कृष्णा भाग-३ Saroj Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कृष्णा भाग-३

इसी बीच कमलेश ने एक बेटे को जन्म दिया । दादी को पोता और बहनों को भाई मिल गया था । परिवार में सभी बहुत खुश थे । कृष्णा दसवीं व दुर्गा 12वीं क्लास में पहुंच गई थी। कृष्णा एक मेधावी छात्रा थी और अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल रहती। वही दुर्गा का मन पढ़ाई में बिल्कुल ना लगता था। उसे तो सजना संवरना, नाच गाना और फिल्में देखना ही भाता था।
बोर्ड के नतीजे आने के बाद जैसी सब को आशा थी, वही हुआ। कृष्णा ने अपनी कक्षा व स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया और दुर्गा ने किसी तरह से खींचतान 12वीं पास की। साथ ही साथ उसने ऐलान कर दिया कि वह अब आगे नहीं पढना चाहती। उसके पिता ने उसे बहुत समझाया। किंतु उसने तो ना पढ़ने के लिए कसम उठा ली थी।
ऊपर से रहा सहा दादी ने उसका साथ दे दिया।

दादी, रमेश से बोली "तू कृष्णा को ही पढा ले। वही पढ़कर अफसर बन जाएगी। अरे लड़की है ,पढ़ाई के अलावा सौ चीजें होती है सिखने को। सिलाई कढ़ाई सीख लेगी, रसोई में अपनी मां की मदद कर, खाना बनाना तो लड़कियों को आना ही चाहिए। तभी आगे जाकर घर बसा पाएंगी। पढ़ाई करने से अच्छा घर बार ना मिलेगा इनको।"

यह सब सुन दुर्गा बोली " दादी मैं सिलाई कढ़ाई नहीं, ब्यूटी पार्लर का कोर्स करना चाहती हूं।"
यह सुन दादी चौंकते हुए बोली " यह क्या कह रही है तू दुर्गा! यह काम ही रह गए थे क्या। मुझे तो पसंद ना ‌है ये सब!"

"दादी अब लड़कियां सिलाई कढ़ाई नहीं, यही सब सिखती है। यही आगे काम आता है।"
और जिद कर वह ब्यूटीशन का कोर्स करने लगी । वही कृष्णा ने आगे की पढ़ाई के लिए साइंस स्ट्रीम ली।
उनका भाई भी अब आठवीं क्लास में पहुंच गया था लेकिन वह तो दुर्गा से भी दो कदम आगे निकला। उसका तो पढ़ाई से कोसों तक नाता ना था। रमेश व उसकी पत्नी हमेशा उसके लिए चिंतित रहते थे। कुछ कहो तो दादी कहने ना देती। उनके लाड़ प्यार के कारण ही वह हाथ से निकला जा रहा था।

देखते ही देखते 2 साल निकल गए। बारहवीं के नतीजे भी आ गये। जैसी सबको आशा थी कृष्णा ने पूरे जिले का नाम रोशन किया और वह प्रथम स्थान पर आई। सभी गांव वालों ने रमेश को कृष्णा की सफलता के लिए बहुत बधाई दी।

रमेश व कमलेश तो अपनी बेटी की कामयाबी पर फूले ना समा रहे थे। रमेश ने अपनी मां से कहा "देखा मां मैं कहता ना था कि मेरी बेटी मेरा नाम रोशन करेगी और देख लिया आज तुमने गांव वाले आकर कैसे बधाई दे रही है।"

उनकी ‌बात सुन दादी ने भी कृष्णा के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा "हां रमेश तू ठीक कह रहा है। वैसे अब तो इनकी पढ़ाई पूरी हो गई। अब दोनों बहनों के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दे। आजकल अच्छे लड़के आसानी से कहां मिलते हैं। अपने जीते जी अपनी पोतियो का ब्याह देख जाऊं। ना जाने कब सांसे बंद हो जाए!"
" क्या बात कर रही हो मां! आप 100 साल तक जीयोगी।"

दादी की बात सुनकर कृष्णा बोली "पापा मुझे अभी आगे पढ़ना है और इसके लिए अब मुझे कॉलेज जाना होगा। मेरा सपना पढ़ाई कर एक अच्छी सी नौकरी करना है। जिससे मैं आपकी मदद कर सकूं इसलिए मैं अभी शादी नहीं करना चाहती।"
"यह क्या कह रही है तू कृष्णा! कॉलेज जाएगी !आज तक हमारे गांव की कोई लड़की बाहर ना गई है! लोग बातें बनाएंगे ! आगे रिश्ता करना मुश्किल हो जाएगा!"

"दादी लोगों के डर से क्या मैं अपना भविष्य खराब कर दूं। पापा आप समझाइए दादी को!"

"ठीक ही तो कह रही है कृष्णा! पढ़ने दो इसे इतनी होशियार लड़की हमें भगवान ने दी है और हम अभी से इसे घर गृहस्ती के झंझटों में डाल दे। वैसे भी इसकी उम्र ही क्या हुई है। मां तू शादी ही देखना चाहती है तो दुर्गा के लिए बात चल ही रही है। भगवान ने चाहा तो रिश्ता पक्का हो जाएगा।"

"जैसी तेरी मर्जी तूने कब बात मानी है मेरी! कर अपनी मनमानी! उमर निकल गई ना फिर मत कहयो, समझाया ना था मां ने!"
"दुर्गा का रिश्ता एक बहुत अच्छे घर में तय हो गया था। दुर्गा वैसे ही खूबसूरत थी। लड़के वालों ने देखते ही हामी भर दी। कुछ ही महीनों बाद बहुत धूमधाम से दुर्गा की शादी हुई। विदाई के समय कृष्णा बहुत ही भावुक हो गईं थी। दुर्गा ने उसे समझाते हुए कहा
" कृष्णा तू बहुत भोली है। अपना ध्यान रखना और मम्मी पापा का भी। कोई भी दिक्कत हो, तो मुझे जरूर बताना। अपनी बहन को पराई मत समझना।"
"यह क्या कह रहे हो दीदी! आप ही तो हो जो मेरे दिल की हर बात समझती हो। आप से नहीं कहूंगी तो किस से कहूंगी।"

कमलेश देख रही थी कि जब से कृष्णा कॉलेज जाने लगी थी। वह कुछ बुझी बुझी सी रहती है। 1-2 बार उसने पूछा भी लेकिन कृष्णा टाल गई। कमलेश को लगा हो सकता है , नया माहौल है तो उसे समय लगे वहां ढलने में। लेकिन जब दो-तीन महीने बाद भी वैसी ही गुमसुम रहती तो कमलेश से रहा ना गया और उसने कहा
"कृष्णा क्या तू अपनी मां को नहीं बताएगी अपने मन की बात! तुझे क्या परेशानी है! तू क्यों उदास रहती !"

उनकी बात सुन वह बोली "मां कॉलेज का माहौल स्कूल के माहौल से बिल्कुल अलग है। हर कोई अपनी ही दुनिया में मस्त है। कोई मुझसे बात ही नहीं करना चाहता। मैंने एक दो बार अपनी ओर से पहल भी की। किंतु सब मुझसे बचकर निकल जाते हैं। यहां तक कि मेरे लेक्चरार भी मुझसे सही से बात नहीं करते। क्या मैं काली हूं इसलिए। क्यों लोग रंग-रूप ही देखते हैं! लगता है मैंने गलती कर दी वहां जाकर!"
कह वह रोने लगी।
यह देख कमलेश उसे चुप कराते हुए बोली " ना मेरी बच्ची।तू कब से ऐसी बातों पर ध्यान देने लगी। भूल गई, मैंने तुझे क्या समझाया था। लोग तो कई बातें बनाएंगे लेकिन तू दिल पर मत ले। तू अपने उद्देश्य से मत भटक । लोगों की बातों को अपनी कमजोरी मत बना बल्कि उन्हें अपनी हिम्मत बना । तू सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें देखना। जो तुझ से अब दूर भाग रहे हैं, थोड़े दिनों बाद आकर खुद तुझसे दोस्ती करेंगे। रूप रंग का क्या है! यह तो उम्र के साथ ढल जाएगा लेकिन तुझे तो ईश्वर ने इतनी कुशाग्र बुद्धि व अनेकों प्रतिभा से बख्शा है और देखना तेरी बुद्धि का लोहा सभी मांनेगे। "

कृष्णा ने अपनी मां की बात गांठ बांध, अपने लक्ष्य पर ध्यान देना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे कॉलेज में पढ़ाई शुरु होती जा रही थी, वैसे वैसे ही लेक्चरर व सभी स्टूडेंट्स कृष्णा की मेधा के कायल होते जा रहे थे। जो स्टूडेंट्स कृष्णा की सादगी व रंग का मजाक उड़ाते थे, आज अपनी सोच पर शर्मिंदा थे।
कॉलेज में आकर भी कृष्णा अपनी सीमा नहीं भूली थी। वह सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देती और दोस्तों के कहने पर भी उनके साथ घूमने फिरने बाहर नहीं जाती थी।
उधर दुर्गा के ससुराल वाले व रिश्तेदार भी उसकी व्यवहार कुशलता से बहुत खुश थे। जाते ही उसने अपने घर परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से संभाल ली थी। जब भी रमेश, दुर्गा के यहां जाता, दुर्गा के सास-ससुर उसका गुणगान करते ना थकते।
रमेश हमेशा कमलेश से यही कहता था कि "जरूर हमने मोती दान किए होंगे। जो हमें इतनी लायक बेटियां मिली है। एक ने तो अपनी पढ़ाई के दम पर और दूसरी ससुराल वालों की सेवा कर हमारे दिए संस्कारों का मान रख रख रही है। कौन कहता है बेटियां बोझ होती है। ऐसी बेटियां तो किस्मत वालों की ही होती है।"
लेकिन जहां एक तरफ उसे अपनी बेटियों की ओर से तसल्ली थी। वहीं दूसरी तरफ उसका बेटा दीपक हमेशा उसकी चिंता का कारण बना रहता। उसकी संगति ऐसे लड़कों के साथ हो गई थी, जो पढ़ते लिखते तो ना थे। हां कई ऐब जरूर करते थें और वही ऐब अब धीरे-धीरे दीपक में भी आते जा रहे थे।
सभी घरवाले उसे समझा कर थक गए थे लेकिन वह एक कान से सुनता दूसरे से निकाल देता। स्कूल वालों ने रमेश को कह दिया था कि 'अगर इसकी आदतों में सुधार ना हुआ तो इसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा। हम नहीं चाहते एक बच्चे के कारण दूसरे बच्चों का भविष्य खराब हो।'
क्रमशः
सरोज ✍️