कहानी
आनंद
पहाडि़यों के पीछे सुबह का सूरज झांकने लगा था. हवा में कुछ ज्यादा ही ठंडक थी. यात्रा के सीजन को शुरू हुए अभी दो दिन ही हुए थे कि यात्री आने शुरू हो गए थे. यात्रा के तीन चार महीने ही होते है जब यहां रौनक रहती है. नहीं तो उत्तराखंड की ये पहाडि़या सुनसान ही रहती है ओर इन सुनसान पहाडि़यों में यमुना का पानी तेज रफ्तार से बहता रहता है .हरैक की उम्मीद होती है कि कुछ अच्छी खासी कमाई हो जायेगी लेकिन ऐसा होता नहीं .उदय वीर को यात्रियों का इंतजार करना ही पढ़ता है. और कभी कभी तो इंतजार के बाद भी कोई यात्री नहीं मिलता. लोग तो बहुत थे पर पालकी वाले भी कम ने थे. एक सवारी पर चार आदमियों का पेट पलता था. ज्यादातर तो नौजवान लोग ही आते है जिनमें पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने का दम खम होता है जो दर्शन करने नहीं घूमने फिरने और मौज मस्ती के लिए आते है. ऐसे लोग घोड़ों पर बैठना पसंद करते हैं न कि पालकियों पर. वे तो बस कूदते फाँदते पहाड़ पर चढ़ना चाहते है . पर कुछ लोग होते है जिन्हें पालकी या घोड़ों की जरूरत होती है. पर ऐसे लोग बहुत कम होते है.
आज अभी तक आठ दस लोग आए थे जिन्हें पालकियों की जरूरत थी. वे जा चुके थे .पर वीर सिंह और उसके साथियों को अभी तक कोई सवारी नहीं मिली थी. दिन के करीब बारह बज चुके थे और वह सोच रहा कि यदि एकाध घंटे में उसे कोई सवारी नहीं मिली तो आज का दिन भी यूं ही जायेगा. यदि ऐसा होता है तो इस माह उसका छठा दिन ऐसा होगा. तब बहुत मुश्किल हो जाती है उसे. वैसे इस काम में उसके कंधे दुख जाते हैं उसके तब कहीं जाकर उसे राजमा चावल नसीब होते है.
अब पहले जैसा नहीं रहा कुछ साल पहले ही की तो बात है जब यहां खूब ठंड होती थी. पर ऐसा नहीं है. ठंड अब बहुत कम होती है पर जब बहुत ठंड होती है तब यहां कोई नहीं आता . वह खुद भी यहां नहीं रुकता. दिल्ली या फिर देहरादून चला जाता है. वहां पर उन दिनों शादियों का मौसम होता है. बारात में सर में शादियों की लाईट पकड़ कर चलने का काम मिल जाता है. वह भी जान लेवा काम होता है गरम गरम गैस की लाइटों को कंधों पर उठा कर घंटों चलना किसी यातना से कम नहीं होता .जब वहां काम खत्म हो जाता है तो वह यहां पहाड़ों में आ जाता है
‘अरे उदय वीर इधर आ.’ सामने वाले होटल बाबू ने उसे पुकारते हुए कहा.
उदयवीर ने सड़क के उस तरफ देखा .होटल बाबू उसे इशारे से बुला रहा था. कभी कभी होटल वाले भी उसे कोई सवारी दिला देते है. कुछ लोग इस होटल में आकर ठहरते हैं तो होटल बाबू उनके लिए पालकी का इंतजाम कर देता है. हालाँकि उसे पता था कि इस होटल में बूढ़े काका आकर ठहरे हुए है कल शाम से उसे अंदाजा था कि उन्हें लेकर उपर जाना पढ़ सकता है लेकिन सुबह से जब कोई हलचल नहीं हुई तो उसने, सोचा हो सकता है कि वे चले गये हो.
होटल वाले की गुहार से उदय की बाँछें खिल गई .
वह दौड़ कर उसके पास जा पहुँचा .
‘ जी साहब कहिए.’उसने हाथ जोड़कर कहा .
‘ देख इन काका को उपर ले जाना है.’ होटल वाले ने डपटने के अंदाज में कहा
‘ ले जाउंगा मालिक ’.... उसने खुश होकर कहा
‘ कहां है तेरे संगी साथी.’ होटल वाले ने कहा
‘यहीं है....... ‘ उसने जवाब दिया.
‘ जा बुला ला और पालकी लगा अपनी.’ होटल वाले ने आदेश देते हुए कहा.
उदय वीर खुश हो गया. पूरे जोश से भर उठा. बस अब थोड़ी ही देर में राजमा चावल मिल जायेगें खाने को. एक किलोमीटर की चढ़ाई के बाद उसके दोस्त का राजमा चावल का ढाबा है .उसे वहां के राजमा चावल बहुत पसंद है. लेकिन वहां वह तभी जाता है जब उसे कोई यात्री मिलता है . नहीं तो यहीं नीचे कुछ न कुछ खा लेता है .
‘ चलो भाई यात्री मिल गया. उसने अपने साथियों से कहा
सबके चेहरे पर खुशी आ गई .
‘ कहां से मिला..... राजवीर ने पूछा
‘ होटल वाले दिलाया. उदय वीर ने खुश होकर बताया .
यह सुनते ही उन लोगों की खुशी आधी हो गई. होटल से यात्री मिलने का मतलब कम पैसे मिलना. वैसे तो तीन हजार रुपये तक ले लेते है उपर जाने के. लेकिन होटल वाले केवल दो हजार ही देते हैं. बाकी के पैसे खुद रख लेते हैं. मन मसोस कर रह गए लेकिन क्या करे कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
वे चारों तैयार हो गये. उदयवीर तेजवीर राजबीर ओर रणवीर.
चारों ने अपने अपने कंधों पर मोटे मोटे कपड़े रख लिए और होटल के सामने जाकर खड़े हो गये.
‘ आ गये सब लोग.’
उन सब लोगों को एक साथ देखकर होटल वाले ने कहा .
‘ जी साब,’ उदयवीर ने हाथ जोड़कर कहा .
‘ ये काका जी है दूर से आए हैं. इन्हें यमुनोत्री के दर्शन करा दो.’ होटल वाले ने कहा
उन चारों ने देखा मोटे और थुलथुल शरीर वाले काका थे. कुर्सी पर आराम से बैठे चाय की चुस्कियां ले रहें थे. पचास पचपन के आस पास की उम्र रही होगी.मोटा चेहरा लंबा कद. आंखों पर चश्मा पैंट और कमीज पहने . पाँव में जूते कसे उनकी तरफ देख रहें थे. उन चारों को तो उम्मीद दी कि कोई अस्सी नब्बे साल के काका होंगे जिन्हें ले जाना होगा लेकिन ये सज्जन तो पचास पचपन से ज्यादा नहीं लग रहें थे. उम्र भले ही ज्यादा न हो लेकिन शरीर जरूर भारी हो गया था. पहले तो मन में ख्याल आया कि चल कर भी तो जो सकते है फिर फौरन ही इस ख्याल को बदल दिया. जब सारे ही चलकर जाने लगेगें तो उनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी.
‘ हां भई चलोगे उपर .उन्होंने मुस्कराते हुए कहा और पालकी के पास आकर खड़े हो गए.
चंद्र प्रकाश ने घूर कर पालकी को देखा गोया ये मुआयना कर रहें थे कि पालकी पर बैठने से कोई खतरा तो नहीं ओर ये लड़के उनका बोझ उठा सकने में सक्षम है कि नहीं .
‘ हां ले चलेंगे आइए बैठिए.’ उदयवीर ने पालकी की तरफ इशारा करते हुए कहा.
‘ गिरा तो नहीं दोगे.’ उन्होंने मुस्कराते हुए कहा
डर रहा है तो पैदल क्यों नहीं चला जाता. राजवीर ने धीरे से तेजवीर कहा.
‘नहीं कुछ नहीं होगा आप बैठिए.’ तेजवीर ने पालकी की ओर इशारा करते हुए कहा.
चंद्र प्रकाश संभल कार पालकी में बैठ गये .बहुत मुश्किल से वे पालकी के अंदर घुस पाये थे. उनका कद लंबा था और पालकी छोटी थी. पैर सिकोड़ कर बैठ गये. बहुत दिक्क्त हुई उस पालकी में अपने शरीर को एडजस्ट करने में. किसी तरह जब वे पालकी में समा गये तो उदयवीर ने कहा ‘ काका जी टाँगे लंबी कर लीजिए ऐसे बैठने से पाँव में दर्द होने लगेगा. चार घंटे लगेगें.’
वे घबरा गये है इतनी देर तक इस तरह उकड़ू बनकर बैठना पड़ेगा.
‘ इतना टाइम लगेगा. ‘उन्होंने घबराए स्वर में कहा
‘ हां काका जी बहुत उपर जाना है और रास्ते में आराम भी करना है.’ रणवीर ने कहा.
वे कुछ नहीं बोले चुपचाप अपनी टाँगे उसके अनुसार लंबी कर ली. टाँगों के लंबी करते ही उनकी टाँगे पालकी से बाहर चली गई .
‘ पालकी तुम्हारी ही बहुत छोटी है.’ उन्होंने कहा
‘यही साईज होता है काका जी.’ उदयवीर ने कहा
पर मन ही मन उन्हें कोफ्त भी हो रही थी कहां हां कर बैठ गए. उपर जाने का यही एक तरीका था . पैदल वे इतनी चढ़ाई नहीं चढ़ सकते थे और घोड़े पर बैठना इससे भी ज्यादा कष्टकारी था. इसलिए पालकी का रास्ता चूना .पर इस जिज्ञासा थी यमुनोत्री के मंदिर के दर्शन करने की. इसी जिज्ञासा के चलते वे यहां तक आ गये थे . आये तो नहीं थे पर जबरदस्ती आना पढ़ गया था . देहरादून में एक मीटिंग थी. जिसमें वे आये थे .मीटिंग खत्म होने के बाद लोगों ने उन्हें सलाह दी कि जब यहां तक आये हो तो यमुनोत्री हो आइए . घोड़ा गाड़ी का सारा इंतजाम कम्पनी ने कर ही दिया था. उन्हें लालच आ गया और वे यहां तक आ गए. वे यहां तक न भी आते पर पत्नी के कहे को टाल न सके उसने कहा था जब इतनी दूर जा ही रहें हो तो यमुनोत्री के गर्म कुंड में स्नान जरूर कर आना. बस इसी बात के चलते वे यहां आ गये; पालकी में बैठकर वे डर भी गये थे. उनके डर को उदयवीर ने पहचान लिया था .
‘ डरिये नहीं काका जी रोज को काम है. हम लोगों का. कुछ नहीं होगा.’
‘पर तुम जल्दी मत चलना आराम से चलना.’ उन्होंने हिदायत के स्वर में कहा
‘ आप बिल्कुल मत घबराए. अच्छी तरह से ले चलेंगे आपको .’ उदयवीर ने उन्हें आश्वस्त किया .
उन चारों ने अपने कंधों पर मोटे मोटे कपड़े रख लिये जिससे पालकी का भारीपन उनकी कंधे की हड्डियों तक कम से कम पहुंच सके.
जब उन चारों ने पालकी उठाई तो चंद्र प्रकाश को एक अजीब सी अनुभूति हुई . उन्हें लगा कि उनका जनाजा उठ रहा है पर अगले ही पल इस विचार को उन्होंने बिजली की गति से भी तेज गति से त्याग दिया.
वे पालकी में संभलकर बैठ गये ओर कहा कि ‘ भाई धीरे धीरे चलना.’
‘आप फिक्र ने करें काका जी आराम से चलेंगे.’ उदयवीर ने कहा.
चंद्रप्रकाश टाँगे लंबी करके जितना आराम से बैठ सकते थे बैठ गये. उनके पास एक पानी की बोतल थी जिन्हें रखने के लिए पालकी में कोई जगह नहीं थी. पानी की बोतल को उन्होंने अपनी गोद में रख लिया था.उन्होंने देखा था बहुत संकरा रास्ता था करीब छ फुट जितना चौड़ा . वहीं रास्ता जाने वाले लोगों के लिए भी था और आने वाले लोगों के लिए भी. उसी रास्ते में पालकी वाले जा भी रहें थे ओर वापस आ भी रहें थे. घोड़े भी उसी रास्ते से आ जा रहें थे और पैदल भी लोग भी. उदयवीर बार बार लोगों से टकरा जाता और साइड साइड करके फटाफट उनकी पालकी को आगे कर देता दो कदम चलता भी न था कि फिर साइड साइड करके लोगों से आगे निकल जाता. उन्हें इस तरह तेज आगे चलते चंद्र प्रकाश घबरा गये थे. उन्होंने फिर कहा ‘अरे भाई कितनी बार कहा धीरे चलो क्यों इतनी तेज चल रहें हों.’
‘अरे काका जी तेज नहीं चलेंगे तो पहुचेगें कैसे वापस भी आना है कई पहाड़ों के पीछे है यमुना जी. राजवीर ने कहा.
‘काका जी तेज चलने से वज़न कम लगता है और रास्ता भी जल्दी कट जाता है. रणवीर ने कहा.
‘ मेरा वज़न ज्यादा है क्या ’ उन्होंने पूछा.
उनका सवाल सुनकर वे चारों मंद मंद मुस्करा दिये
‘नहीं ज्यादा नहीं है सबका इतना ही होता है.’उदयवीर ने कहा
‘अब साब आप लोगों का वज़न नहीं होगा तो क्या हम गरीब लोगों का होगा.’ राजवीर ने कहा.
‘पर जरा ध्यान से चलो.’ उन्होंने उन सबको को हिदायत देते हुए कहा.
‘बहुत डर रहा है काका.’ राजवीर ने अपने अपने साथी रणवीर से फुसफुसाते हुए कहा.
‘ इन्हें तो जरा जरा सी बात पर भी डर लगता है.’ रणवीर ने जवाब दिया.
‘डर लगता है तो बैठे ही क्यों थे. तेजवीर ने कहा.
और कोई चारा भी तो नहीं है इनके पास .’राजवीर ने कहा .
‘ सारे ही ऐसे होते है दो कदम पहाड़़ चढने की हिम्म्त नहीं रहती ओर चढ़ना चाहते है पहाड़. रणवीर ने कहा
‘ काका जी यहां थोड़ी देर रुकते है.’ अचानक उदयवीर ने पालकी को अपने कंधों से उतारते हुए कहा और एक ढाबे के पास रुक गए . पालकी को उन्होंने एहतियात के साथ अपने कंधों से उतारा.
चंद्र प्रकाश पालकी पर बैठे बैठे उकता गये थे उनकी पीठ में हल्का सा दर्द होने लगा था. उदयवीर ने हाथ पकड़ कर उन्हें पालकी से बाहर निकाला .पालकी से उतरकर वे ढाबे के किनारे खड़े हो गये थे पैर अकड़ गये थे पालकी में बैठे बैठे . खड़े खड़े उन्होंने वहां अँगड़ाई ली और अपने आपको तरो ताजा महसूस किया. उदयवीर और उसके साथी ढाबे के अंदर चले गये थे.
खड़े खड़े चंद्रपकाश की नजर जहां तक भी जाती थी ऊंचे ऊंचे पहाड़ ही दिखाई देते थे. पर उन पहाड़ों पर पेड़ बहुत कम बचे थे. ज्यादातर पहाड़ों पर से पेड़ काटे जा चुके थे . पहाड़ पत्थरों के बनकर रह गये थे. पहाड़ों के नीचे गहरी खाई में यमुना नदी का प्रवाह था. यमुना नदी के पानी की आवाज मनमोहक थी. कल कल करते पानी की आवाज उन्हें आकर्षित कर रही थी.
साहब कुछ पीयेगें. ढाबे का लड़का उनके सामने फ्रूटी के पैकेट लिये खड़ा था.
उन्होंने फ्रूटी का एक पैकेट ले लिया और जब से सौ रुपये का नोट निकाल कर उसे देते हुए पूछा,’ कितने का है.’
‘ साब बीस रुपये का.’उस लड़के ने जवाब दिया.
‘ठीक है. बाकी पैसे ले आओ.उन्होंने कहा.
अभी लाता हूं .’ कहकर वह लड़का ढाबे के अंदर चला गया .’
कहकर वह लड़का ढाबे के अंदर चला गया.
चंद्र प्रकाश धीरे धीरे फ्रूटी का मजा लेते रहे और आस पास की प्राकृतिक छटा को निहारते रहे. बड़ा अद्भुत नजारा था वहां.
थोड़ी देर तक वे खड़े रहे वहां कि अचानक उदयवीर और उसके तीनों साथी उनके सामने प्रकट हो गये और कहा ,’ चलिए काका बेठिये पालकी में.’
‘हां चलों.’ कहकर वे पालकी में बैठने लगे.’तो उदयवीर ने कहा ,’ काका जी खाने के पैसे दे दीजिए .पैसे काहे के पैसे वे चौंक गये.
‘ हम लोगों ने यहां खाना खाया हे उसके पैसे .’ उदयवीर ने कहा .
‘ वे मैं थोड़े ही न दूंगा.’ उन्होंने कहा
‘ नहीं साब पालकी में बैठने वाले ही देते है.’ उदयवीर ने कहा
‘नहीं नहीं मैं कुछ नहीं दूंगा.’उन्होंने जोर देकर कहा
‘साब सब देते है. उदयवीर न कहा .
‘ तुम होटल वाले से बात कर लो मैं उससे रेट तय करके ही बैठा था.’ चंद्र प्रकाश ने तर्क दिया.
‘वो ठीक है काका पर हमारे खाने के पैसे तो पालकी में बैठने वाले ही देते है.’ इस बार राजवीर ने कहा .
पर मैं नहीं दंगूा.’ उन्होने ग़ुस्से में कहा.
उदयवीर चुप रह गया कुछ नहीं बोला.
वे पालकी में बैठने ही वाले थे कि फ्रूटी वाला लड़का उनके पास आया कि कहने लगा कि ‘साहब इन लोगों को फ्रूटी पिला दो आपकी तरफ से.
‘ नहीं कुछ नहीं पिलाना. तुम बाकी पैसे वापस करो. कहकर उन्होंने उसके हाथ से अस्सी रुपये ले लिये. और पालकी में बैठ गये.
उदयवीर ने अपने साथियों की तरफ देखा पर कोई कुछ बोला नहीं और चुपचाप पालकी को कंधे पर उठाने लगे .
‘ चल उठा पालकी ..... उदयवीर ने कहा ओर चलने लगे.
उदयवीर के चेहरे भाव बदल गए. कैसा आदमी है यह हम इस ढो कर ले जा रहें है और यह हमें पानी तक नहीं पिला सकता.उन चारों के चेहरों पर क्षोभ की रेखाएँ उभर आई. उन्होंने पालकी उठाई और साइड साइड की आवाज लगाते हुए तेजी से चलने लगे. उन्हें तेज चलते हुए चंद्र प्रकाश कुछ घबरा से गये . ‘अरे भाई जरा धीरे चलों.’ उन्होंने कहा
‘काका बहुत उपर जाना है धीरे चलेंगे तो शाम तक नहीं पहुचेगें.’ उदयवीर ने कहा
कहते हुए और अपनी गति को जारी रखा.
उन्हें तेज चलते हुए चंद्र प्रकाश घबरा सा गये. सोचने लगे इन लोगों से कुछ कहने का कोई फायदा नहीं . करेंगे ये लोग अपने मन की ही. उन्होने पालकी के हत्थे को जोर से पकड़ लिया.
थोड़ी दूर चलने के बाद उन चारों ने पालकी एक जगह रोक दी. चंद्र प्रकाश से कहा,’ काका मैदानी इलाका है थोड़ा पैदल चल ले.
चंद्र प्रकाश को भी यह प्रस्ताव पसंद आया पालकी पर बैठे बैठे उनकी टाँग सुन्न हो गई थी.वे आहिस्ता से पालकी से उतरे. उतर कर सबसे पहले उन्होंने मेटासिन की एक गोली खाई और धीरे धीरे पैदल चलने लगे. पैदल चलते चलते हुए बढ़ा सुकून सा लग रहा था. सामने ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे. हवा में ठंडक थी
चलते चलते उदयवीर ने कहा कि,’ काका चाय पी ले.
हां पी लो. उन्होंने इजाजत दे दी गोया कोई बहुत बड़ा उपकार कर दिया हो.
जब वे चारों चाय पी चुके तो उदयवीर ने कहा,’ काका चाय के पैसे दे दीजिए.’
‘ मैं क्यों दूं तुम दो मैं होटल वालों से तय करके ही चला था जो पैसे मांगने है होटल वाले से मांगना .’ उन्होंने धमकाते हुए कहा.
बड़ा कंजूस है काका.’ राजवीर ने मन ही मन कहा.
वे चारों पालकी उठा कर तेज तेज चलने लगे.
चंद्र प्रकाश संभल कर बैठ गये कुछ देर पहले खाई मेटासिन का असर हो गया था उनके सर का दर्द कम हो गया था.
थोड़ी देर बाद पालकी एक जगह रोक दी. और कहा,’ काका जी आ यमुना जी का मंदिर आ गया. सामने चले जाइए. तेज वीर आपको दर्शन करा ले आयेगा हम यहीं रहेगें आपकी राह देखेंगे जरा जल्दी आ जाना बारिश होने वाली है. ज्यादा बारिश हुई तो मुश्किल हो जायेगी.’
‘ ठीक है कहकर वे पालकी से उतर गये. उन्होंने देखा बहुत भीड़ थी वहां. घोड़े वाले पालकी वाले सब रुक गये थे वहां से पैदल ही जाना था. वे भी तेज वीर का हाथ पकड़े पैदल चलने लगे.
यमुना जी का मंदिर उचांई पर था. चंद्र प्रकाश तेज वीर के कंधे का सहारा लेकर चढ़ने लगे.काफी भीड़ थी वहां. उपर पहाड़ों से यमुना का पानी कल कल करता बह रहा था. उन्होने पानी में हाथ डाला तो अजीब से खुशी हुई . पानी बर्फ से भी ठंडा और निर्मल था. कुछ देर वहीं खड़े रहें फिर तेजवीर ने कहा उपर गर्म पानी का कुंड भी है.
‘ अच्छा......’ उन्होने हैरानी व्यक्त की
वे धीरे धीरे सीढ़ियाँ चढ़कर गर्म पानी के कुंड के पास गये. उपर पहाड़ी में पाइप के सहारे गर्म पानी आ रहा था. उन्होंने पानी से हाथ धोना चाहा लेकिन फौरन ही हाथ खींच लिया . खौलता हुआ पानी था.’ बहुत गर्म पानी है.’ उन्होने वहां खड़े एक पंडित से कहा
‘ हां साहब सब यमुना जी की कृपा है. वहां आप गर्म पानी से स्नान भी कर सकते है. पंडित ने दायें तरफ इशारा करते हुए कहा .
कहां पर...उन्होने उत्सुकता वश पूछा. वे इसकी तैयारी करके आये हुए थे. पत्नी ने भी कहा था जब वहां जाओं तो स्नान जरूर करके आना.
वे उस दिशा की ओर बढ़ने लगे कुछ कदम चले ही थे कि स्नान करते लोग दिखाई दिये. उन्होंने भी कपड़े उतारे और स्नान करने कुंड में उतर गये. अदभूत आनंद आया उन्हें स्नान करते हुए गुनगुना पानी था. स्नान करने के बाद उन्होंने कपड़े बदले और मंदिर के अंदर जाकर दर्शन किए. मंदिर में उन्होंने पाँच सौ रुपये का नोट चढ़ाया ओर कुछ देर तक हाथ जोड़ और आंखें मूँद कर मूर्ति के सामने खड़ रहें .वे कुछ देर ओर वहां रुकना चाहते थे पर अचानक लाउड स्पीकर पर से घोषणा होने लगी कि जल्द ही बारिश हो सकती है लोग जल्द से जल्द यह जगह खाली कर दे .इस घोषणा का कुछ लोगों पर असर हुआ कुछ पर नहीं . पर चंद्र प्रकाश पर असर जरूर हुआ वे वापस चलने के लिये तैयार हो गये और तेज वीर के कंधों का सहारा लेकर वापस चल पड़े. बेहद खुश लग रहे थे जहां आकर. बरसों से संचित मुराद पूरी हो गई थी
वापस राजवीर के कंधे का सहारा लेकर वे धीरे धीरे पहाडि़या उतरनें लगे. कुछ ही देर में वे उस स्थान पर पहुंच गये थे जहां पर पालकी वाले खड़े थे. उन्हें आते देखकर उदयवीर सतर्क हो गया और अपने अँगोछे को अपने कंधे पर रखकर पालकी उठाने के लिये तैयार हो गया. जब चंद्र प्रकाश पालकी में बैठने लगे जो उदयवीर ने कहा ,’ काका नाश्ते के पैसे दे दीजिये.’
‘पैसे..... वे चौंक गये.
‘ पैसे काहे के पैसे..............’ उन्होंने मना करते हुए कहा था.
‘आपकी तरफ से नाश्ता किया है काका कंधे पर उठाकर ले जायेगें.’ उदयवीर ने कहा .
‘पर मैंने तो नहीं कहा था.’ उन्होंने कहा.
‘ ये काका पैसे नहीं देगा. राजवीर ने अपने साथी उदयवीर से कहा. उसने मन मारकर चाय के पैसे दे दिये. और कहा चल उठा इस काका को. उन सबके मन में चंद्र प्रकाश के प्रति आदर खत्म हो गया था. वे सोच रहे थे कैसा आदमी है ये इतनी दूर से यहां तक आया है हज़ारों रुपये खर्च करके . ये नहीं हम लोगों को खाना खिला दे, चाय पिला दे. उन सबने तेज तेज चलना शुरू कर दिया. उन्हें तेज चलते देख चंद्र प्रकाश घबरा से गये. अरे ‘जरा धीरे चलों.....’ उन्होंने कहा
‘ नहीं काका उतराई में धीरे नहीं चला जाता. जल्दी पहुंचना है अँधेरा होने वाला है. उदयवीर ने कहा और तेज चलने लगे चंद्र प्रकाश ने पालकी के हत्थों को कसकर पकड़ लिया.
उदयवीर ओर उनके साथियों ने तेज चलना शुरू कर दिया. कोई भी उनके रास्ते में आता तो ये उन्हें साइड देने की बजाय बीच में घुस जाते. उन्हें इस तरह उतरते देख चंद्र प्रकाश घबरा से गये. उन्होंने फिर कहा,’ जरा संभल कर चलों.’
‘ कुछ नहीं होगा काका हमारे रोज का काम है.’
कहकर वे हँसने लगे. जहां भी उन्हें खाली सड़क मिलती, वे पालकी लेकर साइड साइड करकर दौड़ने लगते और हँसते जाते. चंद्र प्रकाश की घबराहट बढ़ती जा रही थी.
जहां धीरे चलो.’ चंद्र प्रकाश की घबराहट बढ़ती जा रही थी.
पर उन चारों ने चंद्र प्रकाश की एक न सुनी. जहां भी उन्हें खुली सड़क मिलती वे खिलखिलाते हुए पालकी को लेकर दौड़ने लगते. चंद्र प्रकाश की सांस उपर की उपर और नीचे की नीचे. उन्हें लगा कि अब गिरे गिरे .मजबूती से उन्होंने पालकी के हत्थे को पकड़ लिया था. अकड़ कर बैठने से उनकी टाँग में दर्द होने लगा था. लेकिन वे मन मसोस कर रह गये थे.
‘ कितनी देर ओर लगेगी.’ उन्होंने पूछा
‘बस काका जल्दी चलेंगे तो एक घंटे में पहुंच जायेगें.’ तेजवीर ने जवाब दिया .
‘ कोई जल्दी नहीं है तुम लोग आराम से उतरो.’ उन्होंने कहा
‘ आराम तो अब नीचे ही जाकर करेंगे काका.’ राजवीर ने कहा ओर अपनी चाल में तेजी बनाये रखी. चंद्र प्रकाश समझ गये थे कि ये लड़के उनकी बात नहीं सुन रहें है बल्कि उनकी परेशानी का मजा ले रहे है .
थोड़ी देर बाद उन्होंने एक जगह पालकी रोक दी. चंद्र प्रकाश ने राहत के सांस ली हुई. पालकी को सड़क के किनारे खड़ा करके वे यह कहते ढाबे में चले गये कि काका चाय पीकर आते है. इस बार उन लोगों ने उन्हें पालकी से बाहर नहीं उतारा. वे खुद बख़ुद ही धीरे धीरे किसी तरह पालकी से बाहर आये पालकी में बैठे बैठे उनकी टाँग अकड़ गई थी. उन्होंने किसी तरह अपने आप को सीधा किया. जब से एक मेटासिन की गोली निकाल पानी के साथ गटक गये.
‘ कितनी देर नीचे पहुंचने में लगेगी.’ उन्होंने वहां खड़े एक घोड़े वाले से पूछा
‘ बस आधा घंटा और लगेगा. उसने बताया .
चंद्र प्रकाश ने थोड़ी राहत की सांस ली.
इतने में उदयवीर और उसके साथी आ गये. और कहा ,’ चलिए बेठिये काका अँधेरा होने से पहले नीचे पहुँचना है.’
‘ चाय पीली तुम लोगों ने. उन्होंने उदयवीर से पूछा. चाय के पैसे दूं. चंद्र प्रकाश ने प्रस्ताव किया.
नहीं हमने दे दिये. उदयवीर ने उनके प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा. ‘आप बैठिए पालकी में. देर हो रही है .’
‘ चंद्र सन्न रह गये सुबह से मुझसे कभी चाय के, कभी खाने के पैसे मांग रहे थे अब मैं दे रहा हूं तो ये मना कर रहें है. उन्हें अपना अपमान सा लगा पर कुछ बोले नहीं . चुपचाप पालकी में बैठ गये.
उदयवीर ओर उसके साथियों ने पालकी उठाई ओर लगभग दौड़ते हुए नीचे उतरनें लगे. ज्यों ज्यों इनके उतरनें की रफ्तार बढ़ती जाती त्यों त्यों चंद्र प्रकाश की घबराहट बढ़ती जाती. चंद्र प्रकाश की घबराहट को देखकर उन सबको आनंद आ रहा था खूब आनंद.
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HARIYASH RAI हरियश राय
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