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असीम प्रतीक्षा

कहानी --- असीम प्रतीक्षा ✍?
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"तुमने पार्क में मिलने को क्यों बुलाया ? घर ही आ जाती न" --- असीम ने कहा

प्रतीक्षा ने इस बात पर कुछ नहीं कहा और तलाक़ के कागज़ असीम की तरफ़ बढ़ा दिए ।

"ओह ! तो तुमने आख़िरी फ़ैसला ले ही लिया ।मैने कहा था न इसपर और विचार करना" --- असीम ने बैंच पर बैठते हुए कहा

प्रतीक्षा भी उसके नजदीक बैठ गयी और कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने कहा --" बहुत सोच-विचार के बाद ही इस निर्णय पर पहुँची हूँ बल्कि कुछ ज्यादा ही सोच लिया ।शादी के बाद चार साल सोचने में ही तो गए हैं ।"

"मैं जानता हूँ तुम अपनी जगह सही हो लेकिन मैं जैसा तुम चाहती हो वैसा बनने की पूरी कोशिश करूँगा बल्कि बन जाऊँगा वैसा" ।

"नहीं असीम ! मुझे किसी को कुछ नहीं बनाना और सच कहूँ तो तुम बन भी नहीं सकते क्योंकि पत्नी पर दौलत लुटाना अलग बात है और भावनाएँ लुटाना अलग ।मैं सिर्फ भावनाओं की भूखी रही हूँ ।इसे तुम मेरी कमजोरी समझ सकते हो और मूर्खता भी ।मुझे याद नहीं आता कि कभी मैने तुमसे महंगे घर,गहने,हीरे-जवाहरात की मांग की हो, बस इतनी ख़्वाहिश थी कि एक सुन्दर स्वच्छ घर-परिवार हो , भावनाओं से रचा-बसा शायद यह छोटा-सा सपना ईश्वर की अदालत में बहुत बड़ा था" ---कहते हुए प्रतीक्षा की आँखों से आँसू झर गए

"प्रतीक्षा ! तुम्हें घर छोड़कर गये दो महीने हो गए हैं और सच कहता हूँ इन दो महीनों में मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया है और एक-एक बात याद आती रही हैं ।कैसे तुमने शादी की पहली रात कहा था कि हम दोनों सुबह उठते ही एक दूसरें के माथे पर चुम्बन देंगे और इसकी वज़ह पूछने पर तुमने कहा था कि यह इसलिए कि हमारा पहले दिन झगड़ा हुआ भी हो तो वह वहीं खत्म हो जाए और यह चुम्बन नयी सुबह नये दिन की तरफ़ प्रेमपूर्वक आगे बढ़ने में सहयोग करेगा ।हम इसी बहाने एक-दूसरें से मुस्कुराकर बात करेंगे लेकिन मैं तो तुम्हारी यह छोटी-सी ख़्वाहिश कुछ दिन भी पूरी नहीं कर सका और तुम कभी भूली नहीं " ।

"पागल जो हूँ " --- प्रतीक्षा ने मुस्कुराकर कहा

"मैं जब भी रात को देर से घर आता था तुम भूखी मेरा इंतजार करती रहती थी" ।

"और तुम अधिकांश पूछते भी नहीं थे कि तुमने खाना खाया या नहीं ।जब तुम खाते रहते थे तो मैं तुम्हारे मुँह की तरफ़ देखती रहती थी कि तुम मुझसे भी पूछोगे और अपने हाथों से मुझे एक निवाला खिलाओगे लेकिन मैं आँसू पीकर सो जाती थी और सुबह मुझे मेरा खाना फेंकना ही पड़ता था क्योंकि मैं ऐसे नहीं खा सकती थी " ।

असीम का सर ग्लानि से झुक गया, उसने कुछ देर बाद कहा ---" और तुमने मेरी माँ और बहन की मुझसे कभी शिकायत नहीं की जबकि मैं तुम्हारे प्रति उनका तल्ख़ रवैया जानता था "।

"असीम! मैं उन पत्नियों में से बिल्कुल नहीं हूँ जो पतियों के दफ़्तर से आते ही उनपर टूट पड़ती हैं कि तुम्हारी माँ ने आज यह किया और बहन ने वह कहा ।मेरी हमेशा सोच यही रही है कि पति को वैसे ही दफ़्तर के काम का बोझ होता है और फिर घर आने पर भी सुकून न मिले फिर घर कैसा ।"

"और बहुत से मेरे जैसे पति भी होते हैं जो सब जानने के बाद भी यह सोचकर चुप रहते हैं कि अच्छा है बातें मुझ तक नहीं आती, मैं तो सुकून से हूँ ।"

" बस इस कागज़ की यही वज़ह है कि तुमने मेरी भावनाएँ जानते हुए भी कभी उनका सम्मान नहीं किया ।मैं तुम्हारे साथ रहते हुए भी तन्हा रही हूँ ।"

कुछ देर के लिए ख़ामोशी पसर गई ।असीम ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा --" प्रतीक्षा! मैं जानता हूँ तुम जैसी भावुक भावना से भरी लड़की मिलना आज के दौर में कितना मुश्किल है और मैने तुम्हारी क़द्र नहीं की लेकिन तुम मुझे माफ़ करके एक मौका और दो न "।

"मैने बहुत बार मौके दिए हैं असीम लेकिन तुमपर कोई असर नहीं हुआ न बदलाव आया लेकिन अब और नहीं क्योंकि मैं भावनाहीन और अर्थहीन जीवन नहीं जीना चाहती ।यह प्रतीक्षा तो तुम्हें अब नहीं मिल सकती, इस प्रतीक्षा की तो तुम्हें असीम प्रतीक्षा करनी होगी ।"

कहते हुए प्रतीक्षा शून्य आँखें और निढ़ाल सा शरीर लिए वहाँ से चली गयी ।

पुष्प सैनी 'पुष्प'

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