वर्ष पंख लगाते ही बीत गए। दुर्गा एक प्यारे से बेटे की मां बन गई थी और कृष्णा ने नई ऊंचाइयों को छूते हुए बीएससी फर्स्ट डिवीजन से पास की।
उसके नाम के साथ एक नया तमगा जुड़ गया, गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा। दीक्षांत समारोह में वह अपने माता-पिता के साथ पहुंची। अपनी बेटी को सम्मानित होता देख। रमेश और कमलेश का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।कृष्णा शुरू से ही साइंटिस्ट बनना चाहती थी और उसका यह सपना कॉलेज से मिली स्कॉलरशिप ने पूरा कर दिया। उसे अगले महीने अमरीका जाने का निमंत्रण मिला था।जिसने भी सुना कृष्णा को बधाई देने दौड़ा चला । कल तक उसे उसके रंग के कारण कोयला कहने वाले आज उसे सिर आंखों पर बिठा रहे थे।
कृष्णा इन सब बातों से कहीं आगे निकल अपने सपनों की दुनिया में मगन अमेरिका जाने की तैयारियों में जुट गई थी। रमेश भी अपनी बेटी के सपनों को उड़ान देने के लिए उसकी पूरी मदद कर रहा था। सभी बहुत खुश थे।
कमलेश 1 दिन खाना खाते हुए बोली "अगर आज अम्मा जिंदा होती है तो देखती हमारी बिटिया अपने बलबूते पर आसमान छूने चली है!"
" सच कह रही हो तुम! आज तक कोई लड़की 12वीं के बाद कॉलेज ना गई थी और हमारी बेटी तो अब विदेश जाने की तैयारी में है। यह तो दूसरी लड़कियों के लिए एक मिसाल बन कर निकली है। आज इससे प्रेरणा ले, गांव वाले अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह आगे पढ़ने का मौका दे रहे है। इसने यह धारणा ही बदल दी कि बेटे ही कुल का नाम रोशन करते हैं। कृष्णा ने हमारा नाम है नहीं बल्कि पूरे गांव का नाम भी रोशन कर दिया है।"
कृष्णा के जाने मैं एक हफ्ता ही बचा था। उसकी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थी कि 1 दिन शाम पुलिस रमेश के घर पर पहुंची । पुलिस को देख पूरा परिवार सकते में आ गया ।पता चला दीपक अपने दोस्तों के साथ चोरी करते हुए पकड़ा गया है। सुनकर रमेश को इतना सदमा लगा कि वह वहीं बेहोश हो गया।कृष्णा ने दुर्गा को फोन कर दिया और वह जल्दी से उन्हें लेकर अस्पताल पहुंची। दुर्गा व उसका पति थोड़ी देर में ही अस्पताल में पहुंच गए । डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें हार्ट अटैक आया है। सुनकर सभी बहुत घबरा गए और रोने लगे।
तब डॉक्टर ने उन्हें समझाते हुए कहा "घबराने की कोई बात नहीं ,अब यह खतरे से बाहर है लेकिन इनका बहुत ध्यान रखना होगा। कोई ऐसी बात इनके सामने ना कहे जो इनके दिल को धक्का दे।"
एक हफ्ता हॉस्पिटल में रहने के बाद रमेश को छुट्टी मिल गई।दुर्गा के पति ने दीपक की जमानत करवा दी। घर पर जब वह आया तो रमेश ने उसे बहुत धिक्कारा और उसे घर से निकल जाने को कहा।
तब दुर्गा के पति ने उनसे कहा "पापा इसकी चिंता ना करें । हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा। इसे सबसे पहले हमें बुरी संगत से बचाना होगा।"
" लेकिन बेटा हम तो इसको समझा कर हार गए। घर में क्या कमी थी जो इसे चोरी करने की सूझी। खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी। रमेश की आंखों से आंसू आ गए।"
उन्हें दुखी देख दुर्गा का पति बोला "पापा आप परेशान मत हो। दीपक को मैं अपने साथ ले जाऊंगा और वही रखूंगा। दूर रहेगा तो बुरे दोस्तों की संगति अपने आप छूट जाएगी और वही मैं इसे कुछ काम धंधा सिखा दूंगा। पढ़ाई तो वैसे ही इसने करनी नहीं.।"
" लेकिन बेटा मैं नहीं चाहता इसकी वजह से दुर्गा को कुछ सुनना पड़े। यहां तो बदनामी हो ही गई ।वहां इसने ऐसा वैसा कुछ कर दिया तो हम तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। फिर समधी समधन क्या कहेंगे! नहीं बेटा इसे यहीं रहने दो! जो हमारी किस्मत में लिखा है ,हम भागेंगे!"
उनकी बात सुन दुर्गा बोली " पापा आप ऐसा क्यों कह रहे हो। क्या आपको अपने बेटी ,जमाई पर विश्वास नहीं है। मेरे ससुराल वाले बहुत ही अच्छे हैं। इतना तो आपको भी पता है। आप बस अपनी सेहत का ध्यान रखो और ज्यादा कुछ मत सोचो। आप अभी आराम करो। काम पर जाने की भी जरूरत नहीं हम बीच-बीच में आते रहेंगे। वैसे कृष्णा तो है ही। उसे मैंने समझा दिया है।"
"बेटा कृष्णा को तो कल ही जाना है। भूल गई क्या!"
" अरे हां पापा! इन सब में तो हम यह जरूरी बात भूल ही गए थे। कोई बात नहीं कृष्णा तू जाने की तैयारी कर, मैं पापा का ध्यान रखूंगी।"
" दीदी आपने कैसे सोच लिया कि मैं पापा को इस हालत में छोड़कर चली जाऊंगी। इस समय पापा को मेरी जरूरत है । अगर मैं चली गई तो मम्मी अकेली पड़ जाएगी ।"
"क्या कह रही है कृष्णा तू ! अरे तेरी बरसों की मेहनत है यह! क्यों हमारे कारण इस सुनहरे अवसर को छोड़ रही है । तू जा मेरी बेटी! तेरे पापा ठीक है! मुझे कुछ नहीं हुआ है!"
" हां कृष्णा पापा सही कह रही है। मैं कुछ दिन रूक जाऊंगी यहां पर!"
" नहीं दीदी! आप मायका और ससुराल दोनों कैसे संभालोगे और अभी रोहन 2 साल का ही तो है । मैं इतनी खुदगर्ज नहीं कि पापा को ऐसी हालत में छोड़ हालत में छोड़,चली जाऊं। मैं यही रह अपना सपना पूरा करूंगी लेकिन वहां नहीं जाऊंगी!'
कृष्णा ने सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन कर दिया। वह अपने पिता की देखभाल के साथ साथ अपने एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी भी करती रहती।
रमेश तो बिस्तर पर ऐसा लगा कि चाह कर भी उठ नहीं पा रहा था। दीपक ने जो जख्म दिया था वह अंदर ही अंदर उन्हें खाए जा रहा था। वह चिंता में घुले जा रहे थें इसलिए दवाइयां भी असर नहीं कर रही थी। घर की जमा पूंजी भी खत्म होती जा रही थी।
कृष्णा ने ट्यूशन करना शुरू कर दिया था । उससे कुछ सहारा तो जरूर लग गया था लेकिन इतना काफी ना था। कृष्णा खुद चिंतित थी और यह चिंता तभी मिट सकती थी। जब किसी अच्छी जगह उसकी नौकरी लग जाती है। वह भगवान से जल्द से जल्द नौकरी लगाने की प्रार्थना करती।
आज ईश्वर ने उसकी सुन ली थी। सुबह जैसे ही कृष्णा पूजा कर उठी थी कि तभी उसे डाक मिली। जैसे ही उसने लिफाफा खोला, उसे पढ़ उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
वह अपने मम्मी पापा को खुशखबरी सुनाते हुए बोली "आज आप दोनों के आशीर्वाद और मेरी मेहनत सफल हो गई। आज मेरी नौकरी लग गई। "
कृष्णा ने देखा उसके पापा कुछ उदास है वह बोली "पापा आपको खुशी नहीं हुई मेरी नौकरी लगने की !"
खुशी तो बहुत है बेटा लेकिन साथ ही साथ इस बात का अफसोस है कि मेरी बेटी इससे कहीं ज्यादा की अधिकारी थी लेकिन मेरी वजह से वह आगे ना बढ़ सकी। मुझे माफ कर दे बेटा। मेरे कारण तेरा सपना अधूरा रह गया।"
"ऐसा क्यों कह रहे हो पापा। आपने तो समाज की परवाह किए बगैर हमेशा मेरा साथ दिया है। आपके कारण ही आज मैं यहां तक पहुंची हूं और देखना मैं यही नहीं रूकूंगी। ऐसी छोटी-छोटी बातें मुझे आगे बढ़ने से कभी नहीं रोक सकती। यह तो मेरी मंजिल का बस एक पड़ाव है!"
"मेरी बच्ची मुझे यकीन है, तेरे मजबूत इरादों पर। भगवान से यही प्रार्थना है कि वह तेरे सारे सपने पूरे करें।"
क्रमशः
सरोज ✍️