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कृष्णा - भाग २

"क्या हुआ। अब तू कुछ बताएगी या फिर मुंह ही फुलाए रखेंगी!"
"अब तुम्हारी मां ऐसी बातें करेगी तो गुस्सा तो आएगा ही ना! आज फिर बैठ गई थी। वही पोते की बात लेकर। अब यह सब मेरे हाथ में है क्या! तुम ही बताओ!"
"अच्छा शांत हो जा! ज्यादा मां की बातों को दिल पर मत लिया कर।"
"अच्छा जी, आप एक बात बताओ! अगर मुझे इस बार भी लड़की हुई तो क्या आप मुंह फेर लोगे मुझ से!"
"लगता है तेरा भी मां की बातों को सुन सुनकर दिमाग फिर गया है। बेटा हो या बेटी बस तेरे जैसे ही सुथरे से होने चाहिए!" कहते हुए रमेश ने उसे अपनी बाहों में भर लिया।

कमलेश कसमसाती सी बोली "छोड़ो जी आपको तो हर बात में बस यही सब कुछ सूझता है। अम्मा आती ही होगी। क्या सोचेंगी!"

"अम्मा ना आने वाली अंदर। कह रमेश ने उसके गालों पर....!"
आखिर वह दिन भी आ गया। जिसका सभी को इंतजार था।रात से ही कमलेश को प्रसव पीड़ा हो रही थी । रमेश उसे लेकर जब अस्पताल जाने लगा तो अम्मा जी ने अपने पितरों के नाम के उठा कर पैसे रख दिए और बोली "भैया मैं तो तेरे साथ ना चलूंगी! ऐसे भी बहुत घबराहट हो रही है। तुम जाओ। मैं तो यहीं बैठ भगवान से अपने पोते के लिए प्रार्थना करती हूं। जाओ और जल्द ही खुशखबरी लाना।"
अगले दिन शाम को रमेश , कमलेश को जब अस्पताल से वापस लेकर लौटा तो अम्मा जी ने आगे बढ़ पूछा रमेश तूने कल से फोन क्यों नहीं किया । पता है मुझे कितनी घबराहट हो रही थी। पोता हुआ है ना! जल्दी बता मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही है!"
"ना मां कन्या परमेश्वरी आई है इस बार भी!"
सुनते ही रमेश की मां वही माथा पकड़ बैठ गई और बोली " मैं तो पहले ही इसके लक्षण देखकर बता दिए थे। लगता है तेरे बेटे का मुंह ना देख पाऊंगी!
उनकी बात सुन कमलेश का मुंह उतर गया यह देख रमेश उसे अंदर ले गया और लिटाते हुए बोला "तू परेशान मत हो! बड़े बूढ़े की आदत होती है बोलने की। अभी देखना आकर् कैसे अपनी पोती को गोद में उठा लेगी।"
बाहर आकर रमेश ने अपनी मां से कहा " मां कैसी बात कर रही हो तुम! वह भी तो हमारी ही बेटी है! चल अंदर चल उसे आशीर्वाद दें और जो नेग करना है कर।"

बड़ी मुश्किल से रमेश की मां उसके साथ अंदर गई। रमेश ने लड़की को उनकी गोद में जैसे ही दिया। उस लड़की को देख एकदम से चिल्लाते हुए वह बोली " बहू ये क्या कोयला जन दिया तूने! एक तो लड़की ऊपर से इतनी काली! तूने तो मेरे बेटे के भाग फोड़ दिए। हे भगवान किन कर्मों की सजा दे रहा है तू हमें! कौन ले जाएगा इस लड़की को! कोई बैठने भी ना देगा इसे अपने पास!" कह वह रोती हुई बाहर निकल गई।
कमलेश तो पहले ही लड़की होने पर डर रही थी और अब अपनी सास का यह बर्ताव देख वह भी रोने लगी। उसे यूं रोता देख रमेश गुस्से से बोला
"लगता है पागल हो गई हो तुम सास बहू! अरे बच्चा जन्मा है घर में कोई मातम थोडे ना हो रहा है! जो तुम रोए जा रही हो। उसका तो समझ आ रहा है, पर तू क्यों रो रही है! तुझे भी लड़की देख कर खुशी ना है क्या!"
"कैसी बात कर रहे हो आप! मैंने इसे अपने पेट जन्मा है। अपने पेट से जना पत्थर भी प्यारा होवे। फिर अपनी बेटी मुझे प्यारी ना होगी! मेरे लिए तो यह चांद का टुकड़ा है । मैं तो बस आप के लिए सोच कर दुखी हूं कि एक तो आपको बेटा ना दे सकी। दूसरा बेटी दी तो वह भी!!! आप ही तो कह रहे थे जी बेटी हो तो सुंदर सी हो अब..!"
"तुझे किसने कह दिया की हमारी बेटी सुंदर नहीं है। क्या काले बच्चे सुंदर नहीं होते। देखो कितनी बड़ी बड़ी आंखें हैं इसकी। कैसे टुकर टुकर देख रही है। कृष्ण जी भी तो काले थे । फिर क्यों सब उनके जैसे ही बच्चे की कामना करते हैं । ये तो मेरी कृष्णा है। हम इसका नाम कृष्णा ही रखेंगे और तू देखना मां भी ज्यादा दिन हमारी कृष्णा से दूर नहीं रह पाएंगी। मैं जानता हूं उन्हें।वह जितना दिखाती हैं, उतनी सख्त नहीं है वो।" अपनी बेटी को गोद में ले प्यार करते हुए रमेश बोला।

इतनी देर में ही दुर्गा अंदर दौड़ती हुई आई और अपनी छोटी बहन को देखते ही बोली "मम्मी यह मेरा भाई है क्या?"

" नहीं बेटा बहन है तेरी।"
" अरे वाह मुझे तो बहन ही चाहिए थी। अब ये मेरी सहेली बनेगी और मैं इसकी दीदी। है ना पापा। वैसे हम इसका नाम क्या रखे पापा!"
"इसका नाम कृष्णा है। दुर्गा की बहन कृष्णा।"
" अले ले मेरी प्यारी कृष्णा! मेरी छोटी सी परी। देखो पापा कैसे मुझे देख मुस्कुरा रही है। अपनी दीदी पसंद आ गई है इसे। अच्छा मैं अपनी सब सहेलियों को बता कर आती हूं कि मेरी बहन आई है।" कह दुर्गा बाहर दौड़ गई

रमेश व दुर्गा की बातों से कमलेश के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
अगले दिन ही रमेश अपनी बहन मीना को कमलेश के जापे में उसकी देखभाल के लिए लिवा लाया।
मीना ने आते ही वहीं दूसरी लड़की होने का राग अलापना शुरू कर दिया और बोली
"भाई अब तो तुझे ज्यादा मेहनत करनी होगी। दो दो बेटियों का बाप बन गया है तू। अभी से कमाई में ना लगेगा तो पूरा ना पड़ेगा। मुझे तेरी फिक्र हो रही है।"
तू मेरी फिक्र मत कर। अभी तो अपनी भाभी की अच्छे से सेवा पानी कर। जिससे जल्दी से जच्चा बच्चा तंदुरुस्त हो उठे और भगवान ने इसका भाग्य पहले ही लिख दिया है ।क्या पता मेरी बेटी के भाग्य से मेरी भी किस्मत बदल जाए। मेहनत तो में खूब करूंगा लेकिन इनकी शादी की सोच कर नहीं बल्कि अपनी बेटियों को अच्छे से पढ़ा कर पैरों पर खड़ा करूंगा।
15 दिन बाद जब मीना जाने लगी तो रमेश व उसकी पत्नी ने उसके लिए विदाई के कपड़े व पैसे देने चाहे तो वह बोली
"रहने दे भाई बेटी हुई है। कोई बेटा थोड़ी ना! जो तेरा खर्चा करवाऊं! यह तो मेरा फर्ज था।"
"अरे बेटा हो या बेटी! तेरा तो नेग बनता है ना। तू इसे रख और मेरी बेटियों को आशीर्वाद दे।" कहते हुए रमेश ने उसे सामान दे दिया।
कृष्णा सांवली जरूर थी लेकिन उसके नैन नक्श बहुत ही तीखे थे। उस पर बड़ी बड़ी आंखें।सबका ध्यान आकर्षित करती थी। पहले पहल जो उसे देखकर बातें बनाते थे, अब वही पास पड़ोस की औरतें कृष्णा को बहुत प्यार करने लगी थी। कमलेश की सास की भी अब अपनी इस पोती में धीरे-धीरे मोह बढ़ने लगा था। वह भी अब उसे लाड़ दुलार करती व उसका पूरा ध्यान रखती। कमलेश को यह देख बहुत ही ठंडक मिलती ।
दुर्गा जहां बहुत तेज तर्रार व नटखट स्वभाव की थी। कृष्णा इसके उलट बहुत ही सीधी और शांत थी। वह कभी भी किसी बात की जिद नहीं करती। वही दुर्गा पक्की जिद्दी । हां कृष्णा का पूरा ध्यान रखती थी। क्या मजाल कि कोई उसकी बहन को कुछ कह दे। फिर तो उसकी खैर नहीं है।

कृष्णा अब 4 साल की हो गई थी और रमेश ने उसका नाम दुर्गा के स्कूल में ही लिखवा दिया था। पहले दिन ही कृष्णा स्कूल गई तो सभी लड़कियां उसे कल्लो कल्लो कहकर चिढ़ाने लगी । सीधी-सादी कृष्ण उनकी बात सुन रोने लगी जब दुर्गा को यह है पता चला तो वह आधी छुट्टी में उन लड़कियों से भिड़ गई और उन्हें डांटते हुए बोली खबरदार जो फिर कभी किसी ने मेरी बहन को उल्टा सीधा बोला तो......!"
सरोज ✍️
क्रमशः


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