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मजबूरी


मजबूरी

आर ० के ० लाल



बाबूजी मुझे मारिए। मुझे पुलिस में दे दीजिए । मैंने कैसे हिम्मत की, यह सब करने की । वह भी आप

जैसे भले व्यक्ति के साथ। फिर राधिका रोने लगी और कहने लगी, “आदमी की मजबूरी उसे कितने नीचे गिरा देती है कि वह कुछ भी कर डालता है। मान मर्यादा भी वह भूल जाता है। मुझे इस दुनिया में जीने का कोई हक नहीं है । मैं फांसी लगा लूंगी या गाड़ी के नीचे लेट जाऊंगी। बस आप मुझे माफ कर दीजिये”।

राधिका कई सोसाइटी में जाकर घरों में बर्तन साफ करने, झाड़ू-पोंछा का काम करती थी। वह आठ –

दस घरों में काम करती थी । हर घर से उसे अच्छा खासा पैसा मिल जाता था । उसका पति भी रियालयन्स कंपनी में मजदूरी करता था। आजकल सूरत गया हुआ था और वहाँ से पैसे भेजता था। इस प्रकार उसका महीने भर का खर्चा आसानी से चल जाता था, परंतु कोरोना वायरस के कारण लगभग सभी लोगों ने घरेलू बाइयों का काम छुड़वा दिया था। अब लोग अपना काम स्वयं करने लगे थे।

उन्हें डर था कि कहीं कामवाली के कारण घर में वायरस न आ जाए। पहले तो सभी ने कहा था कि बिना काम किए पूरी पगार मिलती रहेगी, कोई मजदूरी नहीं कटेगी, मगर बिना काम करवाए तीन-तीन महीने कौन पैसे देता। सबने हाथ खड़े कर दिये थे। लोग कहने लगे, “लॉक-डाउन में हमारी सैलरी भी पूरी नहीं मिल रही है इसलिए राधिका अभी तुम काम छोड़ दो, बाद में हम बताएँगे। हाँ! तुम्हें कोई जरूरत हो तो मुझे फोन करना, जो हो सकेगा हम करेंगे”। राधिका को पता था कि यह सब केवल तसल्ली देने की बातें थी।

अब राधिका केवल एक घर में काम करती थी। उसके मालिक सुहेल और उनकी पत्नी नंदिनी दोनों अलग- अलग कंपनी में नौकरी करते थे। लॉक-डाउन में दोनों को वर्क फ्राम होम करना पड़ता था। इसलिए उन्हें एक हेल्पर की जरूरत थी।

सोसाइटी वालों के एतराज करने के बावजूद भी वे लोग राधिका को काम पर लगाए हुये थे । दोनों पति – पत्नी के पास समय ही नहीं था कि वे घर का काम कर सकें। सुहेल ने राधिका से पूछा था कि क्या वह रात- दिन उनके घर पर रह कर काम कर सकती है । वे इसके लिए राधिका को ज्यादा पैसे और खाना पीना भी देने को तैयार थे । मगर यह संभव नहीं हो सका क्योंकि राधिका के घर पर

उसकी सास और दो छोटी लडकियां थीं और उसके पति को सूरत से वापस आने का कोई साधन नहीं मिल पा रहा था। राधिका ने कहा था, “नहीं बाबू जी, घर पर मेरा रहना जरूरी है, मैं सुबह शाम ही आ सकती हूं, रात में नहीं रह सकती”। राधिका सोच रही थी कि रात में रुकने की बात कितनी उचित होगी । राधिका का रोना सुन कर नंदिनी भी वहाँ आ गयी । उसने भी राधिका को डांटते हुये सख्त लहजे में पूछा कि तूने ये हरकत क्यों की? राधिका की पूरी राम-कहानी कुछ ऐसी थी । काम छूट जाने के बाद धीरे-धीरे राधिका के सारे पैसे खर्च हो गए थे । पैसे की तंगी के कारण अब उसका गुजारा नहीं पा चल रहा था। गृहस्थी के सामान भी महंगे हो गए थे, केवल इस घर से ढाई हज़ार महीने मिल रहे थे। राधिका को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। कोई उधार देने वाला भी नहीं था।

तभी राधिका को याद आया कि कुछ महीने पहले वह चम्पा से मिली थी जो उसकी ही तरह घरों में

काम करती थी। चम्पा हमेशा बहुत बन ठन कर रहती थी । रोज नए नए कपड़े पहनती थी। लिफ्ट में चम्पा ने राधिका को बताया था कि आज उसके मालिक ने उसे दिवाली के कई गिफ्ट और नगद रुपए बोनस के रूप में दिये हैं । चम्पा ने राधिका से पूछा कि तुम्हें क्या क्या मिला? राधिका को कुछ मिला ही नहीं था इसलिए वह खामोश ही रही। तभी चम्पा ने गिफ्ट दिखाने के लिए अपने बैग में हाथ डाला तो बैग से एक पैकेट नीचे गिर पड़ा । चम्पा सकपका गयी और उसने पैकेट झट से उठा कर छिपा लिया, पर राधिका ने देख लिया। उसे सब समझ आ गया था कि चम्पा को किस काम के बदले गिफ्ट और नगदी मिलती है। उसने चम्पा को धिक्कारा कि तुम अनैतिक काम करती हो। तुम्हें शरम आनी चाहिए। चम्पा तो बेशरम थी, ही ही करते हुये बोली, “ इसमें हर्ज़ ही क्या है? अगर

उससे दो पैसे मिल जाते हैं तो किसी का क्या बिगड़ जाता है। फिर पति को रोज दारू के पैसे भी देने पड़ते हैं"।

राधिका बोलती रही, “दीदी मैं ईश्वर की कसम खा कर कहती हूँ कि जब हम लोग भूखों मरने लगे तो

मुझे न जाने क्यों चम्पा की याद आयी, सोचा कि चलो एक बार चम्पा वाला प्रयास करते हैं। मगर कौन साहब उस पर फिदा होंगे? मुझे आप के पति सुहेल का ध्यान आया। एक बार वे घर पर रुकने को कह रहे थे। सोचा शायद उनके मन में मेरे लिए कुछ हो। यह सब बिलकुल आसान नहीं था क्योंकि आप के पति आप से बहुत प्यार करते थे। वे आपको धोखा कैसे देंगे? मैं बड़ी उलझन में थी कि यह सब कैसे कर पाऊँगी” । वह बहुत घबराई हुयी लग रही थी। दो दिन इसी तरह बीत गए । उसे कोई दूसरी मदद नहीं मिल रही थी इसलिए मजबूरन सुहेल को खुश करके पैसे लेना चाहती थी। उसने आज अपने को मानसिक रूप से तैयार कर लिया था। उसने अच्छे कपड़े पहने, मेकअप किया, और काम पर पहुँच गयी। मेम साब बाथरूम में थीं, यही उसके लिए सुनहरा मौका था। वह ऐसे हाव भाव करने लगी ताकि सुहेल का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। जब सुहेल उसकी तरफ देखता तो राधिका अपना शरीर उसे दिखाने का प्रयास

करती, कभी अपना पल्लू गिराती तो कभी साड़ी घुटने तक उठाने का नाटक करती। वह बहुत खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन इतनी बुरी भी

नहीं थी। ऐसे में किसी का मन डोलना स्वाभाविक था। मगर सुहेल भांप गया कि उसकी यह करना बनावटी था। कहीं कुछ गडबड जरूर है।

सुहेल का मन काम में नहीं लग रहा था। उसे राधिका का चाल- चलन अजीब सा लग रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि पहले तो राधिका ऐसा नहीं करती थी, बड़ी शालीनता से आती थी और काम में लग जाती थी और काम पूरा

करके चुपचाप चली जाती थी। उसके कपड़े हमेशा दुरुस्त होते थे। मगर आज तो उसके हाव-भाव बदल गए थे। आज तो राधिका किसी न किसी बहाने से उसके पास ही मंडराती रही थी। अगले दिन तो हद ही हो गई । राधिका ने सुहेल से पूछा कि मैं बहुत अच्छी मालिश करती हूं। आप कहें तो आपकी चंपी कर दूँ। आप खुश हो जाएंगे तो मुझे कुछ इनाम दे दीजिएगा।

वैसे तो सुहेल को बहुत अच्छा लग रहा था मगर उसे यह बात हजम नहीं हो रही थी कि उसकी नौकरनी इनता गिर सकती है। उसे यह भी लगा कि कहीं राधिका मौके का फायदा उठा कर उसका वीडियो आदि न बना ले और फिर उसे ब्लैक

मेल करे। सुहेल ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की और कहा कि देखो तुम्हें ऐसा बिचार भी मन में नहीं लाना चाहिए। सुहेल इस मौके का फायदा नहीं उठाना चाहता था बल्कि राधिका को रास्ते पर लाना चाहता था।

सुहेल ने सारी बातें अपनी पत्नी नंदिनी को बतायी। पहले तो नंदिनी को विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह कह रही थी कि आप ही उस पर गलत निगाह रखते होंगे। सभी मर्द एक ही तरह के होते हैं। राधिका के तो दो बच्चे हैं उसका पति भी है,फिर वह ऐसा कैसे कर सकती है । सुहेल ने कहा हमें पता करना चाहिए कि सही बात क्या है और राधिका के मन में क्या चल रहा है। उसने नंदिनी को सहयोग देने को राजी कर लिया ।

अगले दिन जब राधिका आई तो सुहेल ने नाटक करते हुए उसे अपने पास बुलाया और बोला, " देखो मेरे सर में दर्द हो रहा है। थोड़ा सा तुम तेल लगा दो" । राधिका तो यही चाहती थी झट से तैयार हो गई। और वह सर पर लगाने लगी। तेल लगाते हुये राधिका ने कहा अगर आप कुछ और सेवा कराना चाहते हों तो बताइए। मगर यह कहते उसकी जबान लड़खड़ा रही थी। सुहेल ने पूछा तुम ऐसा क्यों करना चाहती हो? खुल करके मुझसे बताओ कि तुम्हारी क्या मजबूरी है।

यह सुनकर राधिका रोने लगी । उसने सुहेल के पैर पकड़ लिए और कहा मैं बुरी औरत नहीं हूं। मैं

हमेशा इज्जत से रहना चाहती हूं। मगर जब से काम धाम बंद है और मेरे पति बाहर पड़े हुए हैं तो कोई पैसा नहीं देता। एक हफ्ते से मेरे घर में एक पाव चावल भी नहीं है। कल बीबी जी ने मुझे कुछ बासी रोटियां दी थी उसी से काम चल रहा है। मुझे पता है कि मेरे साथ काम करने वाली दूसरी भी हैं जो कितने ऐसो आराम से रहती हैं और कैसे पैसा कमाती हैं। जब मेरा काम नहीं चला तो मैंने भी

सोचा कि मैं भी क्यों न उसी तरीके से कुछ कमाई कर लूँ । मुझे माफ कर दीजिए।

नंदिनी ने राधिका को उठा लिया और कहा मुझे तुम्हारी सारी कहानी पता हो गयी है । तुम्हारी हरकतों को देख कर हमें ताज्जुब हो रहा था इसलिए मैं और सुहेल दोनों ने मिलकर तुम्हारी मजबूरियों का पता लगाने की सोची थी। एक नारी

होने के नाते मेरा धर्म होता है कि मैं दूसरी नारी की मुसीबत में मदद करूँ । चूंकि तुमने साफ-साफ बातें बता दी हैं इसलिए हम दोनों तुम्हारी भरपूर मदद करेंगे परंतु तुम्हें वादा करना पड़ेगा कि इस तरह के काम तुम कभी नहीं करोगी । इंसान वही है जो संकट के समय में भी संयम रखें तभी भगवान उसकी मदद करते हैं। इस प्रकार सुहेल और नंदिनी की समझदारी से उनका परिवार भी बच गया

और एक काम करने वाली भी कलंकित होने से बच गई।

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