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ढिंकचिका - ढिंकचिका

ढिंकचिका - ढिंकचिका

वर्ली की आलीशान इमारत दरवाजे पर कॉल बैल बजा कर अनिमेष थोड़ी देर हतप्रभ से खड़़े रहे. उन्हें अंदाजा था कि दरवाजा या तो उनका नौकर खोलेगा या उनकी पत्नी मनीषा.

लोकल से दादर स्टेशन पर उतर कर आधा घंटा भटकने के बाद उन्हें यह इमारत मिली थी. इमारत क्या थी किसी फाइव स्‍टार होटल से कम नहीं थी. गेट पर किसी युद्ध के मोर्चे की तरह तैनात सिक्‍यूरिटी गार्ड की फौज थी. एक ने आगे बढ़कर उनसे पूछा कि कहां जाना है तो उन्होंने बताया कि फलैट न 1802 में रहनेवाले आशीष यादव से मिलने जाना है तो उसने अपने रजिस्टर में चेक किया कि आशीष यादव ने पहले से सूचना दी है या नहीं. उनके रजिस्टर में उनका नाम था .उनका नाम देखते ही सिक्‍यूरिटी गार्ड की मुद्रा बदल गई. अतिशय विनम्रता की मूर्ति बन गया. और उनके साथ न सिर्फ नफ़ासत से पेश आया बल्कि उन्हें लिफ्ट तक छोड़ने भी आया. लिफ्ट का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘अठाहरवी मंजिल पर चले जाये सर , दायें तरफ आशीष यादव साहब का फलैट है.’

लिफ्ट का दरवाजा बंद होते सिक्‍यूरिटी गार्ड ने एड़ियां ठोक कर उन्हें सलाम भी किया. इतना उसे पता था इस बिल्डिंग में रहने वाले साहब लोगों के मेहमान भी मामूली लोग नहीं होते हैं, बेहद खास होते हैं .हैरान रह गये अनिमेष इस इमारत को देखकर . फलोर शीशे की तरह चमचमा रहा था. फर्श पर देखने से अपनी ही शक्ल दिखाई दे जाती थी.

फलैट का दरवाजा भी भव्यता का एहसास कराता था . दरवाजे के उपर बड़ी सी गणेश की प्रतिमा थी. दरवाजे के किनारे संगमरमर की छोटी सी चौकी थी जिस पर राजस्थान की बनी हुई कठपुतलियाँ रखी हुई थी. दरवाजे पर आकर्षक बंदनवार थे.

लगभग एक मिनट के इंतजार के बाद एकाएक दरवाजा खुल गया. सामने आशीष यादव की पत्नी मनीषा यादव थी. पहचान लिया उसने. अनिमेष से कुछ साल पहले मिल चुकी थी.’ ‘ आइए, भाई साहब आइये, आप ही का इंतजार कर रहे थे.’
कहकर मनीषा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही उनका स्वागत किया. खुश हो गये अनिमेष. उनका इंतजार था. हॉलाकि उन्हें आने में कोई बहुत ज्यादा देर तो नहीं हुई थी. दरवाजे पर ही खड़े खड़े नमस्‍कारों का आदान प्रदान हुआ.

भव्य आलीशान फलैट था. फलैट क्या किसी महल से कम नहीं था. बड़ा सा ड्राइंग रूम था. अनिमेष आहिस्ता से चलते हुए सोफे की एक कुर्सी पर बैठ गये. बड़ा संकोच हो रहा था उन्हें वहां बैठते हुए. उनके सामने वाली कुर्सी पर मनीष बैठ गई ,’ बस आशिष अभी आता ही होगा.’ मनीषा ने कहा और आवाज दी,’ करीमा, जरा एक ग्‍लास पानी लाओं.’
उन्होंने गौर से देखा कि मनीषा यादव बहुत भली लग रही थी. हल्के पीले रंग की साड़ी पहने. गले में सफेद मोतियों की माला. चेहरे पर करीने से हल्का सा मेक अप. लगभग पैंतीस साल की उम्र में भी सुंदर और आकर्षक. यही उम्र रही होगी क्योंकि आठ दस साल पहले तो उनकी शादी हो चुकी थी . उनकी शादी में शामिल हुए थे वो. बड़ा और भव्य सा ड्राइंग रूम था. दीवारों पर हल्का हरा रंग था .उन दीवारेां पर आकर्षक पेटिंगस थीं. बेहद खूबसूरत और आकर्षक दीवार घड़ी थी. जिसका पैंडुलम लगातार हिल रहा था जो जीवन की गति का एहसास लगातार करवा रहा था. सामने दीवार पर बहुत खूबसूरती से बनाया गया शो केस था. जिस पर क्रिस्‍टल के मैडल और शील्‍ड रखे थे. कई सारे बेहद कीमती सजावटी सामान थे जो शायद अलग अलग शहरों से खरीदे गये थे या उपहार में आशीष को दिये गये थे दीवार पर बड़ा सा एल. सी. डी. टेलिविज़न था. शीशे की बड़ी बड़ी खिड़कियाँ थी. उस पर हल्के पीले रंग के डिज़ाइन दार परदे थे. उससे सटा एक छोटा सा कमरा था जो शायद आशिष का स्‍टडी रूम था. सामने की टेबल रखा हुआ लैपटॉप व कुछ किताबें उन्हें वहां बैठे बैठे दिखाई दे रही थीं.
‘लीजिये भाई साहब पानी लीजिये.’ मनीषा ने कहा.
अनिमेष ने देखा कि रैजिना नाम की नौकरानी एक छोटी सी ट्रे में शीशे के गिलास में पानी लेकर उनके सामने हाजिर थी. अनिमेष ने उसके पानी ले लिया और दौ घूंट पीकर वहीं सेंटर टेबल पर रख दिया. करीमा ने वह गिलास वहां से उठाया और बहुत नफ़ासत से किचन में चली गई.
देखने में वह किसी भी तरह से नौकरानी नहीं लग रही थी. शरीर पर अच्छा सूट था. बा चेहरे पर मेकअप . गले में कपड़ों से मैचिंग ज्‍वैलरी .
‘यहां मुंबई में आकर आप लोग बहुत बिजी हो गये है. न कोई मेल, न कोई फोन ’ अनिमेष ने कहा.
‘हां भाई साहब. मुंबई की लाइफ तो बस पूछो मत. आफिस में ही रात के नौ नौ, दस दस बज जाते हैं, फिर कहां याद रहता है सब कुछ .’ मनीषा ने फक्र से कहा.
‘अच्छा ’…. उन्होंने हैरानी व्यक्त की.
‘हां भाई साहब अब फॉरैन कम्‍पनियां इतनी सारी तन्ख़ाह देंगी तो काम भी तो उतना ही लेंगी.’ मनीषा ने आत्मविश्वास से कहा.
‘अच्‍छा, अब कहां काम करती है. बैंक छोड़ दिया क्या.

जहां तक अनिमेष को याद था वह किसी बैंक में काम करती थी
‘ अब बैंकों में क्या रह गया है सब सरकारी दफ़तर बन गये है. और फिर पैसा भी नहीं है . वहां. न पैसा, न वर्क कलचर. गधे, घोड़े सब बराबर . अब आई. आई. एम. से डिग्री लेने के बाद कौन रूकेगा सरकारी बैंकों में.
’अच्‍छा तो अब कहां पर काम करती हैं. अनिमेष ने जानना चाहा.
‘ होस्‍टन कंसलटैंसी में.’ मनीषा ने बताया
‘ यह तो विदेशी कम्‍पनी है.’
‘हां अमेरिकन कम्‍पनी है एच आर रिलेटेड काम है. मैं महाराष्ट्र स्टेट की हैड हूं .’मनीषा की आवाज में दर्प झलक रहा था.
‘ अरे वाह ,बधाई हो, यह तो बहुत बड़ा ओहदा है.’ अनिमेष ने नम्रता से कहा
‘ पर इस ओहदे की ज़िम्मेदारियाँ भी बहुत हैं दिन रात कुछ नहीं है वहां, बस काम ही काम है. घर भी नहीं सँभाला जाता. बस सब नौकर ही संभाल रहे है.’ मनीषा ने अपने बारे में जानकारी दी.

‘आशीष भी इसी कंपनी में है.’अनिमेष ने जानना चाहा.
फोन पर बात तो उनकी कई बार हुई थी आशीष से पर इस बारे में कोई बात नहीं हो सकी थी लिहाज़ा अनिमेष ने पूछ लिया .
‘ नहीं... उसने अपनी कंसलटैंसी शुरू कर ली है. एच आर रिलेटैड. मनीषा ने आशीष के बारे में जानकारी दी.
‘वहां भी काम रहता होगा....... अनिमेष ने कहा
‘उनका तो पूछो मत भाई साहब, दिन रात भाग दौड़़. कभी अमेरिका, तो कभी जापान, तो कभी चीन. न जाने कितनी यूनिवर्सिटियों के एडवाइजर बन गये हैं. जगह जगह लैक्‍चर देने जा रहें है. आज बैंगलोर में, तो कल कोलकता में, तो परसों बँगला देश में . अपना ट्रेनिंग इन्‍सीटीटयूट भी खोल लिया है.’ मनीषा ने गर्व से बताया.

उसके शब्द शब्द में दर्प झलक रहा था
‘बहुत तरक्की की आप लोगों ने.’ अनिमेष ने कहा.
‘सब गणपति बप्‍पा की कृपा है.’ कहकर मनीषा ने हाथ जोड़कर किसी गणपति बप्‍पा को प्रणाम किया.
‘ पर गया कहां है.’ अनिमेष ने पूछा
अभी पता करती हूं कहां रह गया. कहकर मनीषा ने बड़ा सा काले रंग का फोन उठाया . फोन के चमकदार स्‍क्रीन पर कई सारे आइकॉन थे. मनीषा ने उन आइकॉन पर आहिस्ता से अपने हाथ के अंगूठे को हिलाया और न जाने कौन सा आइकॉन पर पहुँच कर दबाया तो उधर से आशीष की आवाज आई,’ बस पहुंच रहा हं. रैड लाईट पर हूं’
‘ जल्दी आइये, तुम्हारा दोस्त कब से तुम्हारा इंतजार कर रहें है.’मनीषा ने सहजता से कहा .
‘बस दस मिनट और,’ कहकर उसने फोन बंद कर दिया.
‘ बस आ रहे है. मैं आपके लिये तब तक काफी बनवाती हूं’कहकर मनीषा कुर्सी से उठ गई
‘ नहीं.... नहीं तकल्लुफ मत कीजिये उसे आने दीजिये .’
‘ अच्‍छा ठीक है में अभी आई कहकर वह दूसरे कमरे में चली गई . उस कमरे से हल्के से संगीत की कुछ आवाज़ें आ रही थी जिसे अनिमेष समझ नहीं पा रहे थे.

मनीषा के वहां से हटते ही अनिमेष से भी थोड़ी सी राहत महसूस की . अब ज्यादा देर क्या बात करे. अब पहले जैसा माहौल तो रहा नहीं.समय समय के साथ साथ बेहद औपचारिक हो गया है सब कुछ . उन्हें आज ही दिल्ली जाना था. पाँच बजे की राजधानी से. आशीष को फोन किया तो उसने कहा चांस की बात है कि आज में फ्री है. थोड़ी देर के लिये आ जाओं. खाना वाना हमारे साथ ही खा लेना और फिर मेरा घर स्टेशन के पास ही है अपनी गाड़ी से छोड़ दूंगा स्टेशन तक. अनिमेष मान गये. महाराष्ट्र में किसानों की आत्म हत्याओं से संबंधित मुख्य मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस को कवर करने के लिये अख़बार के मालिकों ने उन्हें दिल्ली से मुंबई भेजा था. उनका काम खत्म हो चुका था . दो घंटे का समय था उनके पास. अपने अख़बार के बहुत सीनियर पत्रकार थे.
बरसों पुराना साथ है उनका आशीष से . बचपन का दोस्त था उसका .दोनों परिवारों के हर फंक्‍शन में दोनों दोस्तों की मौजूदगी जरूर होती थी. अनिमेष की मां आशिष को अनिमेष का भाई समझती थी. ओर आशिष की मां अनिमेष को. आशिष के पिता ने अनिमेष को बहुत कुछ सिखाया था. भारतीय इतिहास,राजनीति,संस्कृति और न जाने क्या क्या और शायद उन्हीं के प्रेरणा से वह पत्रकारिता के क्षेत्र में चला गया और आशिष मैनेजमैंट स्कूल में दाखिला लेकर एम बी ए हो गया. आशिष ने भी बेटे के धर्म को खूब निभाया. अनिमेष की मां की मृत्यु पर तेरह दिन तक अपने आफिस से छुट्टी लेकर वह अनिमेष के साथ रहा. दोनों दोस्त दोनों परिवारों के हर सुख दुःख में एक दूसरे के साथ खड़े रहे. पिछले कई सालों से यह सिलसिला खत्म हो गया. आशीष दिल्ली छोड़कर मुंबई आ गया और अनिमेष अपनी पत्रकारिता की दुनिया में गहरे डूब गया.
‘और बेटी क्या कर रहीं हे आपकी. ’ अनिमेष ने पूछा
‘आजकल संगीत सीख रही है. मनीषा ने गर्व से बताया
‘ अरे वाह यह तो बड़ा अच्‍छा काम है. संगीत तो आदमी को बेहतर मनुष्य की ओर ले जाता है.’ अनिमेष ने कहा
‘ वैसा संगीत भी नहीं सीख रही. बस स्कूल डाँस कम्‍पटीशन है उसी की तैयारी कर रही है.’ मनीषा ने बताया.
करीमा............... कहकर मनीषा ने आवाज लगाई
‘ देखो अनामिका क्या कर रही है. मनीषा ने आदेशात्मक स्वर में करीमा से पूछा.
‘ जी अपने कमरे में है.’ करीमा ने सहमते हुए जवाब दिया.
‘ ठीक है बुला लाओं .
‘जी अच्‍छा..... कहकर करीमा अदब से चली गई .
थोड़ी देर में हंसमुख सी प्यारी सी बच्ची उस कमरे में आ गई. सात आठ साल उम्र रही होगी उस बच्‍ची की जीन्‍स और टाप पहने.
अनिमेष को महसूस हुआ कि कसी हुई जीन्‍स की पैंट में उसे असुविधा हो रही होगी
‘आओ बेटा अंकल्‍ को नमस्ते करो.’ मनीषा ने पुचकारते हुए कहा.
वह शरमाती हुई अनिमेष के पास चली गई और हाथ जोड़कर नमस्ते कहा
‘ अरे बहुत बड़ी हो गई.’ अनिमेष ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा
‘ कौन सी क्लास में हो.
फोर्थ बी.......अरे वाह यह तो बहुत बड़ी क्लास है.’ अनिमेष ने उसकी सराहना की.
‘ क्या करती हो स्कूल में.
डाँस......... उसने सहजता से बताया
‘ डाँस कम्‍पटीशन की तैयारी कर रहीं है. अंकल को दिखाओ डाँस. मनीषा ने कहा
‘ अभी............... उसने जानना चाहा
‘ हां अभी......मनीषा ने प्‍यार से कहा .
‘ पर म्‍यूजिक ......... उसने मनीषा की तरफ सहजता से देखते हुए कहा
‘ म्‍यूजिक भी लगा देती हूं.
कहकर मनीषा उठ गई और कुछ ही क्षणों में लैपटॉप लेकर आ गई . तब तक शायद अनामिका भी डाँस करने के लिये तैयार हो गई थी
कौन सा करुँ ..... उस छोटी सी बच्ची ने अपनी मां से पूछा .

वह बहुत खुश हो गई थी
‘वही जिसकी तैयारी कर रही हो इतने दिनों से.’
कैटरीना वाला...... .
हां वही कैटरीना वाला
ओ के. कहकर लैपटॉप
लैपटॉप‍ में जोर से म्‍यूजिक बजने लगा. म्‍यूजिक के साथ गाना भी. उस गाने के साथ ही अनामिका डांस करने लगी.
‘ ठहरो मैं तुम्हारा वीडियों बनाती हूं.’
कहकर मनीषा ने अपना कैमरा उठा लिया और न उसे डाँस का वीडियों बना लिया. अनामिका डाँस करने लगी ओर गाना भी गाने लगी
चिकनी चमेली छुपके अकेली पव्वा चढ़ा के आई .
‘अरे वाह...... मनीषा ने उसकी तारीफ की. अपनी तारीफ से उसमें और उत्साह आ गया .
‘बड़ा अच्‍छा डाँस करती है.’ अनिमेष ने भी तारीफ की.
‘ बहुत मेहनत करनी पड़ती है बच्चों के साथ तब कहीं जाकर कुछ सीखते है आजकल के बच्चे.’ मनीषा ने बताया
‘ फिर से करो...... मनीषा ने कहा ...
सात आठ साल की बच्‍ची फिर से इसी गाने पर डाँस करने लगी
‘चिकनी चमेली छुपके अकेली पव्वा चढ़ा के आई.............................
अब दूसरा ...............
मनीषा ने लैपटॉप‍ पर म्‍यूजिक बदल दिया तो उस म्‍यूजिक के साथ ही अनामिका दूसरा डांस करने लगी
मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिये ..........
अनामिका डाँस कर रही थी और मनीषा उसका वीडियों तैयार कर रही थी.
थोड़ी देर बाद अनामिका बैठ गई .

अनिमेष अवाक रह गये. इस छोटी सी बच्ची से इन गानों को सुनकर
फिर अनामिका ने कहा. ‘ ममा शीला वाला म्‍यूजिक लगाओं..........

मनीषा ने लैपटॉप‍ म्‍यूजिक बदल दिया
‘माई नेम इज शीला .... शीला की जवानी ........

वह बच्‍ची उस गाने पर डांस करने लगी
फिर अनामिका ने कहा ढिंकचिका ... ढिंकचिका ... वाला लगाओं
मनीषा ने फिर म्‍यूजिक बदल दिया
ढिंकचिका ढिंकचिका .........
सात आठ साल की बच्‍ची मग्न होकर यह गाना ग रही थी. और डाँस कर रही थी

पता नहीं क्‍यों अनिमेष को बड़ा अटपटा सा लग रहा था. यह छोटी सी बच्ची इस गानों का मतलब समझती है या बिना मतलब समझे डाँस‍ किए जा रही है. वह सोचने लगे कल जब यह बड़ी होगी और अपना वीडियो देखेगी तो इन डाँस और गानो पर फक्र महसूस करेगी या शरमिंदा होगी. उन्हें अजीब सी अकुलाहट महसूस होने लगी .

अचानक दरवाजे की कॉल बैल बजी,’ लगता है आ गये’ कहकर मनीषा ने लैपटॉप बंद कर दिया. डाँस करते - करते अनामिका को पसीना आ गया था वह थक कर सौफे की एक कुर्सी में दुबक कर बैठ गई.
मनीषा दरवाजा खोलने आगे बढ़ी . आशीष था. लगभग चालीस साल की उम्र. छोटा कद. बाल पूरी तरह सफेद हो चुके थे. हरा कुर्ता और जींस की पैंट पहने. हाथ में सिद्धि विनायक के मंदिर का प्रसाद लिये उसने कमरे में प्रवेश किया.
‘कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे है.’ मनीषा ने उलाहने के स्वर में कहा .
‘ क्या बताउं बहुत भीड़ थी वहां.’
‘ पर इतनी देर लगती है क्या.’
‘ तुम बुरा मानो या न मानो पर तुम्‍हारी भाभी जरूर बुरा मान रहीं है.’ आशीष ने अनिमेष से कहा
‘ बुरा मानने की तो बात है कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’ अनिमेष ने कहा .
‘अभी तुम्‍हारी गाड़ी जाने में बहुत वक्त है. तो लो पहले गणपति जी के लड्डू खाओं.’ आशीष ने लड्डू का पैकेट अनिमेष के आगे रखते हुए कहा .
और सोफै की सामने वाली कूर्सी पर बैठ गया .
‘तुम्हें गणपति के पास जाने की क्या जरूरत थी. सब कुछ तो है तुम्हारे पास.
’थोड़ा है थोड़े की जरूरत है. आशीष ने लापरवाही से कहा .
‘आपको बताया नहीं इन्होंने.’ मनीषा ने कहा
‘ नहीं आज ही कैमरीन गाड़ी ले कर आये है.’मनीषा ने गर्व से बताया .
कैमरीन .... सुनकर चौंक गये अनिमेष. उसकी कीमत तो तीस पैंतीस लाख से कम नहीं होगी. मन ही मन सोचा.
‘घर देखा कि नहीं.’ आशीष ने पूछा .
‘ अब तुम आए हो तो देख लेंगे.
.आओ..... तुम्हें पहले अपना घर दिखाता हूं . कहकर आशिष सौफे से उठ गया.
आशीष खिड़की के किनारे के परदे को हटाकर कहने लगा,’ मुंबई को देखना हो तो यहां से देखो ‘अनिमेष ने खिड़की के शीशों के पार नजर डाली तो दूर तक समंदर ही समंदर दिखाई दे रहा था. जहां तक नजर जाती थी समंदर था.शांत समंदर . खिड़की के एकदम नीचे देखने पर झुग्गी झोपडि़यों की लंबी कतार थी .ठेले और छोटी छोटी दुकानों की अंतहीन कतार. उन क़तारों के सामने फटे मैले कपड़े पहने लोगों के झुंड थे . लेकिन जिस उचांई पर आशीष का घर था वहां से नीचे कम और दूर तक समंदर ज्यादा दिखाई देता था. दाई तरफ छोटे छोटे चालनुमा घर थे. बाईं तरफ विशाल इमारत आकार ले रही थी. इनके बीच यह विशाल इमारत एक आईलैंड की तरह थी
‘वाह क्या नजारा है..... दायें देखो तो समंदर, बाएं देखो तो झुग्गी झोपडि़यों की विशाल बस्ती. ’ अनिमेष ने दूर तक समंदर को देखते हुए कहा.
‘बस यही दिक्कत है मुंबई में .एक तरफ बड़ी बड़ी बिल्डिगें है .और दूसरी तरफ झुग्गी झोपडि़यों.’ मनीषा ने कहा.
‘हां वो तो है.’ अनिमेष ने कहा
‘ पर यह जरूरी भी है नहीं तो करीमा जैसे काम करने वाले लोग कैसे आएगें;
‘पर घर तुम्हारा बहुत अच्छी जगह पर है जहां तक नजर जाती है समंदर ही समंदर दिखाई देता है.’ अनिमेष ने कहा .
‘यही तो खासियत है इस घर की .जिस कमरे से भी देख लो समंदर हिलोरे लेता दिखाई देता है हवा तो ऐसी मस्त आती है कि पूछो मत, और बारिश में ऐसे लगता है कि घर में नहीं बादलों के बीच रह रहें हो.’ आशीष ने गर्व से कहा.
‘मेरे ख्याल से पहले तो आप लोग कही और रहते थे.’ अनिमेष ने कुछ सोचते हुए कहा.
‘ ठीक पहचाना आपने, पहले जब आप आए थे तब हम बोरीवली में रहते थे.’ मनीषा ने कहा.
‘ तो वो घर......
‘बेच दिया..... आशीष ने कहा.
‘ उसको बेचकर ही तो यह खरीदा है. मनीषा ने बताया
‘ उतने में आ गया .
‘कहां आया. और बहुत कुछ डालना पड़ा
‘ बहुत कुछ मतलब...........
‘ बैंक लोन, इलाहाबाद का घर, बाग़ बाग़ीचे, सब कुछ स्वाहा हो गए .. आशीष ने उदास होकर कहा
अनिमेष को आशीष के स्वर में एक अवसाद सा महसूस हुआ
‘ इलाहाबाद का पुश्तैनी घर भी बेच दिया. आशीष ने बताया .
अरे....... अनिमेष हैरान रह गया.
‘बहुत बड़ा घर था वह तो.
‘ और नैनी वाला अमरूदों का बाग़ भी बेच दिया.’आशीष ने उदास होकर कहा
‘ अरे वह भी ........क्‍यों बेच दिया.
‘ अब वह किसी काम का नहीं रह गया था. और इतना समय भी नहीं है कि उसकी देखभाल के लिए बार बार वहां जाया जाए .
’तो उसी के पैसों से यह घर खरीदा है.’ अनिमेष ने कहा .
‘ न, उससे बात नहीं बनी. बैंक से लाने लेना पढ़ गया मुझे भी और मनीषा को भी . बैंक का बहुत बड़ा लोन और चढ़ गया.’आशीष ने बताया.
‘अरे कर्ज भी ...अनिमेष हैरान रह गये. क्या कीमत होगी इस घर की. वह सोचने लगे.
‘एक लाख की किस्त आती है.’ मनीषा ने बताया.
अनिमेष अवाक रह गये. यह सही है कि बाप दादाओं की विरासत का हकदार आशीष था. न कोई भाई, न कोई चाचा. लेकिन फिर भी इलाहाबाद का घर और अमरूदों के बाग़ तो इसे नहीं बेचने चाहिए थे. मुंबई में केवल समंदर देखने के लिये सब कुछ बेच दिया और कर्ज का पहाड़ सर चढ़ा लिया . अनिमेष को यह जानकर दुःख हुआ, बहुत गहरा दुःख. अनिमेष अवाक उसके चेहरे की ओर ताकता रह गया .उसकी आंखों में इसके प्रति तिरस्कार आ गया
‘ कितने में यह लिया यह घर अनिमेष ने हिचकिचाते हिचकिचाते हुए पूछ लिया.
उसके सवाल का जवाब किसी ने दिया. केवल दूर तक समंदर को देखते रहें. फिर थोड़ी देर बाद मनीषा ने कहा.
‘पांच करोड़़...........................
पाँच करोड़़........ सुनकर अनिमेष दहल गये.
‘वैसे तो बांद्रा वैस्‍ट में समंदर के किनारे खरीदना चाह रहें थे. पर वहां तो कोई खाली ही नहीं था. मजबूरन वर्ली में आना पड़ा. बस दिक्कत यही है आस पास झुग्गी झोपडि़यां बहुत है ’
मनीषा ने वहां छा रही उदासी को भंग करते हुए कहा
‘अम्मा जी कहां है आजकल. अचानक अनिमेष ने पूछ लिया .
उसकी इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया न आशिष ने, न मनीषा ने. उन दोनों के चेहरे के भाव अचानक बदल गये गोया किसी स्वादिष्ट व्यजन में कंकड़ आ गया हो.
‘इधर आओ तुम्हें अपना कमरा दिखाता हूं. ........ कहकर आशिष अनिमेष को दूसरे कमरे में ले गया.

बेहद सुंदर ढंग से सजाया गया कमरा था. आलीशान रैक था. उस रैक पर मैनेजमैंट से संबंधित न जाने कितनी किताबें थी . जगह जगह आशीष को मिले सम्मान के फोटो थे. प्रधानमंत्री से कोई इनाम लेते हुए फोटो को एक बड़े प्रेम में करके रैक के सबसे उपर रखा हुआ था.
‘ बहुत बड़ा घर है तुम्हारा ........ अनिमेष ने कहा .
‘ पर इसे बनाने में सब कुछ खत्म हो गया. इलाहाबाद का घर , परदादा के जमाने का अमरूदों का बाग़. और हम दोनों पर भारी कर्ज. आशीष ने उदास होकर कहा .
‘ क्या जरूरत थी यह सब करने की . अनिमेष ने पूछा
‘ बस यही सोचा था कि मुंबई में रहकर बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल जायेगी. जीवन में आगे बढेंगे तो कुछ कर पाएगें. आशीष ने कहा कौन सी अच्छी शिक्षा........... ढिंकचिका ढिंकचिका वाली शिक्षा .................. या मुन्‍न्‍ी बदनाम हुई वाली शिक्षा ... कौन सी अच्छी शिक्षा. अनिमेष ने सवाल किया .

आशीष कुछ नहीं बोला. अनमेष ने फिर पूछा ‘ अम्मा जी कहां है आजकल.’

अनिमेष ने महसूस किया कि आशीष अम्मा के बारे में बात करने से कतरा रहा था. आहिस्ता से कहा ‘ नीलम के पास .......
‘नीलम, आशीष की बहन का नाम था
‘वो कहां है आजकल. .....
.इलाहाबाद में ही....
‘ पर वो तो स्कूल में कहीं पढ़ाती है न .
‘हां डी ए वी स्कूल में
‘तो अपने पास क्‍यों नहीं ले आते उन्हें.’ अनिमेष ने कहा .
मैंने तो कई बार कहां, पर उनका मन ही यहां नहीं लगता.’ आशीष ने कहा .
अनिमेष को सारा माजरा समझते देर नहीं लगी .
‘कभी इलाहाबाद जाने की इच्छा नहीं होती तुम्‍हारी.’ अनिमेष ने पूछा
न जाने क्‍यों आशीष की आंखें नम हो आई . कहा,’ हां यार उत्कंठा सी बनी रहती है इलाहाबाद जाने की . अपने अमरूद के उस बाग को देखने की जिसे मैंने इस घर के चक्कर में बेच दिया . इलाहाबाद के अपने उस घर को देखने की भी बहुत चाह है जहां मैं पला, बड़ा हुआ और यहां तक पहुँचा, उस आँगन को देखने की दिल्‍ली इच्छा है जहां मेरे पिता ने अंतिम सांस ली . प्रयाग के किनारे जाकर घंटों चुपचाप बैठने की भी इच्छा होती है जहां की ठंडी ठंडी हवाओं में न जाने कितने साल गुज़ारे. कभी समय मिला तो उस घर और बाग़ को जरूर देखकर आउंगा . कभी कभी तो उस बाग़ और घर को वापस खरीदने की भी इच्छा होती है. इच्छा होती है अमरूदों के बाग़ में जाकर कच्चे अमरूदों को तोड़ने की और फिर काले नमक के साथ खाने की ’ कहते कहते आशीष की आंखें नम हो आई . उसने अपनी भीगी पलकों को अपनी उंगलियों से पोंछा .

‘आइए खाना लग चुका है. .दूसरे कमरे से मनीषा की आवाज आई .

आशीष और अनिमेष मनीषा की आवाज बड़े से ड्राइंग रूम में आ गये. ड्राइंग रूम में टी वी पर ढिंकचिका ढिंकचिका वाला गाना बज रहा था और उस गाने पर अनामिका मस्ती से अपने स्कूल में होने वाले डाँस कम्‍पटीशन के लिये डाँस की प्रैकिटस कर रही थी.

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HARIYASH RAI हरियश राय
73, मनोचा एपार्टमैंट, एफ ब्‍लाक,
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मो : 09873225505
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