औरतें रोती नहीं - 16 Jayanti Ranganathan द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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औरतें रोती नहीं - 16

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 16

दगाबाज आईना

वो दिन, वो शाम... मैं थरथराकर उठ गई। मेरा मोबाइल बज रहा था। थककर रुक गया। दो मिनट बाद मैसेज की खनखन हुई। बेमन से उठाकर देखा- दिल्ली से मेरी अस्सिटेंड आलवी का मैसेज था- तुम्हारा डॉगी टुटू बीमार चल रहा है। चार दिन से खाना नहीं खाया। तुम कब आ रही हो? टुटू का क्या करूं?

मैंने दो पल मैसेज पर नजरें गड़ाए रखीं। फिर एक परिचित फोन नंबर मिलाया।

‘‘ऑनी... बिजी तो नहीं... आ सकते हो?’’

ऑनी की आवाज स्पष्ट नहीं थी। वह किसी के साथ था। उसने बेहद मुलायम स्वर में कहा, ‘‘पैडी... बोलो कितने बजे आऊं?’’

गुगल महल में रात अच्छी बीती। बहुत दिनों बाद इतनी रोशनी देखी, इतना हल्ला। झिलमिलाते लहंगे और चोलियों में लिपे-पुते चेहरे वाली बालाएं हिंदी फिल्मी गांवों पर थिरक रही थीं। बीच में एक स्टेज सा बना हुआ था। चारों ओर से घिरा।

ऑनी ने स्कॉच मंगवाई। मैंने भी इंकार न किया। मैंने बहुत दिनों बाद सिल्क का लंबा गाउन पहन रखा था। कभी कोलकाता से लिया था, सब्यसाची का डिजाइन किया गाउन। अच्छा लगा तो कीमत भी चुका दी, पूरे बाईस हजार रुपए। गाउन के बाजुओं में नन्हें-नन्हें सरोस्की जड़े हुए थे। कानों में हीरे के बुंदे। हाथ में रोलेक्स घड़ी।

अचानक मेरी उंगलियों को ऑनी ने धीरे से छुआ, ‘‘तुम्हारे हाथ में अंगूठी नहीं? आर यू नॉट मैरिड?’’

मैंने एक मुस्कराहट भर बिखेर दी। अंगूठी से कोई बंध ही जाता तो क्या बात थी? हां... मैक ने वैसे मुझे कभी अंगूठी न दी थी। बंधी थी तो सिर्फ उसी के साथ...।

‘‘तुम इतनी चुप क्यों हो? बातें करती रहो। मुझे बोलने वाली औरतें अच्छी लगती हैं...’’ ऑनी ने बाएं हाथ की तर्जनी को मेरी नंगी बांहों पर सरसराते हुए कहा।

मैंने मुंह खोलने की कोशिश की। बहुत तेज संगीत बज रहा था। कजरारे-कजरारे मेरे कारे कारे नैना...

बैंगनी लहंगा और कानों में कंधे तक लटकते झुमके पहने लगभग अधेड़े औरत अचानक आकर हमारी टेबल पर झुक गई। ऑनी के हाथ से सिगरेट ले वह झूमती हुई कश लगाने लगी। ऑनी ने बड़ी नफासत से उससे हाथ मिलाया। वो मुस्कराई, और नफीस अंग्रेजी में बोली, ‘‘ऑनी डार्लिंग, क्या बात है? मुझे भूल गए क्या? बड़े दिनों बाद आए हो?’’

ऑनी ने आधी अंग्रेजी, आधी हिंदी में कहा, ‘‘मैं तो यहां हर शुक्रवार को आता हूं। तुम नहीं मिलती।’’

वो कुछ देर रुककर अलवाई सी हमारे पास बैठ गई, ‘‘कहां... बस एक महीने के लिए मुंबई चली गई थी। एक फिल्म में काम मिल गया था।’’

ऑनी के जाम से एक लंबा घूंट मारने के बाद वह सतर्क हो गई। खड़ी होकर फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘मुझे यहां खड़ा देख लिया, तो उसे अच्छा नहीं लगेगा। चलो... टे केयर। फिर मिलूंगी...’’

मेरी तरफ मुस्कराकर उसने बाय कहा और दूसरी लड़कियों की भीड़ में शामिल हो गई। अब वो मस्त होकर नाच रही थी। मैंने देखा कि बाकी लड़कियां उससे शालीन दूरी बनाए रख रही थीं। वो थी भी उम्र में उनसे बड़ी। लेकिन उसके शरीर में गजब की थिरकन थी।

ऑनी ने मुझे उसकी तरफ देखते देख कहा, ‘‘तुम तो पहचानती होगी उसे? एट्टीज की हीरोइन रही है। बी ग्रेड फिल्मों की।’’

‘‘ओह... रियली... देखी हैं उसकी फिल्में। रात का नशा ना उतारो मेरी जां... मैंने भी तो स्कूल के पार्टिंग फंक्शन में इस गाने पर नृत्य किया था। उस समय बड़ा क्रेज था इस गाने का। मम्मा नाराज होतीं कि गाना हो तो रवींद्र संगीत गाओ। मम्मा को चिढ़ाने में अपार मजा आता मुझे। जान-बूझकर सिर्फ एक झीनी टीशर्ट पहनकर कमर मटकाती मम्मा के पास पहुंच जाती और रात का नशा गाकर एक झटका देकर घूम जाती। मम्मा चेहरा घुमा लेतीं- मेये पागल छेली।’’

बड़ा मजा आता था मुझे कैबरे करने में। स्कूल में लास्ट पीरियड के बाद हमें पूरी क्लास खाली मिलती थी। मेरे बांग्ला मित्र कम थे, एक ही था सोरेन। बाकी दो जुड़वां अंग्रेज बहनें थीं पेनी और मायनी, एक माडू यानी मारवाड़ी श्वेता और एक सर्ड यानी सरदारनी तरनजीत।

हमारी उम्र तब पंद्रह के लगभग थी। शरीर का गठन अच्छा था। तरनजीत तो एकदम ग्रोन-अप लगती थी। पेनी बोल्ड थी, मुझसे भी ज्यादा, सही मायने में। क्लास के अंधेरे कोने में पहले सिगरेट, फिर वाइट पाउडर का चस्का भी उसी ने लगाया। हम सब अपनी स्कर्ट खोलकर बैठ जातीं। कमर में टाई और सोरेन के वॉकमैन पर बजता जैज या रैप। सब नाचतीं। मैंने अपने कैबरे के स्टेप्स यहीं मांजे। सोरेन के साथ मैं पिया तू अब तो आजा गाती, तो पेनी और मायनी के साथ वी विल वी विल रॉक यू गाते हुए एक पैर हवा में उछाल जमीन पर गिर जाती...

वाइल्ड... हम तो अपने को यही कहते थे। पर स्कूल की टीचर्स और पेरेंट्स हमारे ग्रुप को रूथ और रेस्टलैस कहते। हमारे ग्रुप में शामिल होना फख्र की बात मानी जाती। दूसरे लड़के हम लड़कियों को छूने और मारा वाइल्ड डांस देखने को बेताब रहते थे। शायद चोरी-छिपे देखते भी थे...।

पुरानी बातें... सालों पुरानी। मैं पंद्रह की रही होऊंगी तो अलीशा तिने की रही होगी? पच्चीस की? अचानक मैं सतर्क होकर बैठ गई। एक झलक देखने पर अलीशा पैंतालीस साला तो कहीं से नहीं लगती। लेकिन चेहरे पर पुते मेकअप की परतों के नीचे एक दूसरी दुनिया है... ‘वहां झांकना इतना आसान नहीं।’

ऑनी के चेहरे से लग रहा था कि वह मेरी कंपनी से संतुष्ट नहीं। गाहे-बगाहे वह मेरे हाथ पर हाथ रख देता। मेरे खुले कंधे पर झुककर कुछ कहने की कोशिश करता और फिर खुद ही हंसने लगता।

अलीशा की नजरें ऑनी पर ही टिकी थीं। लगभग दो बजे मैं उठ गई। ऑनी ने मेरा हाथ पकड़ लिया, ‘‘इतनी जल्दी क्या है? थोड़ी देर और।’’

मैंने मन बना लिया था, अब जाना होगा। भला कितनी देर मैं अपने अजीज टुटू का गम गलत करने के लिए एक रात का सहारा ले सकती हूं? टुटू ने उस वक्त मेरा साथ दिया, जब मैं बिल्कुल तन्हा थी। रात-रातभर मेरे पैरों पर अपना गुदगुदा सिर रखकर मुझे निहारता। जब कभी मेरे आंसू बहते, वह आगे बढ़कर मेरे फूल आए गालों को चाटने लगता। मेरे आंसुओं के खारेपन से बहुत मोहब्बत थी उसे। कभी-कभी तो मेरी खुली आंखों में ही झांकने लगता। नर्म, मुलायम, रूई के गोले सा मेरा टुटू। मेरे आगे-पीछे साये की तरह घूमने वाला मेरा प्यारा। अब मेरे बिना खाता नहीं, खेलता नहीं। चार साल पहले जब कोलकाता में प्योर पैट शॉप में टुटू को मोलभाव कर रही थी, शॉप के चाइनीज मालिक रैंग शू ने मुझे आगाह किया था, ‘‘आप पामेरियन ले जा रही हैं। दे नीड योअर लव एंड केयर। बदले में वे आपको इतना प्यार देंगे कि आप परेशान हो जाएंगी।’’

मैं मन ही मन बुदबुदा पड़ी थी- यही तो चाहिए...

टुटू को संभालने में शुरू में काफी दिक्कतें आईं। वह मेरे कीमती शू चबा जाता। कोट के बटन को हड्डी समझ उसी पर टूट पड़ता। छोटा बित्ते भर का टुटू पूरा दिन आफत किए रहता। मैं पंद्रह दिन बाद ही उसे वापस देने चली गई। रैंग शू हंसने लगा, ‘‘ये क्या दीदी मां? तुमने तो रिकॉर्ड बना डाला। मेरी पहली कस्टर हो, जो पंद्रह दिन में डॉग वापस कर रही है। ठीक है, छोड़ जाओ यहां। देखो मां, मैं तुम्हें अभी पैसे वापस नहीं करूंगा। अगले वीक आना। पूरे पैसे नहीं दूंगा। अब तुम्हारा डॉग किसी के साथ एडजस्ट नहीं हो पाएगा। तुम्हारा स्मेल लग गया है उसे। तुम मां बन गई हो इसकी। बूझली?’’

मुझे टुटू को वापस लाने के लिए पंद्रह दिन का इंतजार नहीं करना पड़ा। एक दिन नहीं रह पाई उसके बिना। एक नन्हें से कुत्ते ने मेरी जिंदगी पर इतना हक कब जमा लिया, मुझे अहसास ही न हुआ?

अगले दिन ठीक उसी समय मैं रास बिहारी एवेन्यू पहुंच गई। शू कहीं गया हुआ था। लेकिन काले पिंजड़े के अंदर टुटू ने मुझे देखते ही इतना शोर मचाना शुरू कर दिया कि शू का पहाड़ी नौकर घबरा गया। टुटू ने मुझसे अलग होने के बाद भूख हड़ताल कर दी थी। पिल्लू ने कल से कुछ नहीं खाया था। मेरा दिल भर आया। फौरन मैंने पिंजड़ा खोल टुटू को गले लगा लिया। हम दोनों की हालत एक सी थी। वह भी बेचैन था, मैं भी। नियति थी साथ रहना।

अबकी जब उसे लेकर आई, तो उस नन्हें पिल्ले से मैंने गजब की मैच्योरिटी देखी। अपनी मालकिन का मूड भांप लेता था पट्ठा। बिल्कुल शांत हो गया। मेरा टुटू।

टुटू की हालत ठीक नहीं। अचानक मन कैसा तो हो उठा। मैं किस तरह उसे बीच में छोड़ आई हूं। इससे अच्छा होता, मन्नू या उज्ज्वला के पास छोड़ देती। मन्नू से ठीक से हिल गया था टुटू। उज्ज्वला को भी प्यार कर लेता था। मन्नू ने अगर उस दिन वह बात नहीं की होती, तो वहीं छोड़ती टुटू को।

पर मन्नू ने कहा और मैं तिड़क गई।

मन्नू का पता नहीं, पर मैं तो ऐसी ही थी। मन से जुड़ती और मन में गांठ पड़ जाए तो अपने को अलग कर लेती।

उस वक्त चार पैग वोदका के बाद मैं यह याद करने की कोशिश कर रही थी कि मन्नू ने ऐसा क्या कहा था कि मैं उसी समय टुटू को लेकर घर से बाहर निकल गई?

याद क्यों नहीं आ रहा...?

ऑनी मुझे घर छोड़ गया। अगले दिन मीटिंग थी। पूरे पचार हजार दिरहम का प्रोजेक्ट था। इसी प्रोजेक्ट को लेकर मैंने, मन्नू और उज्ज्वला ने न जाने कितने सपने बुने थे। दुबई दर्शन के बाद जाएंगे कोलकाता और महीना भर घमेंगे एकदम बंजारों की तरह। जहां मन होगा, चल देंगे। न पैसे की परवाह करेंगे, न समय की...।

प्रोजेक्ट तो हाथ में आ ही जाएगा... लेकिन वो सपने कहां से लाऊं?

उज्ज्वला चल पड़ी है एक नई राह पर नए मुसाफिर के साथ।

मन्नू लड़ रही है अपने बीते हुए कल को नया जामा पहनाने के लिए। कैसी नेताइन लगने लगी है। जोश से भरा चेहरा। कहती है- सालों बाद पता चला कि मैं जिंदगी में क्या करना चाहती थी? कभी सोचा भी न था कि मैं यह सब कर सकती हूं। मैंने थोड़े ही कहा था कि कॉरपोरेशन का चुनाव लड़ूंगी। सुशील जी खुद चलकर टिकट देने आए हैं। तुम ऐसे क्यों देख रही हो पद्मजा?

बहुत जोर दिया दिमाग पर। ऐसा क्या हो गया हम तीनों के बीच? ऐसा क्या कहा था मन्नू ने?

क्रमश..