तेवर देखते ही बनते थे।

गृहमंत्री अपने स्थान पर उक्त प्रश्न का उत्तर देने खड़े हुये- "मैं विपक्षी दल को भरोसा दिलाता हुं कि वह बच्चा मेरा नहीं है। और यह भी पुरे दावे के साथ कहता हूं कि मेरी पार्टी को कोई भी पुरूष उस बच्चें का पिता नहीं है।" केन्द्रीय गृहमंत्री ने ताल ठोंककर जवाब दिया।

बबली की प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती गई। मीडीया ने रातों-रात उसे स्टार बना दिया। रामभरोसे शहर जाकर प्रिय कुमार से मिले। प्रिय कुमार वही व्यक्ति थे जिन्होंने अपने वीर्यं से उत्पन्न संतान का कॉन्ट्रैक्ट उस टेस्ट ट्यूब बेबी सेन्टर को दिया था जहां बबली सरोगेसी मदर बनने के लिए सहमत थी।

प्रिय कुमार अविवाहित होकर बच्चें के पिता बनना चाहते थे। इसके लिए उसने अपनी विधवा मां को भी तैयार कर लिया था। बबली के गर्भाशय में उत्पन्न हुयी समस्या से स्वयं प्रिय कुमार भी डर गये थे। बबली की अस्वस्थता के विषय में जानकर उन्होंने अपना विचार स्थगित कर दिया था। रामभरोसे के मुख से बबली की मां बनने की खबर सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। प्रिय कुमार को कहीं न कहीं यह अवश्य लगता कि वह बच्चा उसी का है! बबली के गर्भ का नौवा माह चल रहा था। प्रसूति किसी भी क्षण हो सकती थी।

पिछले पच्चीस वर्षों से एमपी और एमएलए का चुनाव बहुत नजदीकी मतों से हार रहे वरिष्ठ राजनितिज्ञ सुबोध संघवी को उनके पारिवारिक ज्योतिष ने एक सुझाव दिया। उन्हें विशेष नक्षत्र में उत्पन्न हुये शिशु की भेंट अघोरी बाबा को करनी होगी। अघोरी बाबा उस शिशु की बलि विलक्षण नक्षत्र में इष्ट को समर्पित करेंगे। इस प्रकार का शिशु हजार बच्चों में एक बार जन्म लेता है। सुबोध संगवी ने उस बच्चें की इनाम राशी दस करोड़ रूपये रखी। यह राशी बच्चें के माता-पिता को समान रूप से मिलेगी। संघवी के कार्यकर्ताओं ने पता लगाया। बबली का पुत्र उसी विलक्षण नक्षत्र में उत्पन्न हुआ है जिसकी तलाश सुबोध संघवी कर रहे है। पार्टी कार्यकर्ता प्रतिक रामपुरा गांव आकर रामभरोसे से मिला। दस करोड़ रुपये की ईनामी राशी का समाचार रामभरोसे को प्रतिक के माध्यम से मिला। नारंगी न चाहते हुये भी इस कार्य के लिए सहमत थी। इनामी राशी से परिवाल के दिन बदल सकते थे। वर्षों की निर्धनता से पल भर में छुटकारा मिल सकता था। बबली पर दवाब बढ़ता जा रहा था। अवसर पाकर वह घर से भाग निकली। मीडीया कर्मी गांव में ही डेरा जमाये हुये थे। प्रसिद्ध उद्योगपति प्रिय कुमार का संभावित अंश बबली का पुत्र है, यह खबर मीडिया के पास पहूंच गई। रामपुरा गांव का हर दुसरा-तिसरा पुरूष बबली के बच्चे का पिता होने का दंभ भरने लगा। मीडिया कर्मी अपने-अपने चैनल की उन्नत टीआरपी के लिए न-न प्रकार के जतन करते। गांव का जो भी पुरूष टीवी पर बबली से संबंध होने के सच्चे-झूठे प्रमाण सौंपता, पत्रकार उसे बबली के बच्चे का पिता बनाकर संसार के समक्ष प्रस्तुत करते। पुलिस छावनी बने रामपुरा गांव में बबली के घर से भाग जाने की खबर ने और अधिक खलबली मचा दी। दस करोड़ रुपये के लोभ में तथाकथित लोगों से बबली और उसके बच्चे की जान को खतरा था। यह संज्ञान में लेकर पुलिस ने जच्चा-बच्चा को सुरक्षा देने हेतु बबली की तलाश आरंभ कर दी।

प्रिय कुमार बबली से मिलने रामपुरा आ रहे थे।

बबली बीच सड़क पर बदहवास दौड़े जा रही थी। बचते-बचाते सभी से भाग रही बबली को शरीर पर चोटें आई थी। थकान से चूर वह कार के आगे गिर पड़ी। प्रिय कुमार ने कार रोकी। प्रिय कुमार ने बबली को कार में बिठाया। उन्होंने कार हाॅस्पीटल की ओर दौड़ा दी। असंख्य जनक के इस अनोखे बच्चें को देखने हाॅस्पीटल में भारी भीड़ जमा होने लगी थी।

सुबोध संघवी कार्यकर्ताओं के साथ बबली के बच्चे को हथियाने हाॅस्पीटल पहूंचे। प्रिय कुमार ने बबली का हाथ थाम रखा था। बच्चा बबली की गोद में खेल रहा था। बबली ने भूतकाल के आचरण का परित्याग कर मर्यादित जीवन जीने का वचन प्रिय कुमार को दिया। प्रिय कुमार ने बबली और उसके बच्चे को स्वीकार कर लिया। डीएनए परीक्षण में यह सिध्द हो गया कि बबली का बबलू ही प्रिय कुमार की संतान है।

अगली कहानी रचना और अमित की है जो असाम के गुवाहाटी से आये थे---

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*र* चना को यह देखकर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह एक बेचलर ब्वॉय का कमरा है। रचना यह भी जानती थी कि अमित उसे प्रभावित करने की पुरी कोशिश कर रहा है। स्वयं को व्यवस्थित सिध्द करने का अमित का यह षड्यंत्र भी हो सकता है! रचना आज अमित के बारम्बार आग्रह पर उसके घर आई थी। अमित के पारिवारिक सदस्यों ने रचना को बहु बनाने की सहमती दे दी थी। किन्तु रचना ने अभी तक अमित से विवाह करने की अभिस्वीकृती प्रदान नहीं की थी। अमित न-न प्रकार से रचना को राज़ी करने का प्रयास कर रहा था। ऐसा नहीं था कि रचना को अमित पसंद नहीं था, बस वह विवाह का निर्णय नहीं ले पा रही थी। अमित को यह भी जानकारी थी कि तीन बहनों में सबसे छोटी रचना अपनी दोनों बहनों के असफल वैवाहिक जीवन से क्षुब्ध थी। रचना के बड़े बहनोई विवाहित होने पर भी अन्यत्र किसी महिला से अनैतिक संबंध में थे जिसके कारण उसकी बड़ी बहन मान्यता और बहनोई माणिक में आये दिन वाद-विवाद हुआ करता था। उन दोनों के बच्चों पर अपने माता-पिता के आये दिन के झगड़ों से विपरीत प्रभाव पड़ रहा था। दोनों बच्चें अनु और वीर चिड़चिड़ें और स्वयं भी झगड़ालू प्रवृत्ति के हो गये थे। इस पर भी माणिक किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं था। मंझली बहन दीप्ति के दुर्भाग्य से उसे दहेज लोभी ससुराल मिला। सास-ससुर और पति की प्रताड़ना से दुःखी होकर दीप्ति अपने अधिकार के लिए न्यायालय की शरण में थी। उसके पांच वर्ष के बेटे डब्बू को ससुराल वाले जबरिया अपने पास रखे हुए थे। वैधानिक चेतावनी के बाद भी वे डब्बू को लौटा नहीं रहे थे। उसकी याद में दीप्ति आधी हुई जा रही है। रचना के पिता संग्राम सिंह असावधानी में हुई अपने ऑफिस कर्मचारी वंश कुमार की हत्या के दण्ड स्वरूप जेल में सज़ा काट रहे थे। मां भानुमति अघोषित परित्यक्तता का जीवन जीने पर बाध्य थी। इन सभी समस्याओं की मूल जड़ रचना विवाहित जीवन को मानती थी। उसका मानना था कि विवाह उपरांत पति-पत्नी सदैव उन समस्याओं के हल खोजते रहते है जो विवाह के पुर्व कभी थी ही नहीं।

उस पल अमित को बहुत अधिक दुःख हुआ जब उसे रचना की वास्तविकता ज्ञात हुई। रचना उसके पिता कृष्ण देव आनंद के परम मित्र संग्राम सिंह की बेटी थी। संग्राम सिंह और कृष्ण देव आनंद की मित्रता कभी मिशाल हुआ करती थी।

क्रमश..