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कृष्णा भाग-६

रमेश अपने दोस्त के बेटे की शादी में गया हुआ था। शाम को जब वह लौटा तो बहुत ही खुश था। उसे इतना खुश देख कमलेश ने कहा
"क्या बात है जी! आज बहुत दिनों बाद आपको इतना खुश देख रही हूं । कोई खास बात है!"
"हां भाग्यवान मैं कृष्णा की शादी के लिए‌ चिंतित था । भगवान ने मेरी मुराद पूरी कर दी। शादी में ‌ मेरे दोस्त किशन का एक रिश्तेदार आया हुआ था। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला कि वह भी अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढ रहा हैं और उनका बेटा भी अफसर है। किशन ने बताया था मुझे। फिर क्या था, मैंने अपनी कृष्णा के बारे में बताया ‌तो वह लोग तुरंत राजी हो गए।"
उनकी बात सुन कमलेश पहले तो खुश हुई। फिर थोड़ा उदास होते हुए बोली
'सुनो जी आपने उनसे सारी बातें खुलकर कर ली थी! मैं ना चाहती हूं हर बार मेरी बेटी का दिल टूटे!"
"हां हां मैंने उन्हें फोन में कृष्णा की फोटो दिखा दी थी। साथ ही रंग के बारे में भी बता दिया था।मेरी बात सुनकर वह लोग बोले कि भाई साहब गुणों के आगे रंग रूप कोई मायने ना रखता। दोनों एक जितने पढ़े-लिखे हैं और एक जैसे पद पर हैं। हम तो अगले हफ्ते आकर रिश्ता पक्का कर जाएंगे।

तब मैंने कहा भाई साहब हमें इतनी जल्दी नहीं । बच्चे एक दूसरे को देखेभाले, बातचीत करें। सब तसल्ली हो जाने पर फिर आगे बात बढ़ाएंगे। उन्हें मेरी बात जच गई। अगले हफ्ते लड़का भी साथ आएगा। कृष्णा और वह आपस में मिल लेंगे। क्या पता दोनों के विचार मिल जाएं। सच मेरा दिल कहता है इस बार बात जरूर बन जाएगी!"
कृष्णा‌ के ऑफिस से लौटने के बाद रमेश ने उसे सारी बातें बताई।
यह सब सुनकर वह बोली " पापा आप क्यों मेरी शादी कराना चाहते हैं। क्या मैं आपको इस घर में अच्छी नहीं लगती। क्या यह घर मेरा नहीं!"
"नहीं बेटा यह घर भी तेरा ही है। तू तो हमारे घर की रौनक है। पर जो परंपरा चली आई है, बेटा वह तो निभानी पड़ती है। बेटियों को शादी कर दूसरे घर जाना ही होता है। अच्छा छोड़ इन बातों को! देख मैं लड़के की तस्वीर भी लाया हूं फोन में। देख है ना सुंदर है!"
" पापा वह सुंदर है तो क्या मुझे पसंद करेगा!"
" क्यों नहीं करेगा! अच्छा तू देख तो सही! "
आपने देख लिया ना पापा, बस बहुत है!"
" नाराज है अपने पापा से!"
" नहीं पापा!"
"तो एक नजर देख तो सही!"
"अच्छा पापा आप इसे मेरे फोन पर भेज दो। मैं कपड़े चेंज कर देख लूंगी।"
कपड़े चेंज करने के बाद कृष्णा आपने व्हाट्सएप मैसेज देखने लगी। तभी उसकी नजर अपने पापा के मैसेज पर पड़ी । ना चाहते हुए भी ‌बेमन से उसने मैसेज खोल लिया। जैसे ही फोटो पर उसकी नजर पड़ी, उसके हाथ से फोन छूटते छूटते बचा। उसने दोबारा से तस्वीर को देखा। हां ये तो मोहन ही है । उसका क्लासमेट!
यह वह यही है। उसे यकीन नहीं हो रहा था। मध्यम कद, गेहुआ रंग, आकर्षक व्यक्तित्व का ‌ शर्मिला सा नौजवान। उसकी आंखों में एक अजीब सी कशिश थी। जो सबको अपनी ओर आकर्षित करती थी। कितनी लड़कियां उससे दोस्ती करना चाहती थी। लेकिन वो सबसे दूरी बना अपनी सीमित सी दुनिया में रह, उसकी तरह हमेशा पढ़ने लिखने में लगा रहता था।

कृष्णा आंखें बंद कर लेट गई। लेकिन यादों का झंझावात थमने का नाम नहीं ले रहा था। मोहन से उसकी ना के बराबर बातचीत हुई थी। पहली बार हां, सेकंड ईयर में। 10 -15 दिनों से वह कॉलेज नहीं आ रहा था। साथ पढ़ने वाले दूसरे स्टूडेंट्स से पता चला कि उसे टाइफाइड हो गया है। ठीक होने के बाद जब वह आया तो सभी उससे उसका हाल चाल पूछ रहे थे।
औपचारिकतावश वह भी अपने को रोक न सकी और जाकर उसकी तबीयत के बारे में पूछने चली गई। पहली बार उसने उसे इतने करीब से देखा था। अजीब सी कशिश थी उसकी आंखों में। जिसे देख उसका मासूम सा दिल भी मचल उठा था।
वह जल्दी से वहां से चली गई। अगले दिन जैसे ही वह कॉलेज पहुंची कि तभी उसने देखा मोहन उसकी ओर आ रहा है । वह उससे सामना करना नहीं चाहती थी । इसीलिए वह दूसरी तरफ मुड़ गई। तभी पीछे से मोहन ने उसे आवाज दी।
" कृष्णा जी !"
और उसके कदम वही थम गए और सांसे तेज तेज चलने लगी। मोहन उसके पास आया और बोला
"देखिए अगर आपको दिक्कत ना हो तो मुझे पिछले दिनों के नोटस दिखा दीजिए। जिससे कि मैं अपना काम पूरा कर सकूं।"
उसने सहमति में सिर हिला दिया था और अगले दिन ही उसने सारे नोटस लाकर उसे दे दिए थे।
नोट्स वापस लेते हुए मोहन ने उसे बहुत शुक्रिया कहा था। ‌

कृष्णा को याद आ रहा था कि कैसे वह उस समय हर पल उसके बारे में ही सोचती रहती थी लेकिन जल्दी ही उसने इन सब बातों को दरकिनार कर दिया और फिर से अपने लक्ष्य पर नजर बना ली थी।
आज इतने सालों बाद मोहन का रिश्ता उसके लिए, विश्वास नहीं हो रहा था उसे!
क्या वह उसे पसंद करेगा या फिर वही सब !
वह तो इतने आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है और अच्छी पोस्ट पर भी है। फिर वह क्यों उसे पसंद करेगा! नहीं ,नहीं! मोहन और लड़कों जैसा नहीं था। उसके विचार अलग थे। इतना तो वह जानती ही थी लेकिन मेरे जैसे लड़की को जीवनसंगिनी बनाएगा!" सोचते सोचते कृष्णा की आंख लग गई।
आखिर संडे भी आ ही गया। दुर्गा पहले ही अपने मायके आ गई थी । दोपहर होते-होते मोहन अपने मां पिताजी के साथ उनके घर पहुंच चुका था।
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। कृष्णा भी चाय लेकर आ गई थी। मोहन की मां ने उसे अपने पास बिठाया और उससे प्यार से 2-4 सवाल जवाब किए।
रमेश और मोहन के पिताजी आपस में बातचीत कर रहे थे थोड़ी देर बात करने के बाद मोहन की मां ने कहा
"भाई साहब हमें लड़की पसंद है। आप तो शादी की तैयारी करो।"
यह सुन दुर्गा बोली " मौसी जी आप इतनी जल्दी मत करो। आराम से तसल्ली कर लो। क्योंकि यह शादी ब्याह का मामला है ।"
"हां बहन जी जल्दबाजी करना सही ना है ! जो कुछ पूछना है अभी पूछ लो और अच्छे से हमारी कृष्णा को देख लो! ऐसा ना हो कि बाद में आप हमारी लड़की से रंग के लिए उसको कुछ कहो।"
"यह क्या कह रही हो बहन जी आप! लड़की है कोई सामान थोड़ी ना है! जो अच्छे से देखे भाले। और रंग का क्या है ! असली पहचान तो इंसान की गुणों से होती है। जो मैंने पहली ही नजर में कृष्णा को देखते ही उसमें पहचान लिए थे। अपनी बहू के रूप में मुझे जैसी लड़की चाहिए थी, कृष्णा वैसी ही है और बहन जी श्याम रंग तो कृष्ण भगवान का भी था!" मोहन की मां ने कहा।
"बहुत ऊंचे विचार है बहन जी आपके! आजकल के समय में आप जैसे लोग मिलना मुश्किल ही है! बस एक बार लड़का लड़की आपस में बातचीत कर एक दूसरे के विचार जान लेते हैं तो सही रहता!" कमलेश बोली।
"बहन जी मेरा बेटा श्रवण कुमार है। जो उसके माता-पिता कहते हैं, वही उसके लिए पत्थर की लकीर है!" मोहन की मां ने कहा।
"यह तो बहुत ही अच्छी बात है कि भगवान ने आपको एक हीरे जैसा बेटा दिया। फिर भी एक बार दोनों एक दूसरे को समझ लेते तो हमें तसल्ली हो जाती। आखिर जीवन इन दोनों को ही एक साथ गुजारना है।" रमेश जी ने कहा।

"हां हां आप सही कह रहे हो भाई साहब! मोहन बेटा हम दूसरे कमरे में चले जाते हैं। तुम दोनों को भी जो कुछ एक दूसरे के बारे में जाना पहचानना है। पूछ लेना !"मोहन के पिता ने कहा।

"नहीं पिताजी इसकी जरूरत नहीं है। आप दोनों ने जो मेरे लिए फैसला किया है, मुझे वह मंजूर है और यह तो मेरी खुशकिस्मती है कि कृष्णा जैसी लड़की मुझे जीवनसंगिनी के रूप में मिली है!" मोहन ने कृष्णा की ओर देखते हुए कहा।

मोहन की बात सुन कृष्णा को अपने कानों पर यकीन नहीं ना हुआ। उसकी सहमति से उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया ।

शादी की तारीख 2 महीने बाद के लिए निश्चित हुई। इन दो महीनों के दौरान कृष्णा व मोहन के बीच कोई खास बातचीत तो नहीं हुई और ना ही मिलना जुलना।‌ इस बात का कृष्णा को बुरा भी नहीं लगा क्योंकि वह मोहन के स्वभाव से अच्छे से परिचित थी।
आखिर वह दिन भी आ गया, जिसका हर लड़का लड़की के जीवन में विशेष महत्व होता है। हमेशा साधरण रहने वाली कृष्णा आज दुल्हन के रूप में पूर्णिमा का चांद लग रही थी। उसके चेहरे की आभा देखते ही बनती थी। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही कृष्णा है!
दूसरी ओर मोहन तो वैसे ही आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। आज दूल्हे के रूप में वह एक सजीला नौजवान लग रहा था। शादी संपन्न होने के बाद विदाई के समय कमलेश और रमेश का रो रो कर बुरा हाल था।
कृष्णा भी कम भावुक ना थी, उनसे विदा लेते हुए। रमेश ने कृष्णा को गले लगाते हुए कहा "बिटिया मैं तुझे एक घर से दूसरे घर विदा कर रहा हूं। पर यह मत समझना कि तू हमारे लिए पराई हो गई है। यह घर अब भी तेरा है। कभी भी किसी समय भी अपने पिता को पुकारेगी। वह अपनी बेटी के लिए हमेशा मौजूद रहेंगा।"

कमलेश ने भी अपनी बेटी को समझाते हुए कहा "कृष्णा अब तू बेटी के साथ साथ बहू भी है। दो-दो घरों की मान मर्यादा तेरे कंधों पर है। उन्हें संभाल कर रखना तेरी जिम्मेदारी है। कभी भी अपने मां बाप के संस्कारों को शर्मिंदा मत करना। ससुराल वालों का सम्मान करना लेकिन अपना आत्मसम्मान भी बनाए रखना। मुझे यकीन है मेरी बेटी घर बाहर के कामों में तालमेल बनाकर चलेगी और अपने काम व व्यवहार से सबका दिल जीत लेगी!"
दुर्गा ने अपनी बहन को प्यार करते हुए कहा "मेरी भोली सी प्यारी सी कृष्णा को भगवान जीवन की सारी खुशियां दे। जीवन के किसी मोड़ पर , जब भी तुझे कोई समस्या हो अपनी बहन को याद कर लेना। वह तेरे लिए दौड़ी आएगी। "

दीपक ने अपने जज्बातों को काबू में करते हुए कहा "दीदी आप मम्मी पापा की ओर से बेफिक्र रहना। मैं सब का पूरा ध्यान रखूंगा और आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा ।" उसने आंसू पोंछते हुए अपनी बहन को विदा किया।

कृष्णा ने अपने माता पिता की सभी बातों व संस्कारों को आंचल में गांठ बांध,‌भावी जीवन के सुखद स्वप्न आंखों में संजो, अपनी ससुराल में कदम रखा।
क्रमशः
सरोज ✍️

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