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नाशुक्रे लोग

लघुकथा ✍🏻
नाशुक्रे लोग
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'अरु, आज फिर रात की इतनी रोटियाँ बची हुई हैं ।कितनी बार कहा है तुमसे कि कम बनाया करो, लेकिन तुम मानती ही नहीं हो'

'अरे, हो जाता है कभी-कभार'

'कभी-कभार, ये तुम्हारा रोज़ का हो गया है अब और ये झूठे बर्तनों में भी पड़ी है'

'तुम तो जानते ही हो न बच्चों के नखरे, ये सब्जी पसंद नहीं वो सब्जी पसंद नहीं, तो ऐसे ही खाते हैं '

'हाँ तो तुम बच्चों के हिसाब से परोसो न उन्हें, बड़ों के हिसाब से नहीं '

'अच्छा, अब तुम बच्चों के खाने पर भी नज़र टिकाओगे ,हद ही कर दी है तुमने'

'मैं कहता क्या हूँ तुम समझती क्या हो, तुम समझती नहीं क्या कि मैं अन्न की बर्बादी न करने के लिए कह रहा हूँ'

'हाँ तो क्या हो गया ये पाँच-सात रोटियाँ बच गयी तो, आॅफिस जाते वक्त वर्मा जी की गाय को देते जाना'

'जी हाँ जी हाँ क्यों नहीं, तुम्हारी इन रोटियों के देने से जैसे वर्मा जी को तो गाय को चारा ही नहीं डालना पड़ेगा ।ये रोटियाँ उसके लिए ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर है लेकिन यही दो-तीन लोगों की भूख दूर कर सकती हैं, पर तुम्हें कौन समझाएँ'---कहते हुए आनंद बड़बड़ाता हुआ आफिस को
चला गया

शाम को आनंद घर आया तो अरु रो रही थी ।

'क्या हुआ तुम्हें, रो क्यों रही हो' ?

'आज ये कैसा वीडियो भेजा तुमने ऑफिस से'

'सोचा आज सच दिखा ही दूँ , बग़ैर
दिखाए बताएँ अब काम चलने वाला नहीं '

'तुम्हारा बाॅस तुम पर चिल्ला रहा है, अपशब्द बोल रहा है, उसकी इतनी हिम्मत हो रही है और तुम उससे कुछ नहीं कह रहे, क्यों-क्यों बोलो' ?

'रोटी के लिए, उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया तो क्या दूसरी नौकरी मुझे झट से मिल जाएगी ? नहीं न, कैसे चलेगा ये घर ।उसी रोटी के लिए यह सब सहना पड़ता है, मुझे ही नहीं सभी को ।ऑफिस में इसी तरह और जो लोग दुकानदार होते हैं न, उनको एक-एक साधारण ग्राहक को भी भगवान के रुप में देखना पड़ता है, सिर्फ इस रोटी के लिए और मजदूरों का हाल तो क्या ही कहा जाएँ ।अरु तुम महिलाएँ हमेशा नारीवादी सोच में ही डूबी रहती हो, हम भी इंकार नहीं करते आप सबकी भूमिका का, आप न हो तो घर-घर न रहे लेकिन कभी पुरुष की तरफ़ भी देख लिया करो कि वह परिवार का पेट पालने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं करता बल्कि कितनी ही बार अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान से भी समझौता करता है और अरु भगवान ने अगर भोजन दिया है तो उसका सम्मान करो ।इस तरह की बर्बादी से सिर्फ नाशुक्रापन ही दिखता है' ।

'आनंद, मुझे माफ़ कर दो ।आगे से कभी अन्न की बर्बादी नहीं करुँगी ।तुम्हारे एक वीडियो ने मेरी आँखें खोल दी '।

'खुल गई न, शुक्र है भगवान का ।अब चाय बना लाओ मेरे लिए '

'हाँ बनाकर लाती हूँ लेकिन तुम्हारे उस बदतमीज़ बाॅस को छोड़ूंगी नहीं मैं ' ----कहते हुए अरु रसोईघर में चली गयी ।

पुष्प सैनी 'पुष्प'

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