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बाल कथा हीरा मोती

बालकहानी हीरा-मोती
एक गांव में बरगद के दो घने पेड़ घने थे। एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती था। दोनों में गहरी मित्रता थी। वह एक दूसरे के बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। बीस बरस पहले नंदू ने उन्हें अपने खेतों के किनारे लगाया था। यही सोच कर कि यह खूब छाँव देंगे। कड़ी धूप में खेत पर काम करते- करते जब मैं थक जाऊंगा तो इसी की छांव में सुस्ता लूंगा। हीरा- मोती को इंसानों की सेवा करते- करते उम्र गुजर गई। हरे-भरे छायादार घने बृक्ष के नीचे ना जाने कितने राहगीर अपनी थकान मिटाते और बिना एहसानमंद हुए चल देते। टहनियां आपस में गले मिलतीं, ठिठोली करती और ढेर सारी बातें भी। इसके लिए उन्हें पवन का इंतजार रहता था कि कब पवन का झोंका आए और वह छुपा छुपी खेलें। कभी-कभी पवन शरारत करती और ढेर सारी धूल उड़ा देती, पत्ते खिलखिलाकर हंस देते एक दूसरे की धूल को साफ कर देते इसी तरह हंसी खुशी दिन बीत रहे थे।
एक दिन सरकार की तरफ से बड़ी सड़क( बाईपास) निकालने का ऐलान हुआ। शहर के लोग बहुत खुश थे कि उनका सफर आसान और सुविधाजनक हो जाएगा। गांव के कुछ बड़े लोग भी राहत महसूस कर रहे थे कि अब उन्हें अच्छे कपड़े, जरूरत का सामान लाने के लिए यह सड़क बड़ा काम आएगी।
गांव के बच्चे शहर के अंग्रेजी माध्यम में आसानी से पढने जा पायेंगें। बरसात में कच्ची मिट्टी की सड़कों पर कीचड़ भी अब नहीं होगी । जिस में चलना मुश्किल होता था। एक बार तो खेलते-खेलते दीपू की फिरकी ऐसी गुम हुई कि आज तक नहीं मिली तो दीपू भी खुश था।
खैर सड़क की नापतोल शुरू हो गई कई सरकारी अफसर, ठेकेदार, इंजीनियर का जमावड़ा लगने लगा तैयारी जोरों शोरों से चल रही थी काम तेजी से शुरू भी हो गया।लेकिन एक बात थी जो अच्छी नहीं थी। कुछ किसानों की जमीन सड़क के रास्ते में आ रही थी। उन्हें नानुकुर करते हुए अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ा ।सरकार की तरफ से उचित मुआवजा जरूर मिला था पर वह रकम काफी नहीं थी। जिस जमीन का वह मुआवजा दे रहे थे वह उनके लिए बहुत कीमती थी। जिससे अन्न के रूप में सोना उगता था और उसी अन्न को खाकर सब पले-बढ़े थे। तो यह फैसला आसान नहीं था पर किया भी क्या क्या जाता। सरकारी हुक्म और तरक्की की सोच तले किसानों को समझौता करना पड़ा और उन्होंने हथियार डाल दिए।
नंदू के खेत का भी थोड़ा सा हिस्सा सड़क की लपेट में आ रहा था। इस बात की भनक हीरा- मोती को भी लग गई थी। वह बहुत चिंतित थे और डरे हुए भी थे। इसी वजह से उन्हें रात भर नींद नहीं आई। दोनों एक दूसरे को सांत्वना देते रहे समझाते रहे।
आखिरकार सुबह हो गई ।तीन- चार हट्टे कट्टे मजदूर कुल्हाड़ी लेकर आ गए। मोती वृक्ष के इर्द-गिर्द घूम कर कुछ निशान लगाएं और कुछ बातें भी की। यह देख कर दोनों बुरी तरह घबरा गए। डरे-सहमे दोनों चुपचाप सब देख रहे थे। स्थिति को भापकर मोती वृक्ष ने हीरा वृक्ष से कहा दोस्त शायद मेरे जाने का समय आ गया है ।मुझे सड़क के लिए कुर्बान होना ही पड़ेगा। तुम अपना ख्याल रखना। हीरा वृक्ष की आंखों में झरझर आंसू बहने लगे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने मित्र को कैसे बचाएं उसने पवन को पुकारा और कहा मैं अपने मित्र से आखरी बार गले लगना चाहता हूं पवन का दिल भी भर आया उसने एक जोर का झोंका दिया दोनों वृक्षों की टहनियां एक दूसरे से मिलकर सुबुकने लगीं।

कुल्हाड़ी का जोरदार प्रहार हुआ और फिर देखते ही देखते मोती वृक्ष एक ठूठ में बदल गया उसकी टहनियां पत्ते और तना सब जमीन पर पड़े थे हीरा अकेला रह गया।
एकदम से हीरा की आंख खुली तो पवन ने उसे झकझोर कर कहा "हीरा उठो और नीचे देखो"- यह क्या यह तो स्वप्न था। वह सभी कुल्हाड़ी लेकर वापस लौट रहे थे। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए निर्णय बदल लिया गया था और यह तय हुआ था कि भले ही सड़क की चौड़ाई को कम कर दिया जाए मगर पेड़ को काटा नहीं जाएगा। एक पेड़ इतनी ऑक्सीजन छोड़ता है कि सौ से भी ज्यादा व्यक्ति सांस ले सकते हैं। मौसम का बदलाव भी पेड़ों पर ही निर्भर है। अतः सभी को पेड़ काटना नहीं, लगाना चाहिए।

हीरा मोती अब सुरक्षित थे। खुशी के मारे दोनों फूले नहीं समा रहे थे ।पवन ने गदगद होकर एक बार फिर जोर का झोंका दिया। दोनों मित्र गले लग गए ।अब वह बहुत खुश थे। क्योंकि मनुष्य ने आज उनका आभार व्यक्त किया था।
छाया अग्रवाल
मो 8899793319

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